Saturday, October 9, 2010

सीपी बदनाम हुए......

बिहार बीजेपी चीफ सीपी ठाकुर बदनाम हो गए है। मुन्नी बदनाम का गाना इन दिनों सीपी ठाकुर पर फिट बैठ रहा है। बेटे विवेक को बांकीपुर से टिकट नहीं मिली तो सीपी को गुस्सा आना लाजमी था। वो चीफ ही क्या जो अपने बेटे को एक अदद टिकट तक ना दिला सके। फिर पार्टी का चीफ रहने का क्या मतलब। सो ऐन चुनाव से पहले ठाकुर साहब नाराज हो गए। पटना से गडकरी को इस्तीफा भेज दिया। इसके साथ ही बिहार बीजेपी में चुनाव से पहले भूकंप का झटका महसूस किया जाने लगा। एक चैनल ने ऐसा ही टेक्सट लगाया था। अब क्या होगा बीजेपी का। ठाकुर वोटर खिसक जाएंगे। वैसे समझौते का फॉर्मूला भी तैयार है। पार्टी सीपी के बेटे को विधानपार्षद बनवा देगी और सीपी के एक पंसदीदा व्यक्ति को टिकट भी दे दिया जाएगा। ये बीजेपी का चाल,चरित्र और चेहरा है। शायद इस पर सीपी मान जाए। और अगर नहीं माने तो ठाकुर वोटों का सीधे-सीधे नुकसान है। खैर चलिए कुछ अलग बात करते है।नीतीश-लालू,सुशील मोदी जेपी आंदोलन से उभरे। इसके बाद ये एक साथ राजनीति में आए और चुनाव लड़ा। जीते आगे बढते गए। आज नीतीश-मोदी एक तरफ है तो लालू अलग। जिस वक्त नीतीश-लालू और मोदी राजनीति की पिच पर बल्लेबाजी कर रहे थे ठाकुर साहब इंग्लैंड में डॉक्टरी की ड्रिगी लेकर लौट रहे थे। कालाजार के खिलाफ डॉक्टर साहब जंग लड़ रहे थे। देश भर में उनकी चर्चा थी। राजनीति से कोसों दूर थे। लेकिन राजनीति में आ गए। राजनीति उनका पेशा नहीं था, कहीं ट्रेनिंग भी नहीं ली थी जैसे लालू-नीतीश और मोदी ने ली। राजनीति की A,B,C शायद वे अभी भी सीख ही रहे है। शायद इसीलिए वो इस तरह का कोई समझौता नहीं कर पाते। दरअसल बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले नीतीश पर कंट्रोल के लिए सीपी को पार्टी चीफ बनाया। सीपी -नीतीश को पसंद नहीं करते..ये सबको पता है। वहीं मोदी सीपी को पसंद नहीं करते...ये भी सबको पता है। इसके बाद भी ये तीनों एक साथ है। यहीं त्रिकोण सीपी हैंडल नहीं कर पाए और जिसके चलते ये इस्तीफा आया। अब सबकुछ गडकरी पर निर्भर है। वैसे भी वो समझौते को बेहतर तरीके से हैंडल जो कर लेते है। जैसा कि उन्होने झारखंड में किया। शिबू सोरेन के साथ मिलकर सरकार फिर से बना ली है। बीजेपी के कई नेताओं के नहीं चाहने के बावजूद। वो अपने बायोडाटा में बीजेपी रूलिंग स्टेट की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखते है। सो सीपी को तो वो मना ही लेंगे।लेकिन कर्नाटक में कमल के खिलने पर सवाल उठ रहे है। झारखंड में सरकार तो बन गई है लेकिन अब शायद कर्नाटक में सरकार ना रहे। तो गडकरी का स्कोर फिर से बराबर हो जाएगा। अब कर्नाटक में वे कौन सा फॉर्मूला लागू करते है...इस पर जरूर नजर रखिएगा।

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