Monday, December 20, 2010

भारत रत्न सचिन तेंदुलकर

एक और शानदार शतक , एक और रिकॉर्ड और एक और खुशी का लम्हा, करोड़ों भारतीयों के चेहरे पर मुस्कान। सेंचुरियन में मास्टर ब्लास्टर की पारी इन्ही सब से भरी थी। भारत हार के कगार पर है। टेस्ट बचाना मुश्किल दिख रहा है। सचिन के पचासवें शतक के बाद सब ये भूल गए कि मैच का परिणाम क्या होगा। हार के कगार पर है टीम इंडिया लेकिन एक पल के लिए करोड़ों चेहरे पर मुस्कान छा गई। ऐसा ना कभी हुआ था और शायद कभी नहीं हो पाएगा। एक, दो, तीन, दस, बीस नहीं पचास शतक। कोई खेल नहीं पचास शतक जमाना। २१ साल से क्रिकेट खेलते रहना खेल नहीं । जब भी मैदान पर उतरना, करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों की बोझ संभालना आसान नहीं है। हम-आप दो चार लोगों की उम्मीदों का बोझ ही बेहतर से नहीं संभाल पाते..वो तो करोड़ों और अऱबों लोगों की उम्मीदों पर हमेशा खड़ा उतरता है। भारत में क्रिकेट अगर धर्म है तो सचिन तेंदुलकर भगवान है। सालों से ये बात कही जा रही है और क्रिकेट को भारत में धर्म बनाने में इस बल्लेबाज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टेस्ट औऱ वनडे में ९६ शतक हो चुके है। शतकों के शतक से महज चार शतक दूर। शायद ही कोई इसे तोड़ पाए। हम सब भाग्यशाली है कि उस जमाने में हम पैदा हुए जिस वक्त सचिन तेंदुलकर जैसा बल्लेबाज क्रिकेट खेल रहा है। कोई कहता है कि हम भाग्यशाली है कि उस देश में पैदा हुए जहां सचिन तेंदुलकर ने जन्म लिया। रिकार्ड की बात क्या की जाए...सब को मालूम है मास्टर का रिकार्ड। जितने शानदार क्रिकेटर उससे ज्यादा बेहतर इंसान। कई महान खिलाड़ियों में ये समानता ढूढना मुश्किल है। टाइगर वुड्स की बात करेंगे या फिर माराडोना कि यहां फिर किसी की। करियर में आज तक कोई विवाद नहीं। आलोचक पता नहीं क्यों उनकी आलोचना करते रहते है। मानो आलोचना करना है तो कर दिया। वैसे ये खिलाड़ी तो आलोचनाओं से परे है। आप इसकी आलोचना नहीं कर सकते। आलोचकों से बस एक सवाल आपने अपने करियर कितने शतक जमाए हैं? पांच, दस,बीस,तीस.........फिर आप कैसे उसकी आलोचना कर सकते हो। वनडे और टेस्ट के करीब-करीब सारे रिकॉर्ड जिसके नाम हो...क्या कहा जाए उस खिलाड़ी के बारे में। एक शतक जैसे ही पूरा हुआ...लोग कुछ और उम्मीद बढ़ाना शुरू कर देते है। और पिछले २१ सालों में वो सब कुछ पूरा करता आया है...आगे भी जारी रहेगा। ९६ और २००३ में उसने करीब-करीब भारत को विश्व कप जीता ही दिया था लेकिन ९६ में साथी बल्लेबाजों ने साथ नहीं दिया तो २००३ में फाइनल में गेंदबाजों ने दिल खोलकर रन लुटा दिए। अब मिशन २०११ की तैयारी है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा है जो सचिन की तरह इतनी ज्यादा बार सुर्खियों में रहा। हमेशा अच्छी वजहों के चलते। शतक के चलते, रिकार्ड के चलते, भारत को जीत दिलाने के चलते। इसी साल का रेल बजट याद है। ममता दीदी ने दिन में रेल बजट प्रस्तुत किया और शाम होते होते दीदी खबरों की दुनिया से गायब हो गई। सचिन ही सचिन छा गए। वनडे मैचों में पहला दोहरा शतक जमाकर। कल भी कांग्रेस अधिवेशन में सोनिया का बीजेपी पर हमला शाम होते-होते पीछे छुट गया। मास्टर ही मास्टर छाए रहे। क्या कोई ऐसा होगा जिसने सचिन की सारी शतकीय पारी देखी हो ...टेस्ट और वनडे के सभी। सचिन की सारी पारियों की बात छोड़ दीजिए। डॉन ब्रैडमैन भी आज ऐसा नहीं खेल पाते। तेज विकेट पर सामने से जब कोई १५० किलोमीटर रफ्तार से गेंद फेंकता है तो अच्छे-अच्छे बल्लेबाज पिच पर ही पानी मांगने लगते है। तेज और स्पिन का इतना बेहतरीन खिलाड़ी कोई नहीं। इसी टेस्ट में देख लीजिए अगर राहुल, वीवीएस और रैना ने साथ निभाया होता तो टेस्ट ड्रा कराने में मास्टर सफल रहते। अब इंद्र देव का सहारा है। चमत्कार ही अब बचा सकता है। आलोचकों से आग्रह है कि मास्टर को खेलने दीजिए....आप उसके बारे में क्या सवाल उठा सकते है?...जो इतना शानदार है...एक गेंद को खेलने के लिए उसके पास तीन-तीन विकल्प होते है। अब शतकों के शतक का इंतज़ार कीजिए और विश्व कप में जीत के लिए दुआ कीजिए। एक बार फिर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठने लगी है। दरअसल सचिन को भारत रत्न दिए जाने में बहुत देरी हो चुकी है। अब और ज्यादा देरी का कोई मतलब नहीं है। सो उसे जल्दी से भारत रत्न देकर अपनी गलती को जल्दी मान लीजिए। वैसे जब भी भारत के दस बेहतरीन रत्न की बात होगी सचिन तेंदुलकर हमेशा पहले स्थान के लिए करोड़ों भारतीयों की पहली पसंद होंगे।

Sunday, December 19, 2010

...तो क्या बिहार सिंगापुर बन गया?

नीतीश पार्ट टू में बिहार से लौटने के बाद एक सज्जन ने पूछा कि तब आप सिंगापुर से लौट आए? तो आश्चर्यचकित हो गया कि क्या कहूं। कैसे नीतीश के विकास की हवा एक ही वाक्य में निकाल दूं? २०० से ज्यादा विधायक जिसके हो कुछ तो बात होगी। लेकिन सिंगापुर जैसी बात तो सोच भी नहीं सकते। सो उन्हे साफ-साफ कह दिया कि अभी सौ साल लगेंगे सिंगापुर बनने में। फिर तब सिंगापुर और आगे हो जाएगा।
कुछ दिनों की छुट्टी पर मुजफ्फरपुर गया था। परिवार वालों से और दोस्तों से मिलने के साथ-साथ इसलिए भी रोमांचित था कि आखिर हमारा बिहार कितना बदल गया...जरा गौर से देखेंगे। आखिर जिस पर जनता जनार्दन ने इतना भरोसा किया है कुछ तो बात होगी। ट्रेन से बिहार की पक्की सड़क देखने का रोमांच भी कुछ अलग ही है। पंद्रह-बीस सालों तक जिसके लिए तरसते थे वो अब दिखता है। कई ऐसी ऐसी जगह भी पक्की सड़के बन गई जहां आप सोच भी नहीं सकते थे। स्कूलों में साइकिल ही साइकिल दिखते है...अब साइकिल के लिए सरकार ने पांच सौ रुपए और बढ़ा दिए है। १००० नए हाई स्कूल भी खोले जाएंगे।
लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति में सुधार हुआ है ये सब कह रहे है। पिछले पांच साल में कई फील्ड में काम हुआ...इसमें शक नहीं। लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। बिजली पर काम चल रहा है, उद्योग लगाना अभी बाकी है, चीनी मिलों को शुरू करना होगा, भ्रष्टाचार से पार पाना बाकी है। मतलब कई काम अभी किए जाने बाकी है।
ट्रेन में नीतीश ही नीतीश छाए हुए थे। दिल्ली से बिहार रहने वाला व्यक्ति अपने जिले की विधानसभा सीटों पर चर्चा कर रहा था। कौन हारा और कौन जीता पर चर्चा हो रही है। क्यों जीता इस पर भी। लालू कहां पिट गए और नीतीश ने कहां बाजी मार ली इस पर भी।
नीतीश ने प्रवासी बिहारियों को गर्व करने का मौका दिया है...इस पर सभी बाहरी में आम राय है। अब उन्हे बाहर बहुत ज्यादा शर्मनाक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। कई लोगों ने ये माना। सभी बड़े गर्व से बता रहे थे कि जहां भी चले जाइए हर कंपनी में मैनेजर हो या वरिष्ठ पदों पर बिहार के लोग मौजूद है।
मैं जैसे ही मुजफ्फरपुर पहुंचा तो शहर के नए लुक को लेकर काफी रोमांचित था कि उस चौक पर ऐसा होगा, वहां की सड़की ऐसी होंगी, उस दुकान का ऐसा हाल होगा, यातायात की व्यवस्था शानदार होगी। जाम जैसी कोई बात नहीं होगी, बिजली रानी आएगी तो जाएगी नहीं...जैसी कई बातें। आखिर शहर में दो दशक बीताने पर इतना रोमांच तो होगा ही।
लेकिन जो देखा इससे लगा नीतीश कुमार बेहद चालाक प्राणी का नाम है। वो कमाल के मैनेजमेंट गुरु हैं...लालू जी से ये तमगा अब नीतीश ने ले लिया है। लालू जी भले ही मैनेजमेंट गुरु कहलवाने में गर्व महसूस करे लेकिन नीतीश ने बिना इस टैग के इसे धारण कर लिया है। मुजफ्फरपुर पहुंचने से पहले ही वहां से एक अपहरण की खबर आ चुकी थी। शहर पहुंचा तो एक और अपहरण की खबर अखबारों में छाई हुई थी। मतलब क्राइम पर कंट्रोल नहीं। फिर दूसरी चीजों को देखना लगा। खूब विकास हुआ है, सड़कें पक्की हो गई हैं...ट्रेन से दिखी लेकिन मुजफ्फरपुर पहुंचने के बाद पता चला कि पिक्चर अभी बाकी है दोस्त। नीतीश को पहले चालाक लिखा इसकी वजह अब बता रहा हूं। एक शहर से दूसरी शहर को जोड़ने वाली सड़क को तो ठीक कर दिया गया लेकिन शहर के अंदर की सड़कें सच कहूं तो लालू-राबड़ी राज से भी ज्यादा खराब है। मुजफ्फरपुर के दिल मोतीझील की हालत देखकर रोने का मूड हो आया। शहर की सारी सड़कें खराब हालत में है। कुछ ओवर ब्रिज बन गए है, कुछ पर काम जारी है। ये काम पिछले कई सालों से यूं ही जारी है। जब भी जाता हूं ऐसा ही देखता हूं। मोतीझील में कचड़ों को जगह-जगह पर सजा कर रखा गया है। सड़कों की हालत का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि जिन्हे मैं अक्सर दस बजकर दस मिनट में ऑफिस जाने के लिए निकलते देखता था वो अब नौ पैतालिस में जा रहे है। ये टाइमिंग मैं इसलिए लिख रहा हूं कि मैं उस व्यक्ति की टाइमिंग का कायल था। दस बजकर दस मिनट और उनकी गाड़ी ऑफिस के लिए निकल जाती थी। हालाकि मेरी उनसे बात नहीं हो पायी और ये मैं नहीं जान पाया कि ये सड़कों की खराब स्थिति की वजह से या फिर ऑफिस का टाइम बदल गया है।
पहले जाता था रिक्शेवाले तैयार हो जाते थे शहर में कहीं भी जाने के लिए। कभी-कभार एकाध ने मना कर दिया होगा लेकिन अब तो मैं परेशान जिससे पूछता ना कर देता। मैं वजह जानने के लिए बेताव था...कई किलोमीटर पैदल चला और फिर जब एक रिक्शेवाले ने हां कर दी तो हालत देखकर समझ गया है कि आखिर दर्जन भर से ज्यादा रिक्शेवाले ने क्यों ना की थी। वैसे एक सज्जन से जब मैने पूछा कि मुझे यहां जाना है कैसे जाऊं तो उन्होने सलाह दी कि मैं भी वहीं जा रहा हूं, आप भी मेरे साथ पैदल चलिए...यहीं सबसे बेहतर हैं। तब मुझे भरोसा नहीं हुआ था।
शहर की कई पुरानी दुकानें या तो अब नहीं है या फिर बुरे हालत में है। पहले के कई बेहतरीन जगहों पर बुलडोजर चल चुका है। कई नई दुकानें भी आ गई है। स्टेशन से मोतीझील, टाउन थाना, चंद्रलोक चौक, कल्याणी, सरैयागंज टावर, जैसी कई जगहों का हाल बुरा है।
शहर में घंटों जाम की हालत है। भगवानपुर से मिठनपुरा के लिए रोजाना सैकड़ों ऑटो का आना जाना है। सुबह और शाम को शहर में भयंकर जाम की हालत है। वैसे ही एक बार भगवानपुर से मिठनपुरा जा रहा था...जाम लगा हुआ था...हमारे ऑटो ड्राइवर ने तेजी दिखाई और शार्ट कर्ट रास्ता से हो लिए। कुछ दूर जाने पर पता चला कि ऐसी ही तेजी कई और लोगों ने दिखाई है और वहां पहले वाले जगह से भी बड़ा जाम है। फिर उस पुराने रास्ते पर आए।
स्टेशन के नजदीक सड़कें तो खराब है ही पानी भी भरा है। दुकानदार अपनी दुकान तो खोल रहे है लेकिन कोई ग्राहक उनकी दुकान पर नहीं पहुंच पा रहा है। कुछ ने इस हालत को नारकीय तक बता दिया।
अच्छा नहीं लग रहा था कि नीतीश को पता चलेगा तो क्या सोचेंगे। जिस विकास मॉडल का नाम देश-दुनिया में क्या यह वहीं है....सोच रहा था। एक दिन शाम को देवी मंदिर गया। वहां से लौटते वक्त बता चला कि कलमबाग रोड पर शाम को सात बजे के करीब किसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। लौटते वक्त ऑटो ड्राइवर डर रहा था कि कई कोई बवाल ना हो। इस हत्या के आरोप में वहां के एक कांग्रेस नेता को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन ये मामला भी जटिल है। पुलिस की थ्योरी है कि कांग्रेस नेता अपने एक करीबी के साथ मोटरसाइकिल से जा रहे थे। कांग्रेस नेता पीछे बैठे थे और उन्होने चलती गाड़ी में ही अपने करीबी जो ड्राइव कर रहा था उसको गोली मार दी। अब ये तो वहीं पुरानी बात हो गई ना कि जिस डाल पर बैठे हो उसी को काट रहे है। ड्राइवर को गोली मारी तो गाड़ी का बैलेंस बिगड़ेगा और वो वय्कित खुद घायल हो सकता है। खैर। इधर कांग्रेस नेता इसे साजिश बता रहे है। कुछ स्थानीय लोग भी। मतलब शहर में पहुंचने पर दो अपहरण और एक हत्या की खबर शहर से ही थी पूरे जिले का डाटा मैंने जमा नहीं किया।
अगले दिन अखबारों में ये खबर लीड थी। उससे पहले दिन नीतीश कुमार अखबारों में छाए थे। विधायक फंड बंद करने की पहल को सभी अखबारों ने लीड बनाई हुई थी। एक अखबार ने अपनी खबर का असर भी बता डाला था हम इलेक्ट्रानिक चैनलों की तरह। मुजफ्फरपुर के पन्नों पर नजर डाला तो एक खबर थी कि मार्च तक शहर की सभी सड़कें बेहतर हो जाएंगी। चलिए एक तरह का संतोष हुआ।
कई लोगों से बात हुई। कुछ के पास नीतीश की असफलताओं की लिस्ट भी थी। एजुकेशन की तरफ नीतीश सरकार ने कुछ खास नहीं किया है...अधिकतर लोगों का ये मानना था। साइकिल, ड्रेस वाली बात छोड़ दें तो....टीचरों की जो बहाली हुई उसमें भयंकर भूल की गई है। कैसे-कैसे गुरुजी आ गए है...ये कई चैनलों पर दिखाया जा चुका है...कुछ जगह एडिटेड को कुछ जगह अनकट....टीचरों की भर्ती पर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है जिस पर राज्य सरकार की कई बार खिंचाई हो चुकी है।
कुल मिलाकर ये पता चला कि कुछ हुआ है, काम की शुरुआत हुई है लेकिन ढिंढोरा बहुत पिटा गया। पहले बीस साल कोई काम ही नहीं हुआ तो अब जो कुछ भी हो रहा है वो विकास में काउंट हो रहा है। सड़के खराब होती है तो बनाई जाती है...ये बनाई जा रही है तो विकास हो गया। लॉ एंड ऑर्डर बेहतर हुआ इसमें शक नहीं ...लेकिन चुनाव परिणाम के बाद से अचानक अपहरण और हत्या के कई मामले फिर सामने आने लगे है। इस पर जल्दी ध्यान दिया जाए तो बेहतर। अभी कल ही नीतीश को एक और सम्मान मिला है...फोबर्स ने उन्हे पर्सन ऑफ द ईयर चुना है। बधाई हो नीतीश जी।
एक सज्जन ने कहा कि बिहार का असली विकास तब होगा जब मुंबई में बिहारियों की पिटाई नहीं होगी। ये ठाकरे एंड कंपनी बिहारियों पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी। दिल्ली की सीएम हो या गृह मंत्री चिदंबरम बिहारियों के खिलाफ कोई वक्तव्य जारी नहीं करेंगे। तब ज्यादा गर्व का अनुभव होगा और तब असल मायने माना जाएगा कि बिहार ने विकास किया है।

Thursday, November 25, 2010

बिहार के वोटरों को सलाम

सबसे पहले बिहार के वोटरों को सलाम कीजिए। विकास के लिए तड़पते बिहार के एक-एक वोट का मतलब समझिए। आखिर कैसे एनडीए २०६ सीटों पर जीत गई। विरोधियों को कुछ भी नहीं मिला। अगले पांच साल तक सरकार चलाने का जनता ने आदेश दे दिया है। आप काम करते रहिए हम आपको मौका देते रहेंगे। बिहार का जनादेश २०१० यही कहता है। नीतीश एंड सुशील मोदी कंपनी ने ऐसा क्या कमाल किया जो वोटरों ने दिल खोलकर उन्हे वोट किए। तो इसका एक ही जवाब है विकास की राह दिखाई। विकास के मार्ग पर चल पड़ा है बिहार। अब इसे रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन दिखाई दे रहा है। वोटरों में उम्मीद जगी। बहुत हुआ पिछड़ा राज्य का टैग। अब इसे हटाना ही नहीं होगा। अभी नहीं तो कभी नहीं। लालू एंड कंपनी को वोट देने का मतलब होता फिर बिहार को पीछे ले जाना। अब बिहार के वोटर पीछे जाने को कतई तैयार नहीं है। सबसे आगे होंगे बिहारी की भावना वोटरों में मन में बैठ गई और ये परिणाम इसी ओर इशारा करते है। जेडीयू को ११५ सीटें और बीजेपी को ९१ सीटें। २४३ में से २०६ सीटें। ३७ सीटें दूसरे दलों को। वाह कमाल है। कमल भी खूब खिला और तीर का निशाना भी सही बैठा। लालटेन बुझ गयी तो बंगला में किसी ने उसी लालटेन से आग लगा दी। हाथ का साथ भी नहीं चाहिए क्योंकि बिहार में ये हाथ कमजोर है। २००५ में जेडीयू को ८८ सीटें थे अब ११५ पर। २७ सीटों का फायदा। जेडीयू अकेले बहुमत से सिर्फ ७ सीटें दूर रह गई। बीजेपी ने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हे वोटर इतने पसंद करेंगे। ५५ से ९१ पर ला दिया। ३६ सीटों का फायदा। और स्ट्राइक रेट करीब ९० का। १०२ सीटों में से ९० सीट पर पार्टी जीत गई। लालू की पार्टी तो खत्म ही हो गई। २२ सीटों पर जीत हासिल हुई। ५४ से २२ पर आ गई है पार्टी। लोकसभा में ४ सासंद है। राहुल से करिश्मे की उम्मीद कर रही कांग्रेस चौथी बड़ी पार्टी बन कर खुश तो नहीं ही होगी। चार विधायक है उसके पूरे राज्य में। रामविलास जिनका लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला था....खाता तो खुल गया लेकिन तीन सीटें मात्र। विधानसभा में तो विरोधियों की आवाज भी नहीं सुनाई देगी। वोटरों का फैसला है कि इनकी आवाज नहीं सुनी जानी चाहिए। नीतीश की विकास के काम में जो भी अड़चने है सबको दूर कर दीजिए। नीतीश जी नंबर के पीछे नहीं भागते। जीत के बाद सबसे वे यहीं कह रहे थे। जीत को जनता की जीत बताया। उन्हे इस प्रचंड बहुमत का मतलब भी समझ आ रहा है। अब जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई है। बिहार को विकसित प्रदेश बनाने की जिम्मेदारी आ गई है। ये काम आसान नहीं है नीतीश जी को भी पता है। लालू को इस नतीजे में कुछ रहस्य नजर आता है। ऐसा कहकर लालू बिहार के वोटरों का ही अपमान करते दिखे। ये लालू की अपनी स्टाइल है। लेकिन वोटरों को अब ये स्टाइल रास नहीं आ रही है...लालू जी को ये समझ लेना चाहिए। ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल...बताते रहे कि नीतीश एंड कपनी फिर सत्ता में आने वाले है। सीटों को लेकर ऐसा अनुमान नहीं था कि २०६ सीटें एनडीए को आएंगी। ऐसा खुद नीतीश-बीजेपी के नेता भी नहीं सोच रहे थे। शायद यहीं मजा है एक्जिट-ओपनियन पोल और वोटरों के पोल का। इस लंबे चुनावी प्रक्रिया के दौरान महुआ न्यूज़ में काम करते हुए मैं चुनाव से संबंधित खबरों और एक्जिट पोल को करीब से देखता रहा है। महुआ न्यूज़ पर एक्जिट पोल दिखाया गया जिस टीम में मैं भी शामिल था। हमारी टीम में कई बेहतरीन लोग थे और हम एक-एक सीट के नतीजे को दिखाने की तैयारी में थे। एक-एक सीट का हाल शायद पहली बार किसी भी एक्जिट पोल में बताया गया। काफी मुश्किल काम था। हमारे एक्जिट पोल में एनडीए के खाते में १४७ सीटें जा रही थी। जेडीयू को ८३ और बीजेपी को ६४, आरजेडी को ५१, एलजेपी को १७ और कांग्रेस को ११। कई चैनलों और एजेंसियों का ऐसा ही आकंडा था। वहां बीजेपी की सीटें कम थी लेकिन गठबंधन में इसी के आसपास का स्कोर था। चुनावी विश्लेषक योगेन्द्र यादव एनडीए को २०० के करीब सीटें दे रहे थे। हालाकि बीजेपी की सीटें उनके पास भी कम ही थी। हमारे एक्जिट पोल में बीजेपी को सीटें बढ़ रही थी। लेकिन इतनी नहीं ९१ जैसी तो नहीं। एक-एक सीट का नतीजा टीवी पर दिखाना बड़ा मुश्किल था और काफी समय लेने वाला था। खैर इसके बाद लालू की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई और उन्होने सबसे पहले महुआ न्यूज के एक्जिट पोल पर अपने अंदाज में राय रखी। इस दौरान कई लोगों के फोन भी आते रहे है। आपने हमे कैसा हारता हुआ दिखा दिया...वगैरह..वगैरह। ये सब हर विधानसभा सीट के अलग-अलग तबके के ५० लोगों की राय पर बनाई गई थी। वोटरों की सही राय जानना बड़ा मुश्किल काम है और ऐसे में सटीक पूर्वानुमान भी लगाना मुश्किल। फिर भी योगेन्द्र यादव एंड टीम का काम ज्यादा बेहतर रहा इसमें कोई दो राय नहीं। एक्जिट पोल में एक बात ये भी सामने आ रही थी लोग विकास के नाम पर वोट कर रहे थे। जाहिर है इससे एनडीए को फायदा होने वाला था। दूसरी बात थी कि लोगों जाति और धर्म के बंधन को तोड़ने को तैयार थे इसका फायदा भी एनडीए को होने वाला था। राहुल फैक्टर की बात भी सामने आ रही थी जिसमें अधिकतर लोग कह रहे थे कि राहुल के दौरे से कांग्रेस को कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला। क्योंकि राज्य में कांग्रेस की हालत बहुत ही खराब है। यूपी जैसे चमत्कार की उम्मीद किसी को नहीं थी। बेहतर मुख्यमंत्री की रेस में भी नीतीश सबसे आगे थे। लोगों की पसंद में एनडीए गठबंधन सबसे आगे था। एक और खास बात महिलाओं का वोट करने के लिए मतदान केन्द्रों पर आना। २००५ और लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार ज्यादा महिलाओं ने वोट किया। और ये वोट सुशासन के लिए था, पंचायतों में महिलाओं के लिए रिजर्वेशन पर था और लड़कियों के लिए साइकिल योजना के नाम पर था।नरेन्द्र मोदी-वरुण गांधी को ना बुलाना एनडीए के लिए बेहतर रहा। परिणाम से साफ है। इन दोनों के आने से मुस्लिम वोट के बंटने की ज्यादा संभावना थी। एक बात और है ये कि ये पूरा चुनाव नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द लड़ा गया। नीतीश पर विरोधियों के वार लोगों को सही नहीं लगे। चाहे वो लालू-रामविलास हो या फिर सोनिया-राहुल। केन्द्र बनाम राज्य के विवाद में वोटर ज्यादा नहीं पड़े। किसका पैसा है और किसका नहीं...ये सब जानते है।
फिलहाल चुनाव के बाद नीतीश कुमार से लोगों की उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गयी है। अब उन्हे और बेहतर करना ही होगा। आगे भी जारी है......

Wednesday, November 10, 2010

ना जा...अभी ना जा....ओ ओबामा.....

दुनिया का दबंग जा चुका है। उसके आने पर तो हमारी दिवाली इस बार खास हो गई थी। भले ही ये ओबामा मैनिया दिवाली के बाद आया...दिवाली से पहले छोटी दिवाली भी मनाई थी कि ओबामा आ रहे हैं। यहीं सोच सोचकर पगलाता जा रहा था कि ओबामा क्या-क्या गिफ्ट ला रहे होंगे। बस गिफ्ट पाने की ख्वाहिश थी कि दिवाली भी शानदार तरीके से मना ली। और बचा खुचा तेल,पटाखा और कैंडल दीवाली के अगले दिन के लिए रख ली।ये सुरेश कलमाडी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की दिवाली सेलेब्रेशन की एक झलक है। सबसे पहले हम ये स्टोरी ब्रेक कर रहे है। अनाम न्यूज चैनल के रिपोर्टर ने ये एक्सक्लुसिव स्टोरी ब्रेक की है। एक ब्रेक लेते है और इस दुनिया की सबसे बड़ी खबर पर हम बने हुए हैं। अब आपको थोड़ा पास्ट में लिए चलते हैं...ज्यादा नहीं....आदर्श घोटालों की सरकार के मुखिया अशोक चव्हाण को दिवाली गिफ्ट तो पहले ही मिल गया था। कुछ दिनों तक सीएम बने रहने के आदेश के बाद । ओबामा उनके लिए सांता क्लोज बन कर आ रहे थे। दिवाली पर मेरी क्रिसमस कहने। चव्हाण की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। चलो तीन दिन की मोहलत के बाद शायद सब का दिल पसीज जाए या फिर कुछ ऐसा जादू हो जाए कि आदर्श घोटाला आदर्श बन जाए। तीन दिन इसी सोच-विचार में निकल गए।इधर कलमाडी एंड कंपनी भी दिवाली आने पर खुश थी। जांच हो रही है होने दो....धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। अब तो चीन भी जाना है एशियाई खेलों के लिए। दिवाली पर कलमाडी भी मूड में थे। खूब मस्ती की। पता नहीं अगली दिवाली कैसी मनेगी सो मना लो भईया। अब ओबामा के जाने का वक्त हो चला था। ९ नवंबर सुबह के ८ बजकर ५५ मिनट। कलमाडी और चव्हाण ने अपने आदमियों को दिल्ली भेज दिया था। ओबामा के विशेष विमान एयरफोर्स वन का टायर पंचर करने के लिए ताकि ओबामा उड़ान ना भर सके। भारतीय एजेंसियों को इसकी कानों-कान खबर नहीं हो पाई...लेकिन ओबामा के विशेष विमान के विशेष खुफिया कर्मचारी को इसकी भनक लग गई। विमान को निश्चिति समय से पहले ही उड़ान भरने का आदेश दे दिया गया। विमान उड़ चुका था। इधर कलमाडी और चव्हाण के घर मोबाइल पर रिंग शुरू होता है। ब्रेक के बाद आगे क्या हुआ हम बने हुए हैं इस बड़ी खबर पर। रिंग शुरू होने के साथ दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था। यस वी कैन। दोनों यहीं सोच रहे थे कि ओबामा के विमान को पंचर कर दिया गया और उनका काम हो गया। लेकिन....लेकिन....लेकिन। पहले चव्हाण को फोन....हैलो हां काम हो गया ना...... हां, काम हो गया है क्या हां शुक्रिया मैं बहुत खुश हूं अच्छा बहुत अच्छा आपका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है क्या............ फोन कट जाता है। ओह नो..............अब कलमाडी को फोन................. कलमाडी......हां,हां....बोलो बहुत अच्छा जी,जी बहुत अच्छा चलो अब मैं चीन जाने की तैयारी कर रहा हूं अच्छा है.....जाइए......ओबामा का विमान उड़ चुका है फोन कट जाता है.........क्या..........व्हाट द... यू आर
इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कलमाडी और चव्हाण आपको चिंतित मुद्रा मे दिख रहे है...कुछ सोच रहे हैं दोनों....ये एक्सक्लुसिव तस्वीरें है हमारे पास जो आप इस वक्त देख रहे है....आखिर क्या सोच रहे हैं दोनों.........एक छोटे से ब्रेक के बाद............सबसे बड़ी खबर पर हम बने हुए हैं...................बड़ा सवाल यहीं है कि ये दोनों आखिर क्या सोच रहे हैं............चलिए हम आपको बताते हैं..................जय हिंद कहते होतो फिर क्यों अमेरिका जाते होकाश तुम गांधी के देश के ही हो जातेमैं कलमाडी और अशोक चव्हाणपचास हजार क्या सारी नौकरीही अमेरिका के लिए ले आता यहीं नहीं तेरे लिए कुछ भी कर जाताकुछ भी... घोटालों का विश्व रिकॉर्ड बना देता
.....................अब तेरे जाने का गम हमे खाए जा रहा है................आ लौट के आजा मेरे ओबामा......कि तुझे कलमाडी और चव्हाण बुलाते हैं.........आ लौट के आजा.............................

Saturday, October 9, 2010

सीपी बदनाम हुए......

बिहार बीजेपी चीफ सीपी ठाकुर बदनाम हो गए है। मुन्नी बदनाम का गाना इन दिनों सीपी ठाकुर पर फिट बैठ रहा है। बेटे विवेक को बांकीपुर से टिकट नहीं मिली तो सीपी को गुस्सा आना लाजमी था। वो चीफ ही क्या जो अपने बेटे को एक अदद टिकट तक ना दिला सके। फिर पार्टी का चीफ रहने का क्या मतलब। सो ऐन चुनाव से पहले ठाकुर साहब नाराज हो गए। पटना से गडकरी को इस्तीफा भेज दिया। इसके साथ ही बिहार बीजेपी में चुनाव से पहले भूकंप का झटका महसूस किया जाने लगा। एक चैनल ने ऐसा ही टेक्सट लगाया था। अब क्या होगा बीजेपी का। ठाकुर वोटर खिसक जाएंगे। वैसे समझौते का फॉर्मूला भी तैयार है। पार्टी सीपी के बेटे को विधानपार्षद बनवा देगी और सीपी के एक पंसदीदा व्यक्ति को टिकट भी दे दिया जाएगा। ये बीजेपी का चाल,चरित्र और चेहरा है। शायद इस पर सीपी मान जाए। और अगर नहीं माने तो ठाकुर वोटों का सीधे-सीधे नुकसान है। खैर चलिए कुछ अलग बात करते है।नीतीश-लालू,सुशील मोदी जेपी आंदोलन से उभरे। इसके बाद ये एक साथ राजनीति में आए और चुनाव लड़ा। जीते आगे बढते गए। आज नीतीश-मोदी एक तरफ है तो लालू अलग। जिस वक्त नीतीश-लालू और मोदी राजनीति की पिच पर बल्लेबाजी कर रहे थे ठाकुर साहब इंग्लैंड में डॉक्टरी की ड्रिगी लेकर लौट रहे थे। कालाजार के खिलाफ डॉक्टर साहब जंग लड़ रहे थे। देश भर में उनकी चर्चा थी। राजनीति से कोसों दूर थे। लेकिन राजनीति में आ गए। राजनीति उनका पेशा नहीं था, कहीं ट्रेनिंग भी नहीं ली थी जैसे लालू-नीतीश और मोदी ने ली। राजनीति की A,B,C शायद वे अभी भी सीख ही रहे है। शायद इसीलिए वो इस तरह का कोई समझौता नहीं कर पाते। दरअसल बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले नीतीश पर कंट्रोल के लिए सीपी को पार्टी चीफ बनाया। सीपी -नीतीश को पसंद नहीं करते..ये सबको पता है। वहीं मोदी सीपी को पसंद नहीं करते...ये भी सबको पता है। इसके बाद भी ये तीनों एक साथ है। यहीं त्रिकोण सीपी हैंडल नहीं कर पाए और जिसके चलते ये इस्तीफा आया। अब सबकुछ गडकरी पर निर्भर है। वैसे भी वो समझौते को बेहतर तरीके से हैंडल जो कर लेते है। जैसा कि उन्होने झारखंड में किया। शिबू सोरेन के साथ मिलकर सरकार फिर से बना ली है। बीजेपी के कई नेताओं के नहीं चाहने के बावजूद। वो अपने बायोडाटा में बीजेपी रूलिंग स्टेट की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते है। सो सीपी को तो वो मना ही लेंगे।लेकिन कर्नाटक में कमल के खिलने पर सवाल उठ रहे है। झारखंड में सरकार तो बन गई है लेकिन अब शायद कर्नाटक में सरकार ना रहे। तो गडकरी का स्कोर फिर से बराबर हो जाएगा। अब कर्नाटक में वे कौन सा फॉर्मूला लागू करते है...इस पर जरूर नजर रखिएगा।

बिहार का कॉमनवेल्थ

दिल्ली से दूर बिहार में भी कॉमनवेल्थ शुरू हो चुके है। छह राउंड में मैच खेला जाना है। चार चरणों की अधिसूचना जारी हो चुकी है। सीटों के बंटवारे से लेकर टिकट बंटवारे और फिर नामाकंन और प्रचार को दौर आ चुका है। हंगामा-बवाल,नाराजगी,पाला बदल का खेल,इस्तीफा सब कुछ चल रहा है। चुनाव से ठीक पहले तो इधर-उधर जाने का सिलसिला शुरू हो गया था अब टिकट बंटवारे से नाराजगी हर तरफ दिख रही है। कांग्रेस के आधा दर्जन से ज्यादा कार्यालय आग के हवाले किए जा चुके है। पटना से लेकर दिल्ली तक हंगामा बरपा है। दूसरी पार्टियों की हालत भी बेहतर नहीं है। जेडीयू और आरजेडी के कार्यकर्ता तो कुछ अलग तरह से ही प्रदर्शन और विरोध कर रहे है। बदन पर कपड़े ही नहीं दिखते ऐसे प्रदर्शन में। ऐसे विजुअल की ब्लर करने की हालत हो जाए। ये भी विरोध का तरीका है। अब वक्त इसका हिसाब करने का नहीं है कौन इधर गया और कौन उधर? अब सवाल ये है कि इसका फायदा किसको होगा। नरेन्द्र मोदी बिहार नहीं जा रहे है। अगर अब तक स्थिति पर यकीन करे तो ऐसा ही होना है। जेडीयू और नीतीश की ये एक बड़ी जीत है। वो ऐसा ही चाहते थे ताकि मुस्लिम वोट उनके हिस्से में भी आए। आखिर २४३ में से १०० से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम वोटर हार-जीत जो तय करते है। कांग्रेस का क्या होगा? राहुल का यूपी जैसा जादू तो चलना मुश्किल है लेकिन क्या कांग्रेस की ऐसी हालत हो गयी है कि वो खुद ना सही तो दूसरों की जीत को हार में बदल सके। संभव है कुछ सीटों पर ऐसा हो। अब बड़ा सवाल ये कि वो आरजेडी को ज्यादा डैमेज पहुंचाती है या फिर जेडीयू को। कांग्रेस में चुनाव से पहले करीब-करीब ओपन इंट्री थी. जिस पार्टी के नेता बागी हुए यहां उनका जोरदार स्वागत हो रहा था। लेकिन कांग्रेस ने अंतिम समय में कईयों को ज्यादा भाव नहीं दिया है। बागियों की राय को ज्यादा अहमियत नहीं दी है ऐसा लगता है। लालू के दूसरे साले सुभाष को तो वेटिंग लिस्ट में रखा गया है। वहीं हालत नीतीश के सबसे बड़े विरोधी ललन सिंह का है। ये लोग कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगे। अखिलेश सिंह भी आ गए है। लालू मनाते रह गए लेकिन अखिलेश नहीं माने। खैर चुनाव से पहले तो झटका सबको ही लगा है लेकिन चुनाव के बाद झटका किसको लगेगा...ये देखना दिलचस्प होगा। वैसे ये साइन ऑफ नहीं है। लालू ने अपने बेटे को लॉन्च कर दिया है। युवा वोटरों का ख्याल लालू को हो आया है। लालू अब बार-बार ये कह रहे कि अबकी सरकार बनी तो विकास का काम तेजी से बढ़ाया जाएगा। जैसी हालत भारतीय रेल की उन्होने की उसी तरह बिहार की किस्मत भी पटरी पर ले आएंगे...इधर लालू-नीतीश कुछ दिन पहले तक कवि हो गए थे। दोनों रोज पटना में कविता पाठ करते औऱ हम चैनल वाले उनकी बेतुका कविताओं को दर्शकों को सुनाते-दिखाते। खैर लालू ने ही मना कर दिया कविता पाठ करने से। वैसे नीतीश अभी भी तैयार है कविता पाठ को लेकर।इधर नीतीश की साइकिल योजना जो काफी हद तक सफल रही है...उस पर जमकर बयानबाजी हो रही है। लालू कहते है कि वो जीत गए तो सबको मोटरसाइकिल दी जाएगी। इस पर नीतीश चुटकी लेते है। जब लोग लालू से तेल मांगेगे तो लालू उन्हे मोटरसाइकिल ही बेच देने को कहेंगे। इसके बाद दूसरे दिन नीतीश की चुटकी थी...साइकिल के लिए कोई लाइसेंस की जरुरत नहीं होती लेकिन मोटरसाइकिल तो लालू दे देंगे लेकिन नाबालिग छात्र तो लाइसेंस नहीं होने के कारण थाने पहुंच जाएंगे। खैर अभी ये आरोप-प्रत्यारोप का राउंड शुरू हुआ। इसमें कई वार किए जाने है। नीतीश जहां जनादेश यात्रा पर निकल चुके है और लोगों से पांच साल वक्त और मांग रहे है तो वहीं लालू जनता से कह रह है....अब और कितने दिन तक सत्ता से दूर रखेंगे। दिल्ली तो अब दूर हो गई है....पाटलिपुत्र तो कम से दे दीजिए।..

Saturday, October 2, 2010

फैसले से पहले और बाद।

साठ साल बाद आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना ही दिया। पूरा देश फैसला सुनने को तैयार था। इस विश्वास के साथ कि फैसला जो भी हो उन्हे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ा भी नहीं। ९२ बीते १८ साल हो गए है। काफी कुछ बदल गया है...इसका भरोसा तो पहले से ही हो चला था। फैसला आने के बाद जिस तरह लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की वो बेमिसाल है। एंड वन मस्ट बी प्राउड टू बी एन इंडियन। इट हैपेन्स वनली इन इंडिया। जहां सत्य,अहिंसा का पाठ दुनिया ने सीखा..उस देश की, देश के लोगों में कुछ तो बात होगी। ३० सितबंर को देश ने दिखा दिया। देश ही नहीं दुनिया भर की नज़र इस फैसले पर थी। किसी के मन में आशंका तो कोई विश्वास से भरा हुआ। देश काफी बदल चुका है...काफी आगे बढ़ चुका है...अब इसे कोई रोक नहीं सकता। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अक्सर भारत से डरे रहते है। खासकर भारत के टैलेंट से। अमेरिकी छात्रों को वो भारतीय छात्रों की तरह मेहनत करने की सलाह अक्सर देते रहते है। मंदिर-मस्जिद से कुछ को छोड़कर किसी को फर्क नहीं पड़ता। कुछ नेताओं को और कुछ वैसे लोगों को इस तरह के मौके की ताक में रहते है। आम लोगों को फर्क पड़ता तो लोग फैसले के बाद खुश होते, कहीं नाराजगी दिखती। नहीं ऐसा कहीं नहीं दिखा। हां सही है फैसला अंतिम नहीं है। फैसले के बाद कोई ना कोई पार्टी सुप्रीम कोर्ट में अपील करती ही करती। सो अब दो पार्टी ऐसा करती दिख रही है। गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा कि फैसले के बाद जिस तरह से देश ने व्यवहार किया वो गरिमापूर्ण और सम्मानजनक है। सब यही कह रहे है। सबको इसकी उम्मीद तो थी लेकिन कुछ शंका थी। अगर ऐसा हुआ तो वैसा होगा और अगर वैसा हुआ तो ऐसा होगा.....बट लोगों ने साबित कर दिया इंडिया फर्स्ट।पूरी दुनिया लोकतंत्र की परिभाषा हमसे सीखती है। और दुनिया को शायद लोकतंत्र का एक और पाठ सीखाने का मौका इससे बेहतर हमे नहीं मिलता। सो हमने पूरी दुनिया को सबक सीखा दिया है। ये इंडिया है। फैसले को आप स्वतंत्र है चाहे जिस रुप में देखे। आस्था की कसौटी पर नापे या कानून के तराजू पर तौले। ये सब हर उस व्यक्ति की सोच पर निर्भर है। कुछ लोगों ने कहा कि इसमें ना किसी की हार है और ना ही किसी की जीत। इससे अधिकतर लोग सहमत होंगे। तीन जजों की बेंच....जाहिर है कई मामलों में सबकी राय अलग-अलग होंगे। वैसा ही हुआ। कुछ लोग कहते है कि ये पंचायत का फैसला ज्यादा है, कोर्ट का फैसला कम । आस्था को ज्यादा महत्व दिया गया है। खैर ये लोगों की अपनी राय है। आप उस पर कुछ कह नहीं सकते और ना ही रोक सकते।अब वो वक्त गया है जब गांधी-नेहरु-शास्त्री लोगों के आदर्श हुआ करते थे। आज वैसे नेता भी नहीं है और ना वैसे लोग। नेता काफी बदल गए या फिर वो अपने सियासी लाभ के चक्कर में देश सेकेंड जैसी मानसिकता रखते है। लेकिन यहां के लोग तो इंडिया फर्स्ट को ही सामने रखकर सोचते और देखते है। अब हमारे नेताओं को आम लोगों से सीखने की जरुरत है। सियासी लाभ के चक्कर में नेताजी बयानबाजी ना करे तो ही बेहतर। तीन महीने तक यथास्थिति बनी रहेगी और फिर सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है। सो सुलह की कोशिश भी इस दौरान चल सकती है। सत्य,अहिंसा के पुजारी गांधी की जयंती के ठीक दो दिन पहले ये अतिसंवेदनशील फैसला आया। देश ने गांधी टेस्ट पूरी तरह पास कर लिया है। अगर गांधी कहीं दूर से देश को देख रहे होंगे तो वो काफी खुश हो रहे होंगे। जो काम वो १९४७ में पूरी कोशिश के बाद भी नहीं कर सके थे...उन्हे इसका दुख कुछ कम जरुर हुआ होगा। १९९२ का दुख भी काफी हद तक उनके मन से जा रहा होगा। गुजरात भी कुछ पल के लिए वो भूल गए होंगे और १९८४ भी।

Saturday, September 18, 2010

राखी, मीडिया और इंसाफ

इधर सुना है कि राखी सावंत अब इंसाफ की देवी के रूप में दिखेंगी। वो अपने शो में पीड़ित लोगों का इंसाफ करेंगी। अपने ही स्टाइल में। खैर वो जब इंसाफ करेंगी तब देखी जाएगी। लेकिन मीडिया ने लोगों को राखी का इंसाफ दिखाना शुरू कर दिया है। आज तक के शो सीधी बात में राखी सावंत का एक और इंटरव्यू हुआ। वरिष्ठ पत्रकारों और ना जाने कितने युवा पत्रकारों के आदर्श प्रभु चावला का ये शो है। जहां तक मेरी जानकारी या मैने देखा है मुझे लगता है कि इस बेहतरीन शो में शायद सबसे ज्यादा बार राखी का इंटरव्यू या फिर नौटंकी ही चली है। प्रभु जी राखी से पूछ रहे थे कि क्या इसी कपड़ों में आप इंसाफ करेंगी। राखी का जवाब...तो क्या हर्ज हैं इस कपड़ों में। यानि प्रभु जी की नजर में वो उस ड्रेस में इंसाफ नहीं कर सकती.....लेकिन उस शो में ये ड्रेस चल सकता है। कमाल है। खैर और भी कई ऐसे सवाल। और फिर राखी का अंदाज। ओह क्या कहने। टीआरपी का सुपरहिट फॉर्मूला। पत्रकारिता के इस काल को राखी काल कहा जाए...आइटम डांसरों का काल कहा जाए या फिर क्या कहें। कुछ लोग इसे थर्ड डिग्री की पत्रकारिता कहते है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं।चलिए एक और दूसरे चैनल पर राखी के शो का हाल देख लेते है। स्टार न्यूज के स्टार दीपक चौरसिया ने भी आखिरकार राखी का इंटरव्यू ले ही लिया। प्राइम टाइम में नौ बजे चल रही थी। कुछ इस तरह टीज किया जा रहा था...जारी है क्या राखी देश को बिगाड़ रही है? और शो में राखी पर इलजाम लगाए जा रहे थे। जमकर नोंक-झोंक हो रही थी। ये न्यूज चैनल देख रहे है या सर्कस समझ में ही नहीं आ रहा था। शायद सर्कस में भी ऐसा नहीं होता लेकिन टीवी पर तो सब कुछ आ जाता है। दीपक यहां राखी से कह रहे थे....तो राखी के पास दिल और दिमाग दोनों है?....इसके बाद राखी से कुछ देश दुनिया के भी सवाल पूछे गए। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कौन है? चलिए भारत के प्रधानमंत्री कौन है....और राष्ट्रपति...और मीरा कुमार कौन है? बच्चों की जीके काफी मजबूत हुई होगी इस शो को देखकर इसमें कहीं कोई शक नहीं। इधर मेरा पंसदीदा न्यूज़ चैनल नहीं आ रहा था जिस वजह से मैं इन दोनों चैनलों पर ये नौटंकी देख रहा था। बस ये जानने की चाह में किस हद तक ये गिर सकते है। खैर इतना ही कुछ समय बर्बाद करने के लिए.....कि तभी रिमोट से आज तक का बटन दब गया...जहां आ रहा था....बेली बटन का टशन। कमाल है। कितने महान आइडिया उत्पादक हमारे देश और पत्रकारिता के इस काल में रह रहे है। करीना कपूर पर एक पैकेज लिखी गई थी। क्या कहे किस तरह की स्क्रिप्ट थी। काश पीपली लाइव से भाई लोग कुछ सबक लेते। आम दर्शकों के साथ बैठकर फिल्म देख लीजिएगा....फिर समझ में आ जाएगा....इस तरह हंसते है लोग आपके इन कमाल के आइडियाज पर।

Friday, July 16, 2010

बिहार में चैनल वार

बिहार में एक औऱ चैनल आने वाला है...सुना है, इसलिए नहीं लिख रहा...बिहार में इन दिनों चैनलों के बीच एक तरह का वार चल रहा है। इनमें तीन चैनलों में काम करने का अनुभव है सो आज कल बिहार के चैनलों को देख कर पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लगता। अभी खुद महुआ न्यूज में काम करता हूं लेकिन न्यूज रुम में जिस तरह से सारे चैनलों के बीच मारामारी देखता हूं....उसका क्या कहें। बिहार के प्रमुख चैनलों में ईटीवी बिहार, सहारा, महुआ न्यूज, मौर्या और साधना। फिलहाल महुआ न्यूज नंबर वन पर है। पिछले कुछ दिनों से चैनल नंबर वन पर है। यहां ये सभी चैनल ही नंबर वन की लड़ाई में है। कुछ अंकों के मामले से कोई नंबर वन बन जाता है तो कोई पीछे रह जाता है। इसके बाद आप इन न्यूज चैनलों के न्यूज रूम के हाल का अंदाजा लगा सकते है। इसी में राष्ट्रीय चैनलों की भी बात है। इंडिया टीवी, स्टार न्यूज, आज तक, एनडीटीवी, जी न्यूज ये भी दर्शकों को खीचते है। रीजनल चैनलों के बीच खबरों को लेकर गजब की मारामारी है।यहां एक्सक्लुसिव की कुछ इस तरह होड़ है आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। अगर आप एक साथ बिहार के सभी रीजनल चैनल देख रहे है तो आप कन्फ्यूज हो सकते है। सब जगह एक्सक्लुसिव टैग लगा होता है। एक चैनल तो हर खबर को ही एक्सक्लुसिव दिखाता है। ये पता होते हुए कि दूसरे चैनल के पास विजु्अल है फिर भी। पता नहीं क्यों? खैर...अगर आप ये सोच कर बैठे है कि तीन बजे ये प्रोग्राम आना है तो जरूरी नहीं कि आप वो देख सके। पटना की सड़कों पर हंगामा की कोई खबर आधा घंटे तक चल सकती है...लाइव एंड एक्सक्लुसिव। कहीं के तोड़फोड़ के शॉट आधा घंटे तक चल सकते है। वो भी लाइव एंड एक्सक्लुसिव। एक्सक्लुसिव का ये फंडा एक चैनल के आने से आया। आप यकीन करेंगे कि आपके यहां जो खबर एक्सक्लुसिव चल रही है उसे कोई दूसरा उड़ा भी सकता है। सिर्फ उड़ा कर चला ही नहीं सकता वो भी एक्सक्लुसिव टैग के साथ। है ना कमाल...ये होता है। अब आप इसे लापरवाही की हद तो नहीं कह सकते ...शर्मनाक हादसा कह लें या टीआरपी के चक्कर में कुछ भी करेगा वाली शैली.....चुनावी साल है सो सारे चैनल जबरदस्त तरीके से होड़ में है....कोई खबर पहले चाहे जैसे तैसे भी कैसे चले....इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है। फोनो,लाइव तो सेकेंडों में तैयार हो जाते है। इधर कई बार ऐसा हुआ कि जो बुलेटिन मैने बनाई वो चैनल के सारे कार्यक्रमों में पहले स्थान पर रही...यानी जिसे ज्यादा लोगों ने देखा या फिर जिसकी टीआरपी सर्वाधिक रही। हालाकि मैं साफ कर दूं इस टैम रिपोर्ट में मुझे निजी तौर पर कोई रुचि नहीं। ये पूरा आइडिया ही मुझे बेकार लगता है। कुछ सौ घरों में ये टीआरपी बॉक्स लगे है जैसा कहा जाता है और ये बिहार और झारखंड की रेटिंग तय करते है। अपना बुलेटिन नंबर वन पर होने पर मैं ज्यादा उछल नहीं पाता क्योंकि इस पर मुझे यकीन ही नहीं। पहली दफा याद है २६ जनवरी की नौ बजे की बुलेटिन नंबर पर थी। आप समझ सकते है २६ जनवरी को तो कोई नौटंकी नहीं ही कर सकता। तो वो बुलेटिन सबसे ज्यादा लोगों ने देखी। जिसे मैने बनाया था। अब मैं यहां से हटा रहा हूं क्योंकि पूरी टीम की मेहनत होती है। इन दिनों सुबह के शिफ्ट में होने पर ज्यादा दबाव होता....सारा लफड़ा, सारा हंगामा, सारा बवाल यहीं पर होता है....पांच बजे तक की बुलेटिन तक....फिर सब शांत हो जाता है....ब्रेकिंग खबर इनपुट से आउटपुट पहुंचेगी औऱ फिर जल्दी से ब्रेक कर फोनो, लाइव और जो भी खेल जाइए....ये सब होता है...ये जरूरी नहीं कि ११ बजे की बुलेटिन ११३० में खत्म हो जाएगी...संभव है एक बजे तक चलता रहा....प्रोग्राम ड्राप करने की जहां तक बात है तो बिहार के चैनलों के बीच ये होड़ जबरदस्त है....पहली तस्वीरें लोगों को दिखाने की उत्सुकता या फिर सबसे पहले सिर्फ हमारे चैनल पर....सो अगर २ बजकर २५ मिनट पर कोई विजुअल अगर आपके पास आते है....थोड़ा सा भी दमदार लगे तो आप तीन बजे तक इंतजार नहीं कर सकते...अगर आप नहीं शुरू करेंगे तो शायद दूसरा चैनल शुरू कर देगा.....सो यहां सुबह की शिफ्ट में कोई ब्रेक नहीं है......दे दना दन स्टाइल में खबर चलती रहे.....एक्सक्लुसिव लगाना ना भूलें....चोरी का भी डर है....विजुअल चोरी हो जाने का.....सब तो नहीं लेकिन कोई है जो विजुअल चोरी में जी जान से जुटा रहता है.....आप इसे सही कहें या गलत.....या फिर उनकी खबर चोरी करने की बेकरारी या फिर जल्दी खबर दिखाने के लिए कुछ भी करने का तरीका। कभी कभार अच्छा लगता है जब दर्शक फोन लाइन पर होते है और चैनल को धन्यवाद कहते है। शायद यहीं दिल को थोड़ा सा आनंद दे पाता है। तनाव को कम कर पाता है। वैसा ही आज हुआ जब हम बारह बजे से एक बजे तक पीपली लाइव की पारुल से खास बातचीत कर रहे थे। वो दर्शकों के सवालों का जवाब दे रही थी। मुजफ्फरपुर की एक छोटी सी बच्ची ने पीपली लाइव में काम किया है। वहीं महंगाई डायन खाय जायत है वाली फिल्म। कई दर्शक पारुल को बधाई देने के साथ-साथ महुआ न्यूज़ को भी बधाई दे रहे थे। कुछ देर के लिए अच्छा लग रहा था। कि तभी फिर हम हंगामा के विजुअल में व्यस्त हो गए। दूसरे सारे भी। आज पटना में कई जगहों पर हंगामा बरपा। कहीं छात्रों ने बवाल किया तो कहीं मौत पर लोगों का गुस्सा भड़का। जाते-जाते लिखना पड़ा हंगामे की राजधानी.....आज सचिन पायलट भी बिहार में थे उनकी पीसी भी लाइव थी। इधर ट्रेजरी घोटाले की सीबीआई जांच के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। चुनाव तक ऐसे माहौल को बनाए रखने की बात है। करीब साढ़े ग्यारह हजार करोड़ की अवैध निकासी का मामला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी समेत ४६ लोगों पर आरोप है। मामले की सीबीआई जांच के आदेश हो गए। आज सचिन पायलट ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश सरकार पर जमकर निशाना साधा। पायलट बोले कि केन्द्र ने राज्य सरकार को ९५ हजार करोड़ रुपए दिए है जिसमें से साढे ग्यारह हजार करोड़ रुपए का घोटाला कर दिया। अब केन्द्र कोई पैसा नहीं देगी। उन्होने ये भी आरोप लगाया कि नीतीश सरकार एड पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है....हाल ही में नीतीश ने केन्द्रीय मंत्रियों पर आरोप लगाया था कि वे चुनाव के मद्देनजर बयानबाजी कर रहे है सो पायलट ने तगड़ा जबाव दिया। सो बिहार में रीजनल चैनलों के बीच जबरदस्त होड़ मची है....इसी में कभी कभार खबर का असर वाली स्टोरी जरा सी खुशी दे जाती है तो कभी दर्शकों की इस तरह की प्रतिक्रिया...कुछ दिन पहले एक दोस्त का फोन आया था....कह रहें थे कि अच्छा प्रोग्राम चल रहा है....ये सब ना होता सिर्फ टीआरपी होती तो फिर क्या कुछ अच्छा भी लगता। अंत में एक बात इसमें ना तो किसी चैनल पर आरोप लगाने की मेरी मंशा है और ना हीं किसी चैनल की तारीफ।

Tuesday, July 13, 2010

ऑक्टोपस, शकीरा और टीआरपी।

अरे वो ऑक्टोपसवा जरा बता त इ हफ्ता चैनल के टीआरपी का रही.....इ छह गो प्रोगाम में से कौन सबसे ज्यादा टीआरपी देत...जल्दी कर चल बता....फाइनल मैच से पहले ऑक्टोपस बाबा चैनलों में कुंडली मार कर बैठ गए थे या बैठा दिए गए थे। कुछ ही घंटों बाद विश्व कप का फाइनल है सो सारे चैनल फाइनल मैच को कवर करने के मूड में आ गए थे। कुछ ने तो ऑक्टोपस को ही हैक कर लिया था। स्टूडियो से लाइव जवाब दे रहे थे ऑक्टोपस बाबा। भले ही मैच के बारे में ज्यादा जानकारी ना दी गई हो लेकिन ऑक्टोपसवा पर त खूब ही बोले...खूब जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर बोलते रहे है ये खबरिया चैनल वालन. काहे की मामला टीआरपी का जे था...धोनी की शादी के स्टूडियो से लाइव करे के बाद खाली जो हो गए थे सब....ऑक्टोपसवा ने त कमाल ही कर दिया...अब लोग २५० ग्राम ऑक्टोपस खरीदने मार्केट जा रहे है.....डंडी ना मार दे इसकी भी चिंता है....काहे कि इ बड़ अनमोल बा....कोनो मोल ना बा ऐकर.....अब कौनो दिन चैनल के स्टूडियो में खबर पढ़त भी इ ऑक्टोपस बाबा दिख सकलन....काहे की खूब टीआरपी आई....छप्पर फाड़ के आई...कौनो दिन इ चैनल के पंडितन लोग ऑक्टोपस बाबा के घर जा के पूछियन की बता त रे ऑक्टोपसवा इ बार चैनल के टीआरपी बढ़िया आई कि ना....इ छओ प्रोग्राम में से केकर टीआरपी आई से जल्दी बता त...ऑक्टोसपवा पगला जाइ और कही की जा हम ना बताएव.....तोहर कोनो प्रोग्राम के टीआरपी ना आई....चल भाग त इहा से...कैमरा माइक समारह आ जल्दी से भाग....जएवे कि न इहा से......इ हम अगला विश्व कप के भविष्यवाणी अभी से शुरू करू...चल जल्दी भाग.....वाका-वाका कमाल हो गइल.....शकीरा के डांस टीवी पर खूब चलल....याद रही इ धुन.....कोनो ना भूल सकेला.....अगला विश्व कप का कौनो विश्व कप होई....इ धून चलत रही....

Saturday, July 10, 2010

बाबाओं के बाबा फुट पॉल बाबा

ये लो मार्केट में बाबाओं का बाप आ गया है....फुट पॉल बाबा यानि ऑक्टोपस बाबा....बाबाओं के भी बाबा ने सारे बाबाओं की छुट्टी कर रखी है....क्या सटीक भविष्यवाणी है.....कोई बाबा ऐसा कर सकता है क्या....स्पेन ही जीतेगा विश्व कप...अगर ये भविष्यवाणी भी सटीक हुई तो क्या होगा दूसरे बाबाओं का...खैर अब तोता और मैना भी भविष्यवाणी कर रहे है.....इधर ऑस्ट्रेलिया में भी एक हैरी बाबा आ गए है.....खैर लेकिन बात तो सिर्फ होगी ऑक्टोपस पाल बाबा की....विश्व कप के छह में से छह भविष्यवाणी सही और सटीक बैठी है। जर्मनी की होगी हार औऱ स्पेन फाइनल में पहुंचेगा....अब जर्मनी को तीसरे स्थान के खेले जाने वाले मैच में विजेता बता दिया बाबा ने....आगे फाइनल तो स्पेन ही जीतेगा....बाबा क्या विश्वास है....कितना शानदार तरीका है....भारत के बाबाओं ने सिर्फ हाथ की लकीरों से सबका भाग्य बता दिया...पता नहीं अपने बारे में कितनी सही जानकारी रखते है...खबर है कि नेपाल में जारी अस्थिरता के लिए बाबा की मदद लेनी की बात हो रही है....भारतीय बाबाओं की नहीं बाबाओं के बाबा की। दुनिया भर में छा गए है ये बाबा। तो क्या अब उन बाबाओं की छुट्टी होने वाली है।अगर ऑक्टोपस बाबा की मार्केंटिंग की जाए तो भारत की कई समस्याएं खत्म हो सकती है।भारत ही नहीं दुनिया की।मसलन क्या अमेरिका ओसामा का पता लगा पाएगा....भारत की कई समस्याएं है...आतंकवाद, नक्सलवाद,महंगाई....क्या शरद पवार का थोड़ा भार कम देने से महंगाई पर ब्रेक लग जाएगी....क्या चिंदबंरम नक्सलियों पर काबू कर पाएंगे....क्या पाकिस्तान से बात करने से कोई भी फायदा होगा....क्या अगले महीने भी इस तरह देश में कई कई दिनों का बंद रहेगा.....क्या शादी के बाद धोनी बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे या फिर क्या विश्व कप का खिताब ८३ के बाद भारत के नाम होगा.....ऑक्टोपस का आइडिया कमाल है...दो टीमों में से एक को चुनना और फिर उसका अब तक सही होना....क्या ये एक महज संयोग है या फिर यूरोपीयन चमत्कार....किसी भारतीय बाबा का आइडिया है या फिर शुद्ध यूरोपीयन सोच....भारत के बाबा इससे क्या सबक लेंगे...अब बाबाओं के दरबार में इस तरह की बहस तो चल ही रही होगी...धंधा मंदा पड़ने का खतरा मंडराने लगा है....कैसे इसका फायदा उठाया जाए....शादी होगी या नहीं ...ऑक्टोपस बाबा बताएंगे हां या नहीं...जनवरी में या फरवरी में....इस लड़की से उस लड़की से....नौकरी मिलेगी या नहीं ....इंजीनियरिंग सही रहेगा या मेडिकल....ये धंधा तो हिट है.....वैसे जर्मनी में ये ऑक्टोपस बाबा विलने बने हुए है...मौत की सजा भी हो सकती है..स्पेन के लिए तो बाबा भगवान है....जीत का दूसरा नाम...भरोसे की वजह और वगैरह वगैरह...सो स्पेन को बाबा की चिंता सबसे ज्यादा है.....हिटलर होता तो शायद ही बाबा को फाइनल की भविष्यवाणी करने का मौका मिलता...खैर कोई बात नहीं....पाखंडी और ढोंगी बाबाओं में से ये बाबा एक ऐसा सामने आया है जिससे सब दंग है....दूसरे बाबाओं ने भी दंग किया लेकिन जब पोल खोल हुआ तो कोई सेक्स वीडियो तो कोई सेक्स रैकेट और कोई कुछ में फंसा। और फिर ये कहना पड़ा कि बाबाओं से बचाओ....लेकिन इस बाबा के बारे में तो अलग ही राय है...इस बाबा को लाओ.....हाल के दिनों में अपने देश में बाबाओं के लिए सबसे बुरा वक्त रहा...कई बाबा विवादों में रहे....अब इस ऑक्टोपस बाबा ने उम्मीद की एक किरण दिखाई है....मार्केटिंग का...विश्वास का....सो ऐसे बाबाओं को तो लाओ....लेकिन कही इसकी कमान फिर उन्ही ढोंगी और पाखंडी बाबाओं के हाथ आ गया तो...........सो बाबाओं से सावधान

माही,मैरेज एंड एक्सक्लुसिव........

देहरादून से सीधी तस्वीरें...सिर्फ हम ले कर आ रहे है। ब्रेक के बाद देखेंगे हल्दी की रश्म और मिलवाएंगे आपको उस घोड़ी से जिस पर धोनी आज चढ़ेंगे। आप बना रहिए हमारे साथ।चलिए हम अब आपको सीधे लिए चलते है उस घोड़ी के मालिक के पास। जी कैसा लगा आपको। क्या आपको पहले से पता था। धोनी कितने देर तक घोड़ी पर बैठे। क्या कहा धोनी ने....धोनी की घरवाली से मिले की नहीं। खाना खिलाया की नहीं।और अब हम आपको दिखाते है धोनी की शादी की पहली तस्वीरें...एक्सक्लुसिव॥ये तस्वीरे सिर्फ हमारे चैनल के पास है...आप देख सकते है पहली तस्वीरे में ये और ये दिख रहे है। दूसरी में जॉन अब्राहम दिख रहे है....और ये रही तीसरी तस्वीरे जिसमें धोनी के दोस्त डांस कर रहे है....रात नौ बजे देखिए...माही की शादी......रात साढ़े नौ बजे....शादी की मस्ती.....रात दस बजे घोड़ी पर माही....रात साढे दस बजे.....टीम इंडिया के कुंआरे, रात ग्यारह बजे.....मेरे यार की शादी.....रात साढ़े ग्यारह बजे----माही वे.....रात बारह बजे....माही स्पेशल और इससे पहले पांच बजे से नौ बजे तक.....ले जाएंगे...ले जाएंगे...दूल्हे का सेहरा....पल भर में कैसे बदलते है रिश्ते......आज मेरे यार की ....(पता नहीं ये गाना बजा था ये नहीं कुछ चैनल के महारथी इसको लेकर कनफर्म नहीं थे), सेहरा बांध के मैं तो आया रे....हे..हे...हे....देखती रह जाएंगी सखियां तुम्हारी...तुझे ले जाऊंगा......और भी कई सारे है.....ये उसकी शादी पर खास शो चल रहा था जिसने मीडिया को बुलाया ही नहीं था....खबर तक देना जरूरी नहीं समझा....टीम इंडिया और भारत के बेस्ट बैचलर में से एक...कौन है रावत...गुगल पर सर्च करो...स्टील फोटो लगाओ...लाइव एंड़ एक्सक्लुसिव जरूर चलता रहे.....अरे जैसे भी हो कोई तस्वीर शादी की उड़ाओ.....सवाल ये कि धोनी ने क्यों नहीं मीडिया को बुलाया......सानिया की शादी की नौटंकी याद है ना.....अगर दस पंद्रह दिन पहले शादी की खबर आ जाती तो क्या होता....१५ दिनों तक भाई लोग अलग-अलग एंगल से स्टोरी करवाते...कोई रांची की किसी लड़की को स्टूडियो में उठा लाता तो कोई दीपिका से लेकर प्रियंका और भी कई सारे के बाईट ले आता....आप देख सकते है इनके रिएक्शन....साफ पता चलता है कि धोनी ने इनसे धोखा किया......और सुपर होता धोनी का धोखा....स्टिंग,बैकड्रॉप से लेकर सुपर तक। देखिए रात नौ बजे धोनी का धोखा.....कही देखिए रात नौ बजे...ये धोनी झूठा है..देखिए रात नौ बजे ...धोनी का काला धंधा...कहीं काला कारोबार...मधु कोड़ा जैसा....कही धोनी का धंधा....जैसे वगैरह-वगैरह......
सो धोनी ने चोरी-चोरी चुपके चुपके शादी करना बेहतर समझा। कैप्टन कुल के आइडिया के तो सब कायल है ही ये एक और बेहतरीन प्लानिंग थी। नहीं तो संभव ही नहीं कि कुछ चैनल वाले इसमें टीआरपी का ऐसा फंडा निकालते कि धोनी की बैंड बजने पर आफत हो जाती। सो वेल डन। गुड विन इन दिस मैच। बधाई हो बधाई। मीडिया के हाल पर रोने वाले तो बहुतों होंगे....ये सब छोड़ दीजिए उन पर....अब तो इस पर रोना भी नहीं आता....भीड़ में शामिल हो जाइए और कोई उपाय नहीं है....टीआरपी चाहिए की नहीं....नहीं तो फिर आप दिखाते रहिए घाटी में तनाव...क्राइम कैप्टिल दिल्ली...फिर गड़बड़ाए गडकरी, नक्सलियों का बंद और जैसे-तैसे सीरियस खबरें....कौन देखेगा इसे...दिन भर थक कर घऱ लौटा या टीवी का दर्शक....उसे फिर क्यों तनाव दे रहे है....उसे मजा दीजिए...उसका मनोरंजन कीजिए....उसका स्वागत कीजिए...किस-किस तरीके से कर सकते है सो कीजिए.....कोई ये धंधा है.....कुछ हटकर सोचिए...रांची के राजकुमार की शादी थी मामूली बात भी नहीं...बड़ी खबर...कैसे हो रही है शादी...सब जानना चाहते है...इस वक्त क्या हो रहा होगा....फर्जी क्यास ही लगाने में क्या जाता है...कौन-कौन सा गाना बज रह होगा..गाना बजा दीजिए...हल्दी हो गई है...घोड़ी वाली रस्म और खाने का मेन्यू क्या था....कौन नाचा और कौन खूब नाचा...कौन-कौन थे...और कौन कौन नहीं थे.....नहीं थे तो क्यों नही थे....बुलावा नहीं था या देश में ही नहीं थे...आगे का क्या प्लान है....मॉरिशस या न्यूजीलैंड या सिंगापुर....रांची कब लौट रहे है,,...दिल्ली में भी किसी से मिलने का कार्यक्रम है....और वगैरह-वगैरह...आइडिया निकालिए.....तमाशा देखाइए........ लेकिन ये पब्लिक है सब जानती ...
पोस्ट कुछ लेट हो गया लेकिन अभी शादी के मुविंग विजुअल नहीं आए है याद रखिएगा

Sunday, June 27, 2010

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

नरेन्द्र मोदी बिहार क्या गए....बीजेपी-जेडीयू की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई...और अचानक ही थ्री इडियट्स का गाना भइया ऑल इज वेल...बीजेपी-जेडीयू पर फिट बैठता नहीं दिख रहा। मोदी के लुधियाना रैली वाले पोस्टर ने सारा बखेड़ा किया कि कुछ ने कहा भईया इस चक्कर में हलवाई को क्यों सजा दे दी। सुशील मोदी याने छोटे भैया भी नाराज हो गए। विश्वास यात्रा से किनारा कर लिया। पटना से लेकर दिल्ली में बबाल मच गया। भईया चुनावी साल में बिहार की राजनीति क्या रंग लेने जा रही है।बयानबाजी भी होने लगी। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल रहा है। खास बात ये रहे कि पांच करोड़ का चेक लौटाने के बाद भी नरेन्द्र मोदी चुप रहे। चुप रहना वैसे तो उनकी आदत नहीं लेकिन जब सपना दिल्ली की गद्दी का हो तो चुप रहना भी बेहतर होता है। सो मोदी चुप ही रहे, कुछ ना कहे....नीतीश भी मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से बचते रहे। पत्रकारों से कहा टेंशन नॉट...रिलैक्स....दिल्ली में शरद यादव मामले पर नजर बनाए रहे और कहते रहे कुछ नहीं है। हम साथ-साथ हैं। बीजेपी की मैराथन बैठक दिल्ली में चलती रही...फैसला सबको पहले से ही पता था। खैर अब छोटे भईया सुशील मोदी भी मान गए। गया में विश्वास यात्रा में फिर दोनों में विश्वास बहाली हो गई है। कैबिनेट मंत्री सुधा की अंतिम यात्रा के लिए भले ही नीतीश के पास वक्त कम पड़ गए थे लेकिन कभी बांका के पूर्व साथी दिग्विजय सिंह की मौत पर नीतीश ने अपनी विश्वास यात्रा रद्द कर दी है। पटना में सुबह सुबह आज स्टेशन पहुंचे थे। दिग्विजय सिंह का शव आज ही दिल्ली से पटना पहुंचा था। दिग्विजय सिंह का जाना बिहार में विरोधी पार्टियो के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। लेकिन जिंदगी औऱ मौत पर किसका चला है। खैर जेडीयू बीजेपी की तनातनी फिलहाल कम होती दिख रही है। लेकिन ये तो सीटों के बंटवारे के वक्त पता चलेगा कि किसको कितना नुकसान पहुंचता है। दरअसल ये सब दबाव की राजनीति है। आगे देखिएगा मोदी और वरुण के चुनाव प्रचार के वक्त क्या स्थिति होती है। वैसे बिहार में बीजेपी को इन दोनों की ही जरूरत नहीं है। इससे उन्हे तो कुछ खास फायदा होने से रहा लेकिन इसका नुकसान जेडीयू को हो सकता है। जिसे नीतीश अच्छी तरह समझते है। यहीं है पूरी नौटंकी। सियासत की नौटंकी। बिहार से इस बार केन्द्र की राजनीति में बड़े नाम शामिल नहीं है तो क्या हुआ विरोधी पार्टी बीजेपी को तो यहां से मुश्किलों में डाला ही जा सकता है। रामविलास राज्यसभा में आ गए है। कांग्रेस कितना जोर लगा पाती है इस पर आरजेडी-एलजेपी का भविष्य तय होगा। फिलहाल तो नीतीश क्लीन स्वीप की ओऱ दिखते है। लेकिन अभी कुछ महीने बाकी है...देखते जाइए क्या होता है।

सुपर सायना, वेल डन

T41 - Ok ok ok ..!!! thank you all for Saina info .. My God .. this Twitter is like ...Magic ..instant magic ..Go India !! ermm GO Twitter ! thats what big reaction when he got the news of saina winning...whats about you
T41 - What happened with Saina ?? Did she win ?? Was on a flight and missed it ..! Quick someone tell me, am not near Tv ! Such dependence ! asked big b on twitter
ये बिग बी की ट्विट है जो उन्होने सायना के मैच पर किया। लगातार तीन बड़े टूर्नामेंटों में जीत। भारती क्रिकेट टीम भी शायद ही लगातार तीन बार ऐसा कर सकी हो। लेकिन कभी सानिया नाम से परेशान सायना को अब परेशान नहीं होना पड़ता होगा। याद है प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब कोई पत्रकार सानिया नाम से पुकारता होगा तो क्या बितती रही होगी। अब शायद सानिया मिर्जा चाहे कि उन्हे कोई सायना नाम से पुकारे।हो भी क्यों ना ...दुनिया की दूसरी नंबर की खिलाड़ी वो बन गयी है। सानिया १०० से भी दूर होंगी।सायना के कोच गोपीचंद बेहद खुश है। उनका बयान आया है। गोपीचंद कहते है कि सायना ने इस साल टॉप पांच में शामिल होने का टारगेट बनाया था। साल के अभी छह महीने बाकी है। इसका मतलब ये कि छह महीने से भी कम में साल का मिशन पूरा हो गया है। कहीं कहीं अब तुलना भी हो रही है। सायना बनाम सानिया । सानिया के नाम मिक्सड डब्लस और डब्लस में खिताब है, कुछ सिंग्लस टाइटल भी। लेकिन कोई ऐसा ताज नहीं जो सायना के बराबर का हो। खैर ये तुलना गलत है। लेकिन इतना तो सही है कि महिलाओं में देश की सबसे बड़ी खिलाड़ी आज सायना है। इस संडे को सायना ने सुपर संडे बना दिया। वेल डन। इस खेल की रॉल मॉडल है वो इस देश में। बैडमिंटन में चीन और इंडोनेशिया की तूती बोलती है। अब भारत की बारी है। विश्व कप फुटबॉल का मौसम है आज रूनी और मेसी के लिए बड़ा मुकाबला है लेकिन क्या हुआ हमारी टीम वहा नहीं है तो हम बैडमिंटन में चैंपियन है।

Friday, June 25, 2010

टीआरपी की वैध संतान

बेहतर तरीके से टीआरपी कैसे हासिल करें। वो जो नाग-नागीन नहीं दिखा सकते, वो जो स्क्रीन पर नौटंकी नहीं परोस सकते। वो जो बाबाओ और भूतों को नहीं दिखा सकते। वो क्या करें कि टीआरपी हासिल हो। दिल औऱ दिमाग थाम कर बैठ जाइए क्योंकि आ गया है टीआरपी पाने का वैद्य फॉर्मूला। शुरुआत में एक बात कह दें कि ये टीआरपी का पूरा सिस्टम ही खोखला है या अवैध है। लेकिन फिर भी गलत में भी सही निकालने का तरीका है। चलिए ज्यादा इंतजार नहीं करवाते है तो टीआरपी गेन करने के फॉर्मूले पर आ जाते है। सीधा और सामान्य बिना किसी पैसे के ये सब बताया जा रहा है। सबसे पहले तो टिकर पर आईए। टिकर में कितने खबरें अपडेट रहती है। कितनी की मात्रा सही रहती है। आगे आने वाले कार्यक्रम के बारे में कुछ बताते है या नहीं। ये तो ब्रेक के बीच में भी बताते रहिए आगे देखिए...साढ़े नौ बजे...जो भी दिखाना हो। ऐसा की समझ में आ जाए कि क्या दिखा रहे है। तो टिकर पर मुस्तैद नजर जरूरी है। ब्रेकिंग करने के तुरंत बाद वो खबर टिकर में डाल दीजिए। आज कल टॉप टेन का भी चलन शुरु हो गया है तो बताने की जरुरत नहीं है कि इस तरह से पेश करें कि सारी बड़ी खबरें आ जाए। अब ये टिकर भईया पर मत छोड़िए कि उन्हे खेल ज्यादा पसंद है तो इसके पांच टिकर डाल दिए और अर्थ जगत की बड़ी खबरें छोड़ दिए।चलिए आप दिन भर कितनी खबरें ब्रेक करते है। सबसे पहले। दूसरों पर चलने के बाद ब्रेक करने का कोई मतलब नहीं है। सुशील मोदी नीतीश के साथ विश्वास यात्रा पर नहीं जाएंगे। इसे फ्लैश कर मत छोड़िए...ब्रेकिंग न्यूज में ही डालिए। और हां सिर्फ टैम वाले जगहों को ही ब्रेकिंग में ना लें। कहीं की भी खबर हो बड़े-बड़े ब्रेकिंग में डालिए अगर उस वक्त कोई दूसरी बड़ी खबर नहीं हो। स्क्रीन पर जितना ज्यादा ब्रेकिंग चलता रहेगा दर्शक चैनल पर आने के बाद कुछ देर तक टिकेंगे। और हां आपकी ब्रेकिंग वाली प्लेट आकर्षक है या नहीं। कैसा दिखता है इसका भी ध्यान रखें। स्क्रीन पर बड़े-बड़े लेटर वाली ब्रेकिंग जब चलती है तो वो प्लेट कैसा दिखता है। लोग देखकर रुक सकेंगे या नहीं । इसका ख्याल जरुर रखें। बिग ब्रेकिंग......स्क्रीन पर दिखे तो आकर्षक लगे...डरावना ना लगे, भद्दा ना लगे,,,अरे इतनी बड़ी खबर कैसे दिखा रहे है। और ब्रेकिंग खबरों पर कुछ देर बने रहे। ये नहीं कि आए और चल दिए। उसमें क्या-क्या कर सकते है। रिपोर्टर के साथ घटना से जुड़े कोई व्यक्ति या अधिकारी का फोनो या लाइव मिल जाए तो मामला थोड़ा बढ़ा दें। दो बजकर चालीस मिनट पर कोई बड़ी खबर आती है और उस वक्त आपका कोई प्रोग्राम चल रहा हो तो क्या आप तीन बजे तक का इंतज़ार करेंगे। या फिर कोई वैसे विजुअल आ जाते है तो क्या करेंगे। इंतजार मत कीजिए...प्रोगाम जरूरी हो तो तोड़ दीजिए। ब्रेकिंग या फिर उस विजुअल पर लोग कहते है खेल जाइए। क्या आप हर बुलेटिन दिन की सबसे बड़ी खबर से शुरु करते है। तो सावधान। मान लीजिए भोपाल गैस कांड में अर्जुन सिंह पर केस दर्ज हो गया है या एंडरसन को लाने की कोशिशें शुरू हो गई तो क्या आप सुबह ग्यारह बजे से रात ग्यारह बजे तक की पहली खबर इसे ही लेंगे। ऐसा ना करें। दर्शक बोर हो जाते है। दो-तीन बार बड़ी खबर चलाने के बाद कुछ भी ताजा खबर उस वक्त की से बुलेटिन की शुरुआत करें। न्यूज चैनलों में दिन में फोनो टाइप, या फिर कही हंगामा, कही मारपीट, कही हादसा, जैसी खबरें आती है। तो बड़ी खबर को पहले ब्रेक के बाद रख कर इस तरह की खबरों पर फोनो, लाइव के साथ शुरुआत कर सकते है। ये अच्छा रहेगा। ठीक है पहली हेडलाइन बड़ी खबर ही होगी ....लेकिन शुरुआत किसी अलग खबर से करने में कोई हर्ज नहीं। क्या आप हेडलाइन में कोई नियम बनाते है जैसे कि चार हेडलाइंस या फिर पांच । ऐसा ना करें। बड़ी खबरें हेडलाइंस में जरुर डाले। जिन्हे खेल की खबर देखनी होगी वो थोड़ा इंतजार करेंगे। जिन्हे राजनीति की खबर देखनी होगी और वो हेडलाइंस ही नहीं है तो वो हट जाएंगे चलो कहीं औऱ वहां देखते है। हेडलाइंस आप कितने अंतिम समय तक अपडेट कर पाते है....सारा मजा इसी का है। वो तो अखबारों में भी छप जाएगा। अखबारों में कोई जल्दबाजी नहीं होती आराम से काम चलता है। लेकिन हमारे औऱ आपके लिए आऱाम नहीं है अगर आप न्यूजरूम पहुंच चुके है। न्यूज रुम में पहुंचते ही व्यस्त हो जाइए। हां काम के साथ, फोन और फेसबुक पर नहीं। दूसरे चैनलों पर करीबी निगाह रखे. वहां क्या ब्रेकिंग चल रही है। किस खबर पर वो आक्रामक रवैया बनाए हुए है। आज दिन में कोई बड़ी खबर डेवलप होने वाली है तो उस पर बने रहिए। साथ ही बेहतर तरीके से। सबसे पहले......की कोशिश कीजिए। हां इस चक्कर में जिंदा को मुर्दा ना बनाइए। चलिए कही ट्रेन हादसा हुआ। १० लोग मारे गए तो चलाइए...ठीक है सौ मत बताइए...लेकिन १० मौत भी तो कम नहीं है चलाइए....वक्त दीजिए खबर पर। विजुअल दो तीन तरीके से कटवाइए...एक्शन वाली घटनाओं का...डब्ल विंडो या ट्रिपल विंडो देखकर लोग कुछ देर तक रुकते है। आप कितनी जल्दी ब्रेकिंग खबरों पर डिटेल्स लोगों को देने की कोशिश करते है। कई बार लोग ताजा खबर या ब्रेकिंग न्यूज में चलाकर भूल जाते है। या फिर अपने काम को पूरा मान लेते है। ऐसा मत कीजिए। या फिर ब्रेकिंग ही मत चलाइए। मान लीजिए आपने भारत की जीत की खबर चला दी। १५ साल बाद भारत ने एशिया कप का खिताब जीत लिया है। जिस दर्शक को क्रिकेट नहीं भी पसंद है वो उस वक्त उस बारे में जानना चाहेगा। आपका कोई और कार्यक्रम चल रहा है औऱ बड़ी ब्रेकिंग भारत की जीत की चला रहे है तो दर्शक वहां से हटकर उस चैनल पर जाना चाहेगा जहां इस बारे में जानकारी दी जा रही होगी....सो या तो ब्रेकिंग ही ना चलाए या फिर चलाए तो तुरंत बुलेटिन में शामिल करें। प्रोग्राम तोड़ने से नहीं हिचके। बहुत मेहनत से प्रोग्राम बनाया था आधा घंटे का चलने दें। कृप्या ऐसा ना करें। टीवी अखबार नहीं है यहां हर खबर तुरंत चाहिए। न्यूज रूम चैट की व्यवस्था हमेशा रखे। कभी कभार प्रोग्राम शुरु होने से पहले हेडलाइंस ले लें और फिर कोई बड़ी खबर जो उस वक्त आ रही हो उसकी जानकारी देकर प्रोग्राम शुरु कर दे। आगे क्या है....दिन भर चलाना ना भूले। कोई बड़ी खबर न्यूज रूम में या आउटपुट में आते ही उसे रोके मत जरा सा भी देर ना करें। दूसरे चैनलों पर कोई बड़ी खबर चल रही हो तो जल्दी से अपने रिपोर्टर से कन्फर्म करे हाथ पर हाथ धरे ना बैठे रहे। खबरों के आने का इंतजार ना करें....खबरों तक पहुंचे। कुछ खेल, मनोरंजन, अनोखी घटनाओं को आधा घंटा बनाए और उसे चाहे तो दो-तीन बार दिन में प्ले कर सकते है। कुछ वक्त और दिन का भी ख्याल रखें। संडे है तो कुछ सॉफ्ट टाइप, संगीत...देखने-सुनने में अच्छा लगे....। रात नौ बजे और दस बजे का अलग मामला है। वहां दिन भऱ की बड़ी खबरें होती है। लेकिन दिन भर में कोई खबर ना पहली होती है ना आखिरी। किसी को भी कही लें सकते। लगातार हर बुलेटिन में एक ही खबर से शुरुआत करना मजेदार नहीं होता। आप भी बोर होते है, चलाने वाले भी, पढ़ने वाले भी और फिर देखने वाले भी। उस वक्त की बड़ी खबर ही हमारी पहली खबर है। और पहली खबर को हल्के में ना लें।फोनों नहीं मिल रहा है कमेंट्री करवाए। कांग्रेस की बैठक में हंगामा हो गया है...ब्रेकिंग न्यूज। फिर फोनो....अगर आपको लगता है कि पांच से दस मिनट में आपके पास शॉट आ रहे है तो बने रहिए खबर पर । फिर शॉट के साथ फोनो-लाइव चलता रहे। जरुरी नहीं कि हमने तो बड़ी खबर पिछळे तीन बुलेटिन में दिखा दिए है इस बार भी दिखाए। कभी कभार ऐसे एक्शन शॉट्स आ जाने पर हम क्या करते है। सीधे सामान्य तरीके से शॉट्स दिखाकर आगे बढ़ जाते है। उसे बिग ब्रेकिंग बनाए। पहले स्क्रीन पर पूरा प्लेट दिखाएं फिर शॉट्स चलाए। इसका थोड़ा ज्यादा इम्पैक्ट पड़ता है। नौटंकी कर सकते है तो करें नहीं तो खबरों के साथ खेलें। तत्काल की खबर पर जम जाएं। ये नहीं कि हमें थर्ड सेगमेंट में सॉफ्ट स्टोरी दिखानी है इसलिए जल्दी आगे बढ़ चले। टेक्सट हेडलाइंस, हेडलाइंस से पहले मौसम का हाल,,कार्टून या फिर और कुछ रखें तो दर्शकों को बांध कर रखें। अपने आने वाले प्रोग्राम का प्रोमो जरुर बनाए और चलाते रहें। ऐसे और कई तरीके है जिससे आप दर्शकों को अपने चैनल पर बांध सकते है। वैसे ये टीआरपी का पूरा चक्कर ही बेकार का है। लेकिन इसी में अच्छा भी किया जा सकता है। कुछ अच्छे तरीकों को इजाद कर के। वैसे ये भी सच है कि हमने बहुत समय जाया किया है इस टीआरपी के चक्कर में। अगर इतना ही समय हमने खबरों के पीछे बर्बाद किया होता तो कमाल हो जाता है। आज हम इतने बेबस और लाचार ना होते इस टैम वाले टामियों के पीछे। लेकिन क्या करें जब हालत ऐसी हो ही गई है तो कुछ बेहतर तो कर ही सकते है।

Friday, June 18, 2010

मेरे तो हजार फॉलोअर है?

क्या आपका ब्लॉग है, क्या आपका फेसबुक अकाउंट है, क्या आप ट्विटर पर है...अगर जबाव नहीं है तो माफ कीजिएगा आप पत्रकार नहीं है। क्या अपने ब्लॉग पर आप नेताओं का नहीं गडियाते, अपने दिल की भड़ास कहीं और नहीं निकालते, आपके कितने फॉलोअर है। सौ में है या हजार में। आपके ब्लॉग पर कितने कमेंट आते है। वगैरह-वगैरह। आज के पत्रकार वक्त निकाल कर ब्लॉग जरुर लिखते है। नेताओं को लंबा-चौड़ा उपदेश जरुर देते है। बाईट लेते वक्त नेताओं के आगे पीछे भी खूब करते है।
हम क्या कर रहे है? कहां जा रहे है? एक्सक्लुसिव खबरों का चस्का ऐसा लगा है कि पूछिए मत। बुलेटिन में कोई एक्सक्लुसिव खबर है भी या नहीं। नहीं है तो क्या खाक बुलेटिन बना लिए। टीआरपी का क्या हाल है। नंबर वन है या काफी पीछे। पिटे तो किससे पिटे और क्यों पिट गए। खबर दिखा रहे है या नौटंकी कर रहे है। खबर दिखाने से थोड़े टीआरपी आती है। कुछ भी, जैसे भी अलग कीजिए। नौटंकी कीजिए। तब टीआरपी आएगी। नहीं तो फिर न्यूजरूम से लेकर बेडरुम तक दूसरे चैनलों को कोसते रहिए। ये क्या दिखाते है।
प्रोफेशन है या मिशन। मत पूछिए ये सवाल। नौकरी रहे तो लाखों उपाय। मिशन का दौर तो कब का खत्म हो गया है। हम २१ वीं शताब्दी में जी रहे है। इतना भी आउटडेटेड तो नहीं हो सकते । जो मिशन कर गए वो लोग कुछ और थे। हम कुछ और है सबसे हटकर है। सबसे तेज बनने की कोशिश में रहते है। पहले खबर ब्रेक हुई या किसी और ने ब्रेक कर दी। सारा माजरा सबसे आगे का है। चाहे कुछ भी।
भोपाल गैस कांड पर आजकल खूब एक्सक्लुसिव खबरें बन रही है। हर जगह। २६ साल तक किस कुंभकरणी नींद में सो रहे थे हम सब। तब के अखबारों को खंगाला जा रहा है। किसने क्या बयान दिया था। नया ताजा भी लेकर आ जा रहे है प्राइम टाईम में मित्र लोग। अदालत के फैसले पर सीधे-सीधे डंके की चोट पर कह रहे आधा-अधूरा इंसाफ। अब जिस धारा में मामला दर्ज कराया था अदालत तो उसी पर फैसला देगी ना। मीडिया ने कौन सा इंसाफ दिला दिया। अब सवाल ये उठने लगा है कि अर्जुन सिंह आखिर क्यों चुप्पी साध बैठे है। बोलते क्यों नहीं। बोलो अर्जुन बोलो। क्यों खामोश हो? उठाओ गांडीव और भेद डालो टारगेट को।
नीतीश मोदी की तस्वीर पर खूब हंगामा बरपता है। या फिर हंगामा बरपा देते है भाई लोग। जिनकी तस्वीर ही कभी नहीं छपी उसका क्या। वो कहां हंगामा करे। कैसे करे?
उसके हंगामे की खबर कौन दिखाएगा? टीआरपी मिलने की गारंटी है। नहीं है तो फिर ये खबर ड्रॉप की जाती है। माफ कीजिएगा...और बड़ा हंगामा कीजिए...खुद को आग के हवाले कर दीजिए...आत्मदाह की धमकी दीजिए....धमकी पर ख़बर ना बने तो पेट्रोल छिड़क कर माचिस जलाकर खुद को आग के हवाले कीजिए...जान दे दीजिए या नब्बे फीसदी जले हालत में अस्पताल में भर्ती हो जाइए। फिर हम आपको दिखाने की गारंटी देते है जो आप खुद नहीं देख सकते। फिर तो हम लाइव एंड एक्सलुसिव दिखाने से भी नहीं हिचकेंगे। ये लाइव एंड एक्सक्लुसिव में किसका भला हो रहा है? पत्रकारिता का आम लोगों का या फिर चैनल का। समझ सको तो समझ लो। ये विजुअल सिर्फ हमारे पास है। चार चैनल चीख-चीख कर ये चिल्ला रहे है। औऱ हर चैनल पर ये विजुअल चल रही है। तो क्या दर्शक इससे कन्फयुज होते है अरे ये खबर सिर्फ इसी चैनल पर है। दर्शकों का इससे कहां कोई सरोकार। उसे तो अपनी चिंता सता रही है। रात को क्या खाना बनेगा। खाने में रोटी और चावल के साथ दाल या सब्जी हो पाएगा की नहीं। बच्चे की फी कैसे दिए जाएंगे। खर का किराया भी देना है क्या? या फिर लोन के साथ इंट्रेस्ट चुकाना है। कैसे होगा ये सब? वित्त मंत्री ने कुछ टैक्स में इधर उधर तो नहीं कर दी। शरद पवार ने कोई बयान तो नहीं दे दिया कि फलां सामान के कीमत बढ़ने वाले है। पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और एलपीजी का रेट कब बढ़नेवाला है। फिर ऑटो वाले से लेकर बस वाले को कितना ज्यादा देना होगा। फिर तो सबकुछ ही महंगा हो जाए। तब क्या करेंगे? क्या कोई फार्मूला या कोई खबर है जो इन लोगों को परेशानी से बाहर ला सके। इस माहौल में भी वो कैसे जीवन नैया पार लगा सके। कोई तरीका सुझा सकते है अपने दर्शकों को। फिर आप ही रखो ये टीआरपी, ये एक्सक्लुसिव खबर और ये ढ़ेर सारी नौटंकी।

Wednesday, June 16, 2010

नीतीश बनाम मोदी

एक कमेंट के साथ शुरुआत...मोदी के साथ वाले तस्वीर पर नीतीश ऐसे भड़के मानो किसी ने उनके मोदी के साथ अवैध संबंध की बात कर दी हो। अचानक ही किसी ने कमेंट किया और सारे लोग हंसने लगे। खैर ये अलग बात है। रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि मोदी पटना में छा गए। मोदी ने बीजेपी कार्यसमिति का पूरा एजेंडा ही हाईजैक कर लिया। नीतीश कानूनी कार्रवाई की बात करते रहे। लुधियाना में बिहार चुनाव खत्म होने के बाद वाली तस्वीर पर गजब का हंगामा बरपा। नीतीश नाराज हो गए और फिर बीजेपी की तरफ से सफाई आई है कि इसके पीछे ना तो गुजरात सरकार का हाथ है और ना ही मोदी का। सूरत के सांसद का नाम आया फिर एक बिहार के व्यवसायी का नाम भी। लेकिन ये दोनों ही इससे अपने को किनारा करते रहे। शऱद यादव ने बीच बचाव की शुरुआत की और फिर आडवाणी बोले नीतीश यहां होते तो अच्छा होता। भोजपुरी में बोल रहे है नरेन्द्र मोदी। रउआ लोगन के धन्यवाद। गुजरात में भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए भी मोदी ने बिहार का आभार जताया। कोसी प्रभावितों के राहत के लिए दिए गए पांच करोड़ का भी मोदी ने कभी बखान किया था। नीतीश नाराज हो गए और कहा कि हम उन्हे पैसा लौटा देंगे। क्रेडिट लेने की होड़ इस बीजेपी के बड़े और प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे चल रहे इस नेता को भी है। और वो आजमगढ़ वाली तस्वीर का क्या कहें। क्यों आया था वो झूठा ऐड। लोगों को बरगलाने के लिए। मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए या फिर कुछ और मकसद था। सुना है जसवंत सिंह की री एंट्री हो रही है। उमा भारती भी लाइन में है। अब कल्याण सिंह और गोंविदाचार्य का भी नंबर आने वाला लगता है। गडकरी जी क्या बीजेपी का कोई भला कर पाएंगे। कहना अभी मुश्किल लगता है। ना संतुलित टीम बना पा रहे है ना ही पार्टी में असंतोष को खत्म कर पा रहे है। सियासत में वो ज्यादा माहिर नहीं दिखते। झारखंड का केस ही देख लीजिए। कई नेताओं के विरोध के बावजूद उन्होने गुरुजी से हाथ मिलाया। फिर समर्थन वापस लिया और फिर मलाई खाने पर सहमति के बाद फिर दिल जोड़ लिया और जब मलाई मिलता नहीं दिखा तो फिर दिल टूट गया। पटना में मोदी नीतीश के बारे में तो कुछ नहीं बोले। उनका ध्यान अब दिल्ली पर है सो केन्द्र सरकार पर ही बरसे। मौत का सौदागर वे खुद को नहीं मानते। सो दूसरों से पूछ रहे है कि अब बताईए मौत का सौदागर कौन है? भोपाल कांड को लेकर वे सोनिया से पूछ रहे थे। जिनका इस पूरे कांड से कोई लेना देना नहीं। खैर। मायावती की भी कल पटना में रैली थी। संसद के मोमेंटो पर हाथी की तस्वीर उन्हे भेंट की गई। जैसे बहन जी के लिए दिल्ली अब दूर नहीं। मोदी को ऐसी तस्वीर मिलती तो शायद ये फीलिंग होती की बीजेपी मोदी को लेकर कितनी सीरियस है। दरअसल में दोनों के लिए ही दिल्ली दूर है। दिल्ली अगर किसी के लिए आसान है तो वे है मनमोहन सिंह। २०१४ की बात है तो राहुल बाबा पूरी कोशिश में है। ज्यादा गड़बड़ नहीं हुई और देश की राजनीति इसी दशा और दिशा से चलती रही तो राहुल बाबा को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा। महंगाई लोगों को डरा नहीं अब मार रही है तो इसमें विरोधी पार्टियां कहां और क्या सरकार का बिगाड़ पा रही है। विरोधी खामोश, सरकार मस्त। बीचबीच में कभी थरुर का मामला तो कभी जयराम रमेश बयान औऱ ट्विट कर के खुद ही मौका दे देते है और विरोधी पार्टियां खासकर बीजेपी उसी में मस्त हो जाती है। भोपाल कांड २६ साल पुराना है अब क्यों सब इसके पीछे भाग रहे है। एंडरसन को लाने के लिए किसने क्या किया। वो भी सत्ता में थे जो आज पूछ रहे है कि मौत का सौदागर कौन? उनकी सरकार सालों से मध्य प्रदेश में चल रही है क्या किया पीड़ितों के लिए। जिस दिन भोपाल गैस कांड का फैसला आया था उसी दिन एक औऱ तस्वीर मध्य प्रदेश से आई थी। शिवराज के डांस करते दृश्य। इन तस्वीरों को वैसे ज्यादा नहीं दिखाया गया लेकिन सवाल ये कि इन दृश्यो को देखकर पीड़ितों ने क्या सोचा होगा? कैसी सरकार है हमार? हमारे जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकती तो ऐसा तो ना ही करे ना। मोदी बहुत खुश हो रहे थे कि एक चैनल ने उन्हे देश का सबसे अच्छा मुख्यमंत्री चुना है। ये भी सच है देश के प्रधानमंत्री ने उन्हे राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी। ये भी सही है कि मुख्यमंत्री होते ही हुए एसआईटी ने उनसे पूछताछ की थी। पहले मुख्यमंत्री। सबसे ज्यादा देर तक हुई थी पूछताछ। उसका भी रिकॉर्ड मोदी के ही नाम है। क्या बीजेपी में कोई पीएम पद का दावेदार भी है। उस कद लायक कोई है भी। अटलजी सबको मान्य थे। आडवाणी तक जब वेट करते रह गए तो फिर मोदी के लिए बेहतर यही है कि वे इस वेटिंग लिस्ट में ही ना आए। हम आम भारतीय सेक्युलर हैं और ऐसे व्यक्ति को कभी पसंद नहीं कर सकते। गुजरात में तो ये चल जाता है पूरे देश में मोदी का जादू चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। सो बीजेपी को मोदी राग से आगे बढना होगा। मोदी अगर बिहार में चुनाव प्रचार करने जाते है तो बीजेपी को ज्यादा सीटें मिल जाएं ऐसा तो हो ही नहीं सकता। इतना जरूर हो सकता है कि जेडीयू को कुछ सीटों का नुकसान उठाना पड़े। फायदा आरजेडी-एलजेपी या फिर बिहार में संघर्ष कर रही कांग्रेस को हो जाए।

Friday, June 11, 2010

मुझे एंडरसन दे दो।

कौन है ये एंडरसन..वारेन एंडरसन...क्यूं चर्चा में है। अब एक सवाल बन गया है...एंडरसन को किसने भगाया? जबाव- तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने। क्यूं भगाया। ये तो अर्जुन ही जाने। सुनने में आया है कि तब अर्जुन को दिल्ली से किसी का फोन आया था। किसका फोन आया था..ये तो अर्जुन सिंह जानें...अर्जुन सिंह कुछ नहीं बोल रहे है। खामोश है, शांत । तबाही के बाद की शांति धारण कर ली है उन्होने या फिर तूफान के पहले की खामोशी....एक पत्रकार से उन्होने सिर्फ इतना कहा कि टीवी वाले कन्फयूज कर रहे है लोगों को। अब अर्जुन को कौन समझाए कि उनके कुछ ना बोलने से सारा कन्फ्यूजन पैदा हो गया है। ३ दिसंबर १९८४ की काली रात...याद कर ही दिल सिहर उठता है। २५ साल बीत चुके....कुछ को मुआवजा मिला, कुछ मुआवजे के इंतज़ार में चल बसे. मुआवजा मिला वो भी इलाज में खर्च हो गया। एंडरसन उस भयानक काली रात के बाद भारत आया था। गिरफ्तार भी हुआ था। फिर उसे सलामी भी दी गई थी। हमारे एसपी औऱ कलेक्टर ने उसके जाने की भी पूरी व्यवस्था कर दी थी। राज्य के मुख्य सचिव का उन्हे फोन आया था। बीस हजार लोगों की मौत के गुनहगार के साथ कैसे अच्छा व्यवहार किया जाए इसका पूरा ख्याल रखा गया था। दिल्ली से किसका फोन था...फिलहाल पता नहीं चल पा रहा है। जिस सचिव के फोन की बात हो रही है वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। जिस विमान के पायलट ने एंडरसन को भोपाल से निकाला था वो कहते है कि फोन आया था। राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। २६ साल बाद इंसाफ भी आया लेकिन उसे इंसाफ ना कहे तो ज्यादा बेहतर। लाखों लोग तबाह हुए थे और अब भी लाखों पर इसका प्रभाव है। हमारी सरकारें इस तरह क्यों व्यवहार करती है। अब हमे हेडली चाहिए...क्या करेंगे हेडली को लेकर....एक एंडरसन पकड़ में आया था तो छोड़ दिया था..विमान हाईजैक के बाद हमारी सरकार ने आतंकियो को छोड़ दिया था। अब खबर है कि कसाब को छुड़ाने की कोशिश आतंकी कर रहे है। कोई सरकार ना पहले थी और ना अब ही है...मानो...भगवान भरोसे जीते रहे...कब तक....फिर इन लोगों की कोई जरूरत भी है...सत्ता के लिए कुछ भी करेगा.....एंडरसन को छोड़ देगा फिर हेडली के पीछे पड़ेगा.....क्या करें भोपाल के लोग.....किससे मांगे अपने कातिलों का इंसाफ...कौन करेगा इंसाफ....अमेरिका में भी खासी प्रतिक्रिया हो रही है...दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक तबाही में से एक...गुनहगार सब खुले घूम रहे है...तब भी आज भी....क्या दोषियो पर कार्रवाई होगी........इसके लिए इच्छाशक्ति है हमारे पास? है भी नहीं भी। शोर अब जमकर मच रहा है। एंडरसन भगोड़ा है। पकड़ सको तो पकड़ लो। बेहतर होता एक खुली पंचायत में भोपाल के लोग एंडरसन एंड कंपनी का इंसाफ खुद करते। उनकी पीड़ा ना तो नेता समझ सकते है, ना पुलिस और ना ही न्यायपालिका। हम आप सब तमाशा देख रहे है।

Saturday, June 5, 2010

ये राजनीति नहीं आसां...

प्रकाश झा की फिल्म राजनीति पर्दे पर दस्तक दे चुकी है। सिनेमा हॉल पहुंचा तो देख कर दंग रह गया है कि महिलाओं और लड़कियों को राजनीति में इतनी ज्यादा रुचि कबसे आ गई। काउंटर पर महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखी तो सोचा शायद वो कैटरीना और सोनिया की राजनीति से प्रभावित है। कैटरीना को सोनिया या प्रियंका की रोल में देखना चाहते है। अभी लिखते वक्त ये ख्याल आ रहा है कि आखिर ३३ फीसदी रिजर्वेशन की भी तो बात हो रही है तो उनका बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना जरूरी है। इंटरवल में कई लोग बात करते रहे और कौन कौन है? कुछ पता ही नहीं चल रहा था। पांच पांडव और फिर महाभारत की कहानी। कोई राहुल गांधी नहीं लगा, ना कोई सोनिया का रोल था। हां गांधी परिवार के कई नेताओं की हत्या हुई है सो कुछ देर के लिए आपको वो याद आ सकते है। कैटरीना प्रियंका की कहीं कही याद दिला पाती है। एक उनका भाषण अपील करता है। फिल्म में करण भी है और दुर्योधन भी। दोनों ने बेहतरीन अभिनय किया है। लेफ्ट के नेता भी फिल्म में है। कौन है कह नहीं सकते लेकिन लेफ्ट नेताओं की असलियत को कुछ अलग ही तरीके से फिल्म में पेश किया गया है। शायद बंगाल में अब लेफ्ट खत्म होने को है सो लेफ्ट पर इस तरह की चोट निराश नहीं करती। प्रकाश झा ने सभी कलाकारों से बेस्ट निकलवा लिया है। रणवीर भी अर्जुन की भूमिका को बेहतर तरीके से निभा पाते है। लेकिन वो राजीव गांधी नहीं है। कैटरीना ने छोटे से रोल में ठीक ठाक काम किया है। लेकिन इतने सारे कलाकारों से कनेक्ट करना थोड़ा मुश्किल रहा। सोचिए अगर महाभारत की पूरी कहानी तीन घंटों में पेश कर दिया जाए कितने कन्फयूज हो जाएंगे आप। याद है ना रविवार को सुबह नौ बजे गांव में किसी टीवी सेट से चिपक जाना। जहां बेडरूम में टीवी नहीं रखा होता। पूरा गांव या फिर पूरा मुहल्ला कहीं एक जगह जमा होकर महाभारत देखा करते थे। कई बेहतरीन फिल्म देने वाले प्रकाश झा अपनी फिल्म में बिहार की पृष्ठभूमि का बेहतरीन प्रयोग करते है। भले ही फिल्म भोपाल में शूट हुई लेकिन कई जगह पर बिहार की राजनीति की छाप भी दिखेगी। या फिर आज तो देश की यही हालत है। टिकट नहीं मिलने पर जो बवाल होता है या फिर टिकट के लिए जो करोड़ों रुपए की हेराफेरी होती है कौन नहीं जानता। फिल्म के रिलीज होने के दिन ही पटना में असली राजनीति भी दिखी। पता नहीं ये फिल्म से कितनी प्रेरित थी। लेकिन आरजेडी के कार्यालय में एक नेता ने दूसरे पर रिवाल्वर तान दी। अब कोई कार्रवाई होगी या नहीं तो लालू ही जाने लेकिन प्रकाश झा इस घटना को कैसे लेंगे समझ नहीं आता। खेल में राजनीति को भी दिखाया गया है। कैसे कबड्डी मैच के समापन पर नेताजी का दलित प्रेम जाग उठता है। लेकिन उस दलित नेता को दबाने की भी कम कोशिश नहीं होती। बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। राजनीति में अपराध, भ्रष्टाचार गहरी पैठ जमा चुका है सब वाकिफ है। फिल्म में उसे दिखाने की पूरी कोशिश की गई है। एक दो बार नहीं पूरी फिल्म इसी अपराध पर घूमती है। अब आप इसे महाभारत से जोड़े जहां लड़ाई तीर कमान से होती थी अब रिवाल्वर के सहारे। सीतापुर से टिकट चाहिए.....अर्जुन रामपाल को भीम बताया जा रहा है...पर तब के भीम अलग थे आज के अलग। आज का भीम मीडिया से लड़ बैठता है, एसपी को पहले पीटता है फिर जान से भी मार देता है। सीतापुर से एक महिला को टिकट चाहिए उसके लिए उसे अपना सबकुछ गंवान पड़ता है। टिकट भी नहीं मिलती। और पता नहीं उस महिला का क्या होता है। शायद शीन कट हो गया हो या फिर उसकी जान ले ली गयी हो। साजिश खूब होती है। मैदान में नहीं जीत रहे हो तो जान ही ले लो। कहीं राजनीति में अपराध को ज्यादा दिखाया गया है। प्रकाश झा ने लगता है जानबूझकर बिहार और यूपी के दर्शकों के लिए इसे शामिल किया है जहां कभी आरजेडी नेता तो कभी जेडीयू, यूपी में बीएसपी नेता तो समाजवादी पार्टी के नेताओं पर सत्ता का रौब इस कदर होता है कि वो किसी की जान लेने से जरा नहीं हिचकते। अत्यधिक हिंसा थोड़ा निराश करती है लेकिन आने वाले बिहार चुनाव के लिए कहीं ये ट्रेंड ना बन जाए इसकी चिंता भी हो रही है। मुस्लिम वोटर कितने जरूरी है इसका भी ये दृश्य है। वीनिंग में सेटिंग-गेटिंग की अहम भूमिका होती है इसका शानदार सीन दर्शाया गया है। राजनीति में रुचि रखनेवालों को ये फिल्म जरुर खिंचेगी। और जो लोग राजनीति को गंदा खेल कहते है...उन्हे ये जरूर पता चलेगा कि ये राजनीति नहीं आसां। कहते है या प्रेम और युद्ध में सबकुछ जायज है। आज राजनीति के लिए भी यहीं कहा जा सकता है। खासकर यूपी,बिहार और झारखंड की राजनीति पर नजर रखनेवाले ऐसा ही कहेंगे। अब देखिए ना यूपीए सरकार को बीएपी और समाजवादी पार्टी दोनों का समर्थन हासिल है। बिहार में जरूरत पड़ने पर लालू-रामविलास कभी भी कांग्रेस के साथ आ सकते है। बात तो नीतीश के आने की भी चल रही है। दोनों राज्यों में ये एक दूसरे के दु्श्मन नंबर वन है। झारखंड का हाल देखे तो कभी गुरुजी कांग्रेस के साथ होते है तो कभी बीजेपी के साथ। बीजेपी के साथ रहकर, उसके समर्थन पर मुख्यमंत्री पद का भोग करने के बाद कटौती प्रस्ताव पर वो कांग्रेस के साथ आ जाते है। ये राजनीति है जो हमारे भोले-भाले वोटरों को नहीं समझ आती और ये राजनीति के धुरंधर उसके शातिर खिलाड़ी है जो जब जैसा चाहे वैसा कर सकते है। सरकार गिरा सकते है, बनवा सकते है। झारखंड में बीजेपी जल्द चुनाव की मांग कर रही है अभी ये सरकार तो गिराया है लोगों पर इतनी जल्दी एक और बोझ देने की तैयारी में। दुर्भाग्य ये है कि आप राजनीति से खुद को दूर भी नहीं रह सकते ये हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है। सो जैसी भी है ये राजनीति है...भले ही ये आसां ना हो...

Friday, May 28, 2010

हां मैं झारखंड हूं।

झारखंड का दर्दमैं झारखंड हूं। आओ सब मुझे लुटो। बिहार से काटकर अलग इसीलिए तो बनाया गया था। ताकि बिहार में जो सहा अब ना सहा जाएगा। लेकिन जिन सम्राटों ने मुझ पर राज्य किया। सबने दिनदहाड़े लूट मचाई। बंदूक की नोंक पर वो मेरी इज्जत लुटते रहे। केन्द्र में बैठी सरकार चुपचाप सब देखती रही। अलग-अलग पार्टियों के नेता मुझे कैसे-कैसे, कब लुटना है इसकी योजना बनाते रहे। रांची से लेकर दिल्ली तक प्लानिंग बनती-बिगड़ती रही। जिन्हे वोटरों ने लूटने का मौका नहीं दिया उन्होने भी जमकर मुझे लूटा। अब तो लूट जाने का ही दिल करता है। आओ इस बार फिर आओ जिसे लूटना है आ आओ। मुझे तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार है। सबने लूटा ही तो है। पहले से लेकर अब तक के सब ने। मधु कोड़ा को तो आप पहचानते ही होंगे। उसे लूट की जल्दी थी। उसने तो मेरा दिल ही लूट लिया। अब वो लूट भी जाए तो क्या मैं तो लूट चुका। बीजेपी पार्टी विद ए डिफरेंस....गुरुजी के साथ हाथ मिलाकर आ गई थी मुझे लूट से बचाने। लेकिन ऐसा मेरी किस्मत में क्या। वो तो गडकरी की किस्मत में थी कि पार्टी की कमान संभालते ही एक राज्य बीजेपी के खाते में शामिल हो रहा था। सीना बहतर का हुआ जा रहा था बीजेपी नेताओं का। वाह झारखंड में बाजी मार ली है। कांग्रेस के मुंह से जीत छीन लाए है। जैसे हम लाए तूफान से किस्ती निकालकर ....इस राज्य को रखना मेरे नेताओं संभाल कर। गुरुजी को पहले भी राज्य की जनता ने ठुकरा दिया था। तमाड़ से राजा पीटर ने करारी मात दी। लेकिन फिर गुरुजी के हाथ कमान आ गई। राजनीति इससे निचले स्तर पर नहीं जा सकती। वो कहते है मुझे कौन हटा सकता है? मैं चुनाव भी नहीं लड़ूंगा और मुख्यमंत्री भी बना रहूंगा। काश संविधान संशोधन विधेयक पास कराकर इसे लागू कर दिया जाता तो ये लेखक भी किसी राज्य का सीएम बनने के बारे में सोचता। कटौती प्रस्ताव पर शिबू ने यूपीए का साथ दिया तो बीजेपी तिलमिला उठी। दो दिन की खुशी और फिर जीवन भर का गम लेने का काम खुद ही तो किया था तो अब लो संभालो गुरुजी को। समर्थन वापसी का फैसला आनन-फानन में आ गया। लेकिन गुरुजी इतने माहिर खिलाड़ी है इसका अंदाजा अब बीजेपी एंड कंपनी को लग गया है। एक से बड़े एक शूरवीर योद्धा पार्टी में है। कांग्रेस को गरियारे रहते थे शिबू के साथ को लेकर। अब खुद ही शिबू के साथ थे और बचाव में भी। एक महीने से ज्यादा चले ड्रामा के बाद आखिरकार बीजेपी ने समर्थन वापस ले ही लिया। गुरुजी ने बीजेपी को इसके अलावा और कुछ कर सकने लायक भी तो नहीं छोड़ा था। एक खबर ये भी आई कि केन्द्र में शिबू को मंत्री पद का ऑफर आया है। खैर कहां से आया किसने दिया कुच पता नहीं। ऑफर आते-जाते रहते है। अब क्या होगा झारखंड का। अब कौन लुटेरा आकर रांची का दिल लूट ले जाएगा। सोनिया ने कांग्रेसियों की दिल की मुराद पूरी करते हुए हरी झंडी तो दे दी है। तो क्या फिर शिबू साथ होंगे। या बाबूलाल मरांडी को कमान मिलेगी। आजसू बीजेपी छोड़ मरांडी के समर्थन में खड़ा होगी? जेएमएम के कुछ विधायक मंत्री पद को लेकर टूट जाएंगे। खरीद-बिक्री मंडी में होगी या बंद कमरे में। क्या होगा? आइए, आ भी जाइए...आप भी लूट लीजिए। मेरी तो किस्मत में यहीं है। मैं झारखंड हूं। जहां लोग झंझट और झमेला जैसे शब्द इस्तेमाल करते है। मुझे तो लुटेरा अच्छा शब्द लगता है। झारखंड का लुटेरा। विकास लूटा, खनिज संपत्ति लूट ली, सड़क लूट लिए, गरीबी लूट ली, बेरोजगारी लूट ली, नक्सलवाद लूट लिया, किस-किस ने ना लूटा। अब कुछ नहीं बचा है। मैं बर्रबाद हो गया हूं कि खुद को नीलाम करने की सोच रहा हूं। हां मैं झारखंड हूं।

Wednesday, May 12, 2010

धोनी या टीम की हार

सो टीम इंडिया हार गई है। टी-२० विश्व कप के अंतिम चार में भी पहुंचना संभव नहीं हो पाया। सुपर एट के तीनं मुकाबले में बुरी तरह पिट गई माही की सेना। माही आईपीएल फाइनल जीतने के बाद शायद थोड़ा दंभी हो चले थे।इसका खामियाजा भारत को उठाना पड़ा। वैसे महिला टीम ने कमाल कर दिया है।महिला टीम विश्व कप टी-२० के सेमीफाइनल में पहुंच चुकी है। तो विश्वनाथ आनंद एक बार फिर शतरंज के बादशाह साबित हुए।टोपालोव को आखिरी बाजी में बेहतरीन तरीके से हराकर उन्होने विश्व चैंपियन का खिताब बरकरार रखा है। कमाल के खिलाड़ी है आनंद। अंतिम बाजी काले मोहरो से और टोपालोव सफेद से। ग्यारह बाजी तक दोनों बराबर थे। आनंद चाहते तो ड्रा के लिए जा सकते थे और फिर रैपिड राउंड में टोपालोव को धो सकते थे। लेकिन आनंद ने यही जीत के लिए जाना बेहतर समझा क्योंकि टोपालोव जीत के साथ टूर्नामेंट खत्म करना चाहते थे वो रैपिड राउंड में आनंद से खेलने को लेकर मुश्किलों में थे। वेल डन आनंद,वेल डन महिला टीम। और हां हॉकी टीम भी आजकल अजलान शाह ट्राफी में कमाल कर रही है। विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को धो दिया है तो पाकिस्तान को भी हरा दिया है। लेकिन हम भारतीयों को ये सब चीजें कहां अच्छी लगती है। हम तो टीम इंडिया क्रिकेट टीम को ही मानते है। वो जीते तो मजा आ जाए। हॉकी हारे या जीते क्या फर्क पड़ता है। आनंद विश्व चैंपियन बने या हारे क्या फर्क पड़ता है। महिला क्रिकेट टीम विश्व कप जीत भी ले तो क्या फर्क पड़ता है। इन्ही चीजों ने धोनी को दंभी बना दिया तो क्या गलत किया। अफगानिस्तान और साउथ अफ्रीका को हराकर जब आगे बढ़े तो लगा कि सेमीफाइनल में तो पहुंच ही गए। लेकिन ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला क्यों हुआ पता ही नहीं चला। तेज पिच पर मुकाबला था। पहले अपने तेज गेंदबाजों को मौका देना था और फिर आठ बल्लेबाजों के सहारे बाजी मार लेते। आइडिया तो सही था लेकिन क्या उसके लायक टीम बनाई गई थी, वैसी रणनीति थी...तेज गेंदबाजों की मददगार पिच पहला ओवर हरभजन सिंह लेकर आ रहे है.....है ना कमाल....हरभजन बेहतरीन गेंदबाज है इसमे तो किसी को शक नहीं....लेकिन पहले तेज गेंदबाज क्यों नहीं....भारत के नंबर एक गेंदबाज को छठे ओवर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गेंदबाजी के लिए बुलाया जाता है.....कितने काबिल कप्तान है हमारे महेन्द्र सिंह धोनी....कहते है वो जो छुते है सोना हो जाता है.....अब वक्त गया....अब सोना तो क्या....? खैर हरभजन से पहले ही गेंदबाजी करा ली...चलिए...आगे क्या हुआ...हरभजन को ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज ने आराम से खेल दिया....क्योंकि विकेट लेने के लिए नहीं पावरप्ले में रन रोकने वाली गेंदबाजी कर रहे थे.....रन तो कुछ देर के लिए रूक गया लेकिन विकेट नहीं मिला....और फिर ना तेज गेंदबाज चले औऱ ना ही रविन्द्र जडेजा जिन्हे पता नहीं इतना महत्व क्यों दिया जाता है.....जडेजा एक ओवर में तीन छक्के खा चुके थे लेकिन धोनी की महानता देखिए फिर जडेजा से एक ओवर...कितना साहसी कप्तान है हमारा....कमाल के शांत रहते है वो मैदान पर....आखिरी सुपर एट मैच में भी वो शांत ही रहे थे....दस ओवर में ९० रन और २० ओवर में १७० भी नहीं...कमाल की बैटिंग की...अंत तक नाबाद रहे...जुझते रहे....वाह.....मैच के बाद कहते है कि मैं इन सबसे चीजों से ज्यादा परेशान या दुखी नहीं हूं..........................क्या बात है माही साहब.........आप तो वाकई काफी शांत स्वभाव के है....बड़ा मैच, टॉस जीतो और बैट करो....इतनी मजबूत बैटिंग लाईन अप है १८०से २०० तक बना डालो....और फिर आगे पार्ट टाइमर की गेंद ही अचानक खतरनाक दिखने लगेगी जब विरोधी टीमों पर रिक्वार्यड रन रेट का दबाव बढ़ेगा....लेकिन नहीं डर था कि कही शार्ट गेंदों से पहले ही हाफ में मैच ना ख्तम हो जाए...थोड़ा सस्पेंस बना कर रखो....लोगों को थोड़ा और इंतज़ार कराओ....वो गम ही क्या जिसके लिए इंतज़ार ना किया.....वाह माही वाह.....मुंबई के खिलाफ क्यों टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी की थी....डर था ना कि मुंबई पहले बल्लेबाजी करते हुए १८० से ज्यादा रन बना गई तो फिर तो कप दूर ही रह जाएगा...तो भारत के लिए खेलते वक्त ये सोच क्यों नहीं आई भाई......सारी सोच और सारी उर्जा आईपीएल में भी लगा डाली....हार के बाद शर्मनाक बयान ना देते, माफी मांग लेते तो क्रिकेट के दीवाने दिल को थोड़ी सी राहत तो मिलती...रात के दो बजे तक जगकर जो मैच देख रहे थे जरा उनका भी तो ख्याल कर लेते.....माफ करिएगा धोनी अभी बहुत कुछ सीखना है आपको....आपकी टीम को.....ये हमारी बेहतरीन टीम नहीं है।

टीआरपी के लिए समिति

टीआरपी के लिए सरकार ने समिति बनाने का फैसला किया है ..टामियों के दिन लदने वाले हैं। टैम और एमैप जैसी एजेंसियों के हांथ से टीआरपी नापने का काम छिनने वाला है. सरकार टीआरपी को लोकहित से जुड़ा मुद्दा मान रही है। इसीलिए टीआरपी मैकेनिज्म डेवलप करने के लिए सरकार ने उच्च स्तरीय समिति बनाने का फैसला किया है. इस समिति में आठ लोग होंगे. इस प्रकार अब तय हो गया है कि टीआरपी के मामले में सरकार गंभीर है और न्यूज चैनलों का उद्धार करने के लिए शुरुआत हो चुकी है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जिस उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाएगा वह मौजूदा टीआरपी सिस्टम पर नजर रखने के साथ साथ इस बात की जांच भी करेगी कि क्या सरकार को कोई कानून बनाकर एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए जो टीआरपी रेटिंग सिस्टम में खुद शामिल हो सके या फिर निजी हाथों में रहते हुए ही इस पर नजर रखी जा सके। समिति के चेयरमैन फिक्की महासचिव अमित मित्रा बनाए गए हैं. अब कुछ सही हो रहा है ...बढ़िया है ....

Saturday, April 24, 2010

मास्टर को बधाई

आईपीएल में रोज नए-नए विवाद सामने आ रहे है। ललित मोदी अब अपने ही जाल में फंसते दिख रहे है। उनका जाना तय माना जा रहा है। आगे क्या होगा। एक ताजा खबर ये भी है कि रवि शास्त्री मोदी की जगह ले सकते है। इससे ब्रांड पर भी असर नहीं पड़ेगा और ये लीग और हिट हो जाएगा।खैर आज ये बात करने का मौका नहीं है। आज भगवान के ३७ साल पूरे हो गए है. आज ही के दिन भगवान के कदम धरती पर पड़े थे। उसके बाद से बस सोलह की उम्र से वे देश की सेवा कर रहे है। देश को खुश होने का मौका मुहैया करा रहे है। सोलह की उम्र में जब ठीक से कईयों को होश भी नहीं आ पाता उस उम्र में ये दुनिया की सबसे बेहतरीन गेंदबाजी आक्रमण जिसमें वसीम अकरम, वकार यूनुस जैसे गेंदबाजों के खिलाफ पहला टेस्ट खेलना शुरू किया था। और तब से अब तक यानि २१ साल से मैदान में डटे है। बिना किसी विवाद के, पैर अब भी जमीं पर ही है। शतक बनाने के बाद ईश्वर को धन्यवाद करना कभी नहीं भूलते। कितने भारतीय के आदर्श तो कितनों के चेहरे पर एक पल की खुशी लंबे समय से ये मास्टर देता आ रहा है। आज जन्मदिन पर हर चैनल पर तुम जियो हजारों साल की दुआ चल रही है। दर्शक भी बधाई संदेश दे रहे है। कुछ का कहना है जिस दिन सचिन रिटायर होंगे उस दिन से क्रिकेट देखना छोड़ दूंगा। फिर क्यों देखेंगे। फिर कौन खुशी का मौका मुहैया कराएगा, फिर किसका शानदार शट्स देखने के लिए समया जाया करेंगे, किससे कुछ नया सीखेंगे,,,कैसे मुश्किल हालात से खुद और टीम को बाहर निकालना है ये कौन बताएगा...कोई एक दिन कर देगा, दो दिन,दस दिन, एक साल....लेकिन २१ साल तक ऐसा कौन करता रहेगा....सोना,सेंसेक्स और सचिन में भी तुलना होती है...सब पीछे है...खिलाड़ियों में भी तुलना होती है....सब पीछे है...कोई नजदीक है तो एक फॉर्मेट में करीब आने की सोच सकता है....लेकिन पूरी तरह से कम्पलीट कहां बन पाएगा...बधाई हो मास्टर को जन्मदिन...मास्टर का हर साल देरी से आए....क्योंकि जैसे-जैसे साल बीत रहे है सचिन का करियर छोटा होता जा रहा है....एक साल-दो साल-तीन साल-या फिर चार साल....बड़ा मुश्किल लगता है...सोच कर ही डर लगता है...आने वाले कुछ सालों में शायद हमें किसी का इंतज़ार ना रहे, मैच है तो है...सचिन तो नहीं खेल रहे है ना...औऱ मुश्किल स्थिति में ये याद करना कि काश सचिन आज होते तो हमारी टीम इस कद्र नहीं हारती...आज हम जीत जाते...अकेले दम पर दो विश्व कप के अंतिम चार तक ले जाना....१९९६ में लंका से सेमीफाइनल में हार या फिर २००३ में फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार....बड़ा दुख पहुंचाता रहेगा....कई मैच, कई कप, हीरो कप याद है ना....शारजाह में लगातार दो शतक तो नहीं भूले ना...वनडे में पहला दोहरा शतक भी तो याद ही होगा...सबसे ज्यादा शतक बात किसी भी फॉर्मेट की कर ले...बस एक टी-२० रह गया था...अब वो भी पूरा हो गया...५७० रन बना चुके है...फाइनल का इंतज़ार है...बर्थडे गिफ्ट भी....कप्तानी में भी लोहा मनवाना जो है.....मुंबई इंडियंस क्या शानदार टीम लग रही है...बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों ही विभाग में शानदार...जयसूर्या को मौका तक नहीं मिल पा रहा है...ऐसी टीम है....ब्रैवो भी टीम में जगह नहीं बना पा रहे है....कमाल है....तिवारी और रायडू तो कमाल ही कर रहे है.....सो अब जितने भी दिन क्रिकेट में मास्टर के बचे है उसका भरपूर आनंद लीजिए....पता नहीं फिर ये मौका मिले ना मिले...कब क्रिकेट का ये सितारा खेल को अलविदा कह दें और हम सब एक खुशी के लिए तरस जाएं....सारे विशेषण छोटे पड़ जाते है इस इंसान का वर्णन करने में...शब्द ही नहीं मिलता....जितना कहें, उतना कम....भगवान नहीं तो भगवान से कम भी नहीं...कोई इंसान भला ऐसे कैसे कर सकता है...३६की उम्र में वनडे में दोहरा शतक कैसे मार सकता है....युवाओं के खेल टी-२० में सबसे ज्यादा रन कैसे बना सकता है...जब भी मैदान पर उतरता है लोग शतक की उम्मीद कैसे कर लेते है...यूं ही खेलते रहो,,,यूं ही रन बनाते रहो, यू हीं खुशियां देते रहो...अब इनकी ज्यादा जरूरत है....

Wednesday, April 14, 2010

ट्विटर पर टी-२०

आईपीएल तो हिट है। पता नहीं ये कितनी बार कहा गया होगा। शायद ही किसी को इससे इनकार हो। भले ही इस बार फिल्म वालों ने हिम्मत की और कई फिल्म रिलीज की। वैसे ये दूसरी बात है कि बड़ी फिल्म वाले आईपीएल के डर से फिल्म नहीं ला रहे है। खैर आईपीएल में तो भरपूर आनंद आ रहा है। मास्टर ब्लास्टर तो ऐसे गजब ढ़ा रहे है। टी-२० युवाओं का खेल है तो सचिन से युवा भी कोई दिख रहा है क्या। हां कैलिस उनके करीब है। दोनों युवाओं में एक-एक रन के लिए गजब की मारामारी हो रही है। ये अलग बात है कैलिश ने भी आखिरकार मान लिया कि हमस सब इनकी छाया में खेल रहे है। द्रविड़ की शानदार पारी पर कैलिश लिख रहे थे और ये बता रहे थे कि कैसे द्रविड़ सचिन की छत्र छाया में इतने दिनों खेलते रहे। बाद में उन्होने माना कि द्रविड़ ही क्या हम सब उनकी छाया में खेल रहे है।लेकिन जिनको ट्विट करने की आदत हो उनका क्या। वे किसी की छाया में थोड़े ही खेलते है। शशि थरूर को विदेश राज्य मंत्री के नाम से कम ट्विटर मंत्री के नाम से ज्यादा जाना जाता है। प्रधानमंत्री को थरूर को ट्विट मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार दे देना चाहिए। क्योंकि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। राहुल बाबा ट्विट नहीं करते तो क्या हुआ तो थरूर तो करते है। ट्विट ट्विट करते करते थरूर अब फंस गए है या फिर मोदी को भी फंसा लिया है। आईपीएल के सर्वेसर्वा। टी-२० के जनक नहीं तो असली कर्ता धर्ता तो है ही। दुनिया भर में हिट करा दिया। इसकी हर खबर बड़ी खबर होती है। चाहे दो टीमों की बोली हो या खेल हो, शराब हो, स्मोकिंग हो, दर्शक हो,मार्केटिंग हो, टीआरपी हो या फिर कुछ भी। सब खबर है। अब कोच्चि टीम का मामला सुर्खियों में है। मोदी बनाम थरूर का मुकाबला रोमांचक होता जा रहा है। प्रधानमंत्री को भी कहना पड़ रहा है कि अगर सबूत होंगे तो कार्रवाई की जाएगी। इधर थरूर मोदी के आरोपों को सिरे से खारिज करते है। उल्टे मोदी पर आरोप मढ़ देते है। ये क्या हो रहा है भाई। कल दुआ साहब की रिपोर्ट देखी। और फिर पत्रकार मधु के जवाब। उनका कहना था कि हम एनआरआई की यही दिक्कत है। हम जब दूसरे देश से भारत आते है लंबे समय तक रहने के बाद तो फिर ये दिक्कत आती है। मधु ने आगे कहा कि उन्हे भी आश्चर्य होता है कि कैसे पहले उन्होने क्या कह दिया था। थरूर की भी यही दिक्कत है। दूसरे देशों में ये सब छोटी मोटी बात है लेकिन भारत में बड़ा बवाल मच जाता है। वे विदेश राज्यमंत्री भी है तो उन्हे समझना चाहिए। लोगों को, भावनाओं को, संस्कृति को। जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। चलिए थरूर इस बवाल से आगे निकलेंगे और एक बार फिर ट्विट पर कुछ नया बवाल करते नजर आएंगे।

Wednesday, April 7, 2010

ऑपरेशन ग्रीन हंट और नक्सलियों में खलबली।

दंतेवाड़ा में अब तक का सबसे बड़ा हमला किया गया। सीआरपीएफ के ७३ जवान शहीद हो गए। कैसे निपटे इस नक्सलबाड़ी से निकले आग से। क्या चिदंबरम फ्लॉप हो रहे है? या फिर बुद्धदेव और शिबू सोरेन की नासमझी इस मुहिम को लिए सवालों के घेरे में ला रही है। या फिर नक्सलियों का मिशन सफल हो जाएगा। २०५० तक केन्द्र पर सत्ता का सपना। क्या ये पूरा हो जाएगा। सब जानते है सब मानते है नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है। बाहरी आंतकी कभी सफल हो सकते है कई बार आप भी सफल हो सकते है। लेकिन कैसे लड़ा जाए उनसे जो हमारे ही बीच में रहते है। वो हमारी भीड़ का ही हिस्सा होता है। ४ अप्रैल को ही नक्सलियों ने उड़ीसा में ११ जवानों की हत्या कर दी थी। ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद इनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। साजिश के तहत ये जवानों को निशाना बना रहे है। चिदंबरम ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का रोडमैप बनाकर इनकी मुश्किलें बढ़ा दी। अब इनको अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है। सो ये इस तरह की घटना को अंजाम दे रहे है। लेकिन क्या हम इनसे लड़ने को तैयार है। झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन कहते है कि उनसे बड़ा नक्सली कौन। नक्सलवाद पर दिल्ली में बुलाए गए बैठक से गैरहाजिर रहते है। नीतीश का भी कुछ पक्का नहीं है। ग्रीन हंट पर उनकी राय भी अबतक शायद फाइनल नहीं हो पाई है। इधर चिदंबरम ने लालगढ़ से राज्य के पिछड़ेपन की बात क्या कह दी बुद्धदेव लाल हो गए है। गृह मंत्री को तुरंत ही उन्होने जवाब भी दे दिया। कहां से आया ये नक्सलवाद, कैसे आया और कौन है इसका जिम्मेदार। जाहिर है जब इलाकों में विकास का रास्ता बंद हो गया, सरकार को आम लोगों की फिक्र नहीं रही। कुछ लोग फायदा उठाते रहे और अधिकतर बदतर जीवन जीते रहे तो कुछ लोगों ने शुरू किया। धीरे-धीरे ये ग्रुप हिंसा में विश्वास करने लगा। पहले ये मालदार लोगों को निशाना बनाते और फिर लूट-छीनाझपटी से हासिल किया माल खुद में गरीब लोगों में बांट दिया करते। धीरे-धीरे इसका भी विस्तार होता चला गया और उन्होने अपनी एक समानांतर सरकार बना ली। जहां सिर्फ उनका ही राज है। बाहरी दुनिया का कोई वहां नहीं जा सकता। उनकी अपनी दुनिया है। छत्तीसगढ़ का अबुझमार भी ऐसा ही जगह है। जो अबतक लोगों के लिए अबुझ ही बना हुआ है। कोई नहीं समझ पाया। घने जंगल और पहाड़ में इनकी बस्ती होती है। जहां जाने के सारे रास्ते इनकी मर्जी पर होते है। सवाल ये है कि आखिर कबतक नक्सली जवानों को मौत के घाट उतारते रहेंगे। आखिर कबतक? क्या कोई विकल्प है। ये बताने की जरूरत नहीं है कि इन्हे हिसां में विश्वास है। ये बैठकर बात करने को शायद ही तैयार हो। इन्हे जवानों को मारकर मजा आता है। शायद उसके बाद ये जश्न भी मनाते है। आम लोगों को भी ये नहीं छोड़ते। जहां इन्हे ये शक हुआ कि ये पुलिस को हमारी सूचना देता है। उसका खेल खत्म। बच्चों के स्कूलों पर भी इन्हे तरस नहीं आती। हाल ही इन्होने बच्चों से माफी मांगी थी लेकिन अपना घटिया तर्क भी सामने रखा था। चिदंबरम राजनीति के जानकार नहीं है वो आर्थिक मामलों के जानकार है जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री। ये दोनों ही विकास को सबसे आगे रखते है सरकार आए जाए की चिंता नहीं रहती। ना ही ये किसी मुगालते में रहते है कि इंडिया शाइन हो रहा है कि नहीं। यहीं सब बातें उन नेताओं को नहीं समझ आती जो कब किसके साथ खड़े हो कहना मुश्किल है। शिबू सोरेन के बारे में बताने की जरूरत नहीं। उनपर पक्का यकीन करना चिदंबरम के लिए बड़ा मुश्किल है। बयानबाजी से नक्सलियों का सामना नहीं किया जा सकता। अपने ही लोगों जो बिगड़ चुके है जिनके मन में ये बैठ गया कि क्रांति ऐसी आती है...उन पर हमला करने से भी हल नहीं हो सकता। और वो आदिवासी जिनके घरों में आज भी दो वक्त की रोटी नहीं हो पाती वो कैसे सरकार पर यकीन करे। वो क्यों ना नक्सलियों के समर्थन में आ जाए। भले ही नक्सली उसके बदले उनके जीवन स्तर में कोई भी सुधार नहीं कर पाते हो। विकास से ही आदिवासियों का दिल जीता जा सकता है। सबके घर में दो वक्त की रोटी आ जाएगी तो फिर कोई आदिवासी नक्सलियों की मदद नहीं करेगा। वो पुलिस को सही जानकारी देगा। इसमें वक्त लगेगा और तब तक नक्सली इस तरह के कायरतापूर्ण हमले करते रहेंगे। बस इस हमलों में हम जान-माल को कम से कम नुकसान होने दे इसपर सोचना होगा। सूचना तंत्र फेल हो गया जिसकी वजह से दंतेवाड़ा में ये बड़ा हमला हुआ। कहना आसान है। ये भी कुछ लोग कह रहे है कि कोई प्लानिंग नहीं थी। ऐसा नहीं होता। हम घर से बाहर निकलते है तो ये तय कर जाते है कि क्या करना है। कहां जाना है औऱ क्यों जाना है। ये सब बेकार की बाते है जो बड़े हमलों के बाद ऐसे ही आनी-जानी शुरू हो जाती है। सच ये है कि हम बड़ी लड़ाई लड़ रहे है और कुछ नुकसान उठाना पड़ेगा. जिसको हमारे पूर्व के नेताओं ने फलने-फूलने दिया उस पर काबू पाने के वक्त तो लगेगा...लेकिन कुछ भी असंभव नहीं अगर ठान लीजिए............

Tuesday, April 6, 2010

सानिया, शोएब और व्हाट एन आइडिया.

ये सब आइडिया कमाल है। आज आपके पास आइडिया नहीं तो सब बेकार है। क्या आपके पास हटकर आइडिया है तो आप है आज के मीडिया सम्राट। चलिए आपको कुछ आइडिया देते है। अभी सबको तो बस एक ही खबर में आइडिया की दरकार है। सलाह देना मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन सलाह मैं लेता हूं फिर वहीं करता हूं जो मुझे अच्छा लगता है।खैर ये तो मेरी बात हुई। जिसमें किसी की दिलचस्पी नहीं। ज्यादा वक्त खराब किए सीधे चलते है आइडिया पर। सानिया-शोएब निकाह के आइडिया पर।आइ़डिया १......शोएब भारत में और सानिया के घर पर क्यों है? क्या सोचा आपने? आपको क्या लगता है कि वो यहां शादी की तैयारी की तैयारियों को देखने के लिए पहुंचे है।माफ कीजिएगा....आप सौ फीसदी गलत है। वो तो सानिया और उनके परिवार को भरोसे में लेने के लिए ही साथ में है। उन्हे अंदाजा था कि उन्होने जो कुछ किया है वो मामला सबके सामने आएगा। और अगर वो दूर रहे तो फिर निकाह तो होना ही असंभव है। सो शोएब सीधे भारत पहुंचे। बिना किसी को जानकारी दिए...चोरी-चोरी चुपके-चुपके। अब वो कहते है मैं भारत नहीं छोड़ रहा। अरे भइया अब भारत से अभी जा भी नहीं सकते।पासपोर्ट जो जब्त है। इस एंगल से स्टोरी मजेदार हो सकता है।आइडिया २--क्या सानिया को हमारे शत्रु देश के लड़के से शादी करनी चाहिए। अरे वो बकवाश की बात छोड़िए जो कहते है कि इन दोनों की शादी से दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो जाएंगे। क्यों दिन में ऐसे सपने उनको आते है...मुझे तो समझ नहीं आ रही है। अगर भारत-पाक में युद्ध हुआ तो क्या पाक सानिया के बहाने हमसे ब्लैकमेल नहीं कर सकती। पाक में जो आतंकी है क्या वो हमे ब्लैकमेल नहीं करेंगे। सानिया दुबई में रहे या पाकिस्तान में अगर किसी आतंकी संगठन के हत्थे चढ़ गयी तो भारत सरकार बैकफुट पर नहीं होगी। आखिरकार वो भारत की बड़ी टेनिस खिलाड़ी है। और शादी के बाद भी भारत के लिए खेलेंगी। तब भारत सरकार और हम भारतीयों की क्या स्थिति होगी। क्या सोचा है किसी ने।आइडिया ३- आयशा को इंसाफ दिलाना है की नहीं। कितनों को हमने मीडिया ट्रायल कर इंसाफ दिला दिया होगा तो आयशा को क्यों नहीं। आखिरकार शोएब ने उससे निकाह किया है। फर्जी तरीके से भी तो निकाह तो हुआ ना। भाई शोएब आप इतने भोले तो नहीं दिखते कि किसी लड़की ने आपसे ठगी कर डाली। तो मिशन आयशा जारी रहना चाहिए।आइडिया ४- आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने कितने बेरोजगारों को कमाने का जरिया दे दिया है। उसमें खबर छपी है शादी होगी या नहीं इसपर सट्टा लगाइए और मालोमाल हो जाइए। भाई मंदी में इससे बेहतरीन कमाई का जरिया कुछ हो भी सकता है क्या.....शादी पर २५ पैसे का भाव और नहीं होने पर तो बल्ले बल्ले है.....आइडिया ५----आयशा को शोएब ने चुनौती दी है मीडिया के सामने आने के लिए....भाई शोएब आप क्यों परेशान हो रहे है जब सबकुछ कोर्ट पर ही छोड़ना है....आपने सब लिखीत स्टेटमेंट मीडिया को दी है....तो फिर आपको क्या राइट बनता है आयशा आए या नहीं। आप क्यों परेशान है...वो सामने आएगी तो आपकी स्थिति स्ट्रांग थोड़े ही ना मजबूत हो जाएगी....आइडिया ६ टीआरपी की लुट है लुट सके तो लुट....मौका मत छोड़ों भाइयों. आयशा को स्टूडियो में ले आओ....नहीं तो एक ओबी उसी के घर पर तैनात कर दो...लाइव....वो क्या कर रही है...रो रही है, परेशान है...कौन उनसे मिलने आ रहा है.....आइडिया७ आयशा का मिशकैरेज हुआ था...उसकी रिपोर्ट लाओ...लाइव एंड एक्सक्लुसिव.........फोनो, लाइव,,,,और फिर हर जगह रिपोर्टर तैनात करो...सानिया के घर के बाहर जो पहले से ही...जरूरत पड़े तो पहले को रेस्ट देने के लिए दूसरा, तीसरा और चौथा भी तैनात कर ही डालो भाई.....आइडिया ८ कोई फतवा जारी हो सकता है...कोई संभावना इसकी है....तो टटोलो....फतवा जारी हो गया तो समझो हो ही गया..........आइडिया ९ शोएब के और कितने लड़कियों से संबंध थे? कोई को तो खोजो....सही ना मिले तो फर्जी ही बैठा डालो....ये लड़की दावा कर रही है कि उससे शोएब से संबंध रहे है.......लाइव एंड एक्सकलुसिव....हेडर में बस इतना ही डालो...लोकेशन की जगह पर भी एक्सक्लुसिव ही लिखो....स्क्रीन पर उपर-नीचे- आगे औऱ पीछे जहां जहां चाहो एक्सक्लुसिव लिख डालो.....आइडिया १० और वो रिपोर्ट भी दिखानी है ना शादी के दिन वो क्या पहनेगी....शोएब क्या पहनेंगे...हेयर ड्रेस कैसा होगा...कितन लोग आएंगे...हैदराबादी बिरयानी कौन बनाएगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,और भी आइडिया चाहिए........हां अभी शादी में ९ दिन बाकी है.......बीच-बीच में वो एंगल भी कि गिरफ्तारी कब होगी....कभी भी गिरफ्तार हो सकते है शोएब.....सेहरा या सलाखें तो चला ही डाला है भाई लोगों ने। शादी जेल से होगी या बाहर से होगी। ये मत कहना कि व्हाट एन आइडिया सर जी। शर्म आती है इन आइडियाज पर। शर्म आती है ऐसे लिखने-सोचने और पढ़ने वालों पर । लेकिन हमे ये देखने में शर्म नहीं आती। दिखाते रहो भाइयों हम देखते रहेंगे। तुम्हारी भी जय हो हमारी भी जय हो।

अंडे का फंडा

9
8

7


6



4




1o





5






3







2








1
ये चीन की तस्वीरें है। वहां इसी तरह अंडे बनाए जाते है। इन तस्वीरों में आप असली और नकली का फर्क कर सकते है। चीन भारत से काफी आगे है। विकास दर की बात हो या फिर जीडीपी। शायद इसी तरह नकल करते करते या फिर नकली बनाते-बनाते ऐसी बेहतर स्थिति में आए है। आजकल हमारे विदेश मंत्री चीन के दौरे पर है। लेकिन इतना तो तय है कि चीन से हमेशा सावधान रहना चाहिए।








Thursday, April 1, 2010

सबको शिक्षा अब कोई अर्जुन नहीं बचेगा

कांग्रेस का हाथ आम लोगों के साथ। एक बार फिर ये साबित हुआ। बीजेपी और विरोधी दल भले ही इस पर ऐतराज जताया। लेकिन आज ये अप्रैल फूल जैसा ही लगेगा। छह साल से १४ साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अब उनका मौलिक अधिकार बन गया है। नए कानून के तहत राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के लिए अब यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी होगा कि हर बच्चा नजदीकी स्कूल में शिक्षा हासिल करे। यह कानून सीधे-सीधे करीब उन एक करोड़ बच्चों के लिए फायदेमंद होगा जो इस समय स्कूल नहीं जा रहे हैं। सूचना के अधिकार कानून और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के बाद शिक्षा का अधिकार यूपीए सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। आंकड़ों के मुताबिक इस समय छह से 14 साल आयु वर्ग के संबंधित वर्गों में करीब 22 करोड़ बच्चें हैं। हालांकि इनमें से 4-6 फीसदी स्कूलों से बाहर हैं। यही नहीं प्राइवेट स्कूलों में भी इन बच्चों के लिए सीटें रिजर्व करनी पड़ेगी। आज से ही एक और खुशखबरी है। अब बैंकों से आपके पैसे का पूरा पूरा ब्याज देने को कहा गया। मंदी और महंगाई के इस दौर में ये बड़ी खबर है। अब कुछ ज्यादा पैसे आपके पास आ सकेंगे। इधर बुरी खबर खबर भी है कि पेट्रोल और डीजल आज से कुछ और महंगा हो रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। बच्चों की शिक्षा पर। यानि अब सब पढ़ेगा, सब स्कूल जाएगा। बधाई हो कपिल सिब्बल को। अर्जुन सिंह से टेकओवर लेने के बाद उन्होने कई बेहतरीन काम किए है और कई अभी उनकी सूची में है। चलिए कुछ बेहतर हो रहा है। अमर-अमिताभ-मोदी,कांग्रेस और एनसीपी की ख़बरों के बीच ये कुछ ऐसी ख़बरें है जो कुछ घंटे तो लीड में बनी रहेंगी। आगे-आगे देखिए होता है क्या। लेकिन साफ है अप्रैल फूल के दिन सरकार ने इसको लाकर लोगों को फूल नहीं बनाया है और उन बच्चों को वो दिया है जिसके वो हकदार है। याद आता है मुझे अर्जुन नाम का लड़का। जो पढ़ाई में किसी उच्च वर्ग (जिनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों औऱ महंगे खर्च को वहन कर सकते है) के बच्चे को टक्कर देता था। कभी कभार वो मेरे पास आ जाता तो गणित के कोई सवाल पूछ लिया करता था। छठी क्लास में आठवीं का मैथ चुटकी में हल कर लेता और आठवीं में दसवीं का। लेकिन परिवार की माली हालत खराब होने के चलते शायद वो दसवीं किसी तरह का पास कर पाया होगा. पता नहीं अब कहां और कैसे होगा? काश उस अर्जुन को मदद मिल गई होती तो हमे इस कानून पर जरा भी ऐतराज नहीं होता। आखिर ६३ साल लग गए। ६३ साल में कई बच्चों को वो नहीं मिला जो उसे मिलना चाहिए। यकीन करें कि ये मौलिक कानून सबको बराबरी का हक दिलाएगा और फिर कोई अर्जुन पैसों की कमी के चलते अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने का फैसला नहीं कर पाएगा।