Wednesday, May 6, 2009

अजित की राजनीति

गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले जाट नेता अजीत सिंह एक बार फिर बागपत सीट से चुनाव मैदान में है। अजीत फिलहाल बीजेपी के साथ है...अजीत के रिकार्ड को देखकर ये कहना मुश्किल है कि वो कितने दिनों तक बीजेपी के साथ रहेंगे। POLITICS में ना कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और ना ही दुश्मन। अजीत सिंह का भी ये फलसफा रहा है। तभी तो उन्होने खुद ही कई बार पार्टी छोड़ी, कई बार नयी पार्टी बनायी। यहीं नहीं अजीत सिंह....बी.पी. सिंह कैबिनेट, नरसिम्हा राव की सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे। कभी कांग्रेस के साथ तो कभी कांग्रेस के दूर...बीएसपी, एसपी के साथ भी चौधरी साहब तालमेल बिठा लेते है। या इसे यूं कहें कि जरूरत के मुताबकि अजीत अपना स्टैंड चेंज करते रहते है। 2004 में उनकी पार्टी के तीन सांसद थे। कांग्रेस के साथ उनकी डील फ़ाइनल नहीं हो पायी और वो मनमोहन कैबिनेट का हिस्सा बनते-बनते रह गए। 15 वीं लोकसभा की रणभेड़ी बजते ही अजीत सिहं बीजेपी खेमे में शामिल हो गए। बीजेपी को भी यूपी में कोई साथी चाहिए था सो दोस्ती होने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयी। लेकिन ये बीजेपी को भी मालूम है कि अजीत राजनीति के माहिर खिलाड़ी है। खासकर आज की राजनीति की जिसमें किसी भी एक पार्टी को बहुमत मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती। जहां एक-एक सीटों की ख़ास अहमियत है। अटल जी की सरकार एक वोट से ही गिर गयी थी। जहां तक बागपत सीट की बात है तो इस सीट पर 1977 से अब तक चौधरी परिवार का ही दबदबा रहा है। सिर्फ एक बार छोटे चौधरी को यहां से मात खानी पड़ी। जब 1998 में बीजेपी के सोमपाल शास्त्री ने अजित सिंह को मात दे दी थी। एक बार फिर अजित के सामने सोमापाल चुनाव मैदान में है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने उन्हे उम्मीदवार बनाया है। जबकि एसपी ने साहब सिंह को यहां से मैदान में उतारा है। जबकि बीएसपी ने डिबाई के विधायक गुड्डू पंडित के भाई मुकेश पंडित को उम्मीदवार बनाया है। अजित सिंह यहां से पांच दफे जीत हासिल कर चुके है। जबकि एक बार उन्हे हार का सामना करना पड़ा था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इस सीट का लगातार तीन बार प्रतिनिधित्व किया था। वैसे परिसीमन के बाद मोदीनगर की सीट अब बागपत में शामिल हो गयी है जिसपर सभी पार्टियों की ख़ास नज़र है। अजित सिंह को इस बार अपने परंपरागत वोटों के साथ बीजेपी के वोटों का सहारा है जबकि सोमपाल कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे है। वैसे अजित सिंह का पलड़ा तो भारी माना जा रहा है लेकिन सोमपाल के चुनाव मैदान में होने से मुकाबला रोमांचक हो गया है।

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