Sunday, December 19, 2010

...तो क्या बिहार सिंगापुर बन गया?

नीतीश पार्ट टू में बिहार से लौटने के बाद एक सज्जन ने पूछा कि तब आप सिंगापुर से लौट आए? तो आश्चर्यचकित हो गया कि क्या कहूं। कैसे नीतीश के विकास की हवा एक ही वाक्य में निकाल दूं? २०० से ज्यादा विधायक जिसके हो कुछ तो बात होगी। लेकिन सिंगापुर जैसी बात तो सोच भी नहीं सकते। सो उन्हे साफ-साफ कह दिया कि अभी सौ साल लगेंगे सिंगापुर बनने में। फिर तब सिंगापुर और आगे हो जाएगा।
कुछ दिनों की छुट्टी पर मुजफ्फरपुर गया था। परिवार वालों से और दोस्तों से मिलने के साथ-साथ इसलिए भी रोमांचित था कि आखिर हमारा बिहार कितना बदल गया...जरा गौर से देखेंगे। आखिर जिस पर जनता जनार्दन ने इतना भरोसा किया है कुछ तो बात होगी। ट्रेन से बिहार की पक्की सड़क देखने का रोमांच भी कुछ अलग ही है। पंद्रह-बीस सालों तक जिसके लिए तरसते थे वो अब दिखता है। कई ऐसी ऐसी जगह भी पक्की सड़के बन गई जहां आप सोच भी नहीं सकते थे। स्कूलों में साइकिल ही साइकिल दिखते है...अब साइकिल के लिए सरकार ने पांच सौ रुपए और बढ़ा दिए है। १००० नए हाई स्कूल भी खोले जाएंगे।
लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति में सुधार हुआ है ये सब कह रहे है। पिछले पांच साल में कई फील्ड में काम हुआ...इसमें शक नहीं। लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। बिजली पर काम चल रहा है, उद्योग लगाना अभी बाकी है, चीनी मिलों को शुरू करना होगा, भ्रष्टाचार से पार पाना बाकी है। मतलब कई काम अभी किए जाने बाकी है।
ट्रेन में नीतीश ही नीतीश छाए हुए थे। दिल्ली से बिहार रहने वाला व्यक्ति अपने जिले की विधानसभा सीटों पर चर्चा कर रहा था। कौन हारा और कौन जीता पर चर्चा हो रही है। क्यों जीता इस पर भी। लालू कहां पिट गए और नीतीश ने कहां बाजी मार ली इस पर भी।
नीतीश ने प्रवासी बिहारियों को गर्व करने का मौका दिया है...इस पर सभी बाहरी में आम राय है। अब उन्हे बाहर बहुत ज्यादा शर्मनाक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। कई लोगों ने ये माना। सभी बड़े गर्व से बता रहे थे कि जहां भी चले जाइए हर कंपनी में मैनेजर हो या वरिष्ठ पदों पर बिहार के लोग मौजूद है।
मैं जैसे ही मुजफ्फरपुर पहुंचा तो शहर के नए लुक को लेकर काफी रोमांचित था कि उस चौक पर ऐसा होगा, वहां की सड़की ऐसी होंगी, उस दुकान का ऐसा हाल होगा, यातायात की व्यवस्था शानदार होगी। जाम जैसी कोई बात नहीं होगी, बिजली रानी आएगी तो जाएगी नहीं...जैसी कई बातें। आखिर शहर में दो दशक बीताने पर इतना रोमांच तो होगा ही।
लेकिन जो देखा इससे लगा नीतीश कुमार बेहद चालाक प्राणी का नाम है। वो कमाल के मैनेजमेंट गुरु हैं...लालू जी से ये तमगा अब नीतीश ने ले लिया है। लालू जी भले ही मैनेजमेंट गुरु कहलवाने में गर्व महसूस करे लेकिन नीतीश ने बिना इस टैग के इसे धारण कर लिया है। मुजफ्फरपुर पहुंचने से पहले ही वहां से एक अपहरण की खबर आ चुकी थी। शहर पहुंचा तो एक और अपहरण की खबर अखबारों में छाई हुई थी। मतलब क्राइम पर कंट्रोल नहीं। फिर दूसरी चीजों को देखना लगा। खूब विकास हुआ है, सड़कें पक्की हो गई हैं...ट्रेन से दिखी लेकिन मुजफ्फरपुर पहुंचने के बाद पता चला कि पिक्चर अभी बाकी है दोस्त। नीतीश को पहले चालाक लिखा इसकी वजह अब बता रहा हूं। एक शहर से दूसरी शहर को जोड़ने वाली सड़क को तो ठीक कर दिया गया लेकिन शहर के अंदर की सड़कें सच कहूं तो लालू-राबड़ी राज से भी ज्यादा खराब है। मुजफ्फरपुर के दिल मोतीझील की हालत देखकर रोने का मूड हो आया। शहर की सारी सड़कें खराब हालत में है। कुछ ओवर ब्रिज बन गए है, कुछ पर काम जारी है। ये काम पिछले कई सालों से यूं ही जारी है। जब भी जाता हूं ऐसा ही देखता हूं। मोतीझील में कचड़ों को जगह-जगह पर सजा कर रखा गया है। सड़कों की हालत का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि जिन्हे मैं अक्सर दस बजकर दस मिनट में ऑफिस जाने के लिए निकलते देखता था वो अब नौ पैतालिस में जा रहे है। ये टाइमिंग मैं इसलिए लिख रहा हूं कि मैं उस व्यक्ति की टाइमिंग का कायल था। दस बजकर दस मिनट और उनकी गाड़ी ऑफिस के लिए निकल जाती थी। हालाकि मेरी उनसे बात नहीं हो पायी और ये मैं नहीं जान पाया कि ये सड़कों की खराब स्थिति की वजह से या फिर ऑफिस का टाइम बदल गया है।
पहले जाता था रिक्शेवाले तैयार हो जाते थे शहर में कहीं भी जाने के लिए। कभी-कभार एकाध ने मना कर दिया होगा लेकिन अब तो मैं परेशान जिससे पूछता ना कर देता। मैं वजह जानने के लिए बेताव था...कई किलोमीटर पैदल चला और फिर जब एक रिक्शेवाले ने हां कर दी तो हालत देखकर समझ गया है कि आखिर दर्जन भर से ज्यादा रिक्शेवाले ने क्यों ना की थी। वैसे एक सज्जन से जब मैने पूछा कि मुझे यहां जाना है कैसे जाऊं तो उन्होने सलाह दी कि मैं भी वहीं जा रहा हूं, आप भी मेरे साथ पैदल चलिए...यहीं सबसे बेहतर हैं। तब मुझे भरोसा नहीं हुआ था।
शहर की कई पुरानी दुकानें या तो अब नहीं है या फिर बुरे हालत में है। पहले के कई बेहतरीन जगहों पर बुलडोजर चल चुका है। कई नई दुकानें भी आ गई है। स्टेशन से मोतीझील, टाउन थाना, चंद्रलोक चौक, कल्याणी, सरैयागंज टावर, जैसी कई जगहों का हाल बुरा है।
शहर में घंटों जाम की हालत है। भगवानपुर से मिठनपुरा के लिए रोजाना सैकड़ों ऑटो का आना जाना है। सुबह और शाम को शहर में भयंकर जाम की हालत है। वैसे ही एक बार भगवानपुर से मिठनपुरा जा रहा था...जाम लगा हुआ था...हमारे ऑटो ड्राइवर ने तेजी दिखाई और शार्ट कर्ट रास्ता से हो लिए। कुछ दूर जाने पर पता चला कि ऐसी ही तेजी कई और लोगों ने दिखाई है और वहां पहले वाले जगह से भी बड़ा जाम है। फिर उस पुराने रास्ते पर आए।
स्टेशन के नजदीक सड़कें तो खराब है ही पानी भी भरा है। दुकानदार अपनी दुकान तो खोल रहे है लेकिन कोई ग्राहक उनकी दुकान पर नहीं पहुंच पा रहा है। कुछ ने इस हालत को नारकीय तक बता दिया।
अच्छा नहीं लग रहा था कि नीतीश को पता चलेगा तो क्या सोचेंगे। जिस विकास मॉडल का नाम देश-दुनिया में क्या यह वहीं है....सोच रहा था। एक दिन शाम को देवी मंदिर गया। वहां से लौटते वक्त बता चला कि कलमबाग रोड पर शाम को सात बजे के करीब किसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। लौटते वक्त ऑटो ड्राइवर डर रहा था कि कई कोई बवाल ना हो। इस हत्या के आरोप में वहां के एक कांग्रेस नेता को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन ये मामला भी जटिल है। पुलिस की थ्योरी है कि कांग्रेस नेता अपने एक करीबी के साथ मोटरसाइकिल से जा रहे थे। कांग्रेस नेता पीछे बैठे थे और उन्होने चलती गाड़ी में ही अपने करीबी जो ड्राइव कर रहा था उसको गोली मार दी। अब ये तो वहीं पुरानी बात हो गई ना कि जिस डाल पर बैठे हो उसी को काट रहे है। ड्राइवर को गोली मारी तो गाड़ी का बैलेंस बिगड़ेगा और वो वय्कित खुद घायल हो सकता है। खैर। इधर कांग्रेस नेता इसे साजिश बता रहे है। कुछ स्थानीय लोग भी। मतलब शहर में पहुंचने पर दो अपहरण और एक हत्या की खबर शहर से ही थी पूरे जिले का डाटा मैंने जमा नहीं किया।
अगले दिन अखबारों में ये खबर लीड थी। उससे पहले दिन नीतीश कुमार अखबारों में छाए थे। विधायक फंड बंद करने की पहल को सभी अखबारों ने लीड बनाई हुई थी। एक अखबार ने अपनी खबर का असर भी बता डाला था हम इलेक्ट्रानिक चैनलों की तरह। मुजफ्फरपुर के पन्नों पर नजर डाला तो एक खबर थी कि मार्च तक शहर की सभी सड़कें बेहतर हो जाएंगी। चलिए एक तरह का संतोष हुआ।
कई लोगों से बात हुई। कुछ के पास नीतीश की असफलताओं की लिस्ट भी थी। एजुकेशन की तरफ नीतीश सरकार ने कुछ खास नहीं किया है...अधिकतर लोगों का ये मानना था। साइकिल, ड्रेस वाली बात छोड़ दें तो....टीचरों की जो बहाली हुई उसमें भयंकर भूल की गई है। कैसे-कैसे गुरुजी आ गए है...ये कई चैनलों पर दिखाया जा चुका है...कुछ जगह एडिटेड को कुछ जगह अनकट....टीचरों की भर्ती पर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है जिस पर राज्य सरकार की कई बार खिंचाई हो चुकी है।
कुल मिलाकर ये पता चला कि कुछ हुआ है, काम की शुरुआत हुई है लेकिन ढिंढोरा बहुत पिटा गया। पहले बीस साल कोई काम ही नहीं हुआ तो अब जो कुछ भी हो रहा है वो विकास में काउंट हो रहा है। सड़के खराब होती है तो बनाई जाती है...ये बनाई जा रही है तो विकास हो गया। लॉ एंड ऑर्डर बेहतर हुआ इसमें शक नहीं ...लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से अचानक अपहरण और हत्या के कई मामले फिर सामने आने लगे है। इस पर जल्दी ध्यान दिया जाए तो बेहतर। अभी कल ही नीतीश को एक और सम्मान मिला है...फोबर्स ने उन्हे पर्सन ऑफ द ईयर चुना है। बधाई हो नीतीश जी।
एक सज्जन ने कहा कि बिहार का असली विकास तब होगा जब मुंबई में बिहारियों की पिटाई नहीं होगी। ये ठाकरे एंड कंपनी बिहारियों पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी। दिल्ली की सीएम हो या गृह मंत्री चिदंबरम बिहारियों के खिलाफ कोई वक्तव्य जारी नहीं करेंगे। तब ज्यादा गर्व का अनुभव होगा और तब असल मायने माना जाएगा कि बिहार ने विकास किया है।

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