Tuesday, May 19, 2009

कैसी होगी मनमोहन की कैबिनेट....

कैसी होगी मनमोहन की कैबिनेट....
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कांग्रेस को बुढ़िया बता रहे थे तब शायद ही उन्हे ये अंदाजा रहा होगा कि इसी बुढ़िया पार्टी की अगली कैबिनेट में सबसे ज्यादा युवाओं को तरजीह दी जाएगी। कांग्रेस की शानदार जीत का सेहरा अधिकतर लोग युवा चेहरे राहुल गांधी को दे रहे है। उत्तरप्रदेश और बिहार में अकेले चुनाव लड़ने के राहुल के फ़ैसले की सभी प्रशंसा कर रहे है। भारतीय मीडिया की बात छोड़िए ब्रिटिश मीडिया भी राहुल के इस कारनामे के बाद उन्हे भविष्य का प्रधानमंत्री बता रहा है। और ये सब किसी झटके में नहीं हुआ है। इसके लिए राहुल बाबा ने दलितों के यहां रात गुजारे...कलावती की समस्या को संसद में उठाय़ा..युवाओं को संगठन में लाने की कोशिश की और ज्यादा से ज्यादा युवाओं को टिकट दिलवाया। उत्तरप्रदेश के उम्मीदवारों के चयन के लिए खुद राहुल ने इंटरव्यू भी लिया। अब जब पार्टी की शानदार जीत हुई है और अधिकतर युवा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे है तो मनमोहन की मुश्किल बढ़ गयी है। सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद,मुरली देवड़ा,संदीप दीक्षित, नवीन जिंदल, शशि थरूर, मीनाक्षी नटराजन, मनीष तिवारी समेत डेढ़ दर्जन से ज्यादा युवा चेहरे कांग्रेस खेमे में है। वैसे 15 वीं लोकसभा में 79 ऐसे सांसद है जिनकी उम्र चालीस से कम है। जिन युवा सासंदों के नाम मनमोहन की संभावित टीम में सबसे उपर चल रहे है उनमें मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद और सचिन पायलट शामिल है। राहुल के बारे में पहले ही मनमोहन कह चुके है कि वे उन्हे इस बार मनाने की कोशिश करेंगे। लालू होंगे या नहीं........ज्यादा संभावना नहीं की है...वैसे रघुवंश बाबू और नरेगा साथ चलना चाहिए लेकिन आरजेडी की चार सीटें सबसे ज्यादा भारी इन्ही दोनों पर पड़ रही है। रामविलास तो मंत्री बनना भूल ही जाएं तो बेहतर...प्रणव दा,चिदंबरम,एंटनी,पवार फिक्स है...लेकिन आहलुवालिया मनमोहन टीम में जगह बना सकते है... लेकिन ये सब मनमोहन का विशेषाधिकार है उन्हे ही फ़ाइनल करने दीजिए....22 के बाद ही पता चलेगा कौन अंदर और कौन बाहर......लेकिन ये तय है कि सबसे युवा टीम होगी मनमोहन की जो वर्तमान की चुनौतियों से लड़ने के लिए पूरी तरह फ़िट दिखती है................................

NOW TIME 4 MAYA-MULAYAM

AFTER LALU AND PASWAN WHO ARE THE BIG LOSSER IN 15th LOKSABHA NOW IT TURNS TO MAYAWATI AND MULAYAM SINGH,.
IT IS SURPRISING THOUGH LALU AND PASWAN LOST BECAUSE THEY IGNORED CONGRESS ANG GAVE AWAY 3 SEATS ONLY. WHILE MAYA AND MULAYAM ARE FIGHTING EACH OTHER TO SUPPORT CONGRESS.
THEY ARE IN HURRY WHO CAN REACH PRESIDENT FIRST TO SHOW SUPPORT LETTER TO UPA. LALU AND PASWAN LOST DUE TO NOT SUPPORTING AND IF I AM NOT WRONG MAYA AND MULAYAM WILL FACE THE MUSIC OF SUPPORTING CONGRESS IN UP ASSEMBLY ELECTION NEXT TIME. AND WHAT AJIT SING DO STILL NOT CLEAR. CONGRESS IS TRYING ITS 5 MEMBER TO BE KNOWN AS CONGRESS MEN NOT AS RLD. WELL THEN TO WHOM CONGRESS WILL FIGHT IN UP ASSEMBLY. ONLY AGAINST BJP. AJIT SINGH JOING CONGRESS MEANS CONGRESS WILL BE STRONGER IN WESTERN UP. BUT WHAT ABOUT MAYA AND MULAYAM. TO WHOM THEY OPPOSE. LOOKS LIKE TWO KINGS ARE TAKING SAME PLACE. MAYA AND MULAYAM WILL LOSS THEIR VOTES TO CONGRESS. MUSLIM VOTERS HAVE ALREADY SHIFTED TOWARDS CONGRESS AND SO ABOUT BRAHMIN AND DALIT VOTERS OF MAYA SOCIAL ENGINEERING IF AJIT SINGH CAME TO CONGRESS ITS CONGRESS GOVERNMENT IN UP NEXT TIME, BE SURE IN ADVANCE. WELL THIS IS MASTERSTROKE TO MAKE CONGRESS STRONG IN THE BIGGEST STATE. WHAT VOTER WILL DO WHEN SP AND BSP ARE SUPPORTING CONGRESS WHY NOT GIVE VOTE TO CONGRESS.WHY GIVE VOTE TO SP AND BSP. WELL DONE CONGRESS THINK TANK. IN FACT SEATS OF UPA HAS COME SUCH THAT BOTH SP AND BSP HAVE NO CHOICE BUT TO GIVE SUPPORT TO CONGRESS. OH CONGRESS COULD NOT HAVE DEMANDED FOR MORE. IT HARDLY HAPPENS IN POLITICS. EVEN I DOUBT A MAJORITY GOVERNMENT HAS SUCH COMFORTS AS MR MANHOMAN AND SONIA COMPANY HAS. YOU CAN SAY SAME ABOUT BIHAR CASE WHERE LALU HAS NO CHOICE BUT TO SUPPORT CONGRESS WHOSE MAIN OPPOSITION JDU MAY DO THE SAME IF REQUIRED. POLITICS IS DIRTY GAME BUT THIS IS SUCH A GAME YOU NEVER KNOW WHO WILL DO WHAT OR WHO WILL BE SO MAJBOOR TO DO WHAT MR MULAYAM AND MADAM MAYAWATI ARE DOING.

Monday, May 18, 2009

WHAT IS UPPER CIRCUIT…………..

I FOLLOW CRICKET AND SO REMEMBER TENDULKER UPPER CUT TO AKHTAR WENT FOR SIX. AND SO I COME TO KNOW ABOUT SHORT-CIRCUIT. BUT DONOT KNOW WHAT IS UPPER CIRCUIT…..I DO BELIEVE MANY HAVE NOT HEARED BEFORE TODAY.
IT IS HISTORICAL DAY SOME SAYS AND RIGHTLY SO….SOME SAYS WE HAVE WASHED OUT BLACK MONDAY’S THOUGHT. WELL…ITS MANMOHAN SENSEX….OH. AFTER TRENDS AND RESULTS CONGRESSMEN ARE HAPPY…MANY PEOPLE WERE ALSO HAPPY….MANY PARTIES ARE UNHAPPY THOUGH…AND NOW THE FIRST WORKING DAY AFTER THE RESULT. EVERYONE IS EXPECTIONG MARKET WILL GO HIGH BUT SUCH….HARDLY FINANCE EXPERT HAVE THOUGHT SO…BUT THAT IS REAL. SENSEX SUPPORTING THIS. EVERYONE IS HAPPY….NO ROLE OF LEFT AND AND A GOVT WHICH CAN RUN FOR 5 YRS EASILY ARE THE KEY OF THIS UPBEAT MOOD.

VOTER ARE REAL WINNER…

WHO IS THE WINNER IN 15th LOKSABHA. ITS VOTER. DO DEVLOPMENT AND GET OUR VOTES. DONOT TALK ABOUT CAST AND RELIGION. THAT WAS OLD FORMAULAE TO MAKE VOTER FOOLISH. NOW ITS YOUR TURN DEAR LEADERS. UP AND BIHAR. LALU LOST IN MADHEPURE IN 1999 AGAINST SARAD YADAV IN MY EQUATION. AND IT REPEATED THIS TIME AS
WELL. ALTHOUGH LALU WAS EXPECTION DEFEAT IN SARAN BUT IT HAPPENED IN LALU LAND. PATLIPUTRA YADAVS AND MUSLIM DID NOT VOTE FOR HIM. ALTHOUG LALU DID WELL FOR RAIL. HE LOST. PASWAN LOST FOR MAINLY CONCENTRATING TOO HARD FOR MINISTER POST IN EVERY GOVT. NOW PEOPLE SAYS NO MAN YOU CANNOT BE MINISTER. IN UP…MAYA VS MULAYAM…ITS RAHUL WON. MAYA WAS LOOKING FOR DELHI AND DREAM TO BE FIRST DALIT PM AND SECOND WOMEN PM. BUT DELHI DOES NOT LOOK SET FOR WOMAN PRIMEMINISTER. ONLY MRS INDIRA COULD GO NEAR THAT. AND YOU KNOW ABOUT SONIA WHEN SHE CAN BE. SHE DID NOT . WHEN YOU CANNOT BE IN NUMBER GAME WHY YOU ARE DREAMING.I THINK IF BJP IS GOING WITH SUSHMA IT WOULD BE ANOTHER MISTAKE. I AM NOT ASTROLOGIST BUT IT SEEMS TO ME DELHI IS NOT SAFE FOR WOMEN. NO I AM NOT TELLING ANYTHING WRONG FOR SHIELA DIXIT WHO WINS 7-0. BUT FOR THOSE WHO WANT TO BE PM. I AM NOT AGAINST WOMENT, MAKE IT SURE. BUT AFTER THE RESULT OF 15 TH LOKSABH, SUDDENLY IT COMES IN MY MIND. MODITVA AND VARUNTVA ARE NOT VOTE TAKING THINGS.SO TRY OTHER THING…SHOULD BE BJP TARGET. CONGRESS THE PARTY GAVE US INDEPENDENCE AND AFTER THIS WHATEVER WE HAVE OR WE ARE IN IT IS DUE TO THEM. NO MATTER THEY ARE GUDIYA OR BUDHIYA.MODI CAN BETTER REPLY THIS.. BUT ONE THING IS SURE THIS POLITICAL LEAGUE DOES NOT TOUCH ITS PEAK LIKE SOME OF IPL 2 MATCHES. IT WAS ONE SIDED VICTORY FOR CONGRESS AND ALLIANCE. WELL DONE MANMOHAM AND SONIA AND SO RAHUL BABA.

समर्थन नाही चाहिए....हमका माफ़ी दे दो

लालू -मुलायम -पासवान समर्थन की पेशकश कर रहे हैं .लेकिन कांग्रेस है की मानती ही नहीं....२६२ मनमोहन ने सब का मन मोह लिया...सोनिया की पॉलिटिक्स की समझ का क्या कहें...युवराज भी कमाल कर गए....मोदी साहब अब बताइए कांग्रेस गुडिया है या बुढिया..या फिर आपे लिए जहर की पुरिया...लेफ्ट-राईट का क्या होगा ...करात-करार और तकरार बहुत महंगा पड़ रहा है....बंगाल भी गया और केरल भी...अब आपका क्या किया जाए करात साहब..गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी का क्या हल है...माया को साथ लिए थे ..टीआरएस भी साथ में था ..ओ पहले ही साथ छोड़ कर चल दिए.... सोमनाथ दा को बाहर कर दिए थे...अब ख़ुद के बारे में क्या ख्याल है ..सोमनाथ दा तो देश की खातिर तो बेहतर कर आपका साथ छोड़ चले....आपने तो पार्टी को ही खत्म कर दिया ...ना रहेगा लेफ्ट ना ही होगा कोई लफडा ....आडवाणी जी के तो इंतज़ार की इंतहा हो गई.... जब दिल ही टूट गया जी कर क्या करेंगे ....अजित सिंह जी की डील फिर शुरू हो गई...अभी ओ बीजेपी के साथ थे...मंम्होँ सरकार में लास्ट टाइम ओ मिस कर गए थे ..इस बार ३ से ओ ५ हुए है...सो वेस्ट यू पी के रास्ते फिर ओ दिल्ली के चक्कर में है..अजित का रिकॉर्ड शानदार है ....पासवान चूक गए...ख़ुद हारे....४ से ० पर आ गए ....बीएसपी का भी बुरा हाल है ...जाए तो जाए कहाँ ....लेफ्ट के साथ या कांग्रेस के साथ ....अमर आजम की जया कहानी भले ही अमर के पक्ष में रही लेकिन आगे .....तमिलनाडु में जया का क्या होगा...अब तो ख़बर है की प्रभाकरन की भी मौत हो चुकी है ....ममता कमाल कर गई ..हलाकि माँ की ममता क्या होती है ये तो देश को बताया माया और मेनका ने ....लेकिन जनता ने किसी से भी ममता नहीं दिखाई ....ये क्या हो गया....कैसे हो गया ....क्यूं हो गया .....मंथन करिए ताकि कुछ समझ में आ जाए.....

Sunday, May 17, 2009

महाराज की राह पर युवराज

कांग्रेस के युवराज ने कमाल कर दिया है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में इस बार कांग्रेस की लहर ने मायावती और मुलायम सरीखे नेताओं को भी पानी पिला दिया। राहुल फैक्टर का ही कमाल है कि न सिर्फ उत्तरप्रदेश में बल्कि देश भर में कांग्रेस की जय हो रही है।
35 दिन, 87000 किलोमीटर का सफर, 122 रैलियां....नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस गुड़िया है या बुढ़िया है, इस चक्कर में कांग्रेस के युवराज कभी नहीं पड़े। विकास की बात, युवाओं को जोड़ने की कोशिश, बिहार और उत्तरप्रदेश में अकेले लड़ने का फ़ैसला। ये सब मिशन 2014 की तैयारी मानी जा रही थी। खुद राहुल बाबा को भी ये उम्मीद नहीं रही होगी कि उनकी इस मेहनत का फल इतनी जल्दी मिल जाएगा। राजनीतिक पंडित भी अवाक है। कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में 20 से अधिक सीटें। हाल तक कांग्रेस के लिए ये सपना सरीखा था। खासकर यूपी में जहां चुनाव जातीय समीकरण और क्षेत्रीयता के आधार पर लड़े जाते है। राहुल बाबा ने वहां कमाल कर दिया है। मायावती और मुलायम देखते ही रह गए। कांग्रेस के युवराज ने सालों बाद कांग्रेसियों के चेहरे पर खुशी ला दी है। रूझान और नतीजे आने के बाद कांग्रेसी राहुल बाबा की जय कहना नहीं भूल रहे है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन सबके बावजूद साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री मनोमहन सिंह है और वो ही अगले प्रधानमंत्री भी बनेंगे। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी राहुल बाबा की तारीफ कर रहे है। मनमोहन कहते है कि वे हमेशा ही अपने कैबिनेट में राहुल को देखना चाहते है। लेकिन राहुल है कि मानते नहीं। राहुल को बच्चा कहने वाला विपक्ष भी अब उन्हे बच्चा कहने की भूल शायद ही करेगा। और राहुल के कलावती का मजाक उड़ाना भी आसान नहीं होगा। अब इस प्रदर्शन के बाद राहुल का मनमोहन कैबिनेट में आना तय माना जा रहा है। फिलहाल इस शानदार प्रदर्शन के बाद युवराज तेजी से महाराज बनने की राह पर चल पडे़ है।

मनमोहन ने मोहा मन

कौन बनेगा प्रधानंत्री...मनमोहन या आडवाणी। वोटों की गिनती के साथ ही कहीं खुशी और...ज्यादा जगह गम का आलम है। क्योंकि इस बार तो पीएम इन वेटिंग सहित दर्जनों प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। पीएम इन वेटिंग...लालकृष्ण आडवाणी तो यहीं गाना गुनगुना रहे होंगे.....(इंतहा हो गई इंतज़ार की).....लेकिन मनमोहन तो जोर-जोर से ये गाना गा रहे होंगे.....(सिंह इज किंग)....औरों का क्या हाल होगा...आप ही सोचिए। पीएम पद के कौन दावेदार नहीं थे........ये बताना थोड़ा मुश्किल है...क्योंकि अधिकतर ही पीएम पद के दावेदार थे...आडवाणी तो इंतज़ार करते-करते थक गए....लेकिन शायद अब वो समझ रहे होंगे आडवाणी अटल नहीं हो सकते.....शरद पवार भी रेस में थे...लेकिन पवार का पावर गेम काम नहीं आया...कांग्रेस की देश भर में जीत ने पवार को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया। लालू भी पीएम की रेस में चल रहे थे...शायद ही इसीलिए यूपीए को छोड़ चौथा मोर्चा खोल दिया था...खुद तो डूबे ही,,,पासवान भी कहीं के ना रहे...मुलायम बमुश्किल कुछ इज्जत बचा सके। मायावती का पीएम बनने का सपना....अधूरा रह गया....अपने ही राज्य में वो तीस तक नहीं पहुंच सकी. पचास होती तो बात कुछ और होती...परमाणु क़रार पर मनमोहन से हुई तकरार के बाद प्रकाश करात भी खुद को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे थे...पीएम बनना तो दूर ममता और कांग्रेस ने लेफ्ट की गढ़ में ही मात देकर उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। चुनाव सर्वेक्षण के बाद अचानक ही नीतीश सबके चहेते हो गए थे। पीएम पद के दावेदारों में नीतीश अचानक ही आगे चल रहे थे। कांग्रेस से भी कई नाम हवाओं में तैर रहे थे..लेकिन ऑफ द रिकार्ड। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद मनमोहन को छोड़ सारे के सपने टूट गए...इतने पीएम पद के दावेदार आज तक कभी नहीं हुए. लेकिन जीत तो किसी एक की होनी थी....लेकिन ये भी सच है कि अगर पीएम पद के इतने दावेदार नहीं होते तो इंडियन पॉलिटिकल लीग का मजा ही कहां रहता....यूपीए को बधाई और बाकियों को भी शानदार खेल दिखाने के लिए।

Sunday, May 10, 2009

मदर डे, मोदी और नीतीश

घर से फोन आया। मैं ऑफिस में ही था। मां ने पूछा” खाना खा ले ल। मैंने धीरे से कहा, हां। मां फिर बोली...खाना न खयल ह कि आवाज बहुत धीरे आ रहल ह। मैने कहा, मैं ऑफिस में हूं। और फिर कुछ दूसरी बातें भी हुई। आज मदर्स डे के मौके पर फिर उनकी याद आती है। इस तरह का दिन किसने बनाया..समझ में नहीं आता। आज फादर्स डे...कल मदर्स डे..अगला दिन कुछ और फिर कुछ और। भला मां को याद करने के लिए किसी डे की भी जरूरत है। सब उनके आभारी है। वो कभी गलत नहीं कर सकती। हमेशा बेहतर ही सोचती है। मेरी अधिकतर कोशिश होती है कि मैं सबको एक समान तरह से देखूं। मतलब सबके साथ एक जैसा व्यवहार। चाहे वो मेरे पिता हो,मेरी मां हो, या फिर कोई अजनबी जो सड़क से गुजरते वक्त हमें मिल जाता है। पता नहीं इस चक्कर में मैं अपनों को कम प्यार दे पाता हूं या ज्यादा। खैर ये अलग बात है। ऐसे कई बेटे है जिनके मां-बाप सोचते है ये नहीं होता तो बेहतर। वहीं कई ऐसे बेटे भी जिन्होने अपना सबकुछ मां-बाप के लिए दांव पर लगा दिया। भविष्य की कोई चिंता नहीं की। पता नहीं हम कैसा बने। लेकिन मां अब भी फोन करती है और पूछ लेती है, खाना खा ले ल। आज नानी की भी याद आ रही है। मेरी सबसे करीबी मां। जब से समझ आई उन्हे ही जानता हूं। इया कहता था मैं। जब मां नानी के घर आती तो सब कहते है ये मां है उन्हे मां बोलो। मैं बच्चा समझ नहीं पाता। कहता तो मेरी मां खुश हो जाती। बहुत याद आती है आपकी।

मोदी-नीतीश का दोस्ताना
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आज मदर्स डे का गाना मोदी ने ठीक से नहीं सुनने दिया। क्या जरूरत थी नीतीश के साथ हाथ मिलाते तस्वीर खिंचाने की। कांग्रेस का दिल टूटा होगा की नहीं। और लेफ्ट का क्या हुआ होगा। पहले ही टीआरएस को ले भागे थे एनडीए वाले। अब तो नीतीश भी मोदी के साथ हो गए...कनफर्म हो गई है अब ख़बर। बेचारे मोइली तो मुफ्त में ही मारे गए। रविश जी अपने ब्लॉग में नीतीश पर लिखते है। कहते है वाह..नीतीश...मुस्लिमों को अच्छा वेवकूफ बनाया। अगर मोदी से हाथ मिलाना ही था तो बिहार में चुनाव के वक्त क्यों नहीं मिलाया। नीतीश कहीं नहीं जा रहे थे..सही है. लेकिन ख़बरों में थे। डिमांड बढ़ी हुई थी। उन्होने अपनी बड़ी चालाक छवि बनायी है। इसमें किसी को संदेह नहीं। खैर यहीं राजनीति है। पॉलिटिक्स में लबरई का बाज़ार। फिर भी हम कहने को मजबूर है लोकतंत्र जिंदाबाद। वाह रे राजनीति। कैसे-कैसे दिन दिखाओगे। राजनीति शास्त्र का मैने पूरा अध्य्यन तो नहीं किया लेकिन जो पढ़ा उसमें ये सब नहीं बताया गया था। हां पावर पॉलिटिक्स की बात सूनी थी, सत्ता के लिए कुछ भी सही है...जी हां, कुछ भी।

लोकतंत्र ज़िंदाबाद!

लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व में चार शाही स्नान हो चुके है। श्रद्धालुओं यानि वोटरों ने गर्मी,मुद्दों की कमी जैसी कई बाधाएं झेलते हुए डूबकी लगा ली है। साढ़े चार सौ से ज्यादा सीटों पर वोट डाले जा चुके है और अंतिम फेज की वोटिंग से पहले ही जोड़-तोड़ शुरू भी हो गई है।13 मई को पांचवे चरण के लिए वोटिंग के साथ ही 543 सीटों पर वोटिंग संपन्न हो जाएगी। चार चरणों में अब तक 457 सीटों पर वोट डाले जा चुके है। 16 मई को वोटों की गिनती होनी है लेकिन चार चरण संपन्न होने के बाद जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो चुकी है। कौन किस पाले में जाएगा कुछ भी कहना मुश्किल है। वैसे सभी पार्टियां ये जरूर मानकर चल रही है कि किसी भी गठबंधन को बहुमत मिलने नहीं जा रहा है। जहां तक अब तक हुए चार चरण के मतदान का सवाल है तो पहले चरण में सबसे ज्यादा करीब साठ फीसदी वोटरों ने अपने हक़ का इस्तेमाल किया। सबसे कम मतदान तीसरे चरण में हुआ। जब सिर्फ पचास फीसदी वोटर ही मतदान केन्द्र तक पहुंचे। दूसरे चरण में 55 फीसदी वोटरों ने वोट डाले वहीं चौथे चरण में कुछ ज्यादा वोटर बूथों तक पहुंचे और करीब 57 फीसदी मतदान रिकार्ड हुआ। पहले चरण में 124 सीटों के लिए वोट डाले गए वहीं दूसरे चरण में 141, तीसरे में 107 और चौथे चरण में 85 सीटों पर वोट डाले गए। पहले चरण में सबसे ज्यादा मतदान लक्ष्यद्वीप में हुआ। यहां 86 फीसदी वोटरों ने मत डाले जबकि सबसे कम मतदान बिहार में हुआ। यहां 46 फीसदी वोटरों ने मत डाले। दूसरे चरण में अमस में सबसे ज्यादा 62 फीसदी मतदान हुए वहीं जम्मू-कश्मीर में सबसे कम 43 फीसदी वोट डाले गए। तीसरे फेज में सबसे ज्यादा मतदान सिक्किम में दर्ज हुआ जबकि सबसे कम मतदान जम्मू-कश्मीर में हुआ। सिक्किम में जहां 65 प्रतिशत मतदान हुआ वहीं जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 30 फीसदी वोटर ही मतदान केन्द्रों तक पहुंचे। जबकि चौथे चरण में सबसे ज्यादा मतदान लेफ्ट के गढ़ पश्चिम बंगाल में हुआ। यहां करीब 75 फीसदी वोटरों ने अपने हक़ का इस्तेमाल किया जबकि सबसे कम मतदान एक बार फिर जम्मू कश्मीर में हुआ यहां सिर्फ 24 फीसदी वोट डाले गए। चौथे चरण में दिल्ली में भी मतदान संपन्न हुए यहां करीब 50 फीसदी लोगों ने वोट डाले और मुंबई को इस मामले में पीछे छोड़ा। छिटपुट हिंसा के बीच अब तक कुल मिलाकर मतदान शांतिपूर्ण ही रहा। चौथे फेज की वोटिंग के साथ ही सियासी घमासान तेज़ हो चला है और 16 मई को मतों की गिनती के बाद इसके पूरे उफान पर होने की संभावना है। नीतीश तो एनडीए के साथ है लेकिन उनको लेकर कांग्रेस और लेफ्ट में भिड़ंत मची है। लेकिन ये भी तय है कि नीतीश कहीं नहीं जा रहे है। बेचारे वीरप्पा मोइल्ली मुफ्त में ही निकाल दिए गए। नीतीश को हीरो नहीं बनने देना चाहते तो कांग्रेस के विलेन मन गए। लेकिन नीतीश कांग्रेस के इस कदम से शायद ही पिघले। हां शरद को लेकर कोई गारंटी नहीं दे सकता। लेकिन जॉर्ज की गति देखकर शायद ही शरद अभी ऐसा कुछ सोचे। अजित सिंह क्या करेंगे वो तो बाद में ही पता चलेगा। पीएम किसका होगा ये सबसे बड़ा सवाल है। एनडीटीवी की ख़बर को माने तो पीएम के लिए बंगला भी देखा जाने लगा है। ये बेहतर है। कौन जाने...अचानक घर खाली करना कोई आसान काम नहीं है...चाहे हो सामान्य लोग हो या फिर पीएम। पीएम इन वेटिंग का क्या होगा। आज नीतीश और मोदी गले लगे...राजनीति के बेहतरीन नज़ारों में से एक...आगे-आगे देखिए और ऐसे कितने नज़ारे देखने को मिलते है...भला हो लोकतंत्र का...भला हो जनता जनार्दन का...ये नज़ारा देखना भी किस्मत की बात...1947 में आजादी के समय के लोगों ने भी ऐसा नज़ारा नहीं देखा होगा....तभी तो लोग कहते है लोकतंत्र ज़िंदाबाद!

शाहिद भरोसे माया

बिजनौर लोकसभा सीट पर बहनजी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। साइकिल से उतर कर हाथी पर सवार हुए शाहिद सिद्दीकी यहां से चुनाव मैदान में है। वहीं एसपी ने भी अजित सिंह का साथ छोड़ कर आए यशवीर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। 1989 में जब बहुत कम लोग मायावती को जानते थे तब बिजनौर के वोटरों ने माया को अपना सांसद चुना था। 2007 के विधानसभा चुनाव में भी यहां के वोटरों ने माया का साथ दिया। जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर बीएसपी उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी और माया चौथी बार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। इस लोकसभा चुनाव में मायावती प्रधानमंत्री पद की दावेदारों में शामिल है। माया जानती है कि इस बार एक-एक सांसद का कितना महत्व है। पहली दलित पीएम का उनका सपना पूरा हो इसके लिए जरूरी है कि उनके पास संख्या ज्यादा हो ताकि बेहतर मोल-भाव वो कर सकें। ऐसे में माया को एक बार फिर बिजनौर के वोटरों का भरोसा है। माया ने इस बार एसपी के पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी पर दांव लगाया है। एटमी करार मुद्दे पर सिद्दीकी मुलायम से नाराज हो गए थे और उन्होने बीएसपी का दामन थाम लिया था। एसपी ने भी आरएलडी का साथ छोड़ आए यशवीर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि आरएलडी की टिकट पर संजय चौहान चुनाव मैदान में है। वही कांग्रेस ने सईदुज्जमां को चुनाव मैदान में उतारकर मुक़ाबला दिलचस्प बना दिया है। वहीं एसपी का टिकट न मिलने से नाराज करतार सिंह भड़ाना एनसीपी टिकट पर चुनाव मैदान में है। इन उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला तेरह लाख से ज्यादा वोटर करेंगे। मुस्लिम वोटर यहां चार लाख से ज्यादा है। जिनके बंटने की पूरी संभावना है। गुर्जर वोटर यहां डेढ़ लाख से ज्यादा है जबकि दलित वोटर 2.5 लाख के करीब है। परिसीमन के बाद ये सीट सामान्य हो गई है। अब देखना होगा कि सीट सामान्य होने के बाद बहनजी की माया का क्या असर होता है।

Friday, May 8, 2009

VOTE AND FLOOD

2008 में आई बाढ़ की तबाही का असर अब भी बिहार के पंद्रह जिलों में देखा जा सकता है। लेकिन अब बाढ़ से हुई बर्बादी पर पर वोट की फसल काटी जा रही है। बाढ़ के दौरान नेताओं के तुफानी दौरे और आरोप-प्रत्यारोप ने हंगामा बरपा रखा था। लेकिन सिर्फ आठ महीने में ऐसा लगता है जैसे सबकुछ भूला दिया गया हो। कोसी की त्रासदी झेलने के बाद पीड़ितों ने राहत की जो उम्मीद लगा रखी थी वो अब चुनावी लहर में बहने लगी है। हैरानी की बात ये है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य सरकार ने राहत और पुनर्वास का काम पूरी तरह रोक दिया है। बाढ़ में जिन्होने अपना सबकुछ खो दिया है...फिलहाल उनके पास वोट एक ऐसा हथियार है जो नेताओं को डरा रहे है। लेकिन ये नेता उस बाढ़ को याद नहीं करना चाहते। क्योकि लोगों का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है। एक और हैरान करने वाली बात ये है कि बाढ़ की समस्या बिहार में ऐसे राजनीतिक मुद्दे बन गए है जो पहले लोकसभा चुनाव से अब तक लगातार किए जा रहे है। लेकिन विडंबना भी यही है कि आज तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। हर साल बिहार के लोग बाढ़ की तबाही झेलते है। तब खूब हंगामा मचता है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही अपनी तरफ से कोशिश शुरू करते हैं। लेकिन ये सब बस कुछ सप्ताह या महीने भर ही चलता है। इस बार भी इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया था। केन्द्र से राज्य सरकार को राहत और पुनर्वास कार्य के लिए लिए हरसंभव मदद उपल्बध करायी गय़ी। नेपाल से भी बात शुरू हो गई। कोसी की धार जैसे ही कुछ कम पड़ी फिर सबकुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। जैसे सबने सोच लिया कि अब अगले साल देखा जाएगा। इस आपदा में 15 जिलों के करीब 40 लाख
लोग प्रभावित हुए है। इनमें करीब 20 लाख लोग तो सिर्फ चार जिलों के ही थे। सहरसा,सुपौल,अररिया और मधेपुरा में बाढ़ ने प्रलयंकारी रुप ले लिया था। कोसी के इस कहर में सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हजारों मवेशी चल बसे। हज़ारों एकड़ भूमि पर लगी फसन नष्ट हो गयी। जहां-जहां कोसी की धारा रेत लेकर पहुंची...वहां की उर्वर भूमि रेगिस्तान हो गई। लाखों लोगों के मकान पानी ने बहा लिए। और इन सब के साथ कईयों के अरमान। नेपाल के कुशहा में 18 अगस्त को कोसी का तटबंध टूटने से इसकी शुरूआत हुई। इसके बाद कोसी ने अपनी राह बदल ली। और इसकी धारा की चपेट में जो भी इलाके आए जलमग्न हो गए। सुपौल,अररिया, सहरसा,मधेपुरा, कटिहार, खगड़िया, भागलपुर, पूर्णिया समेत कुल पंद्रह जिलों में इसने जमकर तबाही मचाई। पिछले 50 सालों में ऐसी बाढ़ कभी नहीं आई थी। जाहिर है ना तो प्रशासन, सरकार या फिर लोग ही इसके लिए तैयार थे। पहले इस पर भी आरोप-प्रत्यारोप हुए। इन बाढ़ प्रभावित जिलों में चुनाव प्रचार के शोर में बाढ़ की तबाही कहीं दब सी गई। जातिगत समीकरण और कुछ ऐसे मुद्दे जिनसे यहां के वोटरों का कुछ भी लेना देना नहीं...वहीं हावी रहे। विकास की बात कभी-कभार हो जाती थी। लेकिन बाढ़ पर कौन बोले और क्या बोले। सो नेताओं ने इस मु्द्दे से खुद को किनारा रखने में ही भलाई समझी। फिलहाल तो सबका मिशन एक ही है...किसी तरह से जीत हासिल करना....और ऐसे मु्द्दे को ना छूना जिससे जनता नाराज हो सकती है। शायद बाढ़ पर बोलने के लिए उन्हे अगली बार यहां बाढ़ आने का इंतज़ार हैं। लेकिन नेताओं को भी मालूम है कि.... ये पब्लिक है सब जानती है।

मुलायम परिवार क्यों नहीं?

परिसीमन के बाद संभल सीट का चेहरा तो बदला ही है मुलायम और उनके परिवार भी संभल से जरा सभंल कर रहने लगे है। तभी इस दफे इस परिवार को कोई भी सदस्य यहां से चुनाव मैदान में नहीं है।उत्तरप्रेदश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का गढ़ यानि संभल। 1998 और 1999 में यहां से मुलायम सांसद चुने गए थे। 2004 में उन्होने अपने भाई रामगोपाल यादव को उम्मीदवार बनाया। रामगोपाल भी चुनाव जीत गए। लेकिन 2009 में इस बार यहां इस परिवार का कोई भी सदस्य मैदान में नहीं है। दरअसल परिसीमन के बाद इस सीट का चेहरा ही बदल गया है। यादव वोटर इस सीट से अचानक ही गायब हो गए है। पड़ोसी मुरादाबाद की मुस्लिम बहुल सीट इसमें जुट गयी है जिससे मुरादाबाद से कांग्रेस टिकट पर सियासी पारी की शुरूआत कर रहे भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरउद्दीन भी मुश्किल में है। बिसौली और गुन्नौर की यादव बहुल सीटें बदायूं में जोड़ दी गई है जिससे मुलायम परिवार को ये सीट छोड़नी पड़ी है। फिलहाल एसपी ने यहां से इकबाल महमूद को चुनाव मैदान में उतारा है। शायद मुलायम को कल्याण की दोस्ती से होने वाली हानि की आशंका पहले से है। बीएसपी ने भी शफीकुर्रहमान को चुनाव मैदान में उतारकर मुस्लिम वोटों के बिखराव की व्यवस्था कर दी है। कांग्रेस की टिकट पर चंद्रविजय सिंह चुनाव मैदान में है जबकि बीजेपी ने चंद्रपाल सिंह उर्फ पप्पू चौधरी को उतारा है। करीब तेरह लाख वोटर इन उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला करेंगे। फिलहाल मुकाबला एसपी बनाम बीएसपी दिख रहा है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवार भी अपनी पूरी ताकत लगा रहे है। वैसे मायावती- मुलायम के गढ़ में सेंध लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती औऱ यहां मुकाबला पूरी तरह मायावती बनाम मुलायम होता दिख रहा है।

Thursday, May 7, 2009

आजमगढ़ और बटला एनकाउंटर

कैफी आजमी... उर्दू और हिन्दी के प्रसिद्ध शायर का शहर.. आजमगढ़...को आज कई-कई नामों से पुकारा जा रहा है। कोई आतंक की नर्सरी बता रहा है तो कोई इसे आतंकगढ़ का नाम दे रहा है। बटला हाउस एनकाउंटर के बाद ये शहर लगातार सुर्खियों में रहा। इसका असर यहां चुनाव पर भी देखा जा रहा है। बटला हाउस एनकाउंटर के बाद का दिन इस शहर के लिए बहुत बुरा रहा। इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी की गिरफ्तारी के साथ ये सवाल बार-बार उठे की कैफी आजमी के शहर को आखिर क्या हो गया है। चुनाव का वक्त है और ये मुद्दा यहां अब भी गरम है। 15 वीं लोकसभा में यहां से 16 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। बाहुबलियों की नज़र इस सीट पर लगी हुई है। बीजेपी ने रामाकांत यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है तो एसपी ने दुर्गा प्रसाद यादव को टिकट दिया है जबकि बीएसपी ने अहमद अकबर डंपी को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने संतोष कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। बीएसपी... यहां से पांच बार जीतने में सफल रही है। इसके पीछे जातिगत समीकरण भी बड़ी वजह है। मुस्लिम वोटर यहां सर्वाधिक है करीब बीस फीसदी। कुल मतदाताओं की संख्या करीब 15 लाख 78 हज़ार है। पुरूष मतदाता करीब साढ़े आठ लाख है जबकि महिला वोटरों की संख्या 7 लाख से अधिक है। यादव औऱ दलित वोटर 19-19 फीसदी है।क्षेत्र का विकास तो यहां मुद्दा है हीं...इसके साथ ..आतंकवाद भी यहां एक अहम मुद्दा है। खासकर दिल्ली में हुए बटलाहाउस एनकाउंटर के बाद। जिस तरह से बाहरी दुनिया ने आजमगढ़ पर सवाल उठाए है उसका जवाब यहां के लोग... वोट के जरिए देने को पूरी तरह तैयार हैं।

SAMAJWAD IN MUZAFFARPUR

मुजफ्फरपुर संसदीय सीट का पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस.... इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने को मजबूर है। जेडीयू से टिकट न मिलने से आहत जॉर्ज ने नीतीश और शरद की भी नहीं सूनी और चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। उनका मुकाबला जेडीयू के जयनारायण निषाद और एलजेपी के भगवानलाल सहनी से है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी जॉर्ज को ठीक से नहीं समझ सके। जिनके साथ कई सालों से जॉर्ज काम करते रहे हैं। जॉर्ज को अस्वस्थ्य बता कर उन्हे राज्यसभा से भेजने की तैयारी इन दोनों ने कर ली थी। लेकिन जॉज ने पटना पहुंचकर ना सिर्फ अपना फिटनेस टेस्ट दिया बल्कि साफ किया की समाजवादी नेता... जनता के वोट से ही चुनकर जाते है। जेडीयू ने पहले ही अपना उम्मीदवार तय कर लिया था। पार्टी ने यहां से तीन बार सांसद रहे जयनारायण निषाद को टिकट दिया है। एलजेपी ने भगवानलाल सहनी को अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने विनीता विजय को टिकट देकर मुकाबला कड़ा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। यहीं नहीं बीएसपी की टिकट पर समीर कुमार भी मैदान में कूद पड़े हैं। विकास की बात करने वाले विजेन्द्र चौधरी भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में है। 22 उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला करीब साढ़े तेरह लाख मतदाता करेंगे। इनमें पुरूष मतदाता 7 लाख से ज्यादा हैं जबकि महिला वोटरों की संख्या 6लाख से ज्यादा है। जॉर्ज फर्नांडीस का रिकार्ड यहां 5-0 है। यानि जॉर्ज.. मुजफ्फरपुर सीट से कभी नहीं हारे है। 1977 में पहली बार जॉर्ज यहां से चुने गए थे। कैप्टन निषाद ने यहां से तीन बार जीत दर्ज की है...हालाकि तीनों बार अलग-अलग पार्टी की टिकट पर। 2004 में जॉर्ज ने भगवानलाल सहनी को हराया था। महज़ 9 हजार वोटों से....अब देखना होगा कि पार्टी ने जिस जॉर्ज को अनफिट करार दिया है उनपर वोटरों का विश्वास बना रहता है या .............IN 1977 WHEN HE WAS IN PRISON PEOPLE OF MUZAFFARPUR GAVE HIM WIN BUT THIS TIME HE IS IN BIGGER FIGHT. WILL THIS TIME NEW VOTER WILL KEEP THIS IN MIND? THAT IS THE QUESTION.

SECOND GHAZIABAD

गौतमबुद्ध नगर सीट पर मुकाबला रोमांचक हो गया है। कांग्रेस-एसपी-बीएसपी और बीजेपी के उम्मीदवार परिसीमन के बाद बनी इस संसदीय सीट पर कब्ज़ा करने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना बहा रहे है। जब से चारों पार्टियों के उम्मीदवार तय हुए है मुकाबला बेहद रोचक हो गया है। बीएसपी ने सुरेन्द्र नागर को यहां से उम्मीदवार बनाया है। नागर हाल ही में आरएलडी छोड़कर बीएसपी में शामिल हुए है। कहा यहीं जा रहा है कि बीजेपी-आरएलडी समझौते के बाद नागर को यहां से टिकट की उम्मीद नहीं थी सो उन्होने बीएसपी से टिकट का डील कर पाला बदल लिया। दूसरी तरफ बीजेपी ने सामाजिक कार्यकर्ता और आरएसएस की पृष्ठभूमि से जुड़े चिकित्सक डॉ महेश शर्मा को मैदान में उतारा है। एसपी और कांग्रेस ने यहां उम्मीदवार खड़ा करने में काफी वक्त लिया। एसपी ने पहले अपने वरिष्ठ नेता नरेन्द्र भाटी को यहां से उम्मीदवार बनाया था लेकिन बाद में मदन चौहान को उम्मीदवार बनाया। लेकिन गुर्जर मतदाताओं की नाराजगी को देखते हुए पार्टी ने फिर से भाटी को ही टिकट दिया। इन सबके बीच कांग्रेस ने बीजेपी के बागी पर भरोसा जताया है। बीजेपी टिकट पर चार बार सांसद चुने गए रमेश चन्द्र तोमर की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है। तोमर को बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गाजियाबाद से चुनाव लडऩे का खामियाजा भुगतना पड़ा। कोई उम्मीद न देख उन्होने कांग्रेस की तरफ रूख किया जो एसपी से डील फ़ाइनल न होने के बाद ऐसे लोगों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। बीजेपी को जहां ब्राह्मण जाट और ठाकुर वोटरों का भरोसा है वहीं एसपी को गुर्जर,यादव और मुस्लिम वोटरों की आस है। भाटी के चुनाव मैदान में होने से बीएसपी खेमे में थोड़ी खलबली है। क्योंकि बीएसपी गुर्जर वोटों पर एकतरफा हक मानकर चल रही थी। वैसे बीएसपी यहां गुर्जर, दलित और मुस्लिम वोटरों के सहारे जीत का दावा कर रही है। जबकि कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि तोमर इस संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक ठाकुर वोटरों को एकजुट कर लेंगे। तोमर को ठाकुर,मुस्लिम और कांग्रेस के परंपरागत वोटों का सहारा है। कुल 15 लाख 20 हज़ार वोटरों में सबसे ज्यादा ठाकुर मतदाता यहां तीन लाख है जबकि गुर्जर वोटर दो लाख पच्चीस हज़ार वहीं ब्राह्मण-यादव और मुस्लिम वोटर डेढ़-डेढ़ लाख। यानि चारों उम्मीदवारों की किस्मत इस जातिय समीकरण में बुरी तरह उलझी हुई है। कुल मिलाकर पड़ोसी ग़ाजियाबाद सीट की तरह ही यहां भी मुकाबला बेहद करीबी और रोमांचक होने की उम्मीद है।

WILL MODI HAVE SECOND THOUGHT?

IT CAN HAPPEN ONLY IN MODI LAND. GODHRA AND WHAT HAPPENED AFTER THAT. THE WAY HE SAYS CONGRESS BUDHIA(OLDER) AND WHEN PRIYANKA OPPESED HE SAYS GUDIYA(DOLL). MODI MINISTER KODNANI IS IN PROBLEM OF HER ROLE ON THAT SHAMFUL DAY. MODI IS ALSO BEING CHECKED. BUT CONGRESS IS SILENT AND NOT MADE IT POLL ISSUE. THEY PLAY AS MODI WISH. NEITHER BETTER FOR COUNTRY AND NOT FOR CONGRESS AS WELL. WHAT HAPPENED AFTER MAUT KA SAUDAGAR ( SONIA’S STATEMENT ) LAST TIME WAS PAST. AND CONGRESSMEN SHOULD SEE FUTURE AND DONOT THINK TOO MUCH ABOUT HINDU VOTER. IT WAS SHAME AND IT WILL REMAIN. WHEN ASKED TO MODI HE WILL SAY SORRY TO COUNTRYMEN FOR THIS BY VARIOUS CHANNEL EITHER HE LEFT THE STUDIO OR KEPT SILENCE. AND ONE DAY NDTV JOURNALIST HE KEPT SILENCE. THEY WERE ON AIR WHILE TAKING THIS INTERVIEW AND THE RESPECTED JOURNLIST WAS VERY UPSET AFTER THE INTERVIEW. MODI IS SUCH A BRAND. IT SELLS. HE SAYS THIS CONGRESS WANTS A SON OF INDIA TO PUT IN PRISION AFTER SC ORDER PROBE INTO HIS ROLE. AND COGRESS GOES ON BACKFOOT. IT WAS SC DECISION AND THEY DONOT HAVE ANYTHING TO TAKE THIS. WHY NITISH DOES NOT WANT MODI TO COME IN BIHAR? LEAVE NITISH, WHY SHIVRAJ AND RAMAN SINGH BOTH BJP CM DONOT MODI AS WELL. THEN WHY CONG IS AFRAID OF MODI FACTOR? IS IT SOFT HINDUTVA OR SOME THING ELSE. IF YOU WANT TO PLAY IN MODI HAND YOU CANNOT DO ANYTHING. GO ATTACKING. THIS IS LAST PICTURE THAT SHOULD BE LIKE THE LIFE OF A INDIAN KID NOT AS HAPPENED IN GUJRAT, THE GANDHI LAND. HOPE MODI WILL EVER SAY COUNTRYMEN SORRY IN FUTURE. DEFINITLY NOT NOW. THEN PM STATEMENT TO MODI, RAJDHARM NIBHAY MODI. HE SHOULD MIND IT.





Wednesday, May 6, 2009

KING KHAN... WHY LOOSING?

कोलकाता नाईट राइडर्स की टीम आखिर हार क्यों रही है... बुकानन की मल्टीकैप्टन थ्योरी से उपजे विवाद या फिर ब्लागर के खुलासे की वजह से...या फिर हार की कुछ और ही वजह है..आईपीएल सीजन टू में शाहरूख के लड़ाकों को आखिर क्या हो गया है। किसी को नहीं समझ आ रहा। अंकतालिका में शाहरूख की कोलकाता नाइट राईडर्स आखिरी पायदान पर है। इसकी शुरूआत बुकानन ने ही की। बुकानन दुनिया के महानतम क्रिकेट कोच में से एक है। ट्वेन्टी-20 के रोमांच में उन्होने एक और रोमांच भरने की कोशिश की। बुकानन ने कहा कि एक टूर्नामेंट के लिए टीम में चार कप्तान होने चाहिए। टीम इंडिया के सबसे सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली की कप्तानी पर यहीं से खतरा मंडराना शुरू हुआ। टीम के मालिक शाहरूख को भी बुकानन की थ्योरी भा गई। शाहरूख को बुकानन की थ्योरी कितनी पसंद आई इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होने लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर की भी आलोचना कर डाली। दरअसल गावस्कर को बुकानन की थ्योरी पसंद नहीं आई थी और उन्होने अपने कॉलम में बुकानन की जमकर आलोचना की थी। इससे किंग खान खासे नाराज हो गए। बाद में सौरव को कप्तानी से हटाकर मैकुलम को केकेआर की जिम्मेदारी दी गई। उस मैकुलम को जिसे कप्तानी का कोई ख़ास अनुभव नहीं है। हालत ये हुई कि कप्तानी तो छोड़िए मैकुलम अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी भी भूल गए और अब तो वो कीपिंग भी नहीं करते। टीम भावना शाहरूख की टीम से धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। राजस्थान के ख़िलाफ कोलकाता नाइट राइडर्स का रोमांचक मुकाबला तो आपको याद ही होगा। गांगुली टीम को जीत के काफी करीब ले गए थे। लेकिन गांगुली के आउट होने के बाद मैच टाई हो गया और सुपरओवर से फ़ैसला होना था। जिसमें दोनों टीमों को एक-एक ओवर बल्लेबाजी करनी होती है। क्रिस गेल के साथ गांगुली नहीं मैकुलम बल्लेबाजी करने उतरे। गांगुली जो बेहतरीन फॉर्म में थे जबकि मैकुलम रन के लिए जूझ रहे थे। इसके बाद स्पिनर अजंता मेंडिस से गेंदबाजी कराना जैसे फ़ैसले से क्रिकेट के जानकार अंचभे में रह गए। कई लोगों ने मैकुलम के इन दोनों फ़ैसलों की आलोचना की। इधर टीम हार रही थी उधर ब्लाग के माध्यम से टीम के अंदर की ख़बर बाहर छन कर आने लगी। ब्लागर कौन था फिलहाल तो उसका पता नहीं चला लेकिन इसी घटनाक्रम के बाद संजय़ बांगर और आकाश चोपड़ा को भारत वापस भेज दिया गया। शाहरूख भी हार को झेल नहीं पा रहे थे और फिलहाल भारत में ही है। आईपीएल के पहले जलसे में केकेआर अंतिम चार में पहुंचते-पहुंचते रह गई थी। इस बार तो उसे आठवें स्थान से उपर बढ़ने की चुनौती ही भारी पड़ रही है। 2008 में शाहरूख की टीम ने 14 मैचों में छह मैच जीते थे जबकि सात मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। दो अंकों से वो सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सके थे। वैसे आईपीएल सीजन टू में कोलकाता की लगातार हार के लिए कई स्टार खिलाड़ियों की गैरमौजूदगी भी है। रिकी पॉटिंग, शोएब अख्तर, उमर गुल, डेविड हसी, सलमान बट्ट जैसे बेहतरीन क्रिकेट किसी न किसी वजह से इस बार केकेआर के साथ नहीं है। इन सब के अलावा दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल होने से इडेन गार्डन फैक्टर भी केकेआर के साथ नहीं रहा। इडेन गार्डन में एक लाख से ज्यादा समर्थकों के बीच दादा एंड कंपनी को मात देना कोई खेल नहीं है। वैसे अब तक बेहतरीन फार्म में रहे क्रिस गेल टीम का साथ छोड़ चुके है जबकि डेविड हसी टीम के साथ आ गए है। शाहरूख की टीम को उम्मीद होगी कि ये बदलाव ज्यादा खुशी कम गम लेकर आएगी।

MAA KI MAMTA

बीजेपी के स्टार प्रचारक बन चुके वरूण गांधी पीलीभीत से चुनाव मैदान में है। पांच बार पीलीभीत सीट से जीत चुकी मां मेनका ने बेटे के लिए ये सीट छोड़ दी है।मां की ममता ने मेनका को पीलीभीत सीट छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वो बेटे वरूण को यहां से लड़ा रही हैं। अब ये अलग बात है कि मायावती इस ममता को समझ नहीं पाई। भड़काऊ भाषण मामले में वरूण को जेल जाना पड़ा। मेनका को वरूण से मिलने से भी रोका गया। फिर माया-मेनका और मां पर घमासान मच गया। मेनका ने मायावती पर निजी हमले करते हुए कह दिया कि माया मां की ममता नहीं समझ सकती। इस पर माया ने पलटवार करते हुए कहा कि मदर टेरेसा भी मां नहीं थी लेकिन सब का वो ख्याल रखती थी। इसके बाद मेनका ने फिर माया पर हल्ला बोलते हुए कहा कि मदर टेरेसा अपने जन्मदिन के मौके पर किसी की हत्या नहीं करवाती थी। इसके बाद प्रतिक्रियायों का दौर शुरू हो गया। बहन प्रियंका ने भी वरूण को गीता पढ़ने की सलाह दे डाली। इन सबके बीच वरूण पर रासुका लगा। सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा। फिलहाल वरूण पेरोल पर है और देश भर में बीजेपी उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार कर रहे है। वरूण को यहां अपने मामा से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। यानि मामा और भांजे की लड़ाई पीलीभीत में हो रही है। कांग्रेस टिकट पर वीरेन्द्र सिंह चुनाव मैदान में है। वरूण के भड़काउ भाषण के साथ-साथ पीलीभीत सीट सर्वाधिक अमीर उम्मीदवार के लिए भी चर्चा में है। कांग्रेस टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे वरूण के मामा वीरेन्द्र सिंह के पास 631 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। बीएसपी ने बुद्धसेन वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है तो एसपी की टिकट पर रियाज अहमद चुनाव मैदान में है। वैसे मां मेनका ने बेटे के लिए काफी सुरक्षित सीट चुना है। पीलीभीत से वो खुद पांच बार सांसद रह चुकी है। वरूण के लिए इससे ज्यादा सेफ सीट शायद ही कोई हो सकती थी। ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि गांधी-नेहरू परिवार के दो-दो मां-बेटे चुनाव मैदान में है। एक तरफ सोनिया और राहुल है तो दुसरी तरफ मेनका और वरूण। सोनिया ने भी पहले अमेठी सीट राहुल के लिए छोड़ दी थी और वो खुद रायबरेली से चुनाव लड़ रही है। अब इसे संयोग ही कहा जाएगा कि मेनका ने भी पीलीभीत सीट वरूण के लिए छोड़ दी है और खुद आंवला सीट से लड़ रही हैं। GOOD LUCK VARUN THOUGH. IT WOULD BE BETTER IF AFTER WINNING YOU SAY SORRY FOR WHAT YOU SAID EARLIR. HOPE YOU WILL DO THIS AND I DONOT KNOW AFTER LOOSING WHAT WILL YO DO. BECAUSE IN GAME LIKE POLITICS YOU NEVER KNOW WHAT IS GOING TO HAPPEN AS IT IS JUST SOME MINTS AGO MUMBAI INDIAN LOST TO DECCAN CHARGER FROM A WIINNING SITUATION.

AZHAR IN TOUGH MATCH

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरउद्दीन मुरादाबाद से राजनीतिक पारी की शुरूआत कर रहे है। कलाई के इस जादूगर के लिए सियासी पिच पर शतक जमाना आसान नहीं है क्योंकि एसपी और बीजेपी ने आक्रामक फील्डिंग सज़ा रखी है।
टीम इंडिया के सफल कप्तानों में से एक मोहम्मद अजहरउद्दीन ने सियासी पारी की शुरूआत के लिए उत्तरप्रदेश की मुरादाबाद की पिच चुनी है। भले ही ये अजहर की मर्जी से न हुई हो...वैसे सियासत के पहले कदम पर ही उन्हे क्रिकेट और पॉलिटिक्स में अंतर समझ में आ गया होगा। पहले उनके हैदराबाद या सिकंदराबाद से चुनाव लड़ने की ख़बर थी। बाद में कांग्रेस आलाकमान ने उन्हे मुरादाबाद से चुनाव लड़ने को हरी झंडी दी। भले ही अजहर के लिए मुरादाबाद नई जगह हो लेकिन यहां के लोग अजहर की बैटिंग के कायल रहे है। वैसे अजहर के लिए यहां मुकाबला आसान नहीं है। कांग्रेस का यूपी की तरह ही यहां भी कोई खास जनाधार नहीं है।अजहर का इस जगह से अपरिचित होना, यहां की समस्याओं की कम जानकारी जैसे मुद्दे से भी दो चार होना पड़ रहा है। इन सब के अलावा अजहर के नाम की घोषणा में भी पार्टी ने काफी देर लगाई जिससे अजहर को पूरी तैयारी करने का समय ही नहीं मिल पाया। अजहर की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती...परिसीमन के बाद एक मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट भी इस संसदीय क्षेत्र से निकल गया है। जो मुस्लिम वोटर बचे है उसपर एसपी और बीएसपी उम्मीदवारों की नज़र है। एसपी ने मोहम्मद रिजवान को यहां से उम्मीदवार बनाया है तो बीएसपी टिकट पर राजीव चैना चुनाव मैदान में है।
वहीं बीजेपी टिकट पर चुनाव लड़ रहे सर्वेश सिंह का क्षेत्र में बेहद मजबूत आधार माना जाता है। कुल मिलाकर क्रिकेट की पारी की तरह सियासी पारी की शानदार शुरूआत अजहर के लिए आसान नहीं दिख रही है। अजहरउद्दीन ने अपने टेस्ट करियर की शानदार शुरूआत करते हुए पहले तीन टेस्ट मैचों में शतक ठोक डाले थे। लेकिन सियासी पारी की वे कैसी शुरूआत करते है इस पर सबकी नज़र है। अजहर की सभा में लोग जुट रहे है लेकिन उन्हे सुनने के लिए नहीं उन्हे देखने की ललक लोगों में ज्यादा देखी जा रही है। वैसे कांग्रेस को अजहर के रूप में एक स्टार प्रचारक जरूर मिल गया है। अजहर भीड़ जुटाने में तो जरूर कामयाब हो रहे है लेकिन ये भीड़ वोटों में कितनी तब्दील होगी...कहना मुश्किल है। वैसे कांग्रेस ने अजहर को मुश्किल पिच पर बल्लेबाजी के लिए उतारा है। यहां से कांग्रेस आखिरी बार 1984 में जीती थी। CAN AZHAR HIT CENTURY AS HE PLAYED 99 TEST AND UNLUCKY TO BE IN THAT HIGH PROFILE LEAST.

जया तेरा क्या होगा?

WHAT WILL HAPPEN TO JAYA IN RAMPUR? A MILLION DOLLAR QUESTION. रामपुर में वैसे तो त्रिकोणीय मुकाबला है लेकिन एसपी के दो गुटों के बीच भी यहां मुकाबला देखने को मिल रहा है। जयाप्रदा को लेकर पार्टी महासचिव अमर सिंह और आजम खान की तकरार क्या गुल खिलाएगी ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा लेकिन इससे जया की राह थोड़ी मुश्किल जरूर हो गई है।रामपुर में इस बार चुनावी घमासान चरम पर है। एसपी के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है। एसपी के ही आजम खान अपने ही पार्टी की उम्मीदवार जयाप्रदा को यहां से हारते देखना चाहते है। अमर सिंह भी इस सियासी घमासान में कूद पड़े और उन्होने तो इस मुद्दे पर पार्टी छोड़ देने की धमकी तक दे डाली थी। इन सबके अलावा यहां चुनाव प्रचार का स्तर भी काफी घटिया रहा। वैसे आजम खान बनाम अमर सिंह मुकाबले के बाद पार्टी तो किसी ने नहीं छोड़ी लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान रामपुर से दूसरी बार चुनाव जीतने की चाह रखने वाली वॉलीवुड अदाकारा जयाप्रदा को ही उठाना पड़ रहा है। आजम-अमर के बीच तकरार ने मुलायम की भी मुश्किलें बढ़ा दी है। दोनों ही मुलायम के लिए खास है और वो किसी को भी नहीं छोड़ना चाहते। वैसे मुलायम ने आजम की काट के लिए अबु आजमी को मैदान में उतारा है। वो यहां लगातार कैंपेन कर रहे है और एसपी उम्मीदवार जयाप्रदा के लिए बेहतर माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहे है। आजम के साथ-साथ कल्याण फैक्टर भी यहां जया के लिए मुशीबत का सबब है। मुलायम और कल्याण की दोस्ती का नुकसान इस सीट पर एसपी को साफ दिख रहा है। यहीं कम नहीं था अब तो आजम खान सीधे-सीधे वोटरों से जयाप्रदा को हराने की अपील कर रहे है। जयाप्रदा के सामने दो-दो मजबूत उम्मीदवार उनकी परेशानी को और ज्यादा बढ़ाने में लगे हुए है। दोनों ही यहां के पूर्व सांसद है। बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी जो 1998 में यहां से सांसद चुने गए थे। बीजेपी के तेजतर्रार वक्ताओं में से एक माने जाते है नकवी। इसके अलावा कांग्रेस से नवाब खानदान की बेगम नूर बानो भी चुनाव मैदान में है। बानो 1996 और 99 में यहां से सांसद रह चुकी है। जबकि उनके पति जुल्फिकार अली खान यहां से पांच बार कांग्रेस टिकट पर सांसद चुने गए। कुल मिलाकर चौदह में से सात बार इस परिवार ने यहां से जीत दर्ज की है। जबकि कांग्रेस ने कुल मिलाकर नौ दफे इस सीट पर जीत का परचम लहराया है। कांग्रेस...एसपी में मचे इस घमासान का लाभ उठाने की पूरी कोशिश में है। फिलहाल मुख्य मुकाबला यहां एसपी बनाम कांग्रेस में दिख रहा है लेकिन बीजेपी के नकवी मुस्लिम वोटरों को कितना लुभा पाते है ये भी बड़ा सवाल बना हुआ है। करीब साढ़े ग्यारह लाख वोटर इन दिग्गजों की किस्मत का फ़ैसला करेंगे। जिनमें करीब 55 फीसदी मुस्लिम वोटर है।इनके अलावा बीएसपी ने घनश्याम सिंह लोधी को चुनाव मैदान में उतारा है। कुल पंद्रह उम्मीदवार यहां से अपनी किस्मत आजमां रहे है। कुल मिलाकर कल्याण फैक्टर और आजम फैक्टर यहां सब मुद्दों पर भारी है। इन्ही फैक्टर से हार जीत यहां तय होनी है। दिलचस्प बात ये है कि ना तो कल्याण औऱ ना ही आजम यहां से चुनाव मैदान में है लेकिन इस सीट पर मुख्य मुकाबला इन्ही दोनों में है..। AMAR IS ALSO PLAYING HIS PART AND SO A VERY GOOD MATCH GOING ON HERE AS WELL.

गम ही गम

कोलकाता नाईट राइडर्स की टीम आखिर हार क्यों रही है... बुकानन की मल्टीकैप्टन थ्योरी से उपजे विवाद या फिर ब्लागर के खुलासे की वजह से...या फिर हार की कुछ और ही वजह है...आईपीएल सीजन टू में शाहरूख के लड़ाकों को आखिर क्या हो गया है। किसी को नहीं समझ आ रहा। अंकतालिका में शाहरूख की कोलकाता नाइट राईडर्स आखिरी पायदान पर है। इसकी शुरूआत बुकानन ने ही की। बुकानन दुनिया के महानतम क्रिकेट कोच में से एक है। ट्वेन्टी-20 के रोमांच में उन्होने एक और रोमांच भरने की कोशिश की। बुकानन ने कहा कि एक टूर्नामेंट के लिए टीम में चार कप्तान होने चाहिए। टीम इंडिया के सबसे सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली की कप्तानी पर यहीं से खतरा मंडराना शुरू हुआ। टीम के मालिक शाहरूख को भी बुकानन की थ्योरी भा गई। शाहरूख को बुकानन की थ्योरी कितनी पसंद आई इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होने लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर की भी आलोचना कर डाली। दरअसल गावस्कर को बुकानन की थ्योरी पसंद नहीं आई थी और उन्होने अपने कॉलम में बुकानन की जमकर आलोचना की थी। इससे किंग खान खासे नाराज हो गए। बाद में सौरव को कप्तानी से हटाकर मैकुलम को केकेआर की जिम्मेदारी दी गई। उस मैकुलम को जिसे कप्तानी का कोई ख़ास अनुभव नहीं है। हालत ये हुई कि कप्तानी तो छोड़िए मैकुलम अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी भी भूल गए और अब तो वो कीपिंग भी नहीं करते। टीम भावना शाहरूख की टीम से धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। राजस्थान के ख़िलाफ कोलकाता नाइट राइडर्स का रोमांचक मुकाबला तो आपको याद ही होगा। गांगुली टीम को जीत के काफी करीब ले गए थे। लेकिन गांगुली के आउट होने के बाद मैच टाई हो गया और सुपरओवर से फ़ैसला होना था। जिसमें दोनों टीमों को एक-एक ओवर बल्लेबाजी करनी होती है। क्रिस गेल के साथ गांगुली नहीं मैकुलम बल्लेबाजी करने उतरे। गांगुली जो बेहतरीन फॉर्म में थे जबकि मैकुलम रन के लिए जूझ रहे थे। इसके बाद स्पिनर अजंता मेंडिस से गेंदबाजी कराना जैसे फ़ैसले से क्रिकेट के जानकार अंचभे में रह गए। कई लोगों ने मैकुलम के इन दोनों फ़ैसलों की आलोचना की। इधर टीम हार रही थी उधर ब्लाग के माध्यम से टीम के अंदर की ख़बर बाहर छन कर आने लगी। ब्लागर कौन था फिलहाल तो उसका पता नहीं चला लेकिन इसी घटनाक्रम के बाद संजय़ बांगर और आकाश चोपड़ा को भारत वापस भेज दिया गया। शाहरूख भी हार को झेल नहीं पा रहे थे और फिलहाल भारत में ही है। आईपीएल के पहले जलसे में केकेआर अंतिम चार में पहुंचते-पहुंचते रह गई थी। इस बार तो उसे आठवें स्थान से उपर बढ़ने की चुनौती ही भारी पड़ रही है। 2008 में शाहरूख की टीम ने 14 मैचों में छह मैच जीते थे जबकि सात मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। दो अंकों से वो सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सके थे। वैसे आईपीएल सीजन टू में कोलकाता की लगातार हार के लिए कई स्टार खिलाड़ियों की गैरमौजूदगी भी है। रिकी पॉटिंग, शोएब अख्तर, उमर गुल, डेविड हसी, सलमान बट्ट जैसे बेहतरीन क्रिकेट किसी न किसी वजह से इस बार केकेआर के साथ नहीं है। इन सब के अलावा दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल होने से इडेन गार्डन फैक्टर भी केकेआर के साथ नहीं रहा। इडेन गार्डन में एक लाख से ज्यादा समर्थकों के बीच दादा एंड कंपनी को मात देना कोई खेल नहीं है। वैसे अब तक बेहतरीन फार्म में रहे क्रिस गेल टीम का साथ छोड़ चुके है जबकि डेविड हसी टीम के साथ आ गए है। शाहरूख की टीम को उम्मीद होगी कि ये बदलाव ज्यादा खुशी कम गम लेकर आएगी।

अजित की राजनीति

गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले जाट नेता अजीत सिंह एक बार फिर बागपत सीट से चुनाव मैदान में है। अजीत फिलहाल बीजेपी के साथ है...अजीत के रिकार्ड को देखकर ये कहना मुश्किल है कि वो कितने दिनों तक बीजेपी के साथ रहेंगे। POLITICS में ना कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और ना ही दुश्मन। अजीत सिंह का भी ये फलसफा रहा है। तभी तो उन्होने खुद ही कई बार पार्टी छोड़ी, कई बार नयी पार्टी बनायी। यहीं नहीं अजीत सिंह....बी.पी. सिंह कैबिनेट, नरसिम्हा राव की सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे। कभी कांग्रेस के साथ तो कभी कांग्रेस के दूर...बीएसपी, एसपी के साथ भी चौधरी साहब तालमेल बिठा लेते है। या इसे यूं कहें कि जरूरत के मुताबकि अजीत अपना स्टैंड चेंज करते रहते है। 2004 में उनकी पार्टी के तीन सांसद थे। कांग्रेस के साथ उनकी डील फ़ाइनल नहीं हो पायी और वो मनमोहन कैबिनेट का हिस्सा बनते-बनते रह गए। 15 वीं लोकसभा की रणभेड़ी बजते ही अजीत सिहं बीजेपी खेमे में शामिल हो गए। बीजेपी को भी यूपी में कोई साथी चाहिए था सो दोस्ती होने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयी। लेकिन ये बीजेपी को भी मालूम है कि अजीत राजनीति के माहिर खिलाड़ी है। खासकर आज की राजनीति की जिसमें किसी भी एक पार्टी को बहुमत मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती। जहां एक-एक सीटों की ख़ास अहमियत है। अटल जी की सरकार एक वोट से ही गिर गयी थी। जहां तक बागपत सीट की बात है तो इस सीट पर 1977 से अब तक चौधरी परिवार का ही दबदबा रहा है। सिर्फ एक बार छोटे चौधरी को यहां से मात खानी पड़ी। जब 1998 में बीजेपी के सोमपाल शास्त्री ने अजित सिंह को मात दे दी थी। एक बार फिर अजित के सामने सोमापाल चुनाव मैदान में है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन्हे उम्मीदवार बनाया है। जबकि एसपी ने साहब सिंह को यहां से मैदान में उतारा है। जबकि बीएसपी ने डिबाई के विधायक गुड्डू पंडित के भाई मुकेश पंडित को उम्मीदवार बनाया है। अजित सिंह यहां से पांच दफे जीत हासिल कर चुके है। जबकि एक बार उन्हे हार का सामना करना पड़ा था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इस सीट का लगातार तीन बार प्रतिनिधित्व किया था। वैसे परिसीमन के बाद मोदीनगर की सीट अब बागपत में शामिल हो गयी है जिसपर सभी पार्टियों की ख़ास नज़र है। अजित सिंह को इस बार अपने परंपरागत वोटों के साथ बीजेपी के वोटों का सहारा है जबकि सोमपाल कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे है। वैसे अजित सिंह का पलड़ा तो भारी माना जा रहा है लेकिन सोमपाल के चुनाव मैदान में होने से मुकाबला रोमांचक हो गया है।

रामविलास क्या करेंगे?

हाजीपुर सुरक्षित सीट पर कांग्रेस ने एलजेपी सुप्रीमो रामविलास पासवान के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर सबकों चौंका दिया..आठ बार इस सीट से जीत चुके रामविलास पासवान अब त्रिकोणीय मुकाबले में फंसते नज़र आ रहे है।
केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान को अपनी ही सीट पर कभी इतनी मुश्किल शायद ही पहले हुई हो...और तो और यूपीए ने भी उनके खिलाफ दमदार उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने भले ही आरजेडी सुप्रीमो के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया हो लेकिन हाजीपुर सीट पर उसने उम्मीदवार उतार ही दिया। कांग्रेस बिहार में इतनी मजबूर और इतनी ताकतवार पहले कभी नहीं दिखी थी। कांग्रेस ने रामविलास को हराने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री दशई चौधरी को उम्मीदवार बनाया है। तो जेडीयू ने पहले से ही पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास को चुनाव मैदान में उतार रखा है।
परिसीमन का असर इस सीट पर भी पड़ा है। इस संसदीय क्षेत्र में हाजीपुर,लालगंज,महुआ,राजापाकर(सुरक्षित),राघोपुर और महनार विधानसभा क्षेत्र शामिल है। लालगंज सीट अब हाजीपुर में शामिल हो गयी है...
हाजीपुर में मतदाताओं की संख्या 12 लाख से ज्यादा है। जिनमें पुरूष वोटर साढ़े छह लाख के करीब है...जबकि महिला वोटरों की संख्या साढ़े पाच लाख के करीब है। 1977 में रामविलास ने यहां से रिकार्ड मतों से जीत हासिल की थी। यहीं नहीं रामविलास इस सीट से आठ बार जीत दर्ज चुके है। लेकिन 1984 में कांग्रेस की लहर में उन्हे हार का सामना करना पड़ा था। वैसे 1977 से पहले तक यहां कांग्रेस जीतती रही थी...रामविलास लगातार जीत का छक्का लगा चुके है और अब उन्हे नौवीं जीत का इंतजार है। 14 वीं लोकसभा में एलजेपी के पास सिर्फ चार सांसद थे...इसी चार सांसद की बदौलत रामविलास पासवान केन्द्रीय मंत्री भी बने और यूपीए के महत्वपूर्ण साझीदार भी...अब देखना होगा कि 15 वीं लोकसभा में रामविलास किस सरकार में शामिल होते है क्योंकि ना सिर्फ वो लगातार हाजीपुर से जीतते रहे है बल्कि हर सरकार में मंत्री बनने का रिकार्ड भी बनाने की ओर तेजी से बढ़ रहे है।

राहुल बाबा की जय हो

नेहरू-गांधी परिवार की प्रतिष्ठित सीट अमेठी। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी इस बार यहां से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे है। संजय गांधी, राजीव गांधी,सोनिया गांधी और अब राहुल बाबा की कर्मभूमि बन गई है ये देश की हाईप्रोफाइल सीट।
कहते है अमेठी है तो यूपी में लेकिन यहां के लोगों की सोच कुछ और है। मायावती और मुलायम सिंह को यहां के लोग जानते तो है लेकिन वोट वो कांग्रेस को ही करते है। ये आज से नहीं संजय गांधी के जमाने से चल रहा है। गांधी-नेहरू फैमिली से उनका दिल का रिश्ता है। राहुल-सोनिया और प्रियंका को देखने सड़कों पर लोग उतर आते है। कोई उन्हे छू लेना चाहता है तो कोई उनसे अपना दुखड़ा सुनाना चाहता है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के नामांकन के वक्त सड़कों पर उमड़ी भीड़ तो आपने देखी ही होगी...15 वीं लोकसभा में यहां से 16 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। इनमें से अगर 15 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाएं तो शायद ही किसी को आश्चर्य होगा। कांग्रेस से राहुल बाबा के सामने बीएसपी ने आशीष शुक्ला को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से प्रदीप सिंह चुनाव मैदान में है तो एसपी ने राहुल के सामने अपना प्रत्याशी न उतारने में ही भलाई समझी.. लोकसभा में पांच विधानसभा सीटें है।सालोन, तिलोही,जगदीशपुर,गौरीगंज और अमेठी। तिलोही विधानसभा सीट एसपी के पास है जबकि गौरीगंज पर बीएसपी का कब्जा है। बाकी की तीन सीटें कांग्रेस के पास है। यहां से चुनाव तो राहुल लड़ रहे है लेकिन मोर्चा संभाल रखा है प्रियंका अपने भाई और मां के लिए वोट मांग रही है। अमेठी और रायबरेली उनकी टॉप प्रायरिटी है। सोनिया और राहुल देश भर में प्रचार कर रहे है तो प्रियंका अमेठी और रायबरेली में घूम-घूम कर वोट मांग रही है। भले ही कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा हो लेकिन अक्सर कांग्रेसी कार्यकर्ता राहुल पर अड़ जाते है। कुछ ऐसा ही हाल अमेठी के लोगों का है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी इसी सीट से जीते थे। तो सोनिया गांधी इस सीट से जीतने के बाद प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गई थी। जब उन्होने अंतरात्मा की आवाज पर पीएम न बनने का फ़ैसला लिया था। अब यहां के लोग राहुल बाबा में राजीव की छवि देखते है और उनमें प्रधानमंत्री के सारे गुण भी उन्हे नज़र आते है। यहां कांग्रेस की लहर हर बार रहती है भले ही पूरा यूपी कुछ और सोचता हो। इसी वजह से 1977 और 1998 को छोड़कर हर बार कांग्रेस की ही जीत हुई है। संजय गांधी,राजीव गांधी,सोनिया गांधी और राहुल गांधी सभी आसानी से जीते। इस बार भी राहुल बाबा की जीत तय मानी जा रही है। दिलचस्पी ये जानने में है कि कितने वोटों से वो जीतते है।

Tuesday, May 5, 2009

शत्रु बनाम शेखर

पटना साहिब सीट पर दो सितारों के बीच रोचक मुकाबला है। दो बिहारी बाबू यहां आमने-सामने है। एक तरफ सिने जगत के स्टार शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी टिकट पर चुनाव मैदान में है तो वहीं कांग्रेस ने जाने माने टीवी कलाकार शेखर सुमन को चुनाव मैदान में उतारा है। परिसीमन के बाद बनी ये नई सीट सितारों की युद्धभूमि में तब्दील हो गई है। बीजेपी यहां से उम्मीदवार को लेकर पहले असमंजस में थी। वहीं शत्रु यहां से हर हाल में चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होने बीजेपी पर इसके लिए दबाव भी बनाया। अमर सिंह के साथ एक मंच पर आकर उन्होने बीजेपी आलाकमान को मुश्किलों में डाल दिया था। आखिरकार बीजेपी ने उन्हे टिकट दे दिया। तब शत्रु के लिए मुकाबला आसान माना जा रहा था। लेकिन बिहार में अपने दम पर कुछ करने की इच्छा जुटा चुकी कांग्रेस ने प्रसिद्ध टीवी कलाकार शेखर सुमन को उम्मीदवार बना कर दो कलाकारों के बीच चुनावी जंग तय कर दी। वैसे शत्रुघ्न इससे पहले भी फिल्म स्टार राजेश खन्ना से चुनावी गोटी खेल चुके है। हालाकि तब शत्रु को हार का सामना करना पड़ा था। दोनों कलाकार एक दुसरे को बड़ा भाई और छोटा भाई बताते है। शेखर तो यहां तक कहते है कि अगर शत्रु ने एक बार भी फोन किया होता तो उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ते वहीं शत्रु भी कहते है कि उन दोनों के बीच पारिवारिक रिश्ता है। परिसीमन के बाद पटना और बाढ़ संसदीय क्षेत्र की सीटों को काटकर ये नई सीट बनाई गई है। करीब सोलह लाख वोटरों वाले इस सीट में छह विधानसभा सीट शामिल है जिनमें बख्तियारपुर,दीघा,बांकीपुर,कुम्हरार,पटना साहिब और फतुआ सीट आती हैं। इस स्टार वार में मुद्दे तो गौण हो चले है लेकिन वोटर इन दोनों से मराठी बनाम उत्तर भारतीय मुद्दे पर जरूर सवाल पूछते है। आरजेडी ने दो स्टारों के बीच अपना उम्मीदवार खड़ा कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश है। आरजेडी ने विजय कुमार साहू को टिकट दिया है। साहू पटनासिटी के व्यवसायी है। हालाकि आरजेडी सुप्रीमो लालू भी कहते है कि जीत शेखर की होगी। दोनों ही सितारे कॉमेडी शो ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में जज की भूमिका में खूब हंस चुके है। पहले शेखर इस शो में जज हुआ करते थे बाद में शत्रु ने उनका स्थान लिया था। अब देखना होगा कि 16 मई को आने वाले फ़ैसले के बाद वोटर किसको ज्यादा हंसने का मौका देते है और कौन किसको खामोश कहता है।

गाजियाबाद में रोमांचक मुकाबला

दिल्ली से सटी ग़ाज़ियाबाद सीट इस बार हाईप्रोफाइलों सीटों में शामिल है। बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह यहां से अपनी किस्मत आजमां रहे है। उन्हे कड़ी चुनौती पेश कर रहे है कांग्रेस के मौजूदा सांसद सुरेन्द्र प्रकाश गोयल और बीएसपी के अमरपाल शर्मा।उत्तरप्रदेश की ग़ाजियाबाद सीट हमेशा से लो-प्रोफाइल रही। लेकिन इस बार नज़ारा कुछ अलग है। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह यहां से चुनाव मैदान में है। पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे राजनाथ की यहां कांग्रेस और बीएसपी ने अच्छी खासी घेराबंदी कर रखी है। कांग्रेस के मौजूदा सांसद सुरेन्द्र प्रकाश गोयल और बीएसपी के अमरपाल शर्मा मुकाबले को ख़ासा दिलचस्प बना रहे है। एसपी ने कल्याण सिंह के कहने पर यहां से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है और कांग्रेस उम्मीदवार का वो समर्थन कर रही है। राजनाथ के ख़िलाफ़ कल्याण सिंह का ये राजनैतिक चक्रव्यूह माना जा रहा है। राजनीति के पंडितों की पैनी नज़र इस सीट पर लगी हुई है। राजनाथ सिंह के साथ-साथ कल्याण सिंह और कांग्रेस की भी प्रतिष्ठा इस सीट पर दांव पर लगी है। इस चुनावी शतरंज में बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति है। सीधे-सीधे बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह का राजनैतिक करियर दांव पर लगा है। कल्याण का मानना था कि यहां से एसपी उम्मीदवार उतारने से राजनाथ की राह आसान हो जाएगी क्योंकि तब मुकाबला चतुष्कोणीय हो जाता। फिलहाल मुकाबला त्रिकोणीय है लेकिन वोटरों की चुप्पी से तीनों उम्मीदवार परेशान हैं। जातिगत समीकरण भी यहां खासा उलझा हुआ है। राजनाथ को अपनी बिरादरी के ठाकुर वोटरों से खासी उम्मीदें है। ठाकुर वोटर यहां करीब डेढ़ लाख है। राजस्थान में चले गुर्जर आंदोलन की आग यहां बीजेपी को भारी पड़ सकती है। यहां डेढ़ लाख से ज्यादा गुर्जर वोटर है। वैश्य वोटर करीब दो लाख है ...कांग्रेस उम्मीदवार को अपनी जाति के वोटरों से खासी उम्मीदें हैं। लेकिन निर्णायक स्थिति में मुस्लिम वोटर है। करीब चार लाख मुस्लिम वोटर किसी का भी खेल बना या बिगाड़ सकते है। कुल वोटरों की संख्या यहां 18 लाख के करीब है। परिसीमन के बाद इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। गाजियाबाद सिटी,साहिबाबाद,लोनी,धौलाना और मुरादनगर। इन नेताओं के साथ-साथ गुर्जर,वैश्य,जाट समाज के कई नेताओं की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस बार जाट बिरादरी के दो नेता अजित सिंह और महेन्द्र सिंह टिकैत आमने सामने है। अजित जहां बीजेपी के साथ है वहीं टिकैत कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में है। गुर्जर बिरादरी के किरोड़ी सिंह बैसला ने बीजेपी में शामिल होकर गुर्जर वोटरों को असमंजस में डाल दिया है। कुल मिलाकर राजनाथ यहां चुनावी चक्रव्यूह में फंसे है और मुकाबला खासा दिलचस्प होने की उम्मीद हैं।

Saturday, May 2, 2009

IS MAYA-NITISH GAINING?

IT SEEMS TO BE. AS THERE IS URGENCY IN MOOD OF LALU AND MULAYAM. IT LOOKS LIKE SURELY. CONGRESS IS MAKING A GREAT DEAL OF HELP TO BOTH OF THEM. FIRST COME TO LALU-NITISH LAND. LALU HIMSELF IS NOT SAFE FROM BOTH THE SEATS. IN CHHAPRA HE IS NOT CONFIDENT OF WINNING. ESPECIALLY AFTER THIS PARISIMAN. SO HE CHOSE PATLIPURTA NEWLY MADE SEAT AFTER PARISIMAN AND HUGE AMOUNT OF YADAV VOTERS ARE HERE. BUT THIS PATLIPUTRA IS NOW BECOMING SECOND MADHEPURA. DONOT FORGET HERE IS NOT MR SARAD YADAV BUT THREE YADAVS ARE IN RACE. NO DOUBT IT IS NOT EASY TO BEAT LALU INFRONT OF HIS M-Y EQATION. BUT NOT FORGET MR SARAD YADAV HAD DONE THIS IN PAST SO WHO KNOWS. CONGRESS IS HOW MUCH ANGRY WITH LALU AND PASWAN EASY TO UNDERSTAND AND IT SEES THEY PUT CANDIDATES AGAINST BOTH THIS MINISTER IN MANMOHAN CABINET. MANY PLACES CONGRESS IS NOT GOING TO WIN BUT THEY HAVE PUT SUCH A CANDIDATE WHO CAN CUT SOME LALU-PASWAN VOTES AND THIS IS TOO MUCH FOR THE GAIN OF BJP-JDU IN STATE. SUCH IS THE CASE IN UP AS WELL. CONGRESS IS WITH SP ON PAPER BUT ON GROUND THEY ARE HELPING MAYA. CONG-SP-BSP-BJP OR RLD CANDIDATES ARE IN RACE. ALMOST FOUR IN A RACE FOR A SEAT. SOME WHERE ONE IS NOT IN RACE AND SO IS TRIANGULAR. BUT HARDLY THERE IS STRAIGHT FIGHT. CONGRESS AGAIN GAVE TICKETS FOR SOME WINNING CANDIDATE, SOME FORMER MP, SOME BIG NAME, SOME BAGI FROM BSP,SP OR BJP NO MATTER. THEY ARE MAKING A GOOD MATCH. FRIENDSHIP WITH KALAYAN IS ALSO NOT DOING GOOD FOR MULAYAM. IT GIVES MAYA AN EXTRA EDGE. WHERE IT IS CLOSE FIGHT CONGRESSS GETTING THOUSAND TO LAKH VOTES IT IS ALL OVER FOR SP AND GOOD FOR MAYA. CONGRESS IS MAKING WAY FOR MAYA AND A STRONG CANDIDATE OF PM AFTER ELECTION. IF CONG AND COMPANY AND NDA COULDNOT DO WELL THEN IT MIGHT BE MAYA'S TURN. HAVING ALMOST 50 SEATS IN HER BAG SHE WILL BE SERIOU CANDIDATE FOR PM IN MAKING NOT WAITING...

HOW CONGRESS MISSED?

HOW CONGRESS MISSED IT MANY COULD NOT UNDERSTAND? WHEN SUPREME COURT OREDERD TO CHECK NARENDRA MODI ROLE IN GODHRA MASSACRE. MODI SWING IT OTHER WAY. HE CAME TO SAY LOOK THIS CONGRESS THEY ARE MAKING FREE AN OUTSIDER IN BOFORS CASE BUT WANT TO PUT ME IN JAIL A SON OF BHARAT MATA. WELL. AND CONGRES WENT UP SAYING THEY WILL NOT COMMENT SINCE IT IS IN COURT. WELL-WELL IT WAS TOTALLY CONGRESS FAILURE SINCE THEY DONOT HAVE ANYTHING TO TAKE WHAT SC IS DOING. MR MODI AFTER MAKINGI A SHAMFUL CHAPTER OF INDIA REALLY HIT IT ON SUPREME COURT WHICH HE HAS NO RIGHT TO DO SO. NOW IT IS GOOD NEWS THAT COURT HAS ACCEPTED TO DO HEARING ON MODI COMMENT. BUT WHAT MODI HAD DONE HE DID. GUJRAT VOTING HAS ENDED. HE MIGHT HAVE GAINED OF THIS COMMENT. IF HE FOUND GUILTY AND INFACT HE GUILTY OF MAKING SUCH COMMENT THEN IF BJP MP WHO WILL BE ELECTED OF THI LATE SWING OF MODI WILL BE ROMOVED. ONE CAN UNDERSTAND WHY CONGRESS DOESNOT WANT TO ATTACK MODI HEAVILY BECAUSE THEY THINK THEN HINDU VOTERS WILL BE UNIT AND THEY WILL ON BACKFOOT. BUT THIS BACKFOOT POLICY OF CONGRESS AGAINST MODI HAS GIVEN HIM EDGE. BAD PLAY CONGRESS IN GUJRAT THIS TIME. WHY NOT MODI MINISTER KODNANI WAS AN ISSUE MADE BY CONGRESS IN STATE.IS NOT IT SHAMFUL A MINISTER OF MODI GOVT MADE CROWD TO TAKE BADLA AND IN SUCH A FASHION. HOW ONE WILL PROVE THAT MINISTER WAS PROVOKED BY CM TO DO THE SAME. CAN ANYONE PROVE THIS. AS IT SEEMS THE CASE. HOPE CONGRESS WILL FIND OUT AN ATTACKING WAY TO COUNTER MODI.

LALU-MULAYAM POLITICS

RJD SUPREMO LALU PRASAD YADAV IS SAYING FORMER CM OF UP KALYAN SINGH IS CONVICT 6 DEC 1992 ACCIDENT TOOK PLACE IN AYODHYA. KALYAN IS WITH MULAYAM FIGHTING AGAINST BJP IN UP THIS TIME AND SAME LALU IS WITH MULAYAM AND MADE SO CALLED FOURTH FRONT. NOW ANYONE CAN UNDERSTAND THIS TYPE OF POLITICS. TODAY MULAYAM AND KALYAN ADDRESSED A MEETING IN BULANDSAHAR FROM ONE STAGE. MIND IT BULANDSAHAR WAS THE PLACE IT WAS ALL TROBULE BETWEEN KALYAN AND BJP STARTED. KALYAN NEVER WANTED ASHOK PRADHAN A BJP TICKET FROM THERE AND BJP WAS WANTING THE SAME. THAT PRADHAN WAS MAIN REASON OF LOSING KALYAN SON IN ASSEMBLY ELECTION. SO KALYAN SHIFTED HIS STAND AND ONCE A HINDUTVA HARD LINER TURNED INTO SAMAJBADI. THIS ALL IS SUCH A DIRTY POLITICS WHERE ONE HAS NO MISSION BUT ONLY THEY BETTER UNDERSTAND MAUKE KI NAJAKAT OR SHIFT THEIR POLITICS AS THEY REQUIRE. BOTH YADAVS ARE IN DEEP-2 TROUBLE. ONE IS IN BIHAR AND OTHER IS IN U.P. AFTER THEY HAVE NOT GIVEN CONGRESS A FAIR AMOUNT OF SEAT CONG HAD CREATED PROBLEM FOR BOTH. CONG HAD GIVEN SOME STRONG CANDIDATE IN MANY PLACES WHERE A TOUGH FIGHT IS GOING ON MANY PLACE TRIANGULAR AND SOME WHERE FOUR ARE IN RACE IN UP AND BIHAR. WHERE, THERE IS CLOSE FIGHT CONG MIGHT NOT WIN BUT THEY CAN EASILY GET SOME OF MULYAM AND LALU+PASWAN VOTE AND MAKE THEM LOOSE. MULAYAM IS CALM BUT LALU UNDERSTOOD THE MOOD OF VOTER TOO EARLY AND SO HE IS TELLING MODI RELATION, SANGH AND HINDUTVA CARD AND MANY MORE. WHO IS WINNING OR LOOSING IT IS TOO EARLY TO SAY BUT ONE THING IS SURE CONG IS GOING TO DO WELL. IF NOT BETTER IN UP AND BIHAR THIS TIME BUT THEY CAN HOPE FOR BETTER NEXT TIME. NOW COME TO GAZIABAD SEAT HIGH PROFILE ONE THIS TIME. BJP PRESIDENT IS IN DEEP DEEP TROBULE FROM HERE. RAJNATH WILL CONSIDER HIMSELF VERY LUCKY IF HE COULD WIN AND REACH LOKSABHA FIRST TIME. CONG AND BSP IS GIVING HIM GOOD FIGHT BUT MASTERSTROKE CAME FROM SP WHO HAS NOT GIVEN CANDIDATE FROM HERE AND SILENTLY SUPPORTING TO CONGRESS. IT WAS DUE TO MR KALYAN SINGH WHO THOUGHT IF SP GIVING A CANDIDATE IT WOULD BE EASY FOR RAJNATH. BUT IT IS NOT THE CASE. HOW YOU CAN FORGET RLD SUPREMO MR AJIT SINGH. HE IS A MASTER PLAYER AND SHIFP HIS POLITCS AS NEEDS. HE WAS MINISTER IN V.P. SINGH, P.V.NARSIMHA RAO AND ATAL CABINET NOT AN EASY ONE. ALTHOUGH HE COULD NOT DEAL WITH CONGRESS BETTER AND WAS NOT A PART OF MANMOHAN CABINET. IN 14TH LOKSABHA HE HAD 3 MEMBERS AND THIS TIME HE WILL BE LOOKING FOR MORE SO THAT HE CAN BETTER DO THE DEAL. NO DOUBT THIS POLL WILL BE REMEMBERED FOR ISSUE LESS ELECTION. SOME FOOLISH COMMENT LIKE VARUN,RABRI, LALU HIMSELF AND MANY MORE. HIGH TEMPERATURE ALSO DOING THE TRICK AND SO IS IPL. IN FACT IT IS GOOD MATCH GOING ON BETWEEN TWO IPL..INDIAN PREMEIUR LEAGUE AND INDIAN POLITICAL LEAGUE.AAGE-AAGE DEKHIYE HOTA HAI KYA?