घर से फोन आया। मैं ऑफिस में ही था। मां ने पूछा” खाना खा ले ल। मैंने धीरे से कहा, हां। मां फिर बोली...खाना न खयल ह कि आवाज बहुत धीरे आ रहल ह। मैने कहा, मैं ऑफिस में हूं। और फिर कुछ दूसरी बातें भी हुई। आज मदर्स डे के मौके पर फिर उनकी याद आती है। इस तरह का दिन किसने बनाया..समझ में नहीं आता। आज फादर्स डे...कल मदर्स डे..अगला दिन कुछ और फिर कुछ और। भला मां को याद करने के लिए किसी डे की भी जरूरत है। सब उनके आभारी है। वो कभी गलत नहीं कर सकती। हमेशा बेहतर ही सोचती है। मेरी अधिकतर कोशिश होती है कि मैं सबको एक समान तरह से देखूं। मतलब सबके साथ एक जैसा व्यवहार। चाहे वो मेरे पिता हो,मेरी मां हो, या फिर कोई अजनबी जो सड़क से गुजरते वक्त हमें मिल जाता है। पता नहीं इस चक्कर में मैं अपनों को कम प्यार दे पाता हूं या ज्यादा। खैर ये अलग बात है। ऐसे कई बेटे है जिनके मां-बाप सोचते है ये नहीं होता तो बेहतर। वहीं कई ऐसे बेटे भी जिन्होने अपना सबकुछ मां-बाप के लिए दांव पर लगा दिया। भविष्य की कोई चिंता नहीं की। पता नहीं हम कैसा बने। लेकिन मां अब भी फोन करती है और पूछ लेती है, खाना खा ले ल। आज नानी की भी याद आ रही है। मेरी सबसे करीबी मां। जब से समझ आई उन्हे ही जानता हूं। इया कहता था मैं। जब मां नानी के घर आती तो सब कहते है ये मां है उन्हे मां बोलो। मैं बच्चा समझ नहीं पाता। कहता तो मेरी मां खुश हो जाती। बहुत याद आती है आपकी।
मोदी-नीतीश का दोस्ताना
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आज मदर्स डे का गाना मोदी ने ठीक से नहीं सुनने दिया। क्या जरूरत थी नीतीश के साथ हाथ मिलाते तस्वीर खिंचाने की। कांग्रेस का दिल टूटा होगा की नहीं। और लेफ्ट का क्या हुआ होगा। पहले ही टीआरएस को ले भागे थे एनडीए वाले। अब तो नीतीश भी मोदी के साथ हो गए...कनफर्म हो गई है अब ख़बर। बेचारे मोइली तो मुफ्त में ही मारे गए। रविश जी अपने ब्लॉग में नीतीश पर लिखते है। कहते है वाह..नीतीश...मुस्लिमों को अच्छा वेवकूफ बनाया। अगर मोदी से हाथ मिलाना ही था तो बिहार में चुनाव के वक्त क्यों नहीं मिलाया। नीतीश कहीं नहीं जा रहे थे..सही है. लेकिन ख़बरों में थे। डिमांड बढ़ी हुई थी। उन्होने अपनी बड़ी चालाक छवि बनायी है। इसमें किसी को संदेह नहीं। खैर यहीं राजनीति है। पॉलिटिक्स में लबरई का बाज़ार। फिर भी हम कहने को मजबूर है लोकतंत्र जिंदाबाद। वाह रे राजनीति। कैसे-कैसे दिन दिखाओगे। राजनीति शास्त्र का मैने पूरा अध्य्यन तो नहीं किया लेकिन जो पढ़ा उसमें ये सब नहीं बताया गया था। हां पावर पॉलिटिक्स की बात सूनी थी, सत्ता के लिए कुछ भी सही है...जी हां, कुछ भी।
Sunday, May 10, 2009
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