Saturday, April 24, 2010

मास्टर को बधाई

आईपीएल में रोज नए-नए विवाद सामने आ रहे है। ललित मोदी अब अपने ही जाल में फंसते दिख रहे है। उनका जाना तय माना जा रहा है। आगे क्या होगा। एक ताजा खबर ये भी है कि रवि शास्त्री मोदी की जगह ले सकते है। इससे ब्रांड पर भी असर नहीं पड़ेगा और ये लीग और हिट हो जाएगा।खैर आज ये बात करने का मौका नहीं है। आज भगवान के ३७ साल पूरे हो गए है. आज ही के दिन भगवान के कदम धरती पर पड़े थे। उसके बाद से बस सोलह की उम्र से वे देश की सेवा कर रहे है। देश को खुश होने का मौका मुहैया करा रहे है। सोलह की उम्र में जब ठीक से कईयों को होश भी नहीं आ पाता उस उम्र में ये दुनिया की सबसे बेहतरीन गेंदबाजी आक्रमण जिसमें वसीम अकरम, वकार यूनुस जैसे गेंदबाजों के खिलाफ पहला टेस्ट खेलना शुरू किया था। और तब से अब तक यानि २१ साल से मैदान में डटे है। बिना किसी विवाद के, पैर अब भी जमीं पर ही है। शतक बनाने के बाद ईश्वर को धन्यवाद करना कभी नहीं भूलते। कितने भारतीय के आदर्श तो कितनों के चेहरे पर एक पल की खुशी लंबे समय से ये मास्टर देता आ रहा है। आज जन्मदिन पर हर चैनल पर तुम जियो हजारों साल की दुआ चल रही है। दर्शक भी बधाई संदेश दे रहे है। कुछ का कहना है जिस दिन सचिन रिटायर होंगे उस दिन से क्रिकेट देखना छोड़ दूंगा। फिर क्यों देखेंगे। फिर कौन खुशी का मौका मुहैया कराएगा, फिर किसका शानदार शट्स देखने के लिए समया जाया करेंगे, किससे कुछ नया सीखेंगे,,,कैसे मुश्किल हालात से खुद और टीम को बाहर निकालना है ये कौन बताएगा...कोई एक दिन कर देगा, दो दिन,दस दिन, एक साल....लेकिन २१ साल तक ऐसा कौन करता रहेगा....सोना,सेंसेक्स और सचिन में भी तुलना होती है...सब पीछे है...खिलाड़ियों में भी तुलना होती है....सब पीछे है...कोई नजदीक है तो एक फॉर्मेट में करीब आने की सोच सकता है....लेकिन पूरी तरह से कम्पलीट कहां बन पाएगा...बधाई हो मास्टर को जन्मदिन...मास्टर का हर साल देरी से आए....क्योंकि जैसे-जैसे साल बीत रहे है सचिन का करियर छोटा होता जा रहा है....एक साल-दो साल-तीन साल-या फिर चार साल....बड़ा मुश्किल लगता है...सोच कर ही डर लगता है...आने वाले कुछ सालों में शायद हमें किसी का इंतज़ार ना रहे, मैच है तो है...सचिन तो नहीं खेल रहे है ना...औऱ मुश्किल स्थिति में ये याद करना कि काश सचिन आज होते तो हमारी टीम इस कद्र नहीं हारती...आज हम जीत जाते...अकेले दम पर दो विश्व कप के अंतिम चार तक ले जाना....१९९६ में लंका से सेमीफाइनल में हार या फिर २००३ में फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार....बड़ा दुख पहुंचाता रहेगा....कई मैच, कई कप, हीरो कप याद है ना....शारजाह में लगातार दो शतक तो नहीं भूले ना...वनडे में पहला दोहरा शतक भी तो याद ही होगा...सबसे ज्यादा शतक बात किसी भी फॉर्मेट की कर ले...बस एक टी-२० रह गया था...अब वो भी पूरा हो गया...५७० रन बना चुके है...फाइनल का इंतज़ार है...बर्थडे गिफ्ट भी....कप्तानी में भी लोहा मनवाना जो है.....मुंबई इंडियंस क्या शानदार टीम लग रही है...बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों ही विभाग में शानदार...जयसूर्या को मौका तक नहीं मिल पा रहा है...ऐसी टीम है....ब्रैवो भी टीम में जगह नहीं बना पा रहे है....कमाल है....तिवारी और रायडू तो कमाल ही कर रहे है.....सो अब जितने भी दिन क्रिकेट में मास्टर के बचे है उसका भरपूर आनंद लीजिए....पता नहीं फिर ये मौका मिले ना मिले...कब क्रिकेट का ये सितारा खेल को अलविदा कह दें और हम सब एक खुशी के लिए तरस जाएं....सारे विशेषण छोटे पड़ जाते है इस इंसान का वर्णन करने में...शब्द ही नहीं मिलता....जितना कहें, उतना कम....भगवान नहीं तो भगवान से कम भी नहीं...कोई इंसान भला ऐसे कैसे कर सकता है...३६की उम्र में वनडे में दोहरा शतक कैसे मार सकता है....युवाओं के खेल टी-२० में सबसे ज्यादा रन कैसे बना सकता है...जब भी मैदान पर उतरता है लोग शतक की उम्मीद कैसे कर लेते है...यूं ही खेलते रहो,,,यूं ही रन बनाते रहो, यू हीं खुशियां देते रहो...अब इनकी ज्यादा जरूरत है....

Wednesday, April 14, 2010

ट्विटर पर टी-२०

आईपीएल तो हिट है। पता नहीं ये कितनी बार कहा गया होगा। शायद ही किसी को इससे इनकार हो। भले ही इस बार फिल्म वालों ने हिम्मत की और कई फिल्म रिलीज की। वैसे ये दूसरी बात है कि बड़ी फिल्म वाले आईपीएल के डर से फिल्म नहीं ला रहे है। खैर आईपीएल में तो भरपूर आनंद आ रहा है। मास्टर ब्लास्टर तो ऐसे गजब ढ़ा रहे है। टी-२० युवाओं का खेल है तो सचिन से युवा भी कोई दिख रहा है क्या। हां कैलिस उनके करीब है। दोनों युवाओं में एक-एक रन के लिए गजब की मारामारी हो रही है। ये अलग बात है कैलिश ने भी आखिरकार मान लिया कि हमस सब इनकी छाया में खेल रहे है। द्रविड़ की शानदार पारी पर कैलिश लिख रहे थे और ये बता रहे थे कि कैसे द्रविड़ सचिन की छत्र छाया में इतने दिनों खेलते रहे। बाद में उन्होने माना कि द्रविड़ ही क्या हम सब उनकी छाया में खेल रहे है।लेकिन जिनको ट्विट करने की आदत हो उनका क्या। वे किसी की छाया में थोड़े ही खेलते है। शशि थरूर को विदेश राज्य मंत्री के नाम से कम ट्विटर मंत्री के नाम से ज्यादा जाना जाता है। प्रधानमंत्री को थरूर को ट्विट मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार दे देना चाहिए। क्योंकि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। राहुल बाबा ट्विट नहीं करते तो क्या हुआ तो थरूर तो करते है। ट्विट ट्विट करते करते थरूर अब फंस गए है या फिर मोदी को भी फंसा लिया है। आईपीएल के सर्वेसर्वा। टी-२० के जनक नहीं तो असली कर्ता धर्ता तो है ही। दुनिया भर में हिट करा दिया। इसकी हर खबर बड़ी खबर होती है। चाहे दो टीमों की बोली हो या खेल हो, शराब हो, स्मोकिंग हो, दर्शक हो,मार्केटिंग हो, टीआरपी हो या फिर कुछ भी। सब खबर है। अब कोच्चि टीम का मामला सुर्खियों में है। मोदी बनाम थरूर का मुकाबला रोमांचक होता जा रहा है। प्रधानमंत्री को भी कहना पड़ रहा है कि अगर सबूत होंगे तो कार्रवाई की जाएगी। इधर थरूर मोदी के आरोपों को सिरे से खारिज करते है। उल्टे मोदी पर आरोप मढ़ देते है। ये क्या हो रहा है भाई। कल दुआ साहब की रिपोर्ट देखी। और फिर पत्रकार मधु के जवाब। उनका कहना था कि हम एनआरआई की यही दिक्कत है। हम जब दूसरे देश से भारत आते है लंबे समय तक रहने के बाद तो फिर ये दिक्कत आती है। मधु ने आगे कहा कि उन्हे भी आश्चर्य होता है कि कैसे पहले उन्होने क्या कह दिया था। थरूर की भी यही दिक्कत है। दूसरे देशों में ये सब छोटी मोटी बात है लेकिन भारत में बड़ा बवाल मच जाता है। वे विदेश राज्यमंत्री भी है तो उन्हे समझना चाहिए। लोगों को, भावनाओं को, संस्कृति को। जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। चलिए थरूर इस बवाल से आगे निकलेंगे और एक बार फिर ट्विट पर कुछ नया बवाल करते नजर आएंगे।

Wednesday, April 7, 2010

ऑपरेशन ग्रीन हंट और नक्सलियों में खलबली।

दंतेवाड़ा में अब तक का सबसे बड़ा हमला किया गया। सीआरपीएफ के ७३ जवान शहीद हो गए। कैसे निपटे इस नक्सलबाड़ी से निकले आग से। क्या चिदंबरम फ्लॉप हो रहे है? या फिर बुद्धदेव और शिबू सोरेन की नासमझी इस मुहिम को लिए सवालों के घेरे में ला रही है। या फिर नक्सलियों का मिशन सफल हो जाएगा। २०५० तक केन्द्र पर सत्ता का सपना। क्या ये पूरा हो जाएगा। सब जानते है सब मानते है नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है। बाहरी आंतकी कभी सफल हो सकते है कई बार आप भी सफल हो सकते है। लेकिन कैसे लड़ा जाए उनसे जो हमारे ही बीच में रहते है। वो हमारी भीड़ का ही हिस्सा होता है। ४ अप्रैल को ही नक्सलियों ने उड़ीसा में ११ जवानों की हत्या कर दी थी। ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद इनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। साजिश के तहत ये जवानों को निशाना बना रहे है। चिदंबरम ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का रोडमैप बनाकर इनकी मुश्किलें बढ़ा दी। अब इनको अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है। सो ये इस तरह की घटना को अंजाम दे रहे है। लेकिन क्या हम इनसे लड़ने को तैयार है। झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन कहते है कि उनसे बड़ा नक्सली कौन। नक्सलवाद पर दिल्ली में बुलाए गए बैठक से गैरहाजिर रहते है। नीतीश का भी कुछ पक्का नहीं है। ग्रीन हंट पर उनकी राय भी अबतक शायद फाइनल नहीं हो पाई है। इधर चिदंबरम ने लालगढ़ से राज्य के पिछड़ेपन की बात क्या कह दी बुद्धदेव लाल हो गए है। गृह मंत्री को तुरंत ही उन्होने जवाब भी दे दिया। कहां से आया ये नक्सलवाद, कैसे आया और कौन है इसका जिम्मेदार। जाहिर है जब इलाकों में विकास का रास्ता बंद हो गया, सरकार को आम लोगों की फिक्र नहीं रही। कुछ लोग फायदा उठाते रहे और अधिकतर बदतर जीवन जीते रहे तो कुछ लोगों ने शुरू किया। धीरे-धीरे ये ग्रुप हिंसा में विश्वास करने लगा। पहले ये मालदार लोगों को निशाना बनाते और फिर लूट-छीनाझपटी से हासिल किया माल खुद में गरीब लोगों में बांट दिया करते। धीरे-धीरे इसका भी विस्तार होता चला गया और उन्होने अपनी एक समानांतर सरकार बना ली। जहां सिर्फ उनका ही राज है। बाहरी दुनिया का कोई वहां नहीं जा सकता। उनकी अपनी दुनिया है। छत्तीसगढ़ का अबुझमार भी ऐसा ही जगह है। जो अबतक लोगों के लिए अबुझ ही बना हुआ है। कोई नहीं समझ पाया। घने जंगल और पहाड़ में इनकी बस्ती होती है। जहां जाने के सारे रास्ते इनकी मर्जी पर होते है। सवाल ये है कि आखिर कबतक नक्सली जवानों को मौत के घाट उतारते रहेंगे। आखिर कबतक? क्या कोई विकल्प है। ये बताने की जरूरत नहीं है कि इन्हे हिसां में विश्वास है। ये बैठकर बात करने को शायद ही तैयार हो। इन्हे जवानों को मारकर मजा आता है। शायद उसके बाद ये जश्न भी मनाते है। आम लोगों को भी ये नहीं छोड़ते। जहां इन्हे ये शक हुआ कि ये पुलिस को हमारी सूचना देता है। उसका खेल खत्म। बच्चों के स्कूलों पर भी इन्हे तरस नहीं आती। हाल ही इन्होने बच्चों से माफी मांगी थी लेकिन अपना घटिया तर्क भी सामने रखा था। चिदंबरम राजनीति के जानकार नहीं है वो आर्थिक मामलों के जानकार है जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री। ये दोनों ही विकास को सबसे आगे रखते है सरकार आए जाए की चिंता नहीं रहती। ना ही ये किसी मुगालते में रहते है कि इंडिया शाइन हो रहा है कि नहीं। यहीं सब बातें उन नेताओं को नहीं समझ आती जो कब किसके साथ खड़े हो कहना मुश्किल है। शिबू सोरेन के बारे में बताने की जरूरत नहीं। उनपर पक्का यकीन करना चिदंबरम के लिए बड़ा मुश्किल है। बयानबाजी से नक्सलियों का सामना नहीं किया जा सकता। अपने ही लोगों जो बिगड़ चुके है जिनके मन में ये बैठ गया कि क्रांति ऐसी आती है...उन पर हमला करने से भी हल नहीं हो सकता। और वो आदिवासी जिनके घरों में आज भी दो वक्त की रोटी नहीं हो पाती वो कैसे सरकार पर यकीन करे। वो क्यों ना नक्सलियों के समर्थन में आ जाए। भले ही नक्सली उसके बदले उनके जीवन स्तर में कोई भी सुधार नहीं कर पाते हो। विकास से ही आदिवासियों का दिल जीता जा सकता है। सबके घर में दो वक्त की रोटी आ जाएगी तो फिर कोई आदिवासी नक्सलियों की मदद नहीं करेगा। वो पुलिस को सही जानकारी देगा। इसमें वक्त लगेगा और तब तक नक्सली इस तरह के कायरतापूर्ण हमले करते रहेंगे। बस इस हमलों में हम जान-माल को कम से कम नुकसान होने दे इसपर सोचना होगा। सूचना तंत्र फेल हो गया जिसकी वजह से दंतेवाड़ा में ये बड़ा हमला हुआ। कहना आसान है। ये भी कुछ लोग कह रहे है कि कोई प्लानिंग नहीं थी। ऐसा नहीं होता। हम घर से बाहर निकलते है तो ये तय कर जाते है कि क्या करना है। कहां जाना है औऱ क्यों जाना है। ये सब बेकार की बाते है जो बड़े हमलों के बाद ऐसे ही आनी-जानी शुरू हो जाती है। सच ये है कि हम बड़ी लड़ाई लड़ रहे है और कुछ नुकसान उठाना पड़ेगा. जिसको हमारे पूर्व के नेताओं ने फलने-फूलने दिया उस पर काबू पाने के वक्त तो लगेगा...लेकिन कुछ भी असंभव नहीं अगर ठान लीजिए............

Tuesday, April 6, 2010

सानिया, शोएब और व्हाट एन आइडिया.

ये सब आइडिया कमाल है। आज आपके पास आइडिया नहीं तो सब बेकार है। क्या आपके पास हटकर आइडिया है तो आप है आज के मीडिया सम्राट। चलिए आपको कुछ आइडिया देते है। अभी सबको तो बस एक ही खबर में आइडिया की दरकार है। सलाह देना मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन सलाह मैं लेता हूं फिर वहीं करता हूं जो मुझे अच्छा लगता है।खैर ये तो मेरी बात हुई। जिसमें किसी की दिलचस्पी नहीं। ज्यादा वक्त खराब किए सीधे चलते है आइडिया पर। सानिया-शोएब निकाह के आइडिया पर।आइ़डिया १......शोएब भारत में और सानिया के घर पर क्यों है? क्या सोचा आपने? आपको क्या लगता है कि वो यहां शादी की तैयारी की तैयारियों को देखने के लिए पहुंचे है।माफ कीजिएगा....आप सौ फीसदी गलत है। वो तो सानिया और उनके परिवार को भरोसे में लेने के लिए ही साथ में है। उन्हे अंदाजा था कि उन्होने जो कुछ किया है वो मामला सबके सामने आएगा। और अगर वो दूर रहे तो फिर निकाह तो होना ही असंभव है। सो शोएब सीधे भारत पहुंचे। बिना किसी को जानकारी दिए...चोरी-चोरी चुपके-चुपके। अब वो कहते है मैं भारत नहीं छोड़ रहा। अरे भइया अब भारत से अभी जा भी नहीं सकते।पासपोर्ट जो जब्त है। इस एंगल से स्टोरी मजेदार हो सकता है।आइडिया २--क्या सानिया को हमारे शत्रु देश के लड़के से शादी करनी चाहिए। अरे वो बकवाश की बात छोड़िए जो कहते है कि इन दोनों की शादी से दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो जाएंगे। क्यों दिन में ऐसे सपने उनको आते है...मुझे तो समझ नहीं आ रही है। अगर भारत-पाक में युद्ध हुआ तो क्या पाक सानिया के बहाने हमसे ब्लैकमेल नहीं कर सकती। पाक में जो आतंकी है क्या वो हमे ब्लैकमेल नहीं करेंगे। सानिया दुबई में रहे या पाकिस्तान में अगर किसी आतंकी संगठन के हत्थे चढ़ गयी तो भारत सरकार बैकफुट पर नहीं होगी। आखिरकार वो भारत की बड़ी टेनिस खिलाड़ी है। और शादी के बाद भी भारत के लिए खेलेंगी। तब भारत सरकार और हम भारतीयों की क्या स्थिति होगी। क्या सोचा है किसी ने।आइडिया ३- आयशा को इंसाफ दिलाना है की नहीं। कितनों को हमने मीडिया ट्रायल कर इंसाफ दिला दिया होगा तो आयशा को क्यों नहीं। आखिरकार शोएब ने उससे निकाह किया है। फर्जी तरीके से भी तो निकाह तो हुआ ना। भाई शोएब आप इतने भोले तो नहीं दिखते कि किसी लड़की ने आपसे ठगी कर डाली। तो मिशन आयशा जारी रहना चाहिए।आइडिया ४- आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने कितने बेरोजगारों को कमाने का जरिया दे दिया है। उसमें खबर छपी है शादी होगी या नहीं इसपर सट्टा लगाइए और मालोमाल हो जाइए। भाई मंदी में इससे बेहतरीन कमाई का जरिया कुछ हो भी सकता है क्या.....शादी पर २५ पैसे का भाव और नहीं होने पर तो बल्ले बल्ले है.....आइडिया ५----आयशा को शोएब ने चुनौती दी है मीडिया के सामने आने के लिए....भाई शोएब आप क्यों परेशान हो रहे है जब सबकुछ कोर्ट पर ही छोड़ना है....आपने सब लिखीत स्टेटमेंट मीडिया को दी है....तो फिर आपको क्या राइट बनता है आयशा आए या नहीं। आप क्यों परेशान है...वो सामने आएगी तो आपकी स्थिति स्ट्रांग थोड़े ही ना मजबूत हो जाएगी....आइडिया ६ टीआरपी की लुट है लुट सके तो लुट....मौका मत छोड़ों भाइयों. आयशा को स्टूडियो में ले आओ....नहीं तो एक ओबी उसी के घर पर तैनात कर दो...लाइव....वो क्या कर रही है...रो रही है, परेशान है...कौन उनसे मिलने आ रहा है.....आइडिया७ आयशा का मिशकैरेज हुआ था...उसकी रिपोर्ट लाओ...लाइव एंड एक्सक्लुसिव.........फोनो, लाइव,,,,और फिर हर जगह रिपोर्टर तैनात करो...सानिया के घर के बाहर जो पहले से ही...जरूरत पड़े तो पहले को रेस्ट देने के लिए दूसरा, तीसरा और चौथा भी तैनात कर ही डालो भाई.....आइडिया ८ कोई फतवा जारी हो सकता है...कोई संभावना इसकी है....तो टटोलो....फतवा जारी हो गया तो समझो हो ही गया..........आइडिया ९ शोएब के और कितने लड़कियों से संबंध थे? कोई को तो खोजो....सही ना मिले तो फर्जी ही बैठा डालो....ये लड़की दावा कर रही है कि उससे शोएब से संबंध रहे है.......लाइव एंड एक्सकलुसिव....हेडर में बस इतना ही डालो...लोकेशन की जगह पर भी एक्सक्लुसिव ही लिखो....स्क्रीन पर उपर-नीचे- आगे औऱ पीछे जहां जहां चाहो एक्सक्लुसिव लिख डालो.....आइडिया १० और वो रिपोर्ट भी दिखानी है ना शादी के दिन वो क्या पहनेगी....शोएब क्या पहनेंगे...हेयर ड्रेस कैसा होगा...कितन लोग आएंगे...हैदराबादी बिरयानी कौन बनाएगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,और भी आइडिया चाहिए........हां अभी शादी में ९ दिन बाकी है.......बीच-बीच में वो एंगल भी कि गिरफ्तारी कब होगी....कभी भी गिरफ्तार हो सकते है शोएब.....सेहरा या सलाखें तो चला ही डाला है भाई लोगों ने। शादी जेल से होगी या बाहर से होगी। ये मत कहना कि व्हाट एन आइडिया सर जी। शर्म आती है इन आइडियाज पर। शर्म आती है ऐसे लिखने-सोचने और पढ़ने वालों पर । लेकिन हमे ये देखने में शर्म नहीं आती। दिखाते रहो भाइयों हम देखते रहेंगे। तुम्हारी भी जय हो हमारी भी जय हो।

अंडे का फंडा

9
8

7


6



4




1o





5






3







2








1
ये चीन की तस्वीरें है। वहां इसी तरह अंडे बनाए जाते है। इन तस्वीरों में आप असली और नकली का फर्क कर सकते है। चीन भारत से काफी आगे है। विकास दर की बात हो या फिर जीडीपी। शायद इसी तरह नकल करते करते या फिर नकली बनाते-बनाते ऐसी बेहतर स्थिति में आए है। आजकल हमारे विदेश मंत्री चीन के दौरे पर है। लेकिन इतना तो तय है कि चीन से हमेशा सावधान रहना चाहिए।








Thursday, April 1, 2010

सबको शिक्षा अब कोई अर्जुन नहीं बचेगा

कांग्रेस का हाथ आम लोगों के साथ। एक बार फिर ये साबित हुआ। बीजेपी और विरोधी दल भले ही इस पर ऐतराज जताया। लेकिन आज ये अप्रैल फूल जैसा ही लगेगा। छह साल से १४ साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अब उनका मौलिक अधिकार बन गया है। नए कानून के तहत राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के लिए अब यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी होगा कि हर बच्चा नजदीकी स्कूल में शिक्षा हासिल करे। यह कानून सीधे-सीधे करीब उन एक करोड़ बच्चों के लिए फायदेमंद होगा जो इस समय स्कूल नहीं जा रहे हैं। सूचना के अधिकार कानून और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के बाद शिक्षा का अधिकार यूपीए सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। आंकड़ों के मुताबिक इस समय छह से 14 साल आयु वर्ग के संबंधित वर्गों में करीब 22 करोड़ बच्चें हैं। हालांकि इनमें से 4-6 फीसदी स्कूलों से बाहर हैं। यही नहीं प्राइवेट स्कूलों में भी इन बच्चों के लिए सीटें रिजर्व करनी पड़ेगी। आज से ही एक और खुशखबरी है। अब बैंकों से आपके पैसे का पूरा पूरा ब्याज देने को कहा गया। मंदी और महंगाई के इस दौर में ये बड़ी खबर है। अब कुछ ज्यादा पैसे आपके पास आ सकेंगे। इधर बुरी खबर खबर भी है कि पेट्रोल और डीजल आज से कुछ और महंगा हो रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। बच्चों की शिक्षा पर। यानि अब सब पढ़ेगा, सब स्कूल जाएगा। बधाई हो कपिल सिब्बल को। अर्जुन सिंह से टेकओवर लेने के बाद उन्होने कई बेहतरीन काम किए है और कई अभी उनकी सूची में है। चलिए कुछ बेहतर हो रहा है। अमर-अमिताभ-मोदी,कांग्रेस और एनसीपी की ख़बरों के बीच ये कुछ ऐसी ख़बरें है जो कुछ घंटे तो लीड में बनी रहेंगी। आगे-आगे देखिए होता है क्या। लेकिन साफ है अप्रैल फूल के दिन सरकार ने इसको लाकर लोगों को फूल नहीं बनाया है और उन बच्चों को वो दिया है जिसके वो हकदार है। याद आता है मुझे अर्जुन नाम का लड़का। जो पढ़ाई में किसी उच्च वर्ग (जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों औऱ महंगे खर्च को वहन कर सकते है) के बच्चे को टक्कर देता था। कभी कभार वो मेरे पास आ जाता तो गणित के कोई सवाल पूछ लिया करता था। छठी क्लास में आठवीं का मैथ चुटकी में हल कर लेता और आठवीं में दसवीं का। लेकिन परिवार की माली हालत खराब होने के चलते शायद वो दसवीं किसी तरह का पास कर पाया होगा. पता नहीं अब कहां और कैसे होगा? काश उस अर्जुन को मदद मिल गई होती तो हमे इस कानून पर जरा भी ऐतराज नहीं होता। आखिर ६३ साल लग गए। ६३ साल में कई बच्चों को वो नहीं मिला जो उसे मिलना चाहिए। यकीन करें कि ये मौलिक कानून सबको बराबरी का हक दिलाएगा और फिर कोई अर्जुन पैसों की कमी के चलते अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने का फैसला नहीं कर पाएगा।