Friday, June 18, 2010

मेरे तो हजार फॉलोअर है?

क्या आपका ब्लॉग है, क्या आपका फेसबुक अकाउंट है, क्या आप ट्विटर पर है...अगर जबाव नहीं है तो माफ कीजिएगा आप पत्रकार नहीं है। क्या अपने ब्लॉग पर आप नेताओं का नहीं गडियाते, अपने दिल की भड़ास कहीं और नहीं निकालते, आपके कितने फॉलोअर है। सौ में है या हजार में। आपके ब्लॉग पर कितने कमेंट आते है। वगैरह-वगैरह। आज के पत्रकार वक्त निकाल कर ब्लॉग जरुर लिखते है। नेताओं को लंबा-चौड़ा उपदेश जरुर देते है। बाईट लेते वक्त नेताओं के आगे पीछे भी खूब करते है।
हम क्या कर रहे है? कहां जा रहे है? एक्सक्लुसिव खबरों का चस्का ऐसा लगा है कि पूछिए मत। बुलेटिन में कोई एक्सक्लुसिव खबर है भी या नहीं। नहीं है तो क्या खाक बुलेटिन बना लिए। टीआरपी का क्या हाल है। नंबर वन है या काफी पीछे। पिटे तो किससे पिटे और क्यों पिट गए। खबर दिखा रहे है या नौटंकी कर रहे है। खबर दिखाने से थोड़े टीआरपी आती है। कुछ भी, जैसे भी अलग कीजिए। नौटंकी कीजिए। तब टीआरपी आएगी। नहीं तो फिर न्यूजरूम से लेकर बेडरुम तक दूसरे चैनलों को कोसते रहिए। ये क्या दिखाते है।
प्रोफेशन है या मिशन। मत पूछिए ये सवाल। नौकरी रहे तो लाखों उपाय। मिशन का दौर तो कब का खत्म हो गया है। हम २१ वीं शताब्दी में जी रहे है। इतना भी आउटडेटेड तो नहीं हो सकते । जो मिशन कर गए वो लोग कुछ और थे। हम कुछ और है सबसे हटकर है। सबसे तेज बनने की कोशिश में रहते है। पहले खबर ब्रेक हुई या किसी और ने ब्रेक कर दी। सारा माजरा सबसे आगे का है। चाहे कुछ भी।
भोपाल गैस कांड पर आजकल खूब एक्सक्लुसिव खबरें बन रही है। हर जगह। २६ साल तक किस कुंभकरणी नींद में सो रहे थे हम सब। तब के अखबारों को खंगाला जा रहा है। किसने क्या बयान दिया था। नया ताजा भी लेकर आ जा रहे है प्राइम टाईम में मित्र लोग। अदालत के फैसले पर सीधे-सीधे डंके की चोट पर कह रहे आधा-अधूरा इंसाफ। अब जिस धारा में मामला दर्ज कराया था अदालत तो उसी पर फैसला देगी ना। मीडिया ने कौन सा इंसाफ दिला दिया। अब सवाल ये उठने लगा है कि अर्जुन सिंह आखिर क्यों चुप्पी साध बैठे है। बोलते क्यों नहीं। बोलो अर्जुन बोलो। क्यों खामोश हो? उठाओ गांडीव और भेद डालो टारगेट को।
नीतीश मोदी की तस्वीर पर खूब हंगामा बरपता है। या फिर हंगामा बरपा देते है भाई लोग। जिनकी तस्वीर ही कभी नहीं छपी उसका क्या। वो कहां हंगामा करे। कैसे करे?
उसके हंगामे की खबर कौन दिखाएगा? टीआरपी मिलने की गारंटी है। नहीं है तो फिर ये खबर ड्रॉप की जाती है। माफ कीजिएगा...और बड़ा हंगामा कीजिए...खुद को आग के हवाले कर दीजिए...आत्मदाह की धमकी दीजिए....धमकी पर ख़बर ना बने तो पेट्रोल छिड़क कर माचिस जलाकर खुद को आग के हवाले कीजिए...जान दे दीजिए या नब्बे फीसदी जले हालत में अस्पताल में भर्ती हो जाइए। फिर हम आपको दिखाने की गारंटी देते है जो आप खुद नहीं देख सकते। फिर तो हम लाइव एंड एक्सलुसिव दिखाने से भी नहीं हिचकेंगे। ये लाइव एंड एक्सक्लुसिव में किसका भला हो रहा है? पत्रकारिता का आम लोगों का या फिर चैनल का। समझ सको तो समझ लो। ये विजुअल सिर्फ हमारे पास है। चार चैनल चीख-चीख कर ये चिल्ला रहे है। औऱ हर चैनल पर ये विजुअल चल रही है। तो क्या दर्शक इससे कन्फयुज होते है अरे ये खबर सिर्फ इसी चैनल पर है। दर्शकों का इससे कहां कोई सरोकार। उसे तो अपनी चिंता सता रही है। रात को क्या खाना बनेगा। खाने में रोटी और चावल के साथ दाल या सब्जी हो पाएगा की नहीं। बच्चे की फी कैसे दिए जाएंगे। खर का किराया भी देना है क्या? या फिर लोन के साथ इंट्रेस्ट चुकाना है। कैसे होगा ये सब? वित्त मंत्री ने कुछ टैक्स में इधर उधर तो नहीं कर दी। शरद पवार ने कोई बयान तो नहीं दे दिया कि फलां सामान के कीमत बढ़ने वाले है। पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और एलपीजी का रेट कब बढ़नेवाला है। फिर ऑटो वाले से लेकर बस वाले को कितना ज्यादा देना होगा। फिर तो सबकुछ ही महंगा हो जाए। तब क्या करेंगे? क्या कोई फार्मूला या कोई खबर है जो इन लोगों को परेशानी से बाहर ला सके। इस माहौल में भी वो कैसे जीवन नैया पार लगा सके। कोई तरीका सुझा सकते है अपने दर्शकों को। फिर आप ही रखो ये टीआरपी, ये एक्सक्लुसिव खबर और ये ढ़ेर सारी नौटंकी।

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