Thursday, November 26, 2009

26/11 MUMBAI ATTACK

Today India is paying homage to those due to which we are here after 1 year. Today we have completed one year of that unforgettable Mumbai terror attack. Just one year back it was hard to believe thing like such can happen on our soil. But it is true, it happened and we were totally taken aback. Now the best homage to those who killed is that we do something that this type of attack never happen. I will there on this after sometime. ONLY to say we can never forget those hero. They will remain in our heart for ever.

Wednesday, November 25, 2009

बाबरी के कातिलों को मिलेगी सज़ा?

6 दिसंबर 1992 का सच सामने है। लेकिन क्या ये ऐसा सच है जिसे हम नहीं जानते थे। कोई नहीं जानता था। 17 साल की मशक्कत के बाद लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट पेश कर दी। करीब 48 एक्सटेंशन और 8 करोड़ हमारे-आपके खर्च के बाद। रिपोर्ट संसद में पेश होने से पहले ही लीक हो गयी। सड़क से संसद तक मच गया बवाल। बाद में सरकार ने संसद में रख दिया। तेरह पन्नों का एटीआर भी..लेकिन अब आगे क्या होगा। चर्चा होनी है गुरुवार को लेकिन इससे क्या होगा। आम आदमी को इससे क्या फायदा होने जा रहा है। उनके तो मुद्दे ही खत्म हो गए। गन्ना किसानो का अध्यादेश भी कही खो गया। ना महंगाई, ना बेरोजगारी और ना ही मधु कोड़ा या फिर शिवसैनिकों के तांडव की चर्चा है। क्या संघ और बीजेपी के लिए ये रिपोर्ट फायदेमंद है। इसका वे लाभ उठा सकते है। रिपोर्ट में 68 लोगों को दोषी ठहराया गया है। इस पूरे मामले में आरएसएस और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भूमिका पर गंभीर सवाल है। ये सब जानते है। इन 68 लोगों में एक नाम ख़ास है वो है अटल जी का। इनके अलावा आडवाणी,जोशी,बाल ठाकरे,उमा भारती,विनय कटियार,अशोक सिंघल.साध्वी ऋतंभरा,के.एस.सुदर्शन,प्रवीण तोगड़िया को सब जानते है। कुछ सरकारी अफसरों पर भी सवाल है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की गलती ये थी कि उन्होने कल्याण पर भरोसा किया। ये सब जानते है। जो हुआ वो भारतीय इतिहास का काला दिन था इसमें किसी को भी शक नहीं होना चाहिए। भले ही किसी के लिए ये गर्व की बात हो...मुबारक हो उन्हे इस पर गर्व होना। देश को शर्मसार कर आपको गर्व होता है तो हो। आप देश के गुनहगार है। अब संघ –बीजेपी की दोस्ती अपने बेहतर दिनों में लौट जाएगी? जिन्हे लोगों ने ठुकरा दिया कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, बाल ठाकरे उन लोगों की दुकान फिर चल पड़ेगी। सुषमा स्वराज से घटिया वक्ता कोई नहीं दिखता। एक बार एक जगह बड़ी ख़बर देख रहा था। बहुत बड़ी ख़बर जो आई मध्यप्रदेश से। सुषमा ने कहा कि आडवाणी विपक्ष के नेता बने रहेंगे। हालाकि उस चैनल ने इस बड़ी ख़बर पर कोई रिपोर्ट पेश नहीं की थी। अब सुषमा रिपोर्ट लीक मामले पर गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग करती है। शर्म नहीं आती इन्हे किस आधार पर। अगर जरा सी भी नैतिकता अरे छोड़िए कहां बची है इन बाबरी के गुनहगारों में। अमर सिंह और एस.एस अहलूवालिया राज्यसभा में भिड़ गए। वोट बैंक की खातिर। आगे भी ऐसे दृश्य सड़क से संसद तक दिखे तो आश्चर्यचकित मत होइएगा। आडवाणी संसद में इस बात पर भड़क गए कि इसमें अटल जी का नाम क्यों आया। क्या वो अटलजी को इसका जरा सा भी क्रेडिट नहीं देना चाहते। मंदिर का सारा श्रेय खुद ही ले लेना चाहते है उस मंदिर का जो बना ही नहीं है। आडवाणी जी का करियर एक बार फिर ऊपर जाएगा। उन्हे फिर मौका मिलेगा। जैसे अंपायर ने आउट देकर फिर से बल्लेबाजी के लिए बुला लिया है। लेकिन इस बारे सारे फील्डर तैयार है वो गेंदबाजी भी कसी हुई हो रही है। सो बेहतर हो आप पवेलियन लौट जाए दूसरी इनिंग और ज्यादा खराब होने वाली है। ले लीजिए संन्यास नहीं तो कोई नाम लेने वाला भी नहीं होगा। इसी उम्मीद के साथ कि फिर कोई 6 दिसंबर ना हो, फिर कोई गुजरात दंगा ना हो, फिर कोई सिक्खों का कत्लेआम ना हो। लोकतंत्र जिंदाबाद। धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद।

Wednesday, November 18, 2009

THIS IS MY FIRST CENTURY

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WELL I HAVE SCORED CENTURY TODAY IN MY BLOGS. WHAT YOU CAN THINK ABOUT THE MAN WHO HAS SCORED 87 100’S FOR HIS COUNTRY. NOT EASY TO DESCRIBE. I FIRST WRITTEN ON MY THIS BLOG IN 11 TH NOV 2008.THAT MEANS I TOOK MORE THAN A YEAR TO MAKE FIRST HUNDRED IN MY CARRIER.OK. WHAT TO WRITE TODAY WHEN IT IS MY 100th ONE. FIRST I AM SORRY I AM NOT GOING TO WRITE IN HINDI. THIS IS A TOUGH TIME. MANDI AND MAHANGAI TO JAN HI LE LEGI. TERRORISM IS AGAIN ON PICK AND IT IS HARD TO KNOW WHOM I TALKING IS A TERRORIST OR NOT. HAS HE ANY DEADLY PLAN LIKE THE HEADLEY.THERE WAS A RICHARD HEADLY THE MAN WHO PICKED UP 431 TEST WICKETS IN 86 TESTS MEANS IN ONE MATCH MORE THAN 5 WICKETS. THAT WAS ONCE A DREAM TO REACH THERE. AND NOW THIS DEADLY MAN. HIS PLAN WAS HARD TO BELIVE. HOW MUCH DANGEROUS A MAN CAN BE, AS MUCH AS THE INFORMATION IS COMING ABOUT HIM, DIL KANP UTHTA HAI. BHANAK MANDI DEKHI. 2012 KA DAR BHI DEKHA. OBAMA KA UDAY BHI DEKHA, PAK KI KICHKICH DEKHI, CHINA KI NAUTANKI DEKHI, IRAQ-AFGHAN-SWAT ME QUYAMAT BHI DEKHI. KYA-KYA NA HUMNE DEKHA. OLYMPIC ME GOLD MEDAL BHI DEKHA, OSCAR ME JAY HO BHI SUNA, CHAND PER DAG TO HAI LEKIN PANI BHI DEKHA, ADWANI KA JINNAH PREM BHI DEKHA, PM IN WAITING AND KARIB-KARIB RETIRE HOTE BHI DEKHA,LALU-MULAYAM KO AST HOTE DEKHA, TO UP ME RAHUL KA JALWA BHI DEKHA, MANMOHAN SINGH JAISE SIMPLE MAN KA PM HONA BHI DEKHA, AB GADKARI KA BJP PRESIDENT BANNA BHI DEKH HI LUNGA, RAJ KI NITI BHI DEKHI, THAKREY KO CLEAN BOWLED HOTE BHI DEKHA, AZMI KA HINDI PREM BHI DEKHA, MNS KI GUNDAGARDI BHI DEKHI, PAES-BHUPATI KA US FINAL ME EK DUSRE KE KHILAF KHELNA BHI DEKHA, RAKHI KA SWAYMBAR BHI DEKHA, COLOURS PE BIG BOSS BHI DEKHA,KAMAL KHAN KI GALI BHI DEKHI,VOTERS KE MOOD BHI DEKHE, CHANNELS KI BADH BHI DEKHI,KHABRO KE LIYE MARAMARI BHI DEKHI,NAUKRI JANE-AANE KI TAKLIF BHI DEKHI,SADAK PER AAYE LOGA KA DARD BHI DEKHA, COMMON WEALTH SE KAHI NAK NA KAT JAY ISKI CHINTA NE BHI SATYA,T-20 CHAMPION KA MAJA BHI UTAHAYA TO NO. ONE KA LUTF BHI UTHAYA, SONA KITNA SONA HAI YE BHI DEKHA, 100 RS DAL BHI DEKHA, LACHAR KRISHI MANTRI KO BHI DEKHA TO KAPIL SIBBAL KI HIMMAT BHI DEKHI,,,KUCH BADLAV KARNE KI,,,UPA KA RAJ BHI DEKHA, SHIVRAJ PATIL JAISA HOME MINISTER BHI DEKHA, TO FINANCE EXPERT KO HOME MINISTER BANTE BHI DEKHA,,KYA-KYA NA DEKHA….MAMTA KI TUNAK MIJAJI BHI DEKHI, TO RAIL KE LIYE UNKA PYAR BHI DEKHA, LAL GARH KO DAHTE DEKHA, MAMTA KO LAL GARH ME SENDH LAGATE DEKHA, AB CM BANNE KI UNKI TAYIRI BHI DEKH RAHA…LEFT-RIGHT-CENTRE KA COMBINATION BHI DEKHA. SONIYA KI TAKAT BHI DEKHI, RAHUL KA DALIT PREM BHI DEKHA, MAYA KA MAYA AUR MURTI PREM BHI DEKHI, LEKIN USI MAYA RAJ ME HATI KO TADPATA HUA KAL KANPUR ME DEKHA TO SOCHA KI MYA KO SIRF MURTIYO SE PYAR HAI,,,LOGO,JIV-JANTUO SE NAHI…PRATIBHA PATIL KO PRESIDENT BANTE BHI DEKHA AB O SUKHOI ME BHI UDAN BHARENGI, YE BHI DEKHUNGA, LEKIN KOI BHI LADKI SUKHO KA SUKH NAHI UTHA SAKTI KYUNKI UNKE LIYE BACHHE KA SUKH JAYDA BADA HAI,,,O HUM MARDON KO DUNIYA ME JO LATI HAI,,,BHALA O KUIEN YE SUKH UTHAYE…SHARM AATI HAI MAGAR AAJ YE KAHNA HOGA…..KYA-KYA NA DEKHA,,MULAYAM KA KALYAN PREM BHI DEKHA…JAYA-AZAM KI AMAR KAHANI BHI DEKHI…SAMJAWAD KO JAMIN PER LANE KI AMAR KAHNI BHI TO SABNE DEKHI HI…BINA UP-BIHAR KE BHI CONGRESS KI SARKAR BANTE DEKHA…UP-BIHAR LUTNE KI ADA BHI DEKHI..IPL KI NAUTANKI BHI DEKHI…KYA-KYA NA DEKHA….TRP KI MARAMARI BHI DEKHI…O MODI KA ADHURA INTERVIEW BHI DEKHA…NITISH KA SUSASHAN BHI SUNA,,,DEKHA NAHI…RAMVILAS HO RECORD BANATE AUR SIKHAR SE SIFAR PER AATE BHI DEKHA…DHANYA HO HAJIPUR KI JANTA…SAT-SAT NAMAN…LEKIN PEHLE INDIAN HOON ISKA GARV HAI…HUM NAHI DARTE MNS KE GUNDO AUR BUDHA HO CHUKE SHER KI DAHAR SE…MAHILA KO BUSO ME TOKHAR KHATE BHI DEKHA, SHEILA KA KAHNA KI MAHILAYE APNI SURAKSHA KHUD KARE O BHI DEKHA-SUNA…KAI AACHI BATE SUNI DEKHI—KAI DUKH PAHUCHANE WALI…NEWS ROOM ME 820PM ME GANA CHALTE BHI SUNA THANK TO DUA SIR.ABHI BAHUT KUCH DEKHNA SUNANA HAI…O DUA SIR KAHTE HAI …NA KI ISI UMMID KE SATH KI HAMARA AANE WALA KAL AAJ SE BEHTAR HOGA…KAL PHIR MILENGE…NAMASKAR….JATE-JATE AAPKO CHOR JATE HAI APNI PEHLI BLOG KI YADO KE SATH….

journailst 11-11-2008WHY JOURNALISM? TO AUR PHIR KYA KARE. NETA BAN JAYE,CRICKETER BAN JAY KI BANK-RAILWAY ME CHALE JAYE. KAHI NAHI JA SAKTA. BUS AB TO ISI ME LIFE BITA DENA HAI YA PHIR ISE AISE KAHE LIFE ISI ME BITA DENA HAI. LEKIN KUCH LOGO KE CHERE PAR HANSI LAKAR,KUCH LOGE KE JEEWAN ME KUCH BHI POSITIVE BADLAV LA KER. AAMIN.

Tuesday, November 17, 2009

फांसी दे दिया जाए या देश से बाहर कर दिया जाए…

क्या करें इन देश के टूकड़े-टूकड़े करने के सपने देखने वालों को...शिवसेना को,एमएनएस को और मोदी टाइप लोगों को...क्या किए जाए आखिर इनका...जम्मू कश्मीर के अलगवादियों का...शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे महाराष्ट्र चुनाव में हार से इस कदर बौखला सकते है इसका अंदाजा उन्होने अपने संपादकीय में दिया...मैं पहले भारतीय हूं कहने पर सचिन को धमकी दे डाली अस्सी साल पार कर चुके ठाकरे ने...सचिन तू क्रिकेट पिच पर ही खेल राजनीति की पिच पर ना खेल..क्या राजनीति बाल ठाकरे और राज ठाकरे की बपौती है...पहले तो उन्हे ये पता ही नहीं है कि सचिन राजनीति से वनडे में 17 हजार से ज्यादा रन दूर है और टेस्ट में भी करीब तेरह हज़ार रन दूर...वैसे तो ठाकरे हमेशा गलत पिच पर बल्लेबाजी करते रहे है लेकिन इस पर पहली बार सामने कोई मजबूत शख्स सामने है...देश भर में बवाल...मीडिया से लेकर सड़क-बस-रेल सबमें यही सवाल...पहले भारतीय होने में क्या गलत है...खैर वहीं ठाकरे अपने संपादकीय के अंत में ये लिखते है जय हिन्द,जय महाराष्ट्रा...उनका हिंद से क्या मतलब है, देश है या कुछ और जो सिर्फ वहीं जानते है...लालू ने सच फरमाया उनके पैर कब्र में है और उन्हे अपनी सेहत पर ध्यान देना चाहिए...कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी सही लगी...मनीष तिवारी ने कहा कि ऐसे बयानों की सही जगह कूड़ेदान है...शायद वो भी नहीं...बीजेपी शिवसेना की सहयोगी पार्टी को भी सचिन के बयान में कुछ भी गलत नहीं दिखता...फिर ये शिवसेना को क्या गलत दिखा...अब वो अपनी ही चाल में फंस गए है...राज ठाकरे ने पहले से उनका सोना हराम कर रखा है अब गलत जगह उन्होने हाथ डाल दिया है...दिन भर के बवाल के बाद बैकफुट पर आ गई शिवसेना एंड कंपनी....उम्मीद थी कि बाल ठाकरे अगले दिन भी संपादकीय में माफी मांगेंगे लेकिन ऐसी हिम्मत ठाकरे में कहा होती है...शिवसेना के प्रवक्ता टेलीविजन पर दिन भर भौंकते रहे है...वे गली के कुत्तों से भी बदतर लग रहे थे.,...जब ये कह रहे थे कि हम पहले मराठी है फिर हिन्दुस्तानी...क्यों न इन्हे बैन कर दिया जाए....अस्सी साल पर कर चुके बुजुर्ग को फांसी भी तो नहीं दे सकते...हम भारतीय हैं ऐसा नहीं कर सकते....तो क्या इन्हे समाज से अलग-थलग कर दिया जाए...हम भारतीय ऐसा नहीं कर सकते...तो क्या इन्हे देश से निकाल दिया जाए...अरे,जब हम दूसरे देशों के लोगों को अपने यहां शरण देते है तो ऐसा कैसे कर सकते है...लेकिन इतना तया है ENOUGH IS ENOUGH. कुछ करना ही होगा...इन जैसे लोगों का...राज्य सरकार,केन्द्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में कुछ करना ही होगा...खासकर आम लोगों को आने आना होगा...ताकि ऐसे लोग देश को बांटने की कोशिशों में सफल ना हो पाए...

HE IS IN HEADLINES FOR 20 YRS AND GO MORE…..

I THOUGT IN LAST 20 YRS WHICH MAN,WHICH ACCIDENT, WHICH EVENT WAS IN THE HEADLINES THE MOST. AND I CAME TO CONCLUSION THAT THIS IS NONE OTHER THAN MASTER BLASTER. HOW MANY TIMES HE WAS IN HEADLINES. NO ONE CAN MATCH HIM.NOT ANY US PRESIDENT, NOT THE BLASTS IN PAKISTAN, NOT THE TERROR ATTACK IN INDIA-IRAQ OR NOT RAIL ACCIDENT IN INDIA,NOT ANY GRANDSLAM WINNER OR A OLYMPIC CHAMPION.
MAKING HIS FIRST CENTURY, HITTING QADIR KHAN SIXES, MAKING FIRST ONE DAY CENTURY, GOING FIRST TIME AS OPENER IN ONE DAY AND BLASTED KIWIS,HITTING SHANE WARNE, MAKING TWO CENTURIES IN SHARJAH, MAKING 10 THOUSANDS IN ONE DAY,TEST, WHAT DON BRADMAN IS SAYING,HITTING SOHAIB FOR SIX,MAKING INDIA IN SEMIFINAL IN 1996, IN FINAL IN 2003, MAKING 186, MAKING 175,MAKING 248, BECOMING MAN OF THE MATCH MAX TIME,MAN OF THER TOURNAMENT MAX TIME, GETTING KHEL RATNA,ARJUNA AND MANY MORE, RECENTLY FROM MODI,MAKING 17 THOUSAND,MAKING MAX RUN IN WORLD CUP,MAX CENTURY IN WORLD CUP, GIVEN OUT WRONGLY BY UMPIERES MANY TIME,BECOMING FIRST MAN TO BE DISMISSED BY THIRD UMPIRE,SOME TAKE WRONG CATCH AND HE IS OUT, MAKING RUN IS HEADLINES,NOT MAKING RUN IS HEADLINES, GOING IM MASOORI IS HEADLINES, FATHER PASSES AWAY AND PLAYING AND MAKING 100 IS HEADLINES, HIS BIRTHDAY IS HEADLINE, MARRIAGE DAY IS HEADLINES,,WHO SAYS WHAT ABOUT HIM IS HEADLINES,GOING TO SEE WIMBELDON IS HEADLINES, WHAT HE SAYS IS HEADLINES AND NOT SAYING IS HEADLINES, SAYING I AM INDIAN FIRST IS HEADLINES AND WHAT BALA SAHEB IS SAYING ABOUT HIM IS HEADLINES.....AND MANY MORE......
CAN YOU IMAGINE I CAN NOT BE IN MANY TIMES TO MAKE THESE HEADLINES OR YOU WERE NOT TO READ MANY TIMES THAT HEADLINES BUT THIS MAN IS IN HEADLINES FOR LAST 20 YEARS AND WILL GO FOR MORE....

Sunday, November 15, 2009

कैसा बनना है?

ब्लॉग से....
सुधीश पचौरी न रवीश कुमार
बहुत दिनों से जो बात कहना चाह रहा था उसे किसी युवा पत्रकार ने कह दिया। साफ-साफ कह दिया कि हम किससे प्रेरणा लें। हिंदी में कोई नहीं है। न रवीश कुमार से प्रेरणा ले सकते हैं न सुधीश पचौरी से। मेरी तो अभी सीखने की उम्र भी खतम नहीं हुई है और जो काम किया है वो निहायत ही शुरूआती है तो प्रेरणा क्या दूंगा। खैर ये सफाई नहीं हैं। सहमति है। यही बात जब मैंने एनडीटीवी के मीडिया स्कूल में कही थी तो लगा था कि कुछ ज़्यादा बोल गया। अब कह सकता हूं कि कई लोग ऐसा ही सोचते हैं। एनडीटीवी के मीडिया स्कूल में नए छात्रों से मैं कहने लगा कि हिदी टीवी पत्रकारिता में ऐसा कोई भी नहीं है,जिसकी तरह आप बनें। हम सब औसत लोग हैं। औसत काम करते हुए बीच-बीच में लक बाइ चांस थ्योरी से कभी-कभार अच्छा भी कर जाते हैं। लेकिन हम सब टीवी के लिहाज़ से मुकम्मल पेशेवर नहीं हैं। मैं छात्रों से गुज़ारिश कर रहा था कि मेरी बात याद रखियेगा। किसी से न तो प्रभावित होने की ज़रूरत है न प्रेरित। आप अपना रास्ता खुद तय करें और तराशें। लौट कर आया तो लगा कि कहीं ये संदेश न चला गया हो कि बंदा निराश हताश टाइप का है। लेकिन जब एक लड़के ने खम ठोक कर यह बात कह दी तो लगा कि वाह। मूल बात तो यही है। दूरदर्शन के कार्यक्रम 'चर्चा में' की रिकार्डिंग चल रही थी। प्रभाष जोशी को याद किया जा रहा था। आईएमसी और अन्य पत्रकारिता संस्थान के छात्र थे। काफी जोश और ज़िम्मेदारी से बोले। उनकी बातों से हमारे पेशे में आए खालीपन को महसूस किया जा सकता था। वो अच्छा पत्रकार बनने के लिए बेचैन नज़र आए लेकिन वो सब वैसा ही क्यों बनना चाहते हैं जो पहले हो चुका है। वो किसी की तरफ देखते ही क्यों हैं। अगर यह नई पीढ़ी अपने जोश को बचा ले गई और मेहनत से काम को तराशती रही तो अच्छा कर जाएगी। दफ्तरी आशा-निराशा के चक्कर में फंस गई,छुट्टी लेने के लिए दादी-नानी को बीमार करती रही,वो नहीं करता तो मैं क्यों करूं टाइप की अकड़ पालती रही तो वही होगा जो हमारी पीढ़ी का हुआ। और ऐसा भी नहीं है कि हमारी पीढ़ी में लोगों ने साहसिक काम नहीं किये। बेहतर टीवी रिपोर्ट नहीं बनाई। बनाई। लेकिन जो हो रहा है उससे सबके किये कराये पर पानी फिर चुका है। बहरहाल नवोदित पत्रकारों की चिंताओं से लगा कि आज भी हिंदी का पत्रकार इसीलिए पत्रकार बनना चाहता है कि वो समाज में बदलाव चाहता है। गरीबों की आवाज़ उठाना चाहता है। कितनी बड़ी बात है। फिर ऐसा क्या हो जाता है कि नौकरी पाने के बाद कोई इस जुनून को साधता हुआ नज़र नहीं आता। यही प्रार्थना है कि इनका जुनून बचा रहे। यह कार्यक्रम शनिवार को आएगा। विद्रोही बुलंद पत्रकार को साधुवाद।

एक अच्छी बहस चल रही है। हालाकि कुछ लोगों की तर्कों से मैं सहमत नहीं हूं। मेरी नज़र में आज क्या पत्रकार कुछ ऐसे है। वो कोई भी ख़बर पहले ब्रेक करना चाहते है। और VISUAL सबसे पहले PLAY करना चाहते है...EXCLUSIVE TAG के साथ...वो ख़बरों से खेलना चाहते है। LIVE,PHONE,BREAKING,EXCLUSIVE. वो किसी चैनल पर ख़बर आने के बाद ब्रेक करने पर बहुल गुस्साते है। चीखते है, चिल्लाते है। हमें कोई नहीं पहले पता चला। कभी कभार इस जल्दबाजी में CONFIRM करने की भी जरूरत नहीं महसूस करते। JUST GO FOR THAT. बड़ी ख़बर के दूसरे चैनल पर आने के तुरंत बाद वो इसकी जानकारी FIELD से मांगते है। कभी मिलने पर और कभी उससे पहले ही शुरू हो जाते है। वो तुरंत प्रसिद्ध होना चाहते है। EXCLUSIVE ख़बरों के पीछे रहते है। भले ही इससे किसी का फायदा हो रहा हो या नहीं। हाल ही में SWINE FLUE का कहर देश ने झेला। इसी वक्त जामताड़ा,झारखंड में मौजूद एक पत्रकार से मेरी बात हुई। मैंने पूछा क्या कर रहे है आजकल। उन्होने कहा बस ऐसे ही है। छोटी जगहों से बड़ी ख़बर कहां से निकालू। फिर मैंने स्वाइन के बारे में बताया और पूछा कि वहां कोई मरीज मिला है क्या। उन्होने कहा अरे भाई क्या बात कर रहे हो। फिर मैंने पूछा भाई ऐसा क्यों कह रहे हो। कुछ महीने बाद उन्होने बताया कि उन्होने जामताड़ा में SWINE FLUE पर रिपोर्टिंग की और उनके चैनल में खूब चली। दरअसल उन्होने कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों से बात कि जिन्हे ये पता नहीं था कि स्वाइन क्या बला है। वो बहुत खुश थे वो रिपोर्ट कर,कई बार फोनो चला था, जामताड़ा के दूसरे रिपोर्टर उनसे नाराज हो गए थे...बिना बताए स्टोरी कर डाली। इन्हे कोई चीज बेहतर चलाने से ज्यादा चिंता ख़बर को पहले चलाने से है। वो बड़ी ख़बर देखने को लालायित होते है...बिना देर किए तुरंत उस पर आगे बढ़ जाना चाहते है। ये हडबड़ी कभी-कभी खतरनाक होती है। हेडली-राहुल प्रकरण पर ही सोचिए। राहुल भट्ट का नाम आता है। क्या बिना राहुल के STAND जाने हमें ये ख़बर चलानी चाहिए? मैं चाहूंगा कि वरिष्ठ लोगों आज के इन युवा पत्रकारों की हडबड़ी पर कुछ बताएं।

Wednesday, November 11, 2009

SACHIN,SONA,SENSEX

IT IS A RACE AMONG SACHIN TENDULKER, GOD OF CRICKET, SENSEX AND GOLD…SENSEX HAD SCORED 17K BUT NOW IT IS IN 16 AND TENDULKER HAS REACHED IN 17 THE MAN WHO IS GOING TO COMPLETE 20 YRS OF INTERNATION CRICKET SOON. WHAT A MAN HE IS? HE IS HUMAN OR SOME THING ELSE. THEY SAY IF CRICKET IS RELIGION SACHIN IS GOD, RIGHTLY SO, IF YOU HAVE SEEN HIS LATEST HYDERABADI INNING…HE IS MORE OF THAT. 175 OF 141 BALLS WITH 19 BOUNDARIES AND 4 SIXES….KAPIL DEV ONCE PLAYED 175 AND THIS. THAT WAS WHEN INDIA FIRST BATTED,,,THIS ONE WHEN INDIA WAS CHASING A HUGE TARGET 351 RUNS TO WIN. THIS MAN WAS OUT OF TOUCH AS SOME STARTED TO SAY…BUT HIS TWO DISMISSALS BEFORE THAT WAS UNLUCKY RUN OUT AND OTHER IS UMPIRE MISTAKE THEN HOW YOU CAN SAY THE BIG MAN IS OUT OF FORM…RIGHT. IF INDIA COULD HAVE WON THE MATCH WHAT A MOMENT IT WOULD HAVE IN OUR LIFE..JUST THREE RUNS WAS SUCH A PAIN THAT WE WILL CARRY WHOLE LIFE AND THIS MAN TOO. IT REMINDS THAT INNING AGAINST PAKISTAN IN TEST MATCH. WHEN HE ALMOST SINGLE HANDEDLY WON TEST FOR US BEFORE HE GOT OUT AND WE LOSS. AND IT HAPPENS AGAIN….HERE 19 REQUIRE AND THERE 17 REQUIRED…OTHERS COULDNOT MANAGE….BIG BATTING LINE UP..WHEN THEY WILL KNOW HOW TO PLAY…SUCH A GREAT CALCULATION…HE IS MASTER IN MATHS…NO BIG RISK…WICKETS ARE FALLING FROM ONE END AND THIS MAN CARRY TILL 47 OVERS…AND AUSTRALIANS WERE ALMOST KNOW WE ARE IN LOOSING SIDE…BUT ALAS KAS OTHER BATSMEN HAVE PLAYED WITH SOME BRAIN AND WE COULD HAVE WON THE MATCH, WIN THE SERIES AND MORE IMPORTANTLY ONE OF THE GREATEST HINDI JOURNALIST PRABHAS JOSHI COULD HAVE WRITTEN IN NEXT DAYS NEWSPAPER ABOUT TENDULKER’S 17 THOUSAND…A GREAT INNING AND THE MAN WHO ALWAYS TALKS WITH BAT COULD HAVE BEEN WRITTEN IN WORDS ONCE AGAIN….BUT THIS IS LIFE THIS IS CRICKET….THIS IS SACHIN…LET HIM PLAY TILL HE WANTS DONOT SAY ANY WORDS AGAINST HIM…BECAUSE WHEN HE LEFT OUT YOU WILL HAVE NOTHING TO DO…AND WILL ALWAYS REMEMBER ALAS SACHIN COULD HAVE PLAYED WE COULD WIN…..WATCH HIM PLAY DONOT MISS ANY ACTION TILL IS IN THE FIELD….WHOLE WORLD IS THANKFUL FOR GOD WHO SEND SUCH A MAN ONCE IN A CENTURY OR LIFE TIME….

Sunday, November 8, 2009

भोजपुरी भी LIVE

महुआ के लोकप्रिय कार्यक्रम का फ़ाइनल। पटना का ऐतिहासकि गांधी मैदान ऐतिहासिक क्षण का गवाह बन रहा था। गांधी मैदान अपने में कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है और भोजपुरी की माटी से भोजपुरी कार्यक्रम LIVE. लोगों की भारी भीड़। दोनों ही प्रतियोगी के लिए समर्थन..देखने लायक माहौल था। और जब रविकिशन ये कह रहे थे कि आज बड़े गर्व की बात है। भोजपुरिया समाज के लिए गर्व की बात है। दुनिया ये कार्यक्रम LIVE देख रही है तो यकीन जानिए भोजुपरी जानने-समझने वाले लोग इस खुशी से पगला से गए होंगे। भोजपुरी गायकों की खोज श्रृंखला की शुरुआत हो चुकी है। काफी जदोजहद के बाद फ़ाइनल के लिए दो कलाकार बचे थे। फाइनल यूपी बनाम बिहार हो चला था। उत्तर प्रदेश के मोहन राठौर और बिहार के आलोक कुमार दोनों ही सामान्य परिवार से आते है। करीब चार घंटे तक चले मैराथन फाइनल कार्यक्रम से दर्शकों का ध्यान जरा भी नहीं हट रहा था। गांधी मैदान में लाखों की भीड़ के अलावा देश भर में लाखों लोग टेलीविजन सेट से चिपके रहे।यूपी और बिहार के नेताओं ने भी अपने राज्य के गायक के लिए कैंपेनिग की थी। लालू और रामविलास भी मंच पर मौजूद थे तो राज्य सरकार के मंत्री भी। वैसे बुलावा राज्य के मुखिया नीतीश कुमार को भी गया था लेकिन किसी कारणवश वो नहीं पहुंच सके। आयोजनकर्ताओं की सबसे बड़ी मुश्किल भीड़ पर काबू पाने की थी। अगर यूपी जीत गया तो क्या होगा। क्या भीड़ पर काबू पाया जा सकेगा। यहीं सबसे बड़ी मुश्किल थी। लेकिन लोगों ने एक भरपूर कार्यक्रम का पूरा मजा लिया। लालू भी अपने खास अंदाज में थे तो रामविलास भी पूरा आनंद उठा रहे थे। बीच-बीच में रोचक अंदाज में रविकिशन उत्तर भारत और दक्षिण भारत के रुझान बता रहे थे। मंच पर भोजपुरी के कई दिग्गज कलाकार शारदा सिन्हा, मालिनी, मनोज बाबू और रविकिशन तो थे ही साथ में मंच से दिग्गज भोजपुरियों को भी याद किया गया जिनमें भिखारी ठाकुर भी शामिल थे। इस बीच मंच से बार-बार महुआ के सर्वेसर्वा पी.के.तिवारी की जय हो रही थी। उनके महुआ चैनल और भोजपुरी के इस बेहतरीन कार्यक्रम के लिए। अंत शानदार रहा। जब ये निर्णय लिया गया कि ना यूपी जीतेगा ना बिहार। जीत होगी तो भोजपुरी की। सच में भोजपुरी जीत गया। शायद ही इससे बेहतर कुछ हो सकता था। लगे हाथ मंच से अब डांस संग्राम लाने की घोषणा भी हो गई। इससे बेहतर और क्या हो सकता है। भोजपुरी गीतों के बाद अब भोजपुरी डांस भी दिखेंगे। सच में ये एक शानदार कोशिश है।

Saturday, November 7, 2009

प्रभास जी का जाना...क्रिकेट के लिए बड़ी क्षति

अंतिम 'कागद कारे'

पच्चीस साल बाद भी
चर्चा के बाद उसमें भाग लेने वाले कम से कम तीन मित्रों ने पूछा- तो क्या इंदिरा गांधी के बारे में आपने अपनी राय बदल ली है?
क्या करें? पच्चीस साल में पूरा संदर्भ ही बदल गया है। उनके बाद के नेताओं और प्रधानमंत्रियों ने उनका कद और उनकी जगह इतनी ऊपर चढ़ा दी है कि इंदिरा गांधी महान लगने लगी हैं। अब आप भ्रष्टाचार, तानाशाही और गलत नीतियों के लिए किसके पीछे पड़ें? किसकी आलोचना करें? इंदिरा गांधी अपने स्वभाव और ढंग से देश को बनाने की कोशिश कर रही थीं। इसलिए उनसे बहस थी, विवाद था, झगड़ा था। अब तो लगता है कि हमने अपने आप को संसार की शक्तियों को सौंप दिया है। वे चाहे जैसा हमें बनाएं। कोई हम अपने को थोड़ी बना रहे हैं। किसका विरोध करे? भूमंडलीकरण का? अपनी अर्थ और राजनीतिक नीतियों के अमेरिकीकरण का? भारत के अपने मैकॉले पुत्रों का अपने ही देश को एक उपनिवेश बनाने का? भारत का आज अपना पराक्रम क्या है? हम वैसे ही बनते और बनाए जा रहे है जैसा कि अमेरिका और यूरोप है। जबकि सब जानते हैं कि हमारी बुनियादी समस्याएं बिलकुल अलग हैं और वे सब की सब बनी हुई हैं। जैसा अंग्रेजों ने अपना एक भारत बनाया था वैसा ही साम्राज्यवाद की भारतीय संतानें अपना इंडिया बना रही हैं। उसमें देश के लोगों- करोड़ों भूखे, नंगे, बेघर, बेरोजगार और वंचित लोगों को लगातार हाशिए पर धकेला जा रहा है। हमारे बहुसंख्यक लोग हाशिए पर और थोड़े से लोग पूरा पन्ना घेरे हुए हैं। देख लीजिए अपने सार्वजनिक जीवन और मीडिया को। उसमें किसकी चर्चा है?
मैं तो बोलता चला जाता लेकिन दूरदर्शन वाले ने दस्तखत के लिए कागज आगे कर दिए। वह चर्चा इंदिरा गांधी को उसके पच्चीसवें शहीदी दिवस पर याद करने की थी। उसमें एक लड़की ने फिर भी पूछा था कि इंदिरा गांधी के बाद गरीबी हटाने की बात कौन कर रहा है? किसी ने उसे जवाब नहीं दिया। वह चर्चा इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि चढ़ाने के लिए थी। असुविधाजनक सवाल पूछने और उनके जवाब देने के लिए नहीं। इस जवान मित्र को उत्सुकता थी कि मैं भी कैसे चुप रहा। उसकी जिज्ञासा सही थी। लेकिन क्या आप किसी औपचारिक श्रद्धांजलि सभा में किसी के बखिए उधेड़ते हैं? नहीं, आज जो हो रहा है उसके लिए आप इंदिरा गांधी की आलोचना कैसे कर सकते हैं? उनके जाने के बाद बारी-बरी से सभी राज कर चुके हैं। उन्हीं ने तो इंदिरा गांधी को ऊंचे ओटले पर खड़ा कर दिया है।
अब तो आप यही कर सकते हैं कि इंदिरा गांधी के होने और न होने के प्रभाव का आकलन करें। उनके जैसा कोई नेता और प्रधानमंत्री उनके बाद नहीं हुआ। इंदिरा गांधी के पहले भारत की पार्टियों में कोई सर्वोच्च नेता नहीं हुआ करता था। जवाहरलाल भी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष दोनों रहे लेकिन वे सर्वोच्च नहीं थे। उनसे पार्टी और सरकार दोनों में सवाल पूछे जा सकते थे। चुनौती दी जा सकती थी। वे कमजोर दिखने की हद तक लोकतांत्रिक थे। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस तोड़ी और अपनी वाली कांग्रेस को ही सच्ची कांग्रेस पार्टी बना दिया। उसके बाद वे उसकी सर्वोच्च नेता-सुप्रीमो- हो गईं। पहले कांग्रेस से आंतरिक लोकतंत्र गया और फिर एक-एक कर सभी पार्टियों से। अब हर पार्टी में सर्वोच्च नेता हैं। जैसी कांग्रेस में सोनिया गांधी वैसे बसपा में मायावती। कबीर जैसी उलटबांसी है कि भारतीय लोकतंत्र को ऐसी पार्टियां चला रही हैं जिनमें किसी में भी आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। सर्वोच्च नेताओं के संतुलन और राजनीतिक मजबूरियों और सदभावना से हमारा लोकतंत्र चल रहा है। कोई एक पूरा तानाशाह नहीं हो सकता क्योंकि सब छोटे-छोटे तानाशाह हैं। भारतीय राजनीति में यह इंदिरा गांधी के होने का प्रभाव और परिणाम है।
इंदिरा गांधी के पहले शासन का सबसे बड़ा उपकरण मंत्रिमंडल का सचिवालय हुआ करता था। क्योंकि सत्ता मंत्रिमंडल में हुआ करती थी। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को मंत्रिमंडल सचिवालय से ज्यादा शक्तिशाली और निर्णायक बनाया क्योंकि उनके होने से मंत्रिमंडल नहीं प्रधानमंत्री ज्यादा सत्तावान हो गया और वे अपनी सत्ता को अपने कार्यालय से चलाती रहीं। प्रधानमंत्री मंत्रियों का प्रधान होने के कारण सबसे सत्तावान हुआ करता था। इंदिरा गांधी के कारण मंत्रिमंडल उनके होने का उपकरण हो गया। इमरजंसी लगाने जैसा अहम फैसला रात में उनने किया। सवेरे मंत्रिमंडल ने उस पर स्वीकृति की मुहर लगाई। वे कोई भी निर्णय खुद लेती थीं और अपने कार्यालय के जरिए उस पर अमल करवाती थीं। मंत्रिमंडल उनके निर्णय पर लोकतांत्रिक सांस्थानिक मुहर लगाता था। उनके होने के कारण मंत्रिमंडल था और वह विचार उनकी मर्जी और रियायत से करता था। सत्ता चलाने का यह निजी तरीका इंदिरा गांधी ने विकसित किया था। लेकिन उनने इसे इतना सफल बना कर दिखा दिया कि बाद के सभी प्रधानमंत्रियों ने ऐसे ही सत्ता चलाई।
और तो और, अटल बिहारी वाजपेयी तो चौबीस पार्टियों के गठबंधन के भाजपाई प्रधानमंत्री थे। वे अपनी सरकार, अपने गठबंधन और अपनी पार्टी के वैसे सर्वोच्च नेता नहीं थे जैसी इंदिरा गांधी हुआ करती थीं। फिर भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सत्ता प्रधानमंत्री कार्यालय से ही चलती थी। उसके मुखिया ब्रजेश मिश्र अपने पूरे कैरियर में कभी उतने शक्तिशाली नहीं रहे जितने अटल जी के प्रधानमंत्री कार्यालय के मुखिया के नाते। यह इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्रीय योगदान ही है कि वाजपेयी जैसे अधिक लोकतांत्रिक और उदार नेता के बावजूद उनका कार्यालय ही इतना शक्तिशाली और प्रभावी था कि उसकी सत्ता क्षीण करने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक उत्सुक रहा करता था। सब जानते हैं कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री जरूर हैं, पर राजनीतिक सत्ता उनके पास नहीं है। फिर भी सरकार का काम उनके कार्यालय से ही चलता है। इंदिरा गांधी का यह योगदान उनके बाद के सभी प्रधानमंत्रियों को फला है।
जरूरी नहीं है कि इसे आप उनका नकारात्मक प्रभाव मान कर ही चलें। सभी पार्टियां सर्वोच्च नेता चलाती हैं इसीलिए पार्टियों को सर्वोच्च नेता चला रहे हैं। उन्हें अगर यह मॉडल मंजूर नहीं होता तो वे ज्यादा लोकतांत्रिक या पूरी तरह तानाशाही मॉडल विकसित करतीं। लेकिन आप भाजपा को देखिए। कुछ वर्षों से उसमें सर्वोच्च और सर्वमान्य नेता नहीं है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बावजूद वह कितनी बिखरी हुई और दिशाहीन है। उसमें भी आंतरिक लोकतंत्र कहां है? क्यों उसके अंदर से ही आवाज उठती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उसका टेकओवर कर ले। सब जानते हैं कि संघ संसदीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता न वह अपने को राजनीतिक संगठन कहलवाने देता है। फिर भी संघ के उसके ले लेने की बात इसलिए उठती है कि कोई शक्तिशाली नेता या संगठन ही किसी पार्टी को ठीक कर सकता है। यह भाजपा में इंदिरा गांधी की जरूरत की मांग है। है ना आश्चर्य। संघ के होते हुए भाजपा को कोई इंदिरा गांधी चाहिए।
इसी तरह कैबिनेट के बजाय प्रधानमंत्री सरकार चलाए इसे भी भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ने स्वीकार कर लिया है। आप कह सकते हैं कि यह निर्गुण और सांस्थानिक व्यवस्था से ज्यादा सगुण और व्यक्तिपरक व्यवस्था की चाह में हुआ है। यानी इंदिरा गांधी ने लोकतांत्रिक सत्ता के मध्य में अपनी निजी सत्ता की जो स्थापना की थी और जो उन्हें इमरजंसी लगाने जैसे तानाशाही रास्ते पर ले गई उससे भी भारतीय व्यवस्था को कोई सख्त और बुनियादी एतराज नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के उपकरण को उनके बाद के हर प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया। हर प्रधानमंत्री अब मंत्रिमंडल का प्रधान होने के नाते नहीं, प्रधानमंत्री होने के कारण सरकार चलाना चाहता है। सच है कि इंदिरा गांधी के बाद कोई भी प्रधानमंत्री उतना सत्ताधिकारी नहीं रहा जितनी वे थीं, लेकिन सब उन्हीं के गढ़े उपकरण से काम करते रहे। यह भी भारतीय शासन व्यवस्था में इंदिरा गांधी का स्थायी योगदान है। इससे पार्टी और शासन में लोकतंत्र की जो हानि हो रही है वह तो सही है। लेकिन लोग और उनके नेता अपने ढंग से ही अपना लोकतंत्र गढ़ते हैं ना!
लेकिन इतना कह देने के बाद यह मत मान लीजिए कि अपन ने इंदिरा गांधी को इमरजंसी लगाने और लोकतांत्रिक सत्ता को तानाशाही ढंग से चलाने के पाप से मुक्त कर दिया है। उनने यह सब करके देश के लोकतंत्र के लिए जो खतरा पैदा कर दिया था वह कोई उन्हें हटाने पर अड़े उनके राजनीतिक विरोधियों और प्रतिद्वंद्वियों की डरपोक कल्पना नहीं थी। जरा सोचिए कि सन सतत्तर के चुनाव में वे किसी तरह जीत जातीं तो क्या होता। क्या वे उन सभी नागरिक आजादियों को वैसा ही रहने देती जैसी वे इमरजंसी के पहले थीं? इंदिरा गांधी को आयोग्य इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ठहराया था, जेपी और राजनीतिक नेताओं और पार्टियों ने नहीं। वे चुनाव में भ्रष्टाचारी तरीके अपनाने की दोषी पाया जाए और उच्च न्यायालय उसे आयोग्य ठहरा दे तो वह पद से चिपका नहीं रह सकता क्योंकि संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री राजनीतिक नैतिकता का भी रक्षक और प्रेरक होता है। उच्च न्यायालय ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्ता दिया था और वहां से उनके वोट देने के अधिकार पर मामले के फैसले तक पाबंदी लग गई थी।
उच्च और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले विपक्षी दलों और जयप्रकाश नारायण के राजनीतिक षड्यंत्र के परिणाम नहीं थे। इंदिरा गांधी ने उनका सम्मान न करके राजनीतिक लड़ाई के जरिए प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला करके न्यायालयी कार्रवाई और नतीजों का राजनीतिकरण किया और इस तरह न्यायापालिका को अपने स्वतंत्र और स्वायत्त स्थान से खींच कर सत्ता राजनीति के दलदल में घसीट लिया। लोकतांत्रिक व्यवस्था को यह इंदिरा गांधी का आघात था जिसके स्थायी घाव आप अब भी उस पर देख सकते हैं। क्या किसी का लगातार सत्ता में बने रहना इतना अनिवार्य होता है कि लोकतंत्र को भी निलंबित कर दिया जाए?
इंदिरा गांधी के सत्ता के भागीदार कहेंगे कि हां। वे इतिहास और लोकतंत्र के सामने झूठ बोल रहे हैं। उनकी बात पर मत जाइए। इंदिरा गांधी इस सब के बावजूद महान और शक्तिशाली नेता थीं। उन्हें याद करके हम अपने को धन्य ही करते हैं। साभार : जनसत्ता

Sunday, November 1, 2009

स्पेशल ट्रेन तो स्पेशल ही है...

छठ के मौके पर बिहार जाने वाली ट्रेनों में अगर आपको कनफर्म टिकट मिल गयी हो तो आपसे भाग्यशाली कोई नहीं। नहीं मिली तो भी जाना है...खैर दो दिनों तक तत्काल में टिकट ना मिला था...तो गया की तरफ से चला गया....उधर की टिकट थी...गया से बस से पटना होते हुए मुजफ्फरपुर पहुंचा। गया, जहानाबाद होते हुए पटना। नक्सली इलाके से जाते वक्त पता नहीं क्या होता है...आज भी याद है जहानाबाद जेल ब्रेक कांड की घटना..जब ईटीवी में होता था...जहानाबाद रिपोर्टर का फोन...और फिर न्यूजरूम से लेकर पीसीआर तक अफरातफरी...मैं उस दिन पहली बार लौटते वक्त पंच करना भूल गया था...आप लोगों को देखकर ये SURE होना चाहते है कि ये नक्सली है या नहीं। पता नहीं सबके साथ होता है या नहीं। लेकिन मैं ये FEEL कर रहा था। इलाके का पिछड़ापन बता रहा था कि यहां विकास की परछाई अब तक नहीं पहुंची है। मैं यहीं सोचता रहा जब नक्सल प्रभावित क्षेत्र में दूसरे जगहों से सुरक्षा बल आते होंगे तो लोगों के साथ कैसे तालमेल बिठा पाते होंगे...उन्हे तो ना तो उस इलाके के बारे में जानकारी होती है और ना ही लोगों के बारे में। वो तो हर चेहरे को शक की नज़र से देखते होंगे। खैर इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। अब स्पेशल ट्रेन पर आते है। 26 को लौटना था। दरभंगा दिल्ली दीपावली एक्सप्रेस से। ये ट्रेन दीपावली-छठ के मौके पर विशेष रूप से चलाई जा रही थी। शायद अब बंद हो गई होगी। मुजफ्फरपुर में ट्रेन का वक्त शाम छह बजकर तीस मिनट था। पता किया तो ट्रेन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। अभी डाउन ट्रेन दरभंगा ही नहीं गई थी वो अभी लौट रही थी। अंत में बताया गया बारह बजे के आस-पास एक बार पूछ लिजीएगा। पता चला कि नौ बजे डाउन ट्रेन मुजफ्फरपुर में आ गई है। अब उसे दरभंगा तक जाना है और फिर लौट कर आना है। खैर आखिरकार ढ़ाई बजे ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची। ट्रेन चल रही थी...रूक रही थी...दूसरी ट्रेनों को रास्ता दिया जा रहा था...ना टीटीई और ना ही कोई सुरक्षा बल...भगवान भरोसे सुरक्षा...भगवान भरोसे यात्रा....हद तो ये हो गई कि जो ट्रेन हमसे सात घंटे बाद चली थी उसने भी कानपुर में ओवरटेक कर लिया...कानपुर में पुलिस के जवान झारखंड दौरे के लिए ट्रेन पकड़ रहे थे...झारखंड चुनाव में उनकी ड्यूटी लगी है...किसी के चेहरे पर तनाव नहीं..सब खुश थे...इधर सत्ररह घंटे देर ट्रेन गाजियाबाद पहुंची....पता नहीं नई दिल्ली जाने में अभी उसे और कितने वक्त लगे होंगे...दरअसल ये स्पेशल ट्रेन जबरदस्ती की बनाई होती है...इससे यात्रियों का कोई भला तो नहीं होता....रेल को फायदा होता है...इस स्पेशल ट्रेन को जगह देना मुश्किल होती है क्योंकि रेगुलर ट्रेने की जो भरमार है। ऐसे में बेहतर होता जो ट्रेने चल रही है उसी में कुछ अतिरिक्त डब्बे लगा दिए जाए जिससे रेल को फायदा तो हो ही यात्रियों को भी थोड़ी सी ही सुविधा मिल जाए....इसमें दीदी ममता की गलती नहीं है...रेलवे में ऐसे ही चलता आ रहा है...आगे भी स्पेशल ट्रेन चलती रहेंगी...लेकिन यकीन मानिए जिन्होने भी इस स्पेशल ट्रेन से यात्रा की वो आगे कभी स्पेशल ट्रेन में नहीं चढ़ेंगे .....

तो दुनिया खत्म हो जाएगी…?

घर गया तो कुछ चैनलों की ख़बर पर बात हो रही थी। कुछ लोग को दुनिया के खत्म हो जाने का डर सता रहा था। कुछ चैनलों की महामाया कैलेंडर वाली ख़बर दिल से लेकर दिमाग तक हावी हो चली थी। ख़बर के प्रसारण के बाद तो कई लोग रोने लगे थे...मैने नहीं देखा था जैसा बताया गया....अपने बच्चों के बारे में सोचने लगे थे..चार साल का ही बच्चा है पता नहीं आगे क्या होगा.....फिर मैने उनसे बात कि उन्हे बताया कि हम जैसे लोग ख़बरों में किस तरह घालमेल करते है...कैसे ख़बर बेचने के लिए कुछ का कुछ भी दिखाते है...सो आप निश्चिंत रहिए....ऐसा कुछ नहीं होगा...और अगर होगा तो सब जाएंगे...फिर क्यूं घबराना...बात बस इतनी है कि इस महामाया सभ्यता के लोगों ने जो कैलेंडर बनाया था उसमें 2012 के बाद कुछ नहीं है...इसका मतलब ये कतई नहीं है कि दुनिया ही खत्म हो जाएगी....फिर मैने एक चैनल का नाम लेकर बता दिया आप ये चैनल देखिए....इस पर भरोसा कीजिए...और अगर ये चैनल ऐसी कोई ख़बर दिखाता है तब ही यकीन कीजिएगा...कुछ दूसरे लोगों से भी बात हुई मीडिया के हालात पर...क्या दिखाते हो भाई.....अंत में यहीं पता चला कि लोग समझ गए है कि इन चैनलों की नीति को...वे आनंद उठाते है,,,,गंभीरता से नहीं लेते...गंभीरता से वे NDTV और ZEE को लेते है। NDTV को वे नंबर वन बताते है।

कहां हुआ है विकास नीतीश जी?

बिहार का खूब विकास हो रहा है। नीतीश बिहार में विकास मॉडल के सहारे झारखंड में भी चुनाव लड़ने जा रहे है। लेकिन कहां हो रहा है विकास। आम आदमी को क्या मिल रहा है। अभी उपचुनाव में हार की एक वजह जमीन बटाईदारी का मामला बताया जा रहा है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि हर ओर विकास ही विकास है। इस बार जब घर गया तो ये देखकर अच्छा लगा कि जो रोड सालों से गड्ढ़े में तब्दील हो चुकी थी...वो अब चकाचक हो गयी है। गाड़ियां सांय-सांय निकल रही थी। सड़कों को देखता और गड्ढ़ों को याद कर रहा था कि अरे यहां तो पहले ऐसा नहीं था। आगे बढ़ा तो वो पूल भी दुरूस्त दिखी जो सालों से डराती थी। मजा आ रहा था। वाह लोग अब कितने खुश होंगे। महुआ से मुजफ्फरपुर तो अब 25-30 मिनट में लोग पहुंच जाते होंगे। थोड़ा आगे बढ़ा तो एक बोर्ड देखा कृप्या डायवर्जन का प्रयोग करे...दरअसल यहां एक पेड़ गिर गयी थी। और सड़क पर कटाव भी किया गया था। महीनों बीत चुके है जो वैकल्पिक मार्ग बनाई गई वो भी अब खतरनाक हो चली है। कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। घर से लौटते वक्त भी सोचता रहा हि कि क्या कुछ बेहतर हुआ है। अखबारों में देखा तो एक जगह ख़बर देखी...अनाज नहीं मिलने से लोग नाराज है। लोगों ने साफ-साफ कह दिया है कि अगर उन्हे छठ में अनाज नहीं मिला तो वे अपना लाल कार्ड जला देंगे। क्या फायदा इस लाल कार्ड का जब कुछ मिल ही ना। एक और ख़बर देखी। भागलपुर की कई सड़कों का कोई मां-बाप नहीं है। ये शीर्षक थी। ख़बर में बताया गया कि 25 साल से ये सड़क नहीं बनी है। ये किसके जिम्मे है ना तो PWD,भवन निर्माण विभाग,नगर निगम किसी को पता नहीं। मुजफ्फरपुर की लीची दुनिया भर में प्रसिद्ध है। और हाल के दिनों में जॉर्ज फर्नांडीज यहीं से सांसद हुआ करते थे। शायद अपने अंतिम चुनाव में उन्हे यहां हार का सामना करना पड़ा। 1977 में यहां के लोगों ने इस अनजान शख्स को जीताकर संसद भेजा था। मिनी मुंबई भी इसी बुलाते है। लेकिन आज भी शहर विकास के मामलों में काफी पिछे है। पटना से मुजफ्फरपुर अगर आप बस से जा रहे है तो कई बार आह-उह निकल आते है। ओवरटेकिंग और क्रॉसिंग के वक्त पता नहीं होता कि अगले पल क्या होगा। ठिक वैसे ही कि बिहार का भविष्य क्या होगा।

छठ की महिमा

पांच साल बाद छठ में बिहार में था। सोच रहा था कि पांच साल तक क्यों नहीं आ पाया। लोग तो दूर-दूर से पहुंच जाते है। हिन्दुस्तान में ख़बर छपी थी। मेरे एक साथी की ही लिखी हुई थी। अनामिका ने इसे लिखा था। शीर्षक था...25 साल बाद बेटे के साथ अर्घ्य देंगी त्रिवेणी देवी...मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर की त्रिवेणी के घर में 25 साल बाद ये खुशी लौटी थी। उनके बेटे अमेरिका में रहते है। त्रिवेणी ने उम्मीद छोड़ दी लेकिन इस बार उनके बेटे को मां की याद आ गई। छठ के मौके पर अमेरिका से वे पूरा परिवार पहुंच गए। और फिर आप अंदाजा ही लगा सकते है क्या माहौल रहा होगा पूरे परिवार में। इस ख़बर में कनाडा और दूसरे देशों से आए कुछ लोगों के बारे में भी बताया गया था। एक और ख़बर पढ़ी। आप इसी से छठ महापर्व की महानता का अंदाजा लगा सकता है। अपराधी और नक्सली भी इस दौरान कोई गड़बड़ी नहीं करते। अखबार में पूरा आकंडा दिया गया था जिसमें बताया गया कि इस दौरान कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। सच में बिहार को जानना हो तो बिहार का छठ जरूर देखिए। अगर ये नहीं देखा कुछ नहीं देखा और फिर बिहार के बारे में कुछ ना ही कहे तो बेहतर। मुंबई से राज ठाकरे को भी इस मौके पर बिहार में होना चाहिए ताकि वे बेहतर समझ सकें। समरसता की अनोखी मिसाल है। हिन्दी के मशहूर लेखक असगर वजाहत कहते है कि
“ जिन लाहौर नहीं वेख्या
वो जन्मा ही नहीं”
इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि
जिसने बिहार की छठ नहीं देखी
उसने कुछ देखा ही नहीं।
आदित होहिं ना सहाय...उग ना ऐ दीनानाथ...भइले अर्घ्य के बेर।
सच में अगर बिहार की ऊंचाई जाननी हो तो छठ देखिए। सूर्य(ब्रहा) और छठी माई(शक्ति) की संयुक्त उपासना की जाती है। इस पर्व में जात-पात, धर्म सबकी दीवारें टूट जाती है। अब हिन्दुस्तान में छपी ख़बरों को ही उठाकर देख लीजिए। साफ पता चल जाएगा। रामप्रसाद मजूदर है और महीनों से बीमार है। तो आप क्या सोचते है कि उनके घर में छठ मनेगा ही नहीं। जी नहीं ऐसा नही् है। उनके घर भी मनेगा। कोइ रामप्रसाद के परिवार वालों के लिए कपड़े भेज रहा है तो कोई गन्ना का उपाय कर रहा है। कोई कद्दू भेज रहा है तो कोई केला। यानि जिसके पास जो है वो उसे भेज रहा है। यह सिर्फ रामप्रसाद के साथ ही नहीं हो रहा है। यहां जिनके पास जो होता है वो दूसरे को बांटते है। जैसे अगर आपके पास केले ज्यादा मात्रा में है तो आप उन्हे दूसरे लोगों में बांट देते है। बिना इस उम्मीद के कि सामने वाला भी कुछ आपको देगा। अगली ख़बर हाजीपुर जेल में छठी मइया के गीत बज रहे है। यहां की 10 महिला कैदी और 55 पुरूष कैदी छठ जो कर रहे है। जेलर साहब भी उनकी मदद कर रहे है। इस पर्व में अहंकार खत्म हो जाता है। बड़े-छोटे का भाव खत्म हो जाता है। बड़े परिवार के लोग भीख मांग कर पैसा जुटा कर छठ करते है। किसी तरह की कोई शर्म नहीं होती। बड़े हो छोटे हो सबको घर से घाट तक नंगे पांव ही जाना पड़ता है। भले ही एसी गाड़ियों में चलने की आदत क्यों ना हो। आज तो सब जमीन पर होते है। शायद ही किसी पर्व में ऐसा आलम होता है। एक और मायने में ये पर्व खास है। रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला...ए छठी मैया...पढ़ल पंडितवा दामाद ये छठी मइया। इस गीत में बेटी होने का वरदान माना जा रहा है। और बेटी भी शर्मीली, सकुचाई हुई सी नहीं। जिसके पायलों की शोर से घर गुंजता रहा...शायद ये एक मात्र ऐसा पर्व हो जिसमें बेटी मांगने का चलन है। और भी कई बातें तो मेरे लिखने भर से आप नहीं समझ सकेंगे....इसके लिए तो आपको बिहार जाना ही होगा...और छठ देखना ही होगा।