Sunday, November 1, 2009

छठ की महिमा

पांच साल बाद छठ में बिहार में था। सोच रहा था कि पांच साल तक क्यों नहीं आ पाया। लोग तो दूर-दूर से पहुंच जाते है। हिन्दुस्तान में ख़बर छपी थी। मेरे एक साथी की ही लिखी हुई थी। अनामिका ने इसे लिखा था। शीर्षक था...25 साल बाद बेटे के साथ अर्घ्य देंगी त्रिवेणी देवी...मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर की त्रिवेणी के घर में 25 साल बाद ये खुशी लौटी थी। उनके बेटे अमेरिका में रहते है। त्रिवेणी ने उम्मीद छोड़ दी लेकिन इस बार उनके बेटे को मां की याद आ गई। छठ के मौके पर अमेरिका से वे पूरा परिवार पहुंच गए। और फिर आप अंदाजा ही लगा सकते है क्या माहौल रहा होगा पूरे परिवार में। इस ख़बर में कनाडा और दूसरे देशों से आए कुछ लोगों के बारे में भी बताया गया था। एक और ख़बर पढ़ी। आप इसी से छठ महापर्व की महानता का अंदाजा लगा सकता है। अपराधी और नक्सली भी इस दौरान कोई गड़बड़ी नहीं करते। अखबार में पूरा आकंडा दिया गया था जिसमें बताया गया कि इस दौरान कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ। सच में बिहार को जानना हो तो बिहार का छठ जरूर देखिए। अगर ये नहीं देखा कुछ नहीं देखा और फिर बिहार के बारे में कुछ ना ही कहे तो बेहतर। मुंबई से राज ठाकरे को भी इस मौके पर बिहार में होना चाहिए ताकि वे बेहतर समझ सकें। समरसता की अनोखी मिसाल है। हिन्दी के मशहूर लेखक असगर वजाहत कहते है कि
“ जिन लाहौर नहीं वेख्या
वो जन्मा ही नहीं”
इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि
जिसने बिहार की छठ नहीं देखी
उसने कुछ देखा ही नहीं।
आदित होहिं ना सहाय...उग ना ऐ दीनानाथ...भइले अर्घ्य के बेर।
सच में अगर बिहार की ऊंचाई जाननी हो तो छठ देखिए। सूर्य(ब्रहा) और छठी माई(शक्ति) की संयुक्त उपासना की जाती है। इस पर्व में जात-पात, धर्म सबकी दीवारें टूट जाती है। अब हिन्दुस्तान में छपी ख़बरों को ही उठाकर देख लीजिए। साफ पता चल जाएगा। रामप्रसाद मजूदर है और महीनों से बीमार है। तो आप क्या सोचते है कि उनके घर में छठ मनेगा ही नहीं। जी नहीं ऐसा नही् है। उनके घर भी मनेगा। कोइ रामप्रसाद के परिवार वालों के लिए कपड़े भेज रहा है तो कोई गन्ना का उपाय कर रहा है। कोई कद्दू भेज रहा है तो कोई केला। यानि जिसके पास जो है वो उसे भेज रहा है। यह सिर्फ रामप्रसाद के साथ ही नहीं हो रहा है। यहां जिनके पास जो होता है वो दूसरे को बांटते है। जैसे अगर आपके पास केले ज्यादा मात्रा में है तो आप उन्हे दूसरे लोगों में बांट देते है। बिना इस उम्मीद के कि सामने वाला भी कुछ आपको देगा। अगली ख़बर हाजीपुर जेल में छठी मइया के गीत बज रहे है। यहां की 10 महिला कैदी और 55 पुरूष कैदी छठ जो कर रहे है। जेलर साहब भी उनकी मदद कर रहे है। इस पर्व में अहंकार खत्म हो जाता है। बड़े-छोटे का भाव खत्म हो जाता है। बड़े परिवार के लोग भीख मांग कर पैसा जुटा कर छठ करते है। किसी तरह की कोई शर्म नहीं होती। बड़े हो छोटे हो सबको घर से घाट तक नंगे पांव ही जाना पड़ता है। भले ही एसी गाड़ियों में चलने की आदत क्यों ना हो। आज तो सब जमीन पर होते है। शायद ही किसी पर्व में ऐसा आलम होता है। एक और मायने में ये पर्व खास है। रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला...ए छठी मैया...पढ़ल पंडितवा दामाद ये छठी मइया। इस गीत में बेटी होने का वरदान माना जा रहा है। और बेटी भी शर्मीली, सकुचाई हुई सी नहीं। जिसके पायलों की शोर से घर गुंजता रहा...शायद ये एक मात्र ऐसा पर्व हो जिसमें बेटी मांगने का चलन है। और भी कई बातें तो मेरे लिखने भर से आप नहीं समझ सकेंगे....इसके लिए तो आपको बिहार जाना ही होगा...और छठ देखना ही होगा।

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