Wednesday, November 25, 2009

बाबरी के कातिलों को मिलेगी सज़ा?

6 दिसंबर 1992 का सच सामने है। लेकिन क्या ये ऐसा सच है जिसे हम नहीं जानते थे। कोई नहीं जानता था। 17 साल की मशक्कत के बाद लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट पेश कर दी। करीब 48 एक्सटेंशन और 8 करोड़ हमारे-आपके खर्च के बाद। रिपोर्ट संसद में पेश होने से पहले ही लीक हो गयी। सड़क से संसद तक मच गया बवाल। बाद में सरकार ने संसद में रख दिया। तेरह पन्नों का एटीआर भी..लेकिन अब आगे क्या होगा। चर्चा होनी है गुरुवार को लेकिन इससे क्या होगा। आम आदमी को इससे क्या फायदा होने जा रहा है। उनके तो मुद्दे ही खत्म हो गए। गन्ना किसानो का अध्यादेश भी कही खो गया। ना महंगाई, ना बेरोजगारी और ना ही मधु कोड़ा या फिर शिवसैनिकों के तांडव की चर्चा है। क्या संघ और बीजेपी के लिए ये रिपोर्ट फायदेमंद है। इसका वे लाभ उठा सकते है। रिपोर्ट में 68 लोगों को दोषी ठहराया गया है। इस पूरे मामले में आरएसएस और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भूमिका पर गंभीर सवाल है। ये सब जानते है। इन 68 लोगों में एक नाम ख़ास है वो है अटल जी का। इनके अलावा आडवाणी,जोशी,बाल ठाकरे,उमा भारती,विनय कटियार,अशोक सिंघल.साध्वी ऋतंभरा,के.एस.सुदर्शन,प्रवीण तोगड़िया को सब जानते है। कुछ सरकारी अफसरों पर भी सवाल है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की गलती ये थी कि उन्होने कल्याण पर भरोसा किया। ये सब जानते है। जो हुआ वो भारतीय इतिहास का काला दिन था इसमें किसी को भी शक नहीं होना चाहिए। भले ही किसी के लिए ये गर्व की बात हो...मुबारक हो उन्हे इस पर गर्व होना। देश को शर्मसार कर आपको गर्व होता है तो हो। आप देश के गुनहगार है। अब संघ –बीजेपी की दोस्ती अपने बेहतर दिनों में लौट जाएगी? जिन्हे लोगों ने ठुकरा दिया कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, बाल ठाकरे उन लोगों की दुकान फिर चल पड़ेगी। सुषमा स्वराज से घटिया वक्ता कोई नहीं दिखता। एक बार एक जगह बड़ी ख़बर देख रहा था। बहुत बड़ी ख़बर जो आई मध्यप्रदेश से। सुषमा ने कहा कि आडवाणी विपक्ष के नेता बने रहेंगे। हालाकि उस चैनल ने इस बड़ी ख़बर पर कोई रिपोर्ट पेश नहीं की थी। अब सुषमा रिपोर्ट लीक मामले पर गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग करती है। शर्म नहीं आती इन्हे किस आधार पर। अगर जरा सी भी नैतिकता अरे छोड़िए कहां बची है इन बाबरी के गुनहगारों में। अमर सिंह और एस.एस अहलूवालिया राज्यसभा में भिड़ गए। वोट बैंक की खातिर। आगे भी ऐसे दृश्य सड़क से संसद तक दिखे तो आश्चर्यचकित मत होइएगा। आडवाणी संसद में इस बात पर भड़क गए कि इसमें अटल जी का नाम क्यों आया। क्या वो अटलजी को इसका जरा सा भी क्रेडिट नहीं देना चाहते। मंदिर का सारा श्रेय खुद ही ले लेना चाहते है उस मंदिर का जो बना ही नहीं है। आडवाणी जी का करियर एक बार फिर ऊपर जाएगा। उन्हे फिर मौका मिलेगा। जैसे अंपायर ने आउट देकर फिर से बल्लेबाजी के लिए बुला लिया है। लेकिन इस बारे सारे फील्डर तैयार है वो गेंदबाजी भी कसी हुई हो रही है। सो बेहतर हो आप पवेलियन लौट जाए दूसरी इनिंग और ज्यादा खराब होने वाली है। ले लीजिए संन्यास नहीं तो कोई नाम लेने वाला भी नहीं होगा। इसी उम्मीद के साथ कि फिर कोई 6 दिसंबर ना हो, फिर कोई गुजरात दंगा ना हो, फिर कोई सिक्खों का कत्लेआम ना हो। लोकतंत्र जिंदाबाद। धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद।

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