Monday, August 22, 2011

अन्ना

अन्ना तिहाड़ जेल से बाहर आ चुके हैं और रामलीला मैदान में अन्ना लीला शुरू हो चुकी है..सवाल वहीं का वहीं आगे अब क्या होगा? क्या जनलोकपाल बिल आएगा? अगर ऐसे हालात में भी सरकार ये बिल नहीं लाती है या नहीं ला पाती है तो इसका खामियाजा उसे आगे भुगतना पड़ेगा। क्या है आगे?सबसे पहले बात मीडिया के रोल की...कांग्रेस के साथ-साथ कई लोगों का मानना है कि मीडिया ये जनआंदोलन चला रहा है। वैसे टीम अन्ना की भी तैयारी पूरी है...ये तो कहना ही होगा....एसएमएस, जेल जाने से पहले अन्ना का संदेश यू-ट्यूब पर या फिर जेल से ही किरण बेदी की बातचीत को अपलोड कर देना....कई लोग कहते है कि कम संसाधन में ये बड़ा आंदोलन चल रहा है। चलिए मीडिया की भूमिका पर आते हैं...१५ अगस्त की शाम से जब अन्ना गांधी की समाधि पर मौन बैठे थे तब से लेकर उनके तिहाड़ जेल और रामलीला मैदान तक पहुंचने की एक-एक घटना सीधे लाइव थी....हर एक चैनल पर...रीजनल चैनल भी पीछे नहीं थे। सब ने अपनी ताकत झोंक रखी थी। लेकिन इंग्लिश मीडिया इसे कुछ अलग ही दिखा रहा है। कल करण थापर के शो में आशुतोष को भी जबाव देते नहीं बन रहा था। टाइम्स नाऊ ने बताया था कि तिहाड़ के बाहर लाखों लोग उमड़ आए थे...इसको लेकर करण सवाल कर रहे थे। आईबीएन न्यूज पर ही ये सवाल पूछा जा रहा था कि क्या अन्ना ब्लैकमेल कर रहे है...साथ ही ये भी कि ये जनता का समर्थन है या कि हिस्ट्रिया.....करण थापड़ हिन्दी मीडिया को जरा भी बख्शने के मूड में नहीं थे। एनडीटीवी इंग्लिश पर पहले ही मीडिया के रोल की व्याख्या की जा चुकी है....लेकिन हिन्दी न्यूज चैनलों ने इसे अन्ना बनाम कांग्रेस या यूपीए की लड़ाई बना दिया। अन्ना के विरोध में जिसने भी बात कही वो विलेन बन गया है। अन्ना के तरीके पर जिसने सवाल उठाए...उसकी जमकर खिंचाई हुई। मनीष तिवारी पिछले कुछ दिनों से शायद कहीं दिख नहीं रहे हैं....कपिल सिब्बल को काले झंडे दिखाने शुरू हो चुके हैं....या तो आप अन्ना के साथ है यानी देश के साथ या फिर आप भ्रष्ट है और देश के साथ नहीं है। कुल मिलाकर मामला ऐसा बना कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ना चाहती...बाकी सारे लड़ना चाहते हैं...दूसरे सारे दल भी....बीजेपी से लेकर टीडीपी तक....कई राज्यों में एनडीए की भी सरकार है और वहां भी भ्रष्टाचार है लेकिन लड़ाई सीधे-सीधे अन्ना बनाम कांग्रेस का हो गया है...कांग्रेस के कमजोर थिंकटैक की मेहरबानी भी कम नहीं है इसमें। अन्ना पर निजी हमले कर उसके प्रवक्ताओं ने गलत ही किया....एक बात औऱ हिन्दी मीडिया और इंग्लिश मीडिया में जो अंतर है...मुझे कुछ ऐसा लगता है कि इंग्लिश मीडिया गांव से आए व्यक्ति जो फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल पाता...सूट-बुट में नहीं होता....उसको कम फुटेज देना चाहते हैं....लेकिन हिन्दी मीडिया को लगता है कि ये सामान्य सा बंदा लोगों के बीच आसानी से घुलमिल जाएगा...लोग उसकी बात सुनेंगे और अगर अलग-अलग एंगल से स्टोरी बनाई तो टीआरपी भी उछाल मारेगी.....खैर अब तो अनशन शुरू हो चुका है...इतना तो पहले से ही तय था कि अन्ना का हाल रामदेव जैसा नहीं होगा...वो और ज्यादा खतरनाक होता....देश भर में सड़कों पर लोग उतर आए....ये बात भी सहीं है कि इनमें से किसी को जबरदस्ती सड़कों पर नहीं बुलाया गया...लोग खुद ब खुद आए...भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके लोगों के पास कोई रास्ता भी नहीं था...अब जब अन्ना ने राह दिखाई तो सब एक साथ हो लिए......लेकिन आगे क्या होगा अब भी साफ नहीं है। अनशन कितने दिनों तक चलेगा....१५ दिन बाद भी टीम अन्ना समय मांगेगी...अब अन्ना ने ३० अगस्त तक का अल्टीमेटम दे दिया है...नहीं तो जेल भरने की तैयारी होगी.....कभी कभार में जिद्द लगती है....लेकिन ये जिद्द अच्छा है.....कांग्रेस ने ये नई सिरदर्द खुद ही मोल ली है...सिविल सोसायटी बनाकर.....आगे कहीं किसी दूसरे मामले में इस तरह से इसका चलन शुरू हो जाए तो पता नहीं सरकारें कैसे व्यवहार करेगी। अच्छी बात ये है कि चुनाव अभी काफी दूर है...तब तक डैमेज कंट्रोल किया जा सकता है......लेकिन जरा सोचिए अगर दो चार महीने में चुनाव होने वाले होते तो ये सरकार तो गई ही थी समझो......क्या अन्ना की तुलना गांधी और जेपी से हो सकती है.....तुलना हमेशा ही खतरनाक होता है...अलग-अलग पीढ़ी, अलग-अलग माहौल, अलग-अलग समय जैसी कई सारें दूसरे फैक्टर इसको प्रभावित करते हैं.....लेकिन इतना तो तय है कि गांधी,जेपी के बाद देश ने ऐसा आंदोलन नहीं देखा था........पहले कभी सुना था इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा....कल रामलीला मैदान से आपने सुना है ना......अन्ना इज इंडिया एंड इंडिया इज अन्ना....किरण नारे लगवा रही थी....करण थापड़ के इस सवाल पर भी आशुतोष नाराज हो गए थे। खैर बड़ा सवाल ये है कि क्या अब तक झुकती चली आ रही सरकार और झुकेगी.....टीम अन्ना के रूख से साफ है कि वो ज्यादा झुकेंगे नहीं....क्या होगा अनशन के बाद.....वैसे ये अलग बात है कि कई लोग ये सवाल उठाते रहे हैं कि जनलोकपाल आने के बाद भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा इसकी गारंटी कौन लेगा? वैसे अन्ना ६५ फीसदी तक भ्रष्टाचार खत्म होने की गारंटी देते हैं....क्या होगा आगे इसका जबाव किसी के पास नहीं है....देखते रहिए अन्ना को, सरकार को और मीडिया को।

Friday, July 8, 2011

हम भ्रष्ट देश के नागरिक हैं....

कुछ भी लिखने का सोचिए...ये राजनीति और भ्रष्ट लोग सबसे पहले सामने आ जाते हैं। कल डीएमके के तीसरे साथी भी पार्टी छोड़ तिहाड़ की यात्रा करने को तैयार हो गए। ना उनके पास कोई चारा बचा था ना ही मौन-मोहन सरकार के पास। सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट के बाद कपड़ा मंत्री की विदाई हो गई। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि अरे सरकार तो नंगी हो गई है...उसके पास अब कपड़ा ही नहीं रहा। पहले राजा फिर कनिमोझी और अब दयानिधि मारन। अगला नंबर किसका है...इस पर कोई दावा तो नहीं कर सकता है। लेकिन चिदबंरम और सिब्बल इस लिस्ट में आगे चल रहे हैं। क्या मनमोहन की पूरी कैबिनेट के लिए तिहाड़ में इंतज़ाम करने होंगे? और फिर तिहाड़ में ही मीटिंग हुआ करेगी। वो नाना पाटेकर का डॉयलाग याद है ना...कि एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है। शायद उसी तरह एक ईमानदार लेकिन कमजोर प्रधानंत्री देश के लिए बोझ बन जाता है। अब तो देश के दूसरे ईमानदार लोगों की इज्जत पर बन आई हैं। क्या ईमानदार लोग कमजोर होते हैं? क्या सिर्फ वे अपने आप को ही ईमानदार बनाए रखना चाहते हैं। १ अरब से ज्यादा लोगों का नेता इतना कमजोर होगा कि वो कोई फैसला नहीं ले सकता है। प्रधानमंत्री की कमजोरी तो अब देश की कमजोरी बन गई है। तो पहले देश या फिर किसी एक आदमी की कमजोरी। देश से क्या खाक भ्रष्टाचार दूर होगा जब इसे दूर करने वाले लोग ही करप्ट हो। गठबंधन का रोना आखिर हम कब तक रोएंगे। हम किसी को अपने गठबंधन में इसलिए तो नहीं शामिल कर सकते कि आओ भईया, पैसे बनाओ, देश को धोखा दो, चाहे जो करो। हम कुछ नहीं बोलेगा...क्यूंकि बोलेगा तो सरकार गिर जाएगी। कई लोगों की नज़र में तो अभी कोई सरकार ही नहीं है। भगवान भरोसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चल रहा है। कल यूपी में एक ट्रेन से कटकर ३८ लोगों की मौत हो गई। मुआवजे का एलान कर दिया गया लेकिन इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं है क्योंकि अभी तो कोई रेल मंत्री ही नहीं है। खैर एक चैनल ने रिपोर्ट दिखाई कि जितना मुआवजा लोगों को दिया गया उतने में उस जगह पर गेट बनाने के साथ, दो लोगों को तीस साल से ज्यादा तक आराम से वेतन दिया जा सकता था। तब ना ऐसी घटना होती और ना ही मुआवजा देने की बात होती। इधर अन्ना और बाबा रामदेव पर लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं। वो दोनों सत्ता के समानांतर सत्ता बनाने चाहते है, सरकार के लोग ऐसा कहते हैं...फिर भी लोगों को उम्मीद वहां से हैं। तो फिर ये सरकार क्या कर रही हैं। लोकपाल से भ्रष्टाचार मिटने वाला है ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। पहले देखिए कैसा बिल आता है वो क्या-क्या तर्क दिए जाते हैं। काले धन का क्या होगा, ये सुप्रीम कोर्ट पर ही निर्भर है। एक अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था देश में है जो काम कर रहा है नहीं तो यहां कोई सरकार ही नहीं दिखती। इधर कल कैबिनेट ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसके तहत सांसदों के फंड में अब दो करोड़ की जगह पांच करोड़ सालाना आ सकेंगे। दस-पंद्रह को छोड़कर अधिकतर सांसदों ने २ करोड़ रुपये भी खर्च नहीं किए तो फिर पांच करोड़ की क्या जरूरत ....इसका जबाव आपको नहीं मिल पाएगा।अन्ना,रामदेव के साथ ही एक और उम्मीद दिखती है राहुल बाबा में। वो यूपी की पदयात्रा पर है। भट्टा पारसौल से लेकर अलीगढ़ तक किसानों का दर्द जानने में लगे हैं। ये सिर्फ वोट बैंक का चक्कर है या फिर इससे किसानों का कुछ होना-जाना है। ये तो आगे पता चलेगा। कोई इसे नौटंकी बताता है तो किसी को इसमें कांग्रेस-बीएसपी की साठगांठ दिखती है। यूपी में किसानों की तपती जमीन पर सियासत की रोटियां सेकी जा रही है। लेकिन बड़ा सवाल वही कि क्या हालात बदलेंगे? इस देश को ये नेता और भ्रष्ट लोग नोच खाएंगे? केरल के एक मंदिर से सोने-हीरे-जवाहरात की बारिश हो रही है। पांच लाख करोड़ शायद अब तक आ चुके हैं और अभी काफी आने है...ऐसा अंदाजा है। विदेशों से काफी संख्या में काला धन लाया जा सकता है। अगर हमारी सरकार कोशिश करे तो......लेकिन इन सबसे भी आखिर क्या होगा। कोई कॉमनवेल्थ में घोटाला करता है...कोई स्पेक्ट्रम बेचने में ..तो जिसको जहां मिलता है वहीं घोटाला। घोटालों का देश बनता जा रहा है भारत। एक अन्ना और एक रामदेव के भरोसे काम नहीं चलेगा। देश को कई अन्नाओं की जरूरत हैं।

Thursday, April 7, 2011

अन्ना नहीं ये आँधी है.....

आज कुछ लिखने का मन कर रहा है। आज कुछ करने का मन कर रहा है। देशभर में एक ही नाम सबके जुबा पर है। अन्ना..अन्ना और अन्ना। बापू महात्मा गांधी ३० जनवरी १९४८ को हम सबको छोड़ कर विदा ले चुके हैं। हमने-आपने गांधी को नहीं देखा होगा। आज अन्ना को देख कर लगता है कि गांधी ऐसे ही रहे होंगे। वो भी इसी तरह अंग्रेजों से लोहा लेते रहे होंगे। देश को आजाद कराने के लिए गांधी ने क्या-क्या ना किया। भले ही लोग २ अक्टूबर और ३० जनवरी को याद कर खुश हो जाते हो लेकिन गांधी ने जो रास्ता दिखाया वो कभी भी काम आ सकता है। किसी भी मुश्किल घड़ी में । अपने दिल में गांधी को बसा कर रखिए। वो हिन्दुस्तान के ही नहीं दुनिया भर के लिए रोल मॉडल थे, हैं और जब तक ये दुनिया है रहेंगे। अन्ना नहीं ये तो आंधी है....ये तो देश का दूसरा गांधी हैं। हां आप आंधी भी हो और गांधी भी हो। हम सब सलाम करते हैं आपको। अन्ना आगे बढ़ो, पूरा भारत आपके साथ हैं। आपने जो कुछ किया है पिछले तीन दिनों में इसको शब्दों में कैसे उतारू। नहीं कर पा रहा हूं मैं। देश में तूफान खड़ा कर दिया है, सुनामी आ गई है....लेकिन ये तूफान, ये सूनामी तबाही की नहीं है, बर्बादी की नहीं है....ये देश के लिए है। देश की बेहतरी के लिए है। ऐसा कोई नहीं जो आपके साथ नहीं। मैं.वो-ये-यहां-वहां. बिहार के भईया, यूपी की बहन...दिल्ली के रिक्शा चलाने वाले, महाराष्ट्र के किसान, आंध्र प्रदेश का बिरयानी विक्रेता, वाराणसी के पंडित, मुजफ्फरपुर का लीची वाला, कोलकाता में दादा का प्रशंसक, मुंबई से सचिन का प्रशंसक, प्रधानमंत्री जैसा दिखनेवाला व्यक्ति,,,रिपोर्टर, दुकानदार, दर्जी, ठेलावाला, साइकिल रिपेयर करनेवाला, मंत्री के सताए लोग, विरोधी दल के लोग, सत्ता के भी कई लोग....कोई नहीं बचा....सब आपके साथ हैं। भ्रष्टाचार से आपकी इस मुहिम में दूसरे देशों में बसे भारतीय भी आपके साथ हैं। हर कोई जिसके बारे में आपने शायद सोचा भी ना हो। महिलाएं, जवान, बुजुर्ग, बच्चे। १२१ करोड़ से ज्यादा लोग...जितने लोगों ने विश्व कप में पाकिस्तान पर भारत की जीत के लिए दुआ नहीं की हो...सब आपके साथ है। आपके एक आदेश के इंतज़ार में। भारत की विश्व कप फतह के बाद सोचा था कि युवराज पर लिखना है, सचिन पर लिखना है, धोनी के छक्के पर लिखना है, रैना पर लिखना है, गौती की गंभीर पारी पर लिखना, विराट लेख लिखना है,जहीर पर लिखना है, केरल एक्सप्रेस पर लिखना है, कर्स्टन पर लिखना है, अगल कोच कौन इस पर लिखना है, माही के लकी चार्म पर लिखना है, भारत-पाक मैच पर लिखना है....देश का सपना पूरा हो गया। २८ साल का इंतजार खत्म हुआ। सचिन का सफर मुंबई से मुंबई तक पहुंच गया। बॉल ब्वॉय से विश्व कप विजेता तक का सफर पूरा हुआ। १९८३ में जब टीम ने विश्व कप जीता था तो हम में से कई लोगों ने लाइव नहीं देखा था, नहीं सुना था...अब ये देख लिया। उसी तरह जब गांधी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे, खुदीराम हंसते-हंसते फांसी पर झूल रहे थे, भगत सिंह-सुखदेव, जैसे वीर अंग्रजों को बाहर जाने को मजबूर कर रहे थे। हमने नहीं देखा था। शांति,अहिंसा के साथ लड़ाई कैसे लड़ी जाती है हमने-आपने नहीं देखा था। विदेशों में हाल में कुछ घटनाएं ने हमे रास्ता दिखाया था...ऐसा भी हो सकता है। अन्ना आपने हमें गांधी के दर्शन करा दिए। गांधी को गए ६३ साल हो गए...आज हमें दूसरा गांधी मिल गया है जैसे २८ साल बाद विश्व कप। भ्रष्टाचार का ये रोग पुराना है। मेरे देश को खोखला कर रहा है। हम सब ये जानते थे, सोचते थे लेकिन मजबूर कुछ कर नहीं पाते थे। आपके तीन दिन से चल रहे अनशन ने हमे राह दिखा दी है...अब भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं है। ये जंग जीत लिया तो सब जीत लिया। विश्व कप जीत से ज्यादा बड़ी खुशी। देश काफी आगे बढ़ेगा अगर आप जंग जीत जाओ। अगर हम सब ये जंग शानदार तरीके से जीत जाएं। राजा रंक बनेगा...कलमाडी कपड़ा तक को तरसेगा, नीरा नारी बनेगी, आदर्श भारतीय नारी। हसन अली जैसा फिर कोई नहीं होगा....सब को समान मौका मिलेगा। जय हो अन्ना जय हो।आपकी ये जंग सफल होने की खास वजह भी हैं। आप किसी पार्टी से नहीं जुड़े हो, बीजेपी एंड कंपनी का साथ आपको नहीं चाहिए....राजनीति आने से मामला ठंडा पड़ सकता था। बेहतर हुआ जो किसी दल को साथ नहीं लिया। अब सब तुम्हारे साथ हैं। कुछ उनकी भी मजबूरियां हैं। पीएम के बाद अब सोनिया की भी अपील आ गई हैं। एक चैनल की ख़बरों पर भऱोसा करें तो शायद यूपी के दो मंत्री भ्रष्टाचार की बलि चढ चुके होंगे। पवार पहले ही बैकफुट पर आ गए हैं। धीरे-धीरे ही सही सब आ जाएंगे। और फिर हम सब इस शानदार जीत का जश्न शानदार तरीके से मनाएंगे। आपके साथ। आप कहते हो आप उस टीम का हेड नहीं बनना चाहते , सलाहकार चलेगा या फिर सदस्य भी। यहीं आपकी इस मुहिम को शानदार बना रही हैं। सबको आपके साथ जुड़ने को मजबूर कर रही हैं। आपको पावर नहीं चाहिए....देश की बेहतरी चाहिए । आपकी इस सरकार से कोई दुश्मनी नहीं...आप इस सरकार को हटाना नहीं चाहते....शायद इसी वजह से मुझे लगता है कि आप ये जंग जीत जाओगे। फिर पूरा भारत जीत जाएगा। आप तो सिर्फ इतना चाहते हो कि सरकार भ्रष्टाचारियों पर डंडे चलाने के लिए एक कानून बनाए, एक विधेयक लाए...जिससे कोई भ्रष्ट ना बच पाएं। सरकार कुछ दिनों में मान लेगी। जय हो अन्ना जय हो।आज एनडीटीवी देख रहा था। रविश कुमार जंतर-मंतर से लाइव थे। एक अंग्रेजी अखबार के हवाले से उन्होने बताया कि उस अखबार ने अन्ना के अनशन को ब्लैकमेल करना बताय है। हे अंग्रेजी वालो.....सुधर जाओ....खैर नहीं हैं। आप ये कानून बननेवाला ही हैं। आकर्षक हेडिंग लगाने के चक्कर में गलती मत करो क्योंकि तुम्हारे लिए क्रिकेट सब कुछ है....विश्व कप हो चुका है और अब आईपीएल की पूरी तैयारी कर चुके होगे। चार पन्ना भेंट करने के लिए। करो चार नहीं पांच नहीं आठ पन्ना भेंट करो....लेकिन अन्ना के लिए एक पन्ना तो दो....पहला पन्ना तो दो......बस इतना कर दो। आज बस इतना ही अन्ना...हम तुम्हारे साथ हैं......१२१ करोड़ लोग तुम्हारे साथ हैं। जीत हमारी पक्की हैं। कोई फिक्सिंग नहीं हैं, कोई सट्टेबाजी नहीं.....पता नहीं क्यूं ये दिल कहता है जिंदगी का सबसे बड़ा ये मैच हम ही जीतेंगे। अन्ना की कप्तानी में जीत हमारी हो होगी। जय हो अन्ना...जय हो।

Friday, March 18, 2011

गीतों की होली

कुछ होली के ऑल टाइम हिट गाने। होली आई रे कन्हाई" में अनुराग और खुशियों के कितने एहसास दिखाई पड़ते हैं। दूसरी तरफ "नवरंग" के गीत में नायक को नायिका उलाहना देती है- "अरे जा रे हट नटखट, ना छू रे मेरा घूंघट, पलट के दूंगी, आज तुझे गाली रे, मुझे समझो ना तुम, भोली भाली रे", तो नायक खिलंदड़ भरे स्वर में पलटकर गाता है, "आया होली का त्योहार , उड़े रंग की बौछार, तू है नार नखरेदार, मतवाली रे, आज मीठी लगे रे तेरी गाली रे"। "बिरज में होरी खेलत नंदलाल" भी ब्रजभूमि की लट्ठमार होली की याद दिलाती है।"कोहिनूर" के गाने "तन रंग लो जी आज मन रंग लो" में प्रेम में डूबने और प्रेम को बांटने की कल्पना की गई है, वहीं "फूल और पत्थर" में शकील बदायूंनी की ही कलम से निकला "लाई है हजारों रंग होली, कोई तन के लिए, कोई मन के लिए" का संदेसा गूंजा। फिल्म "कटी पतंग" में "आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली" में हमजोलियों का मस्तीभरा अंदाज उदास नायिका आशा पारेख को भी लुभाता है। "फागुन" में "पिया संग खेलो होली" की चाहत में नायिका, रंगों के खेल में मगन है, तो उधर "जख्मी" का नायक होली गीत गाते हुए बेहद विचलित नजर आता है, तभी तो वह कहता है, "दिल में होली जल रही है"। फिल्म "शोले" का गीत "होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं" में एक अलग ही रूमानियत है। फिल्म "आपबीती" में हेमामालिनी ने "नीला, पीला, हरा, गुलाबी, कच्चा पक्का रंग, रंग डाला रे मेरे अंग अंग" गाया, तो जैसे परदे पर होली के कई रंग बिखरकर निखर गए। हेमा को अपने रील और रीयल लाइफ पार्टनर धर्मेद्र के साथ "राजपूत" के गीत "भागी रे भागी रे बृज बाला, कान्हा ने पकड़ा, रंग डाला" में फिर होली की मस्ती उभारने का मौका दिया गया, पर यह "शोले" के होली गीत जैसा रंग नहीं जमा पाया। "आखिर क्यों" के गीत "सात रंग में खेल रही है, दिलवालों की होली रे" में भी होली का सामूहिक उत्साह देखते ही बनता है। फिल्म "कामचोर" में जयाप्रदा ने मांग की, "मल दे गुलाल मोहे कि आई होली आई रे" और "धनवान" में "मारो भर भर के पिचकारी" की पुकार हुई, तो "इलाका" में माधुरी दीक्षित ने भी यह गाकर इस रंग उत्सव का एलान किया कि "आई है होली"।"मशाल" में "होली आई, होली आई, देखो होली आई रे", "डर" में "अंग से अंग लगाना सजन, मोहे ऎसे रंग लगाना" और "मोहब्बतें" में "सोहनी सोहनी अंखियों वाली...-"सिलसिला" का "रंग बरसे भीगे चुनर वाली", जिसमें होली की मस्ती और शरारत का दिलचस्प तालमेल है।"गाइड" के हिट गीत "पिया तोसे नैना लागे रे" में कुछ लाइनें होली पर भी शामिल की गई हैं- "आई होली आई, सब रंग लाई, बिन तेरे होली भी ना भाए"। "आप की कसम" का गीत "जय जय शिव शंकर, कांटा लगे ना कंकर, एक प्याला तेरे नाम का पिया" जिसमें राजेश खन्ना और मुमताज भंग के रंग में नाचते-झूमते-गाते, इधर-उधर भागते खूब धूम मचाते हैं। अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गीत "खई के पान बनारसवाला" भी होली के त्योहार की मस्ती का एक अनूठा रंग लिए हुए है।"बागबान" में अमिताभ बच्चन और हेमामालिनी पर फिल्माया गीत "होली खेले रघुवीरा, "मंगल पांडे" के गीत में आमिर खान और रानी मुखर्जी ने भी होली जमकर लुत्फ उठाया है। इधर, फिल्म "वक्त" में मौजूदा युवा पीढ़ी के सितारों अक्षय कुमार और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गीत "डू मी ए फेवर, लेट्स प्ले होली" रंग उत्सव को 21वीं सदी के मुहाने पर ले आया है। -लावण्य शर्मा

Thursday, March 10, 2011

हे धोनी के धुरंधरो....२८ साल से हम सपना सजाए है....देश के अधिकतर युवाओं ने ८३ का विश्व कप जीतते कपिल एंड कंपनी को नहीं देखा था। तब से जब-जब विश्व कप होता हम सब टीवी सेटों पर चिपक जाते है..कि इस बार...इस बार। ८७ में कुछ करीब पहुंचे लेकिन फिर दूर हो गए। ९२ भी ज्यादा खुशी लेकर नहीं आया। तब पड़ोसी पाकिस्तान ने जीत हासिल की। ९६ में घर में खेल रहे थे...काफी उम्मीदें थी...हम सेमीफाइनल में हार गए....सबका दिल टूट गया। तब पड़ोसी लंका ने बाजी मारी...९९ भी कुछ नहीं रहा। २००३ में फाइनल में हारना तो देश को गम के माहौल में डुबो गया था। फिर चार साल का इंतज़ार किया। लेकिन २००७ में तो बांग्लादेश ने पहले ही दौर में काम तमाम कर दिया।अब और इंतज़ार नहीं होता.....दुनिया की सबसे खतरनाक बल्लेबाजी लाइन अप हमारे पास है। जिस टीम में रैना जैसे खतरनाक बल्लेबाज को मौका नहीं मिल पा रहा है। लेकिन इस बार भी शुरुआत दिल तोड़ने वाली ही है। ऐसे खेलोगे तो कैसे जीतोगे? कमजोर टीम से भी कड़ी टक्कर मिल रही है। बांग्लादेश, आयरलैंड और हॉलैंड को हराने में ही हमारे दम निकल गए। इंग्लैंड से भी पार नहीं पा सके। अच्छी बात ये है कि हम क्वार्टर फाइनल में है...और उससे पहले दो बड़े मैच है। अफ्रीका और वेस्टइंडीज़ से। क्वार्टर फाइनल में भी आसान टीम नहीं मिलने वाली। करीब-करीब दोनों ग्रुप से वहीं टीम पहुंचेंगी जिनकी उम्मीद थी। हां, कौन किस स्थान पर होगा ये कहना मुश्किल है। दोनों ही ग्रुप की जो हालत है तो क्वार्टर में आपकी किसी से भी भिड़ंत हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया, लंका, पाकिस्तान या न्यूजीलैंड। सभी बराबर की टीमें है। लेकिन जिस तरह से हम खेल रहे है क्या हम जीत पाएंगे। गेंदबाजी पर तो भरोसा नहीं ही है,,,,फील्डिंग के क्या कहने...अब अगर बल्लेबाज भी दगा देने लगे तो कैसे होगा? बस तीन मैच और जीतना है और विश्वकप हमारा है। क्वार्टर,सेमी और फ़ाइनल। लेकिन अब तक जिस तरह की टीम धोनी ने उतारी है...उससे पता चलता है धोनी के कदम इन दिनों जमीन पर नहीं है। वो मनमर्जी टीम को चला रहे है। पियूष चावला को लगातार खेलाने की बात किसी को समझ नहीं आ रही। युवराज पिछले दो मैचों में ना होते तो पता नहीं आयरलैंड और हॉलैंड से भी पिट गई होती टीम इंडिया। कल भी हॉलैंड के खिलाफ हमारी आधी टीम लौट गई और आखिरी बल्लेबाजों की जोड़ी मैदान पर आ गई थी। १९० रन बनाने में ये हालत है वो भी कमजोर गेंदबाजी आक्रमण के सामने। आगे क्या होगा? ऐसे तो विश्व कप नहीं ही जीत सकते। धोनी की गलती....तीन कमजोर टीमों से मुकाबले के बाद भी हमारे सभी खिलाड़ी टेस्ट नहीं किए गए....अब क्वार्टर से पहले दो मजबूत टीमों से मुकाबला है तो हम अब भी अपने बेस्ट ११ का चयन नहीं कर पाए हैं। गेंदबाजी में जहीर को छोड़ कोई उम्मीद नहीं जगाता। युवराज ने गेंद से भी कमाल किया है आगे भी उनसे उम्मीद रहेंगी। लेकिन हरभजन को क्या हो गया है? ऐसा लगता है वो विकेट लेने के लिए नहीं खेल रहे। वो रन रोकने के चक्कर में लगे रहते है। जबकि टीम के वे नंबर वन स्पिन गेंदबाज हैं। दुख नहीं होता जब दूसरे देशों के भी स्पिनर नहीं चल रहे होते। लेकिन दूसरे देशों के स्पिनर तो थोक के भाव विकेट ले रहे हैं फिर भज्जी को क्या हो गया? कम ऑन माही के महारथियों....ऐसी टीम फिर कहां मिलेगी....इस बार नहीं तो पता नहीं ये इंतज़ार और कितने साल तक बढ़ जाएगा। अभी भी कुछ गलत नहीं हुआ...जागो और जुट जाओ मिश्न विश्व कप पर क्योंकि इस बार ये विश्व कप हमारा ही है।

Thursday, January 13, 2011

अब टैक्स हम नहीं देंगे.......

देश के आम लोग दबी जबान में मौजूदा हालत में ऐसा सोचते थे कि आखिर हम क्यों टैक्स दें। देश के गृह मंत्री ने ही हाल में यह कहकर उनकी सोच को और मजबूती दी है। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कुछ दिन पहले कहा था कि 'महंगाई से बड़ा कोई टैक्स नहीं है। अगर आपकी आमदनी काफ़ी अधिक है, तो उसे महंगाई खा जाती है.' आज हिन्दुस्तान में एक पाठक ने चिदंबरम को साधुवाद देते हुए लिखा है ' गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने हाल ही में कहा कि महंगाई इतनी बढ़ गई है कि अब टैक्स लगाने की जरूरत ही नहीं है। बढ़ती महंगाई के रूप में आम आदमी एक तरह से टैक्स ही अदा कर रहा है। गृह मंत्री का यह वक्तव्य वाकई काबिले तारीफ है। निस्संदेह, इसमें गरीबों की हिमायत भी दिखाई देती है। अत: गृह मंत्री से अनुरोध है कि वह सरकार को समय-समय पर ऐसे सुझाव देते रहें कि गरीबों पर कोई सरकारी टैक्स नहीं लगना चाहिए। उन्हें प्रणब मुखर्जी और कैबिनेट को अपने तर्को से कायल बनाना चाहिए, ताकि आम आदमी का भला हो सके। '
आखिर हम टैक्स क्यों देते है? ताकि इसके बदले में सरकार को कुछ आय हो और सरकार इसका उपयोग लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने में करे। लेकिन जिंदगी तो बेहतर बनने से रही ये तो बदतर ही होती जा रही है। महंगाई और घोटाले से लोग पागल हुए जा रहे है। देश को ऐसे कृषि मंत्री मिले है जो ज्योतिष तो नहीं हैं लेकिन उनकी बातें व्यापारी तुरंत समझ लेते है। आम लोग भले ही उनकी बात आज तक नहीं समझ सके। पवार कहते है कि इतने दिनों तक चीनी की कीमत कम नहीं होगी। चीनी की कालाबाजारी शुरू हो जाती है और फिर चीनी महंगी होती चली जाती है। पवार कहते है प्याज की कीमतें तीन सप्ताह तक कम नहीं होगी। वो अब तक रूला रही है। पिछले दिनों पवार ने डेडलाइन थी और इसी चक्कर में प्रधानमंत्री ने भी देश को भरोसा दिला दिया था लेकिन हालत और बदतर ही हुए है। आज महंगाई दर में करीब दो फीसदी की कमी आई है लेकिन बाजार में चले जाइए सामान उसी दाम पर बिक रहे हैं। महंगाई पर पीएम ने बैठक बुलाई थी। दो दिन पहले...वहां पर प्रणब और पवार में भिड़ंत हो गई। दादा उठ कर चले गए। अब दादा कह रहे हैं कि मार्च तक कीमतें कम हो जाएंगी। कैसे भरोसा किया जाए दादा का? खबर तो ये भी है कि पीएम चिदंबरम को वित्त मंत्री के रुप में देखना चाहते हैं...फिर तीन महीने बाद दादा भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे? तब हम और आप क्या करेंगे? घोटालों की ऐसी बाढ़ लगी है कि सब खुद को डुबोने में लगे है। रेस लगी है कौन किससे ज्यादा बड़ा घोटाला कर सकता है? कौन देश को सबसे ज्यादा चुना लगा सकता है? अब तो लोगों को एकाउंट के ऐसे शब्द भी मैसेज और फेसबुक पर डालने पड़ रहे हैं.....
1 Lac = 1 Peti1 crore = 1 khokha500 crore = 1 Madhu Koda......1000 crore = 1 Nira Radia10000 crore =1 kalmadi100000 crore - 1 A Raja10 kalmadi + 1 A Raja = Sharad पवार
काफी है इतना बतलाने के लिए इन लोगों ने देश को कितना भारी नुकसान पहुंचाया है। इसका नुकसान हम आम लोग क्यों भरे? सरकार के पास कोई भी ऐसा तर्क है जिसपर वो ये कहे और कर दाताओं को संतुष्ट कर दें कि टैक्स देना चाहिए। शायद नहीं। इन दिनों कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के महंगाई पर बयान ने राजनीति तेज कर रखी है। काश ये नेता महंगाई दूर करने के उपायों पर गंभीरता से चिंता करते जितनी इनकी बयानबाजी में दिख रही है।
चलिए अब कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लें। इनकम टैक्स की साइट पर ये जानकारी दी गई है॥' शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहणों ने एक करोड़ खरब रूपये को पार कर लिया और पिछले वित्तीय वर्ष अप्रैल- अक्तूबर की अवधि के दौरान 1,73,447 करोड़ रूपए से बढ़कर 31 अक्तूबर, 2010 को 2,04,351 करोड़ रूपए हो गया, जिसमें 17।82% की वृद्धि दर्ज की गयी । इससे साफ है कि फायदा इन्हे हो रहा है लेकिन आम लोगों को तो घाटा ही घाटा हो रहा है।
अब कुछ घोटाले के आंकड़े पर नजर डाल ली जाए। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कितने का घोटाला किया अब भी ये डाटा साफ नहीं है। कोई 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला बताता है तो कोई 4000 करोड़ से ज्यादा का लेकिन डाटा साफ नहीं है। पूर्व संचार मंत्री ए राजा ने भी देश को रंक करने में कोई कमी नहीं की। 1 लाख 76हजार करोड़ रूपए का देश को सीधे-सीधे नुकसान करा डाला। कलमाडी एंड कंपनी ने तो देश की इज्जत पर ही सवालिया निशान लगा दिया था। घोटाला जो किया सो किया। कॉमनवेल्थ गेम्स में 668 करोड़ के घोटाले की बात बताई जाती है। इधर आज के एक समाचार पत्र पर यकीन करे तो कलमाडी ने लाखों पाउंड की हेराफेरी की बात पहली बार सीबीआई के सामने मानी है। बड़ा सवाल ये है कि आखिर इन घोटालेबाजों से पैसा वसूल क्यों नहीं किया जा रहा। अगर सरकार ऐसा करने में समर्थ नहीं है तो वो इसकी जानकारी लोगों को दे दें फिर लोग ही इन घोटालेबाजों से पैसा वसूल कर लेगी। देश के लोगों की मेहनत की कमाई टैक्स में जाए और ये घोटालेबाज इस टैक्स पर मौज मनाए...किसी को नहीं पसंद आ रहा। जागिए सरकार नींद से जागिए। अगर जनता जाग गई तो क्या होगा, ये भी सोच लीजिए।
इन सबसे अलावा स्विस बैंक में भारतीयों के पैसों की बात भूल गए क्या? किसके-किसके पैसे वहां है अब तक किसी को पता नहीं है या शायद सरकार को पता है तो बताना नहीं चाहती। स्विस बैंक में भारतीयों के पैसों की जानकारी के बात एक अखबार ने कुछ ऐसा छापा था। 'भारत गरीबों का देश है, मगर यहां दुनिया के बड़े अमीर बसते हैं।' यह बात स्विस बैंक की एक चिट्ठी ने साबित कर दी है। काफी गुजारिश के बाद स्विस बैंक एसोसिएशन ने इस बात का खुलासा किया है कि उसके बैंकों में किस देश के लोगों का कितना धन जमा है। इसमें भारतीयों ने बाजी मारी है। इस मामले में भारतीय अव्वल हैं। भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है। हालाकि बाद में इस अखबार ने स्पष्टीकरण भी छापा जिसमें कहा गया कि उसके पास इसके प्रमाणिक दस्तावेज नहीं सो तथ्यों के बारे में सही-सही नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर एक भी ऐसा कारण समझ नहीं आता जिससे कहा जाए हमें सरकार को टैक्स देना चाहिए। अगर आपको भी ऐसा लगता है तो इस पर लिखें।
नोट...एक मित्र जलज ने इस विषय पर कुछ लिखने को कहा था। वे काफी नाराज है मौजूदा हालात से। क्या आप भी?

Saturday, January 1, 2011

२०१०-२०११ बस ये पढ़ लो! फिर कुछ मत पढ़ना!

२०१० के जाने का गम या खुशी हो रहा होगा और २०११ का स्वागत करने का मन। साल जाने के बाद लोग ये बैठ कर सोचने की कोशिश करते है(शायद कुछ लोग) कि पिछले साल हमने क्या खोया, क्या पाया? और फिर कुछ लोग नए साल में अपनी उम्मीदों का सपना सजाते है। जानने की कोशिश करते है कैसा रहा ये साल....।
घोटालों का साल२०१० को हम सबसे ज्यादा याद रखेंगे तो शायद घोटालों के लिए ही। घोटालों की जद से कोई नहीं बच पाया। देश के सबसे ईमानदार शख्स में से एक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर इसकी आंच आ गयी। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सहीं कहा कि २०१० सड़े हुए घोटालों का साल रहा। शायद उन्होने शब्द सड़ा हुआ ही इस्तेमाल किया था। कैसे-कैसे घोटाले ना देखें। देश की इज्जत पर भी बट्टा लगा दिया कलमाडी एंड कंपनी ने। कॉमनवेल्थ खेल होंगे या नहीं यहीं सोचकर कई लोग कई दिनों तक सो नहीं पाए होंगे। सीधे-सीधे देश की इज्जत का सवाल बन गया था। कैसी लूट-मार मचाई कलमाडियों ने इस खेल में....बच्चा-बच्चा जानता है। शोले के डॉयलाग गब्बर सिंह की तरह की अब तो कलमाडियों से डर लगता है। इतना ही कम नहीं था कि मराठियों ने शहीदों की विधवाओं के लिए बनाए जा रहे भवन में ही घोटाला कर दिया। खुद तो देश के लिए कुछ नहीं कर सकते, जिसने किया उसका भी हक मारने चले थे ये लोग। आदर्श घोटाला कर डाला। अब राजा से रंक की कहानी तो सबने सूनी ही होगी। ए राजा, पूर्व संचार मंत्री ने देश को १ लाख ७० हजार करोड़ से ज्यादा का चुना लगाया। इतनी भारी रकम देश के खजाने में ना आकर इधर-उधर कुछ लोगों के हाथों में चली गई। पीएम भी इस मामले में लपेटे में आ गए। सुप्रीम कोर्ट तक ने डांट पिलाई। राजा की बात हो तो राडिया को कैसे भूल सकते है। नीरा राडिया। नया साल इन सबके लिए आफत लेकर आया है। अगर सीबीआई सही दिशा में बिना किसी दबाव के काम करे तो।
महंगाई डायन मार तो नहीं डालेगीवो करोड़ों का घोटाला करते रहे आम लोग.....तो बस किसी तरह जी रहे है। क्या खाएं और क्या नहीं....यहीं सोचकर उनका हाल बुरा है। कृषि मंत्री भी हमारे कमाल के है। उन्हे भविष्यवाणी करने में खूब मजा आता है भले ही वो कहे कि ज्योतिष नहीं है। इसके दाम अगले तीन सप्ताह तक नहीं कम होंगे। वाह भाई। सब कुछ तो महंगा ही है शरद बाबू। नक्सल और आतंकवाददेश की कई समस्याओं में से ये समस्याएं भी परमानेंट बनी हुई है। अभी चिदंबरम महाराष्ट्र गए थे जहां एक वरिष्ठ अधिकारी ने साफ कहा कि हवा में उड़ने से नक्सल समस्या पर काबू नहीं पाई जा सकती। अब इसे चिदंबरम कैसे लेंगे ये तो नए साल में ही पता चलेगा। फिलहाल नक्सली जैसा चाह रहे है वैसा कर रहे है। सीतामढ़ी में अभी उन्होने एक मेला लगाया और एक स्मारक भी बनाया है। शहीद नक्सलियों के सम्मान में। औरंगाबाद में नक्सली जनअदालत लगाकर सरेआम एलजेपी के पूर्व नेता की पिटाई करते है तो ये तस्वीर तालिबान सरीखी दिखती है। नक्सली जब चाहे हमले कर आम लोगों को मौत के घाट उतार देते है और साथ ही जब चाहे पांच-छह राज्यों में बंद का आह्वान कर डालते है। आतंकी घटनाओं में कमी आई है, इसमें शक नहीं है लेकिन ऐसा नहीं है कि आतंकी सोए हुए है। वो हमले तो कर रहे हैं या फिर प्लानिंग भी लेकिन बड़ा नुकसान नहीं होना ये एक संतोष की बात है। लेकिन काफी कुछ किया जाना बाकी है।
महाशक्ति भारत इन सबके बीच अपना देश रोज प्रगति कर रहा है। विकास दर दुनिया के दूसरे देशों का माथा चकरा दे रही है। तभी तो यूएनएससी के सभी स्थायी सदस्यों के मुखिया पिछले साल भारत का दौर कर गए है। सबको भारत ने कुछ ना कुछ दिया ही है। ओबामा कितनी उम्मीदों से आए थे....उन्हे भी भारत ने निराश नहीं किया। चीन से भारत का रिश्ता पूरी तरह बेहतर होना तो मुश्किल दिखता है लेकिन हां उम्मीदों पर दुनिया टिकी है तो उम्मीद करते रहने में क्या हर्ज है। स्पेश, साइंस, अर्थव्यवस्था में देश तेजी से प्रगति कर रहा है। और फिर विकास दर उसका फायदा आम लोगों तक पहुंचे तो मजा आ जाएं।
अयोध्या पर महाफैसला और महाशांति१९९२ को देश ने बहुत पीछे छोड़ दिया है। जिन्हे इस पर शक था उन्हे अयोध्या पर आए फैसले के बाद जिस तरह देश ने व्यवहार किया इससे इसका जबाव मिल गया होगा। फैसले के बाद क्या होगा और क्या नहीं....फैसला आने के कुछ घंटे बाद सारी आशंकाएं खत्म हो गई। तमाम घोटालों और विवादों के बीच ये साल देश के इस तरह के व्यवहार के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
नीतीश की दूसरी पारी, लालू-रामविलास आउटनीतीश की दूसरी पारी भी इस साल की बड़ी घटनाओं में शामिल है। बिहार चुनाव में जिस तरह से वोटरों ने जात-पात की राजनीति को औकात दिखा दी और विकास के नाम पर वोट किया वो आने वाले चुनावों के लिए एक दिशा निर्धारित करने वाला बन गया। जिस शानदार जीत के साथ नीतीश ने कमबैक की इसकी उम्मीद खुद उन्हे भी नहीं थी। अब नीतीश एंड कंपनी पर वोटरों के भरोसे पर खड़ा उतरने की बड़ी चुनौती है।
वीकीलिक्स के सनसनीखेज खुलासेवीकीलिक्स के खुलासे के लिए भी ये साल याद किया जाएगा। संपादक असांजे ने कई दिक्कतों का सामना करने के बाद भी कई अहम खुलासे किए जिससे दुनिया के कई देश और कई सरकार भी मुश्किलों में आ गई। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से संबंधित खुलासे ने भारत की राजनीति को हिला कर रख दिया। अमेरिका, चीन, पाकिस्तान से लेकर कई देशों के बारे में इसमें अहम खुलासा हुआ। ये सब वैसे वक्त हुआ जब भारत के कई बड़े पत्रकारों पर सवाल उठ रहे थे। नीरा-राडिया टेप लीक कांड में।
ममता की रेल रनिंग फ्रॉम कोलकाताइस साल देश को अपने ही रेल मंत्री से ज्यादा परेशानी हुई। वो दिल्ली से नहीं कोलकाता से रेल का सिग्नल तय कर रही है। वैसे उनकी रूचि रेल से ज्यादा पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों पर ज्यादा है। ममता को लगता है कि उनका पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने का सपना इस बार पूरा होने वाला है। अभी नहीं तो कभी नहीं...सो दीदी रेल यात्रियों को भगवान भरोसे छोड़ आराम से सीएम बनने के बाद के दिन के बारे में सोचने में व्यस्त हैं।
मास्टर महान !हर मुश्किल घड़ी में आपके चेहरे पर मुस्कान लाने वाले इस महानतम बल्लेबाज ने इस साल कई मौके देशवासियों को दिए जश्न मनाने के। वनडे में पहला दोहरा शतक, टेस्ट मैचों में पचास शतक, रिकॉर्ड दर रिकॉर्ड। पॉन्टिंग की खराब फॉर्म मास्टर का शानदार फॉर्म ये भी क्रिकेट प्रेमियों को खुश करता रहा। मास्टर के साथ ही कई और खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। स्पेशल वीवीएस की बात तो स्पेशल ही है। धोनी टॉस जरूर हार रहे है लेकिन मैच भी जीत रहे है। युवराज का टेस्ट से बाहर जाना और फिर रैना का अभी तक इस फॉर्मेट में पूरी तरह सेट ना हो पाना भी कुछ सोचने के लिए छोड़ गया। खेलों ने जीता दिल क़ॉमनवेल्थ खेलों में कलमाडियों ने जितनी जगहंसाई करानी थी कर ली तो बस एक उम्मीद की किरण खिलाड़ी ही थे। कुछ नए चैंपियन आए तो कुछ देश के कोने-कोने की प्रतिभाओं के दर्शन हुए। एशियन गेम में भी भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया। झारखंड की दीपिका जैसी खिलाड़ी अचानक स्टार बनकर उभरी। टेनिस में भी लिएंडर पेस की जगह लेने वाला एक खिलाड़ी उभरता हुआ दिखाई दिया। सोमदेव देववर्मन। बैडमिंटन में सायना नेहवाल का कमाल तो जारी ही है। जल्दी ही वो दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बनने की राह पर है।
नया साल नयी चुनौतीएक साल यानि पूरे ३६५ दिन बीतने के बाद हमेशा आगे एक चुनौती होती है। कुछ गलतियों से सबक लेकर आगे ऐसी गलती ना करने की सीख। देश के सामने भी कई चुनौती है। भ्रष्टाचार पर सिर्फ हंगामा भर करने से कुछ नहीं होगा। ये हम भारतीयों की आदत में आजकल शुमार हो गया है। ऐसे में कुछ कड़े फैसले लेने की जरूरत है ताकि फिर कोई कलमाडी-कोई राजा देश के साथ धोखाधड़ी ना करें। विकास दर तो अच्छी बात है लेकिन इसके साथ ही आम लोगों तक इसका फायदा मिले तो बात बने। वक्त चलता रहता है हम सब वक्त के आगे लाचार है। वक्त कभी किसी के लिए नहीं थमता सो हमे वक्त के साथ कदम मिलाकर चलना होगा। देश को आगे बढ़ाने में कुछ योगदान देना होगा।