Thursday, May 7, 2009

आजमगढ़ और बटला एनकाउंटर

कैफी आजमी... उर्दू और हिन्दी के प्रसिद्ध शायर का शहर.. आजमगढ़...को आज कई-कई नामों से पुकारा जा रहा है। कोई आतंक की नर्सरी बता रहा है तो कोई इसे आतंकगढ़ का नाम दे रहा है। बटला हाउस एनकाउंटर के बाद ये शहर लगातार सुर्खियों में रहा। इसका असर यहां चुनाव पर भी देखा जा रहा है। बटला हाउस एनकाउंटर के बाद का दिन इस शहर के लिए बहुत बुरा रहा। इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी की गिरफ्तारी के साथ ये सवाल बार-बार उठे की कैफी आजमी के शहर को आखिर क्या हो गया है। चुनाव का वक्त है और ये मुद्दा यहां अब भी गरम है। 15 वीं लोकसभा में यहां से 16 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। बाहुबलियों की नज़र इस सीट पर लगी हुई है। बीजेपी ने रामाकांत यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है तो एसपी ने दुर्गा प्रसाद यादव को टिकट दिया है जबकि बीएसपी ने अहमद अकबर डंपी को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने संतोष कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। बीएसपी... यहां से पांच बार जीतने में सफल रही है। इसके पीछे जातिगत समीकरण भी बड़ी वजह है। मुस्लिम वोटर यहां सर्वाधिक है करीब बीस फीसदी। कुल मतदाताओं की संख्या करीब 15 लाख 78 हज़ार है। पुरूष मतदाता करीब साढ़े आठ लाख है जबकि महिला वोटरों की संख्या 7 लाख से अधिक है। यादव औऱ दलित वोटर 19-19 फीसदी है।क्षेत्र का विकास तो यहां मुद्दा है हीं...इसके साथ ..आतंकवाद भी यहां एक अहम मुद्दा है। खासकर दिल्ली में हुए बटलाहाउस एनकाउंटर के बाद। जिस तरह से बाहरी दुनिया ने आजमगढ़ पर सवाल उठाए है उसका जवाब यहां के लोग... वोट के जरिए देने को पूरी तरह तैयार हैं।

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