Saturday, October 2, 2010

फैसले से पहले और बाद।

साठ साल बाद आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना ही दिया। पूरा देश फैसला सुनने को तैयार था। इस विश्वास के साथ कि फैसला जो भी हो उन्हे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ा भी नहीं। ९२ बीते १८ साल हो गए है। काफी कुछ बदल गया है...इसका भरोसा तो पहले से ही हो चला था। फैसला आने के बाद जिस तरह लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की वो बेमिसाल है। एंड वन मस्ट बी प्राउड टू बी एन इंडियन। इट हैपेन्स वनली इन इंडिया। जहां सत्य,अहिंसा का पाठ दुनिया ने सीखा..उस देश की, देश के लोगों में कुछ तो बात होगी। ३० सितबंर को देश ने दिखा दिया। देश ही नहीं दुनिया भर की नज़र इस फैसले पर थी। किसी के मन में आशंका तो कोई विश्वास से भरा हुआ। देश काफी बदल चुका है...काफी आगे बढ़ चुका है...अब इसे कोई रोक नहीं सकता। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अक्सर भारत से डरे रहते है। खासकर भारत के टैलेंट से। अमेरिकी छात्रों को वो भारतीय छात्रों की तरह मेहनत करने की सलाह अक्सर देते रहते है। मंदिर-मस्जिद से कुछ को छोड़कर किसी को फर्क नहीं पड़ता। कुछ नेताओं को और कुछ वैसे लोगों को इस तरह के मौके की ताक में रहते है। आम लोगों को फर्क पड़ता तो लोग फैसले के बाद खुश होते, कहीं नाराजगी दिखती। नहीं ऐसा कहीं नहीं दिखा। हां सही है फैसला अंतिम नहीं है। फैसले के बाद कोई ना कोई पार्टी सुप्रीम कोर्ट में अपील करती ही करती। सो अब दो पार्टी ऐसा करती दिख रही है। गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा कि फैसले के बाद जिस तरह से देश ने व्यवहार किया वो गरिमापूर्ण और सम्मानजनक है। सब यही कह रहे है। सबको इसकी उम्मीद तो थी लेकिन कुछ शंका थी। अगर ऐसा हुआ तो वैसा होगा और अगर वैसा हुआ तो ऐसा होगा.....बट लोगों ने साबित कर दिया इंडिया फर्स्ट।पूरी दुनिया लोकतंत्र की परिभाषा हमसे सीखती है। और दुनिया को शायद लोकतंत्र का एक और पाठ सीखाने का मौका इससे बेहतर हमे नहीं मिलता। सो हमने पूरी दुनिया को सबक सीखा दिया है। ये इंडिया है। फैसले को आप स्वतंत्र है चाहे जिस रुप में देखे। आस्था की कसौटी पर नापे या कानून के तराजू पर तौले। ये सब हर उस व्यक्ति की सोच पर निर्भर है। कुछ लोगों ने कहा कि इसमें ना किसी की हार है और ना ही किसी की जीत। इससे अधिकतर लोग सहमत होंगे। तीन जजों की बेंच....जाहिर है कई मामलों में सबकी राय अलग-अलग होंगे। वैसा ही हुआ। कुछ लोग कहते है कि ये पंचायत का फैसला ज्यादा है, कोर्ट का फैसला कम । आस्था को ज्यादा महत्व दिया गया है। खैर ये लोगों की अपनी राय है। आप उस पर कुछ कह नहीं सकते और ना ही रोक सकते।अब वो वक्त गया है जब गांधी-नेहरु-शास्त्री लोगों के आदर्श हुआ करते थे। आज वैसे नेता भी नहीं है और ना वैसे लोग। नेता काफी बदल गए या फिर वो अपने सियासी लाभ के चक्कर में देश सेकेंड जैसी मानसिकता रखते है। लेकिन यहां के लोग तो इंडिया फर्स्ट को ही सामने रखकर सोचते और देखते है। अब हमारे नेताओं को आम लोगों से सीखने की जरुरत है। सियासी लाभ के चक्कर में नेताजी बयानबाजी ना करे तो ही बेहतर। तीन महीने तक यथास्थिति बनी रहेगी और फिर सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है। सो सुलह की कोशिश भी इस दौरान चल सकती है। सत्य,अहिंसा के पुजारी गांधी की जयंती के ठीक दो दिन पहले ये अतिसंवेदनशील फैसला आया। देश ने गांधी टेस्ट पूरी तरह पास कर लिया है। अगर गांधी कहीं दूर से देश को देख रहे होंगे तो वो काफी खुश हो रहे होंगे। जो काम वो १९४७ में पूरी कोशिश के बाद भी नहीं कर सके थे...उन्हे इसका दुख कुछ कम जरुर हुआ होगा। १९९२ का दुख भी काफी हद तक उनके मन से जा रहा होगा। गुजरात भी कुछ पल के लिए वो भूल गए होंगे और १९८४ भी।

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