Friday, June 25, 2010

टीआरपी की वैध संतान

बेहतर तरीके से टीआरपी कैसे हासिल करें। वो जो नाग-नागीन नहीं दिखा सकते, वो जो स्क्रीन पर नौटंकी नहीं परोस सकते। वो जो बाबाओ और भूतों को नहीं दिखा सकते। वो क्या करें कि टीआरपी हासिल हो। दिल औऱ दिमाग थाम कर बैठ जाइए क्योंकि आ गया है टीआरपी पाने का वैद्य फॉर्मूला। शुरुआत में एक बात कह दें कि ये टीआरपी का पूरा सिस्टम ही खोखला है या अवैध है। लेकिन फिर भी गलत में भी सही निकालने का तरीका है। चलिए ज्यादा इंतजार नहीं करवाते है तो टीआरपी गेन करने के फॉर्मूले पर आ जाते है। सीधा और सामान्य बिना किसी पैसे के ये सब बताया जा रहा है। सबसे पहले तो टिकर पर आईए। टिकर में कितने खबरें अपडेट रहती है। कितनी की मात्रा सही रहती है। आगे आने वाले कार्यक्रम के बारे में कुछ बताते है या नहीं। ये तो ब्रेक के बीच में भी बताते रहिए आगे देखिए...साढ़े नौ बजे...जो भी दिखाना हो। ऐसा की समझ में आ जाए कि क्या दिखा रहे है। तो टिकर पर मुस्तैद नजर जरूरी है। ब्रेकिंग करने के तुरंत बाद वो खबर टिकर में डाल दीजिए। आज कल टॉप टेन का भी चलन शुरु हो गया है तो बताने की जरुरत नहीं है कि इस तरह से पेश करें कि सारी बड़ी खबरें आ जाए। अब ये टिकर भईया पर मत छोड़िए कि उन्हे खेल ज्यादा पसंद है तो इसके पांच टिकर डाल दिए और अर्थ जगत की बड़ी खबरें छोड़ दिए।चलिए आप दिन भर कितनी खबरें ब्रेक करते है। सबसे पहले। दूसरों पर चलने के बाद ब्रेक करने का कोई मतलब नहीं है। सुशील मोदी नीतीश के साथ विश्वास यात्रा पर नहीं जाएंगे। इसे फ्लैश कर मत छोड़िए...ब्रेकिंग न्यूज में ही डालिए। और हां सिर्फ टैम वाले जगहों को ही ब्रेकिंग में ना लें। कहीं की भी खबर हो बड़े-बड़े ब्रेकिंग में डालिए अगर उस वक्त कोई दूसरी बड़ी खबर नहीं हो। स्क्रीन पर जितना ज्यादा ब्रेकिंग चलता रहेगा दर्शक चैनल पर आने के बाद कुछ देर तक टिकेंगे। और हां आपकी ब्रेकिंग वाली प्लेट आकर्षक है या नहीं। कैसा दिखता है इसका भी ध्यान रखें। स्क्रीन पर बड़े-बड़े लेटर वाली ब्रेकिंग जब चलती है तो वो प्लेट कैसा दिखता है। लोग देखकर रुक सकेंगे या नहीं । इसका ख्याल जरुर रखें। बिग ब्रेकिंग......स्क्रीन पर दिखे तो आकर्षक लगे...डरावना ना लगे, भद्दा ना लगे,,,अरे इतनी बड़ी खबर कैसे दिखा रहे है। और ब्रेकिंग खबरों पर कुछ देर बने रहे। ये नहीं कि आए और चल दिए। उसमें क्या-क्या कर सकते है। रिपोर्टर के साथ घटना से जुड़े कोई व्यक्ति या अधिकारी का फोनो या लाइव मिल जाए तो मामला थोड़ा बढ़ा दें। दो बजकर चालीस मिनट पर कोई बड़ी खबर आती है और उस वक्त आपका कोई प्रोग्राम चल रहा हो तो क्या आप तीन बजे तक का इंतज़ार करेंगे। या फिर कोई वैसे विजुअल आ जाते है तो क्या करेंगे। इंतजार मत कीजिए...प्रोगाम जरूरी हो तो तोड़ दीजिए। ब्रेकिंग या फिर उस विजुअल पर लोग कहते है खेल जाइए। क्या आप हर बुलेटिन दिन की सबसे बड़ी खबर से शुरु करते है। तो सावधान। मान लीजिए भोपाल गैस कांड में अर्जुन सिंह पर केस दर्ज हो गया है या एंडरसन को लाने की कोशिशें शुरू हो गई तो क्या आप सुबह ग्यारह बजे से रात ग्यारह बजे तक की पहली खबर इसे ही लेंगे। ऐसा ना करें। दर्शक बोर हो जाते है। दो-तीन बार बड़ी खबर चलाने के बाद कुछ भी ताजा खबर उस वक्त की से बुलेटिन की शुरुआत करें। न्यूज चैनलों में दिन में फोनो टाइप, या फिर कही हंगामा, कही मारपीट, कही हादसा, जैसी खबरें आती है। तो बड़ी खबर को पहले ब्रेक के बाद रख कर इस तरह की खबरों पर फोनो, लाइव के साथ शुरुआत कर सकते है। ये अच्छा रहेगा। ठीक है पहली हेडलाइन बड़ी खबर ही होगी ....लेकिन शुरुआत किसी अलग खबर से करने में कोई हर्ज नहीं। क्या आप हेडलाइन में कोई नियम बनाते है जैसे कि चार हेडलाइंस या फिर पांच । ऐसा ना करें। बड़ी खबरें हेडलाइंस में जरुर डाले। जिन्हे खेल की खबर देखनी होगी वो थोड़ा इंतजार करेंगे। जिन्हे राजनीति की खबर देखनी होगी और वो हेडलाइंस ही नहीं है तो वो हट जाएंगे चलो कहीं औऱ वहां देखते है। हेडलाइंस आप कितने अंतिम समय तक अपडेट कर पाते है....सारा मजा इसी का है। वो तो अखबारों में भी छप जाएगा। अखबारों में कोई जल्दबाजी नहीं होती आराम से काम चलता है। लेकिन हमारे औऱ आपके लिए आऱाम नहीं है अगर आप न्यूजरूम पहुंच चुके है। न्यूज रुम में पहुंचते ही व्यस्त हो जाइए। हां काम के साथ, फोन और फेसबुक पर नहीं। दूसरे चैनलों पर करीबी निगाह रखे. वहां क्या ब्रेकिंग चल रही है। किस खबर पर वो आक्रामक रवैया बनाए हुए है। आज दिन में कोई बड़ी खबर डेवलप होने वाली है तो उस पर बने रहिए। साथ ही बेहतर तरीके से। सबसे पहले......की कोशिश कीजिए। हां इस चक्कर में जिंदा को मुर्दा ना बनाइए। चलिए कही ट्रेन हादसा हुआ। १० लोग मारे गए तो चलाइए...ठीक है सौ मत बताइए...लेकिन १० मौत भी तो कम नहीं है चलाइए....वक्त दीजिए खबर पर। विजुअल दो तीन तरीके से कटवाइए...एक्शन वाली घटनाओं का...डब्ल विंडो या ट्रिपल विंडो देखकर लोग कुछ देर तक रुकते है। आप कितनी जल्दी ब्रेकिंग खबरों पर डिटेल्स लोगों को देने की कोशिश करते है। कई बार लोग ताजा खबर या ब्रेकिंग न्यूज में चलाकर भूल जाते है। या फिर अपने काम को पूरा मान लेते है। ऐसा मत कीजिए। या फिर ब्रेकिंग ही मत चलाइए। मान लीजिए आपने भारत की जीत की खबर चला दी। १५ साल बाद भारत ने एशिया कप का खिताब जीत लिया है। जिस दर्शक को क्रिकेट नहीं भी पसंद है वो उस वक्त उस बारे में जानना चाहेगा। आपका कोई और कार्यक्रम चल रहा है औऱ बड़ी ब्रेकिंग भारत की जीत की चला रहे है तो दर्शक वहां से हटकर उस चैनल पर जाना चाहेगा जहां इस बारे में जानकारी दी जा रही होगी....सो या तो ब्रेकिंग ही ना चलाए या फिर चलाए तो तुरंत बुलेटिन में शामिल करें। प्रोग्राम तोड़ने से नहीं हिचके। बहुत मेहनत से प्रोग्राम बनाया था आधा घंटे का चलने दें। कृप्या ऐसा ना करें। टीवी अखबार नहीं है यहां हर खबर तुरंत चाहिए। न्यूज रूम चैट की व्यवस्था हमेशा रखे। कभी कभार प्रोग्राम शुरु होने से पहले हेडलाइंस ले लें और फिर कोई बड़ी खबर जो उस वक्त आ रही हो उसकी जानकारी देकर प्रोग्राम शुरु कर दे। आगे क्या है....दिन भर चलाना ना भूले। कोई बड़ी खबर न्यूज रूम में या आउटपुट में आते ही उसे रोके मत जरा सा भी देर ना करें। दूसरे चैनलों पर कोई बड़ी खबर चल रही हो तो जल्दी से अपने रिपोर्टर से कन्फर्म करे हाथ पर हाथ धरे ना बैठे रहे। खबरों के आने का इंतजार ना करें....खबरों तक पहुंचे। कुछ खेल, मनोरंजन, अनोखी घटनाओं को आधा घंटा बनाए और उसे चाहे तो दो-तीन बार दिन में प्ले कर सकते है। कुछ वक्त और दिन का भी ख्याल रखें। संडे है तो कुछ सॉफ्ट टाइप, संगीत...देखने-सुनने में अच्छा लगे....। रात नौ बजे और दस बजे का अलग मामला है। वहां दिन भऱ की बड़ी खबरें होती है। लेकिन दिन भर में कोई खबर ना पहली होती है ना आखिरी। किसी को भी कही लें सकते। लगातार हर बुलेटिन में एक ही खबर से शुरुआत करना मजेदार नहीं होता। आप भी बोर होते है, चलाने वाले भी, पढ़ने वाले भी और फिर देखने वाले भी। उस वक्त की बड़ी खबर ही हमारी पहली खबर है। और पहली खबर को हल्के में ना लें।फोनों नहीं मिल रहा है कमेंट्री करवाए। कांग्रेस की बैठक में हंगामा हो गया है...ब्रेकिंग न्यूज। फिर फोनो....अगर आपको लगता है कि पांच से दस मिनट में आपके पास शॉट आ रहे है तो बने रहिए खबर पर । फिर शॉट के साथ फोनो-लाइव चलता रहे। जरुरी नहीं कि हमने तो बड़ी खबर पिछळे तीन बुलेटिन में दिखा दिए है इस बार भी दिखाए। कभी कभार ऐसे एक्शन शॉट्स आ जाने पर हम क्या करते है। सीधे सामान्य तरीके से शॉट्स दिखाकर आगे बढ़ जाते है। उसे बिग ब्रेकिंग बनाए। पहले स्क्रीन पर पूरा प्लेट दिखाएं फिर शॉट्स चलाए। इसका थोड़ा ज्यादा इम्पैक्ट पड़ता है। नौटंकी कर सकते है तो करें नहीं तो खबरों के साथ खेलें। तत्काल की खबर पर जम जाएं। ये नहीं कि हमें थर्ड सेगमेंट में सॉफ्ट स्टोरी दिखानी है इसलिए जल्दी आगे बढ़ चले। टेक्सट हेडलाइंस, हेडलाइंस से पहले मौसम का हाल,,कार्टून या फिर और कुछ रखें तो दर्शकों को बांध कर रखें। अपने आने वाले प्रोग्राम का प्रोमो जरुर बनाए और चलाते रहें। ऐसे और कई तरीके है जिससे आप दर्शकों को अपने चैनल पर बांध सकते है। वैसे ये टीआरपी का पूरा चक्कर ही बेकार का है। लेकिन इसी में अच्छा भी किया जा सकता है। कुछ अच्छे तरीकों को इजाद कर के। वैसे ये भी सच है कि हमने बहुत समय जाया किया है इस टीआरपी के चक्कर में। अगर इतना ही समय हमने खबरों के पीछे बर्बाद किया होता तो कमाल हो जाता है। आज हम इतने बेबस और लाचार ना होते इस टैम वाले टामियों के पीछे। लेकिन क्या करें जब हालत ऐसी हो ही गई है तो कुछ बेहतर तो कर ही सकते है।

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