Sunday, June 27, 2010

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

नरेन्द्र मोदी बिहार क्या गए....बीजेपी-जेडीयू की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई...और अचानक ही थ्री इडियट्स का गाना भइया ऑल इज वेल...बीजेपी-जेडीयू पर फिट बैठता नहीं दिख रहा। मोदी के लुधियाना रैली वाले पोस्टर ने सारा बखेड़ा किया कि कुछ ने कहा भईया इस चक्कर में हलवाई को क्यों सजा दे दी। सुशील मोदी याने छोटे भैया भी नाराज हो गए। विश्वास यात्रा से किनारा कर लिया। पटना से लेकर दिल्ली में बबाल मच गया। भईया चुनावी साल में बिहार की राजनीति क्या रंग लेने जा रही है।बयानबाजी भी होने लगी। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल रहा है। खास बात ये रहे कि पांच करोड़ का चेक लौटाने के बाद भी नरेन्द्र मोदी चुप रहे। चुप रहना वैसे तो उनकी आदत नहीं लेकिन जब सपना दिल्ली की गद्दी का हो तो चुप रहना भी बेहतर होता है। सो मोदी चुप ही रहे, कुछ ना कहे....नीतीश भी मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से बचते रहे। पत्रकारों से कहा टेंशन नॉट...रिलैक्स....दिल्ली में शरद यादव मामले पर नजर बनाए रहे और कहते रहे कुछ नहीं है। हम साथ-साथ हैं। बीजेपी की मैराथन बैठक दिल्ली में चलती रही...फैसला सबको पहले से ही पता था। खैर अब छोटे भईया सुशील मोदी भी मान गए। गया में विश्वास यात्रा में फिर दोनों में विश्वास बहाली हो गई है। कैबिनेट मंत्री सुधा की अंतिम यात्रा के लिए भले ही नीतीश के पास वक्त कम पड़ गए थे लेकिन कभी बांका के पूर्व साथी दिग्विजय सिंह की मौत पर नीतीश ने अपनी विश्वास यात्रा रद्द कर दी है। पटना में सुबह सुबह आज स्टेशन पहुंचे थे। दिग्विजय सिंह का शव आज ही दिल्ली से पटना पहुंचा था। दिग्विजय सिंह का जाना बिहार में विरोधी पार्टियो के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। लेकिन जिंदगी औऱ मौत पर किसका चला है। खैर जेडीयू बीजेपी की तनातनी फिलहाल कम होती दिख रही है। लेकिन ये तो सीटों के बंटवारे के वक्त पता चलेगा कि किसको कितना नुकसान पहुंचता है। दरअसल ये सब दबाव की राजनीति है। आगे देखिएगा मोदी और वरुण के चुनाव प्रचार के वक्त क्या स्थिति होती है। वैसे बिहार में बीजेपी को इन दोनों की ही जरूरत नहीं है। इससे उन्हे तो कुछ खास फायदा होने से रहा लेकिन इसका नुकसान जेडीयू को हो सकता है। जिसे नीतीश अच्छी तरह समझते है। यहीं है पूरी नौटंकी। सियासत की नौटंकी। बिहार से इस बार केन्द्र की राजनीति में बड़े नाम शामिल नहीं है तो क्या हुआ विरोधी पार्टी बीजेपी को तो यहां से मुश्किलों में डाला ही जा सकता है। रामविलास राज्यसभा में आ गए है। कांग्रेस कितना जोर लगा पाती है इस पर आरजेडी-एलजेपी का भविष्य तय होगा। फिलहाल तो नीतीश क्लीन स्वीप की ओऱ दिखते है। लेकिन अभी कुछ महीने बाकी है...देखते जाइए क्या होता है।

सुपर सायना, वेल डन

T41 - Ok ok ok ..!!! thank you all for Saina info .. My God .. this Twitter is like ...Magic ..instant magic ..Go India !! ermm GO Twitter ! thats what big reaction when he got the news of saina winning...whats about you
T41 - What happened with Saina ?? Did she win ?? Was on a flight and missed it ..! Quick someone tell me, am not near Tv ! Such dependence ! asked big b on twitter
ये बिग बी की ट्विट है जो उन्होने सायना के मैच पर किया। लगातार तीन बड़े टूर्नामेंटों में जीत। भारती क्रिकेट टीम भी शायद ही लगातार तीन बार ऐसा कर सकी हो। लेकिन कभी सानिया नाम से परेशान सायना को अब परेशान नहीं होना पड़ता होगा। याद है प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब कोई पत्रकार सानिया नाम से पुकारता होगा तो क्या बितती रही होगी। अब शायद सानिया मिर्जा चाहे कि उन्हे कोई सायना नाम से पुकारे।हो भी क्यों ना ...दुनिया की दूसरी नंबर की खिलाड़ी वो बन गयी है। सानिया १०० से भी दूर होंगी।सायना के कोच गोपीचंद बेहद खुश है। उनका बयान आया है। गोपीचंद कहते है कि सायना ने इस साल टॉप पांच में शामिल होने का टारगेट बनाया था। साल के अभी छह महीने बाकी है। इसका मतलब ये कि छह महीने से भी कम में साल का मिशन पूरा हो गया है। कहीं कहीं अब तुलना भी हो रही है। सायना बनाम सानिया । सानिया के नाम मिक्सड डब्लस और डब्लस में खिताब है, कुछ सिंग्लस टाइटल भी। लेकिन कोई ऐसा ताज नहीं जो सायना के बराबर का हो। खैर ये तुलना गलत है। लेकिन इतना तो सही है कि महिलाओं में देश की सबसे बड़ी खिलाड़ी आज सायना है। इस संडे को सायना ने सुपर संडे बना दिया। वेल डन। इस खेल की रॉल मॉडल है वो इस देश में। बैडमिंटन में चीन और इंडोनेशिया की तूती बोलती है। अब भारत की बारी है। विश्व कप फुटबॉल का मौसम है आज रूनी और मेसी के लिए बड़ा मुकाबला है लेकिन क्या हुआ हमारी टीम वहा नहीं है तो हम बैडमिंटन में चैंपियन है।

Friday, June 25, 2010

टीआरपी की वैध संतान

बेहतर तरीके से टीआरपी कैसे हासिल करें। वो जो नाग-नागीन नहीं दिखा सकते, वो जो स्क्रीन पर नौटंकी नहीं परोस सकते। वो जो बाबाओ और भूतों को नहीं दिखा सकते। वो क्या करें कि टीआरपी हासिल हो। दिल औऱ दिमाग थाम कर बैठ जाइए क्योंकि आ गया है टीआरपी पाने का वैद्य फॉर्मूला। शुरुआत में एक बात कह दें कि ये टीआरपी का पूरा सिस्टम ही खोखला है या अवैध है। लेकिन फिर भी गलत में भी सही निकालने का तरीका है। चलिए ज्यादा इंतजार नहीं करवाते है तो टीआरपी गेन करने के फॉर्मूले पर आ जाते है। सीधा और सामान्य बिना किसी पैसे के ये सब बताया जा रहा है। सबसे पहले तो टिकर पर आईए। टिकर में कितने खबरें अपडेट रहती है। कितनी की मात्रा सही रहती है। आगे आने वाले कार्यक्रम के बारे में कुछ बताते है या नहीं। ये तो ब्रेक के बीच में भी बताते रहिए आगे देखिए...साढ़े नौ बजे...जो भी दिखाना हो। ऐसा की समझ में आ जाए कि क्या दिखा रहे है। तो टिकर पर मुस्तैद नजर जरूरी है। ब्रेकिंग करने के तुरंत बाद वो खबर टिकर में डाल दीजिए। आज कल टॉप टेन का भी चलन शुरु हो गया है तो बताने की जरुरत नहीं है कि इस तरह से पेश करें कि सारी बड़ी खबरें आ जाए। अब ये टिकर भईया पर मत छोड़िए कि उन्हे खेल ज्यादा पसंद है तो इसके पांच टिकर डाल दिए और अर्थ जगत की बड़ी खबरें छोड़ दिए।चलिए आप दिन भर कितनी खबरें ब्रेक करते है। सबसे पहले। दूसरों पर चलने के बाद ब्रेक करने का कोई मतलब नहीं है। सुशील मोदी नीतीश के साथ विश्वास यात्रा पर नहीं जाएंगे। इसे फ्लैश कर मत छोड़िए...ब्रेकिंग न्यूज में ही डालिए। और हां सिर्फ टैम वाले जगहों को ही ब्रेकिंग में ना लें। कहीं की भी खबर हो बड़े-बड़े ब्रेकिंग में डालिए अगर उस वक्त कोई दूसरी बड़ी खबर नहीं हो। स्क्रीन पर जितना ज्यादा ब्रेकिंग चलता रहेगा दर्शक चैनल पर आने के बाद कुछ देर तक टिकेंगे। और हां आपकी ब्रेकिंग वाली प्लेट आकर्षक है या नहीं। कैसा दिखता है इसका भी ध्यान रखें। स्क्रीन पर बड़े-बड़े लेटर वाली ब्रेकिंग जब चलती है तो वो प्लेट कैसा दिखता है। लोग देखकर रुक सकेंगे या नहीं । इसका ख्याल जरुर रखें। बिग ब्रेकिंग......स्क्रीन पर दिखे तो आकर्षक लगे...डरावना ना लगे, भद्दा ना लगे,,,अरे इतनी बड़ी खबर कैसे दिखा रहे है। और ब्रेकिंग खबरों पर कुछ देर बने रहे। ये नहीं कि आए और चल दिए। उसमें क्या-क्या कर सकते है। रिपोर्टर के साथ घटना से जुड़े कोई व्यक्ति या अधिकारी का फोनो या लाइव मिल जाए तो मामला थोड़ा बढ़ा दें। दो बजकर चालीस मिनट पर कोई बड़ी खबर आती है और उस वक्त आपका कोई प्रोग्राम चल रहा हो तो क्या आप तीन बजे तक का इंतज़ार करेंगे। या फिर कोई वैसे विजुअल आ जाते है तो क्या करेंगे। इंतजार मत कीजिए...प्रोगाम जरूरी हो तो तोड़ दीजिए। ब्रेकिंग या फिर उस विजुअल पर लोग कहते है खेल जाइए। क्या आप हर बुलेटिन दिन की सबसे बड़ी खबर से शुरु करते है। तो सावधान। मान लीजिए भोपाल गैस कांड में अर्जुन सिंह पर केस दर्ज हो गया है या एंडरसन को लाने की कोशिशें शुरू हो गई तो क्या आप सुबह ग्यारह बजे से रात ग्यारह बजे तक की पहली खबर इसे ही लेंगे। ऐसा ना करें। दर्शक बोर हो जाते है। दो-तीन बार बड़ी खबर चलाने के बाद कुछ भी ताजा खबर उस वक्त की से बुलेटिन की शुरुआत करें। न्यूज चैनलों में दिन में फोनो टाइप, या फिर कही हंगामा, कही मारपीट, कही हादसा, जैसी खबरें आती है। तो बड़ी खबर को पहले ब्रेक के बाद रख कर इस तरह की खबरों पर फोनो, लाइव के साथ शुरुआत कर सकते है। ये अच्छा रहेगा। ठीक है पहली हेडलाइन बड़ी खबर ही होगी ....लेकिन शुरुआत किसी अलग खबर से करने में कोई हर्ज नहीं। क्या आप हेडलाइन में कोई नियम बनाते है जैसे कि चार हेडलाइंस या फिर पांच । ऐसा ना करें। बड़ी खबरें हेडलाइंस में जरुर डाले। जिन्हे खेल की खबर देखनी होगी वो थोड़ा इंतजार करेंगे। जिन्हे राजनीति की खबर देखनी होगी और वो हेडलाइंस ही नहीं है तो वो हट जाएंगे चलो कहीं औऱ वहां देखते है। हेडलाइंस आप कितने अंतिम समय तक अपडेट कर पाते है....सारा मजा इसी का है। वो तो अखबारों में भी छप जाएगा। अखबारों में कोई जल्दबाजी नहीं होती आराम से काम चलता है। लेकिन हमारे औऱ आपके लिए आऱाम नहीं है अगर आप न्यूजरूम पहुंच चुके है। न्यूज रुम में पहुंचते ही व्यस्त हो जाइए। हां काम के साथ, फोन और फेसबुक पर नहीं। दूसरे चैनलों पर करीबी निगाह रखे. वहां क्या ब्रेकिंग चल रही है। किस खबर पर वो आक्रामक रवैया बनाए हुए है। आज दिन में कोई बड़ी खबर डेवलप होने वाली है तो उस पर बने रहिए। साथ ही बेहतर तरीके से। सबसे पहले......की कोशिश कीजिए। हां इस चक्कर में जिंदा को मुर्दा ना बनाइए। चलिए कही ट्रेन हादसा हुआ। १० लोग मारे गए तो चलाइए...ठीक है सौ मत बताइए...लेकिन १० मौत भी तो कम नहीं है चलाइए....वक्त दीजिए खबर पर। विजुअल दो तीन तरीके से कटवाइए...एक्शन वाली घटनाओं का...डब्ल विंडो या ट्रिपल विंडो देखकर लोग कुछ देर तक रुकते है। आप कितनी जल्दी ब्रेकिंग खबरों पर डिटेल्स लोगों को देने की कोशिश करते है। कई बार लोग ताजा खबर या ब्रेकिंग न्यूज में चलाकर भूल जाते है। या फिर अपने काम को पूरा मान लेते है। ऐसा मत कीजिए। या फिर ब्रेकिंग ही मत चलाइए। मान लीजिए आपने भारत की जीत की खबर चला दी। १५ साल बाद भारत ने एशिया कप का खिताब जीत लिया है। जिस दर्शक को क्रिकेट नहीं भी पसंद है वो उस वक्त उस बारे में जानना चाहेगा। आपका कोई और कार्यक्रम चल रहा है औऱ बड़ी ब्रेकिंग भारत की जीत की चला रहे है तो दर्शक वहां से हटकर उस चैनल पर जाना चाहेगा जहां इस बारे में जानकारी दी जा रही होगी....सो या तो ब्रेकिंग ही ना चलाए या फिर चलाए तो तुरंत बुलेटिन में शामिल करें। प्रोग्राम तोड़ने से नहीं हिचके। बहुत मेहनत से प्रोग्राम बनाया था आधा घंटे का चलने दें। कृप्या ऐसा ना करें। टीवी अखबार नहीं है यहां हर खबर तुरंत चाहिए। न्यूज रूम चैट की व्यवस्था हमेशा रखे। कभी कभार प्रोग्राम शुरु होने से पहले हेडलाइंस ले लें और फिर कोई बड़ी खबर जो उस वक्त आ रही हो उसकी जानकारी देकर प्रोग्राम शुरु कर दे। आगे क्या है....दिन भर चलाना ना भूले। कोई बड़ी खबर न्यूज रूम में या आउटपुट में आते ही उसे रोके मत जरा सा भी देर ना करें। दूसरे चैनलों पर कोई बड़ी खबर चल रही हो तो जल्दी से अपने रिपोर्टर से कन्फर्म करे हाथ पर हाथ धरे ना बैठे रहे। खबरों के आने का इंतजार ना करें....खबरों तक पहुंचे। कुछ खेल, मनोरंजन, अनोखी घटनाओं को आधा घंटा बनाए और उसे चाहे तो दो-तीन बार दिन में प्ले कर सकते है। कुछ वक्त और दिन का भी ख्याल रखें। संडे है तो कुछ सॉफ्ट टाइप, संगीत...देखने-सुनने में अच्छा लगे....। रात नौ बजे और दस बजे का अलग मामला है। वहां दिन भऱ की बड़ी खबरें होती है। लेकिन दिन भर में कोई खबर ना पहली होती है ना आखिरी। किसी को भी कही लें सकते। लगातार हर बुलेटिन में एक ही खबर से शुरुआत करना मजेदार नहीं होता। आप भी बोर होते है, चलाने वाले भी, पढ़ने वाले भी और फिर देखने वाले भी। उस वक्त की बड़ी खबर ही हमारी पहली खबर है। और पहली खबर को हल्के में ना लें।फोनों नहीं मिल रहा है कमेंट्री करवाए। कांग्रेस की बैठक में हंगामा हो गया है...ब्रेकिंग न्यूज। फिर फोनो....अगर आपको लगता है कि पांच से दस मिनट में आपके पास शॉट आ रहे है तो बने रहिए खबर पर । फिर शॉट के साथ फोनो-लाइव चलता रहे। जरुरी नहीं कि हमने तो बड़ी खबर पिछळे तीन बुलेटिन में दिखा दिए है इस बार भी दिखाए। कभी कभार ऐसे एक्शन शॉट्स आ जाने पर हम क्या करते है। सीधे सामान्य तरीके से शॉट्स दिखाकर आगे बढ़ जाते है। उसे बिग ब्रेकिंग बनाए। पहले स्क्रीन पर पूरा प्लेट दिखाएं फिर शॉट्स चलाए। इसका थोड़ा ज्यादा इम्पैक्ट पड़ता है। नौटंकी कर सकते है तो करें नहीं तो खबरों के साथ खेलें। तत्काल की खबर पर जम जाएं। ये नहीं कि हमें थर्ड सेगमेंट में सॉफ्ट स्टोरी दिखानी है इसलिए जल्दी आगे बढ़ चले। टेक्सट हेडलाइंस, हेडलाइंस से पहले मौसम का हाल,,कार्टून या फिर और कुछ रखें तो दर्शकों को बांध कर रखें। अपने आने वाले प्रोग्राम का प्रोमो जरुर बनाए और चलाते रहें। ऐसे और कई तरीके है जिससे आप दर्शकों को अपने चैनल पर बांध सकते है। वैसे ये टीआरपी का पूरा चक्कर ही बेकार का है। लेकिन इसी में अच्छा भी किया जा सकता है। कुछ अच्छे तरीकों को इजाद कर के। वैसे ये भी सच है कि हमने बहुत समय जाया किया है इस टीआरपी के चक्कर में। अगर इतना ही समय हमने खबरों के पीछे बर्बाद किया होता तो कमाल हो जाता है। आज हम इतने बेबस और लाचार ना होते इस टैम वाले टामियों के पीछे। लेकिन क्या करें जब हालत ऐसी हो ही गई है तो कुछ बेहतर तो कर ही सकते है।

Friday, June 18, 2010

मेरे तो हजार फॉलोअर है?

क्या आपका ब्लॉग है, क्या आपका फेसबुक अकाउंट है, क्या आप ट्विटर पर है...अगर जबाव नहीं है तो माफ कीजिएगा आप पत्रकार नहीं है। क्या अपने ब्लॉग पर आप नेताओं का नहीं गडियाते, अपने दिल की भड़ास कहीं और नहीं निकालते, आपके कितने फॉलोअर है। सौ में है या हजार में। आपके ब्लॉग पर कितने कमेंट आते है। वगैरह-वगैरह। आज के पत्रकार वक्त निकाल कर ब्लॉग जरुर लिखते है। नेताओं को लंबा-चौड़ा उपदेश जरुर देते है। बाईट लेते वक्त नेताओं के आगे पीछे भी खूब करते है।
हम क्या कर रहे है? कहां जा रहे है? एक्सक्लुसिव खबरों का चस्का ऐसा लगा है कि पूछिए मत। बुलेटिन में कोई एक्सक्लुसिव खबर है भी या नहीं। नहीं है तो क्या खाक बुलेटिन बना लिए। टीआरपी का क्या हाल है। नंबर वन है या काफी पीछे। पिटे तो किससे पिटे और क्यों पिट गए। खबर दिखा रहे है या नौटंकी कर रहे है। खबर दिखाने से थोड़े टीआरपी आती है। कुछ भी, जैसे भी अलग कीजिए। नौटंकी कीजिए। तब टीआरपी आएगी। नहीं तो फिर न्यूजरूम से लेकर बेडरुम तक दूसरे चैनलों को कोसते रहिए। ये क्या दिखाते है।
प्रोफेशन है या मिशन। मत पूछिए ये सवाल। नौकरी रहे तो लाखों उपाय। मिशन का दौर तो कब का खत्म हो गया है। हम २१ वीं शताब्दी में जी रहे है। इतना भी आउटडेटेड तो नहीं हो सकते । जो मिशन कर गए वो लोग कुछ और थे। हम कुछ और है सबसे हटकर है। सबसे तेज बनने की कोशिश में रहते है। पहले खबर ब्रेक हुई या किसी और ने ब्रेक कर दी। सारा माजरा सबसे आगे का है। चाहे कुछ भी।
भोपाल गैस कांड पर आजकल खूब एक्सक्लुसिव खबरें बन रही है। हर जगह। २६ साल तक किस कुंभकरणी नींद में सो रहे थे हम सब। तब के अखबारों को खंगाला जा रहा है। किसने क्या बयान दिया था। नया ताजा भी लेकर आ जा रहे है प्राइम टाईम में मित्र लोग। अदालत के फैसले पर सीधे-सीधे डंके की चोट पर कह रहे आधा-अधूरा इंसाफ। अब जिस धारा में मामला दर्ज कराया था अदालत तो उसी पर फैसला देगी ना। मीडिया ने कौन सा इंसाफ दिला दिया। अब सवाल ये उठने लगा है कि अर्जुन सिंह आखिर क्यों चुप्पी साध बैठे है। बोलते क्यों नहीं। बोलो अर्जुन बोलो। क्यों खामोश हो? उठाओ गांडीव और भेद डालो टारगेट को।
नीतीश मोदी की तस्वीर पर खूब हंगामा बरपता है। या फिर हंगामा बरपा देते है भाई लोग। जिनकी तस्वीर ही कभी नहीं छपी उसका क्या। वो कहां हंगामा करे। कैसे करे?
उसके हंगामे की खबर कौन दिखाएगा? टीआरपी मिलने की गारंटी है। नहीं है तो फिर ये खबर ड्रॉप की जाती है। माफ कीजिएगा...और बड़ा हंगामा कीजिए...खुद को आग के हवाले कर दीजिए...आत्मदाह की धमकी दीजिए....धमकी पर ख़बर ना बने तो पेट्रोल छिड़क कर माचिस जलाकर खुद को आग के हवाले कीजिए...जान दे दीजिए या नब्बे फीसदी जले हालत में अस्पताल में भर्ती हो जाइए। फिर हम आपको दिखाने की गारंटी देते है जो आप खुद नहीं देख सकते। फिर तो हम लाइव एंड एक्सलुसिव दिखाने से भी नहीं हिचकेंगे। ये लाइव एंड एक्सक्लुसिव में किसका भला हो रहा है? पत्रकारिता का आम लोगों का या फिर चैनल का। समझ सको तो समझ लो। ये विजुअल सिर्फ हमारे पास है। चार चैनल चीख-चीख कर ये चिल्ला रहे है। औऱ हर चैनल पर ये विजुअल चल रही है। तो क्या दर्शक इससे कन्फयुज होते है अरे ये खबर सिर्फ इसी चैनल पर है। दर्शकों का इससे कहां कोई सरोकार। उसे तो अपनी चिंता सता रही है। रात को क्या खाना बनेगा। खाने में रोटी और चावल के साथ दाल या सब्जी हो पाएगा की नहीं। बच्चे की फी कैसे दिए जाएंगे। खर का किराया भी देना है क्या? या फिर लोन के साथ इंट्रेस्ट चुकाना है। कैसे होगा ये सब? वित्त मंत्री ने कुछ टैक्स में इधर उधर तो नहीं कर दी। शरद पवार ने कोई बयान तो नहीं दे दिया कि फलां सामान के कीमत बढ़ने वाले है। पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और एलपीजी का रेट कब बढ़नेवाला है। फिर ऑटो वाले से लेकर बस वाले को कितना ज्यादा देना होगा। फिर तो सबकुछ ही महंगा हो जाए। तब क्या करेंगे? क्या कोई फार्मूला या कोई खबर है जो इन लोगों को परेशानी से बाहर ला सके। इस माहौल में भी वो कैसे जीवन नैया पार लगा सके। कोई तरीका सुझा सकते है अपने दर्शकों को। फिर आप ही रखो ये टीआरपी, ये एक्सक्लुसिव खबर और ये ढ़ेर सारी नौटंकी।

Wednesday, June 16, 2010

नीतीश बनाम मोदी

एक कमेंट के साथ शुरुआत...मोदी के साथ वाले तस्वीर पर नीतीश ऐसे भड़के मानो किसी ने उनके मोदी के साथ अवैध संबंध की बात कर दी हो। अचानक ही किसी ने कमेंट किया और सारे लोग हंसने लगे। खैर ये अलग बात है। रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि मोदी पटना में छा गए। मोदी ने बीजेपी कार्यसमिति का पूरा एजेंडा ही हाईजैक कर लिया। नीतीश कानूनी कार्रवाई की बात करते रहे। लुधियाना में बिहार चुनाव खत्म होने के बाद वाली तस्वीर पर गजब का हंगामा बरपा। नीतीश नाराज हो गए और फिर बीजेपी की तरफ से सफाई आई है कि इसके पीछे ना तो गुजरात सरकार का हाथ है और ना ही मोदी का। सूरत के सांसद का नाम आया फिर एक बिहार के व्यवसायी का नाम भी। लेकिन ये दोनों ही इससे अपने को किनारा करते रहे। शऱद यादव ने बीच बचाव की शुरुआत की और फिर आडवाणी बोले नीतीश यहां होते तो अच्छा होता। भोजपुरी में बोल रहे है नरेन्द्र मोदी। रउआ लोगन के धन्यवाद। गुजरात में भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए भी मोदी ने बिहार का आभार जताया। कोसी प्रभावितों के राहत के लिए दिए गए पांच करोड़ का भी मोदी ने कभी बखान किया था। नीतीश नाराज हो गए और कहा कि हम उन्हे पैसा लौटा देंगे। क्रेडिट लेने की होड़ इस बीजेपी के बड़े और प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे चल रहे इस नेता को भी है। और वो आजमगढ़ वाली तस्वीर का क्या कहें। क्यों आया था वो झूठा ऐड। लोगों को बरगलाने के लिए। मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए या फिर कुछ और मकसद था। सुना है जसवंत सिंह की री एंट्री हो रही है। उमा भारती भी लाइन में है। अब कल्याण सिंह और गोंविदाचार्य का भी नंबर आने वाला लगता है। गडकरी जी क्या बीजेपी का कोई भला कर पाएंगे। कहना अभी मुश्किल लगता है। ना संतुलित टीम बना पा रहे है ना ही पार्टी में असंतोष को खत्म कर पा रहे है। सियासत में वो ज्यादा माहिर नहीं दिखते। झारखंड का केस ही देख लीजिए। कई नेताओं के विरोध के बावजूद उन्होने गुरुजी से हाथ मिलाया। फिर समर्थन वापस लिया और फिर मलाई खाने पर सहमति के बाद फिर दिल जोड़ लिया और जब मलाई मिलता नहीं दिखा तो फिर दिल टूट गया। पटना में मोदी नीतीश के बारे में तो कुछ नहीं बोले। उनका ध्यान अब दिल्ली पर है सो केन्द्र सरकार पर ही बरसे। मौत का सौदागर वे खुद को नहीं मानते। सो दूसरों से पूछ रहे है कि अब बताईए मौत का सौदागर कौन है? भोपाल कांड को लेकर वे सोनिया से पूछ रहे थे। जिनका इस पूरे कांड से कोई लेना देना नहीं। खैर। मायावती की भी कल पटना में रैली थी। संसद के मोमेंटो पर हाथी की तस्वीर उन्हे भेंट की गई। जैसे बहन जी के लिए दिल्ली अब दूर नहीं। मोदी को ऐसी तस्वीर मिलती तो शायद ये फीलिंग होती की बीजेपी मोदी को लेकर कितनी सीरियस है। दरअसल में दोनों के लिए ही दिल्ली दूर है। दिल्ली अगर किसी के लिए आसान है तो वे है मनमोहन सिंह। २०१४ की बात है तो राहुल बाबा पूरी कोशिश में है। ज्यादा गड़बड़ नहीं हुई और देश की राजनीति इसी दशा और दिशा से चलती रही तो राहुल बाबा को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा। महंगाई लोगों को डरा नहीं अब मार रही है तो इसमें विरोधी पार्टियां कहां और क्या सरकार का बिगाड़ पा रही है। विरोधी खामोश, सरकार मस्त। बीचबीच में कभी थरुर का मामला तो कभी जयराम रमेश बयान औऱ ट्विट कर के खुद ही मौका दे देते है और विरोधी पार्टियां खासकर बीजेपी उसी में मस्त हो जाती है। भोपाल कांड २६ साल पुराना है अब क्यों सब इसके पीछे भाग रहे है। एंडरसन को लाने के लिए किसने क्या किया। वो भी सत्ता में थे जो आज पूछ रहे है कि मौत का सौदागर कौन? उनकी सरकार सालों से मध्य प्रदेश में चल रही है क्या किया पीड़ितों के लिए। जिस दिन भोपाल गैस कांड का फैसला आया था उसी दिन एक औऱ तस्वीर मध्य प्रदेश से आई थी। शिवराज के डांस करते दृश्य। इन तस्वीरों को वैसे ज्यादा नहीं दिखाया गया लेकिन सवाल ये कि इन दृश्यो को देखकर पीड़ितों ने क्या सोचा होगा? कैसी सरकार है हमार? हमारे जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकती तो ऐसा तो ना ही करे ना। मोदी बहुत खुश हो रहे थे कि एक चैनल ने उन्हे देश का सबसे अच्छा मुख्यमंत्री चुना है। ये भी सच है देश के प्रधानमंत्री ने उन्हे राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी। ये भी सही है कि मुख्यमंत्री होते ही हुए एसआईटी ने उनसे पूछताछ की थी। पहले मुख्यमंत्री। सबसे ज्यादा देर तक हुई थी पूछताछ। उसका भी रिकॉर्ड मोदी के ही नाम है। क्या बीजेपी में कोई पीएम पद का दावेदार भी है। उस कद लायक कोई है भी। अटलजी सबको मान्य थे। आडवाणी तक जब वेट करते रह गए तो फिर मोदी के लिए बेहतर यही है कि वे इस वेटिंग लिस्ट में ही ना आए। हम आम भारतीय सेक्युलर हैं और ऐसे व्यक्ति को कभी पसंद नहीं कर सकते। गुजरात में तो ये चल जाता है पूरे देश में मोदी का जादू चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। सो बीजेपी को मोदी राग से आगे बढना होगा। मोदी अगर बिहार में चुनाव प्रचार करने जाते है तो बीजेपी को ज्यादा सीटें मिल जाएं ऐसा तो हो ही नहीं सकता। इतना जरूर हो सकता है कि जेडीयू को कुछ सीटों का नुकसान उठाना पड़े। फायदा आरजेडी-एलजेपी या फिर बिहार में संघर्ष कर रही कांग्रेस को हो जाए।

Friday, June 11, 2010

मुझे एंडरसन दे दो।

कौन है ये एंडरसन..वारेन एंडरसन...क्यूं चर्चा में है। अब एक सवाल बन गया है...एंडरसन को किसने भगाया? जबाव- तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने। क्यूं भगाया। ये तो अर्जुन ही जाने। सुनने में आया है कि तब अर्जुन को दिल्ली से किसी का फोन आया था। किसका फोन आया था..ये तो अर्जुन सिंह जानें...अर्जुन सिंह कुछ नहीं बोल रहे है। खामोश है, शांत । तबाही के बाद की शांति धारण कर ली है उन्होने या फिर तूफान के पहले की खामोशी....एक पत्रकार से उन्होने सिर्फ इतना कहा कि टीवी वाले कन्फयूज कर रहे है लोगों को। अब अर्जुन को कौन समझाए कि उनके कुछ ना बोलने से सारा कन्फ्यूजन पैदा हो गया है। ३ दिसंबर १९८४ की काली रात...याद कर ही दिल सिहर उठता है। २५ साल बीत चुके....कुछ को मुआवजा मिला, कुछ मुआवजे के इंतज़ार में चल बसे. मुआवजा मिला वो भी इलाज में खर्च हो गया। एंडरसन उस भयानक काली रात के बाद भारत आया था। गिरफ्तार भी हुआ था। फिर उसे सलामी भी दी गई थी। हमारे एसपी औऱ कलेक्टर ने उसके जाने की भी पूरी व्यवस्था कर दी थी। राज्य के मुख्य सचिव का उन्हे फोन आया था। बीस हजार लोगों की मौत के गुनहगार के साथ कैसे अच्छा व्यवहार किया जाए इसका पूरा ख्याल रखा गया था। दिल्ली से किसका फोन था...फिलहाल पता नहीं चल पा रहा है। जिस सचिव के फोन की बात हो रही है वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। जिस विमान के पायलट ने एंडरसन को भोपाल से निकाला था वो कहते है कि फोन आया था। राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। २६ साल बाद इंसाफ भी आया लेकिन उसे इंसाफ ना कहे तो ज्यादा बेहतर। लाखों लोग तबाह हुए थे और अब भी लाखों पर इसका प्रभाव है। हमारी सरकारें इस तरह क्यों व्यवहार करती है। अब हमे हेडली चाहिए...क्या करेंगे हेडली को लेकर....एक एंडरसन पकड़ में आया था तो छोड़ दिया था..विमान हाईजैक के बाद हमारी सरकार ने आतंकियो को छोड़ दिया था। अब खबर है कि कसाब को छुड़ाने की कोशिश आतंकी कर रहे है। कोई सरकार ना पहले थी और ना अब ही है...मानो...भगवान भरोसे जीते रहे...कब तक....फिर इन लोगों की कोई जरूरत भी है...सत्ता के लिए कुछ भी करेगा.....एंडरसन को छोड़ देगा फिर हेडली के पीछे पड़ेगा.....क्या करें भोपाल के लोग.....किससे मांगे अपने कातिलों का इंसाफ...कौन करेगा इंसाफ....अमेरिका में भी खासी प्रतिक्रिया हो रही है...दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक तबाही में से एक...गुनहगार सब खुले घूम रहे है...तब भी आज भी....क्या दोषियो पर कार्रवाई होगी........इसके लिए इच्छाशक्ति है हमारे पास? है भी नहीं भी। शोर अब जमकर मच रहा है। एंडरसन भगोड़ा है। पकड़ सको तो पकड़ लो। बेहतर होता एक खुली पंचायत में भोपाल के लोग एंडरसन एंड कंपनी का इंसाफ खुद करते। उनकी पीड़ा ना तो नेता समझ सकते है, ना पुलिस और ना ही न्यायपालिका। हम आप सब तमाशा देख रहे है।

Saturday, June 5, 2010

ये राजनीति नहीं आसां...

प्रकाश झा की फिल्म राजनीति पर्दे पर दस्तक दे चुकी है। सिनेमा हॉल पहुंचा तो देख कर दंग रह गया है कि महिलाओं और लड़कियों को राजनीति में इतनी ज्यादा रुचि कबसे आ गई। काउंटर पर महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखी तो सोचा शायद वो कैटरीना और सोनिया की राजनीति से प्रभावित है। कैटरीना को सोनिया या प्रियंका की रोल में देखना चाहते है। अभी लिखते वक्त ये ख्याल आ रहा है कि आखिर ३३ फीसदी रिजर्वेशन की भी तो बात हो रही है तो उनका बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना जरूरी है। इंटरवल में कई लोग बात करते रहे और कौन कौन है? कुछ पता ही नहीं चल रहा था। पांच पांडव और फिर महाभारत की कहानी। कोई राहुल गांधी नहीं लगा, ना कोई सोनिया का रोल था। हां गांधी परिवार के कई नेताओं की हत्या हुई है सो कुछ देर के लिए आपको वो याद आ सकते है। कैटरीना प्रियंका की कहीं कही याद दिला पाती है। एक उनका भाषण अपील करता है। फिल्म में करण भी है और दुर्योधन भी। दोनों ने बेहतरीन अभिनय किया है। लेफ्ट के नेता भी फिल्म में है। कौन है कह नहीं सकते लेकिन लेफ्ट नेताओं की असलियत को कुछ अलग ही तरीके से फिल्म में पेश किया गया है। शायद बंगाल में अब लेफ्ट खत्म होने को है सो लेफ्ट पर इस तरह की चोट निराश नहीं करती। प्रकाश झा ने सभी कलाकारों से बेस्ट निकलवा लिया है। रणवीर भी अर्जुन की भूमिका को बेहतर तरीके से निभा पाते है। लेकिन वो राजीव गांधी नहीं है। कैटरीना ने छोटे से रोल में ठीक ठाक काम किया है। लेकिन इतने सारे कलाकारों से कनेक्ट करना थोड़ा मुश्किल रहा। सोचिए अगर महाभारत की पूरी कहानी तीन घंटों में पेश कर दिया जाए कितने कन्फयूज हो जाएंगे आप। याद है ना रविवार को सुबह नौ बजे गांव में किसी टीवी सेट से चिपक जाना। जहां बेडरूम में टीवी नहीं रखा होता। पूरा गांव या फिर पूरा मुहल्ला कहीं एक जगह जमा होकर महाभारत देखा करते थे। कई बेहतरीन फिल्म देने वाले प्रकाश झा अपनी फिल्म में बिहार की पृष्ठभूमि का बेहतरीन प्रयोग करते है। भले ही फिल्म भोपाल में शूट हुई लेकिन कई जगह पर बिहार की राजनीति की छाप भी दिखेगी। या फिर आज तो देश की यही हालत है। टिकट नहीं मिलने पर जो बवाल होता है या फिर टिकट के लिए जो करोड़ों रुपए की हेराफेरी होती है कौन नहीं जानता। फिल्म के रिलीज होने के दिन ही पटना में असली राजनीति भी दिखी। पता नहीं ये फिल्म से कितनी प्रेरित थी। लेकिन आरजेडी के कार्यालय में एक नेता ने दूसरे पर रिवाल्वर तान दी। अब कोई कार्रवाई होगी या नहीं तो लालू ही जाने लेकिन प्रकाश झा इस घटना को कैसे लेंगे समझ नहीं आता। खेल में राजनीति को भी दिखाया गया है। कैसे कबड्डी मैच के समापन पर नेताजी का दलित प्रेम जाग उठता है। लेकिन उस दलित नेता को दबाने की भी कम कोशिश नहीं होती। बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। राजनीति में अपराध, भ्रष्टाचार गहरी पैठ जमा चुका है सब वाकिफ है। फिल्म में उसे दिखाने की पूरी कोशिश की गई है। एक दो बार नहीं पूरी फिल्म इसी अपराध पर घूमती है। अब आप इसे महाभारत से जोड़े जहां लड़ाई तीर कमान से होती थी अब रिवाल्वर के सहारे। सीतापुर से टिकट चाहिए.....अर्जुन रामपाल को भीम बताया जा रहा है...पर तब के भीम अलग थे आज के अलग। आज का भीम मीडिया से लड़ बैठता है, एसपी को पहले पीटता है फिर जान से भी मार देता है। सीतापुर से एक महिला को टिकट चाहिए उसके लिए उसे अपना सबकुछ गंवान पड़ता है। टिकट भी नहीं मिलती। और पता नहीं उस महिला का क्या होता है। शायद शीन कट हो गया हो या फिर उसकी जान ले ली गयी हो। साजिश खूब होती है। मैदान में नहीं जीत रहे हो तो जान ही ले लो। कहीं राजनीति में अपराध को ज्यादा दिखाया गया है। प्रकाश झा ने लगता है जानबूझकर बिहार और यूपी के दर्शकों के लिए इसे शामिल किया है जहां कभी आरजेडी नेता तो कभी जेडीयू, यूपी में बीएसपी नेता तो समाजवादी पार्टी के नेताओं पर सत्ता का रौब इस कदर होता है कि वो किसी की जान लेने से जरा नहीं हिचकते। अत्यधिक हिंसा थोड़ा निराश करती है लेकिन आने वाले बिहार चुनाव के लिए कहीं ये ट्रेंड ना बन जाए इसकी चिंता भी हो रही है। मुस्लिम वोटर कितने जरूरी है इसका भी ये दृश्य है। वीनिंग में सेटिंग-गेटिंग की अहम भूमिका होती है इसका शानदार सीन दर्शाया गया है। राजनीति में रुचि रखनेवालों को ये फिल्म जरुर खिंचेगी। और जो लोग राजनीति को गंदा खेल कहते है...उन्हे ये जरूर पता चलेगा कि ये राजनीति नहीं आसां। कहते है या प्रेम और युद्ध में सबकुछ जायज है। आज राजनीति के लिए भी यहीं कहा जा सकता है। खासकर यूपी,बिहार और झारखंड की राजनीति पर नजर रखनेवाले ऐसा ही कहेंगे। अब देखिए ना यूपीए सरकार को बीएपी और समाजवादी पार्टी दोनों का समर्थन हासिल है। बिहार में जरूरत पड़ने पर लालू-रामविलास कभी भी कांग्रेस के साथ आ सकते है। बात तो नीतीश के आने की भी चल रही है। दोनों राज्यों में ये एक दूसरे के दु्श्मन नंबर वन है। झारखंड का हाल देखे तो कभी गुरुजी कांग्रेस के साथ होते है तो कभी बीजेपी के साथ। बीजेपी के साथ रहकर, उसके समर्थन पर मुख्यमंत्री पद का भोग करने के बाद कटौती प्रस्ताव पर वो कांग्रेस के साथ आ जाते है। ये राजनीति है जो हमारे भोले-भाले वोटरों को नहीं समझ आती और ये राजनीति के धुरंधर उसके शातिर खिलाड़ी है जो जब जैसा चाहे वैसा कर सकते है। सरकार गिरा सकते है, बनवा सकते है। झारखंड में बीजेपी जल्द चुनाव की मांग कर रही है अभी ये सरकार तो गिराया है लोगों पर इतनी जल्दी एक और बोझ देने की तैयारी में। दुर्भाग्य ये है कि आप राजनीति से खुद को दूर भी नहीं रह सकते ये हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है। सो जैसी भी है ये राजनीति है...भले ही ये आसां ना हो...