Saturday, June 5, 2010

ये राजनीति नहीं आसां...

प्रकाश झा की फिल्म राजनीति पर्दे पर दस्तक दे चुकी है। सिनेमा हॉल पहुंचा तो देख कर दंग रह गया है कि महिलाओं और लड़कियों को राजनीति में इतनी ज्यादा रुचि कबसे आ गई। काउंटर पर महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखी तो सोचा शायद वो कैटरीना और सोनिया की राजनीति से प्रभावित है। कैटरीना को सोनिया या प्रियंका की रोल में देखना चाहते है। अभी लिखते वक्त ये ख्याल आ रहा है कि आखिर ३३ फीसदी रिजर्वेशन की भी तो बात हो रही है तो उनका बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना जरूरी है। इंटरवल में कई लोग बात करते रहे और कौन कौन है? कुछ पता ही नहीं चल रहा था। पांच पांडव और फिर महाभारत की कहानी। कोई राहुल गांधी नहीं लगा, ना कोई सोनिया का रोल था। हां गांधी परिवार के कई नेताओं की हत्या हुई है सो कुछ देर के लिए आपको वो याद आ सकते है। कैटरीना प्रियंका की कहीं कही याद दिला पाती है। एक उनका भाषण अपील करता है। फिल्म में करण भी है और दुर्योधन भी। दोनों ने बेहतरीन अभिनय किया है। लेफ्ट के नेता भी फिल्म में है। कौन है कह नहीं सकते लेकिन लेफ्ट नेताओं की असलियत को कुछ अलग ही तरीके से फिल्म में पेश किया गया है। शायद बंगाल में अब लेफ्ट खत्म होने को है सो लेफ्ट पर इस तरह की चोट निराश नहीं करती। प्रकाश झा ने सभी कलाकारों से बेस्ट निकलवा लिया है। रणवीर भी अर्जुन की भूमिका को बेहतर तरीके से निभा पाते है। लेकिन वो राजीव गांधी नहीं है। कैटरीना ने छोटे से रोल में ठीक ठाक काम किया है। लेकिन इतने सारे कलाकारों से कनेक्ट करना थोड़ा मुश्किल रहा। सोचिए अगर महाभारत की पूरी कहानी तीन घंटों में पेश कर दिया जाए कितने कन्फयूज हो जाएंगे आप। याद है ना रविवार को सुबह नौ बजे गांव में किसी टीवी सेट से चिपक जाना। जहां बेडरूम में टीवी नहीं रखा होता। पूरा गांव या फिर पूरा मुहल्ला कहीं एक जगह जमा होकर महाभारत देखा करते थे। कई बेहतरीन फिल्म देने वाले प्रकाश झा अपनी फिल्म में बिहार की पृष्ठभूमि का बेहतरीन प्रयोग करते है। भले ही फिल्म भोपाल में शूट हुई लेकिन कई जगह पर बिहार की राजनीति की छाप भी दिखेगी। या फिर आज तो देश की यही हालत है। टिकट नहीं मिलने पर जो बवाल होता है या फिर टिकट के लिए जो करोड़ों रुपए की हेराफेरी होती है कौन नहीं जानता। फिल्म के रिलीज होने के दिन ही पटना में असली राजनीति भी दिखी। पता नहीं ये फिल्म से कितनी प्रेरित थी। लेकिन आरजेडी के कार्यालय में एक नेता ने दूसरे पर रिवाल्वर तान दी। अब कोई कार्रवाई होगी या नहीं तो लालू ही जाने लेकिन प्रकाश झा इस घटना को कैसे लेंगे समझ नहीं आता। खेल में राजनीति को भी दिखाया गया है। कैसे कबड्डी मैच के समापन पर नेताजी का दलित प्रेम जाग उठता है। लेकिन उस दलित नेता को दबाने की भी कम कोशिश नहीं होती। बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। राजनीति में अपराध, भ्रष्टाचार गहरी पैठ जमा चुका है सब वाकिफ है। फिल्म में उसे दिखाने की पूरी कोशिश की गई है। एक दो बार नहीं पूरी फिल्म इसी अपराध पर घूमती है। अब आप इसे महाभारत से जोड़े जहां लड़ाई तीर कमान से होती थी अब रिवाल्वर के सहारे। सीतापुर से टिकट चाहिए.....अर्जुन रामपाल को भीम बताया जा रहा है...पर तब के भीम अलग थे आज के अलग। आज का भीम मीडिया से लड़ बैठता है, एसपी को पहले पीटता है फिर जान से भी मार देता है। सीतापुर से एक महिला को टिकट चाहिए उसके लिए उसे अपना सबकुछ गंवान पड़ता है। टिकट भी नहीं मिलती। और पता नहीं उस महिला का क्या होता है। शायद शीन कट हो गया हो या फिर उसकी जान ले ली गयी हो। साजिश खूब होती है। मैदान में नहीं जीत रहे हो तो जान ही ले लो। कहीं राजनीति में अपराध को ज्यादा दिखाया गया है। प्रकाश झा ने लगता है जानबूझकर बिहार और यूपी के दर्शकों के लिए इसे शामिल किया है जहां कभी आरजेडी नेता तो कभी जेडीयू, यूपी में बीएसपी नेता तो समाजवादी पार्टी के नेताओं पर सत्ता का रौब इस कदर होता है कि वो किसी की जान लेने से जरा नहीं हिचकते। अत्यधिक हिंसा थोड़ा निराश करती है लेकिन आने वाले बिहार चुनाव के लिए कहीं ये ट्रेंड ना बन जाए इसकी चिंता भी हो रही है। मुस्लिम वोटर कितने जरूरी है इसका भी ये दृश्य है। वीनिंग में सेटिंग-गेटिंग की अहम भूमिका होती है इसका शानदार सीन दर्शाया गया है। राजनीति में रुचि रखनेवालों को ये फिल्म जरुर खिंचेगी। और जो लोग राजनीति को गंदा खेल कहते है...उन्हे ये जरूर पता चलेगा कि ये राजनीति नहीं आसां। कहते है या प्रेम और युद्ध में सबकुछ जायज है। आज राजनीति के लिए भी यहीं कहा जा सकता है। खासकर यूपी,बिहार और झारखंड की राजनीति पर नजर रखनेवाले ऐसा ही कहेंगे। अब देखिए ना यूपीए सरकार को बीएपी और समाजवादी पार्टी दोनों का समर्थन हासिल है। बिहार में जरूरत पड़ने पर लालू-रामविलास कभी भी कांग्रेस के साथ आ सकते है। बात तो नीतीश के आने की भी चल रही है। दोनों राज्यों में ये एक दूसरे के दु्श्मन नंबर वन है। झारखंड का हाल देखे तो कभी गुरुजी कांग्रेस के साथ होते है तो कभी बीजेपी के साथ। बीजेपी के साथ रहकर, उसके समर्थन पर मुख्यमंत्री पद का भोग करने के बाद कटौती प्रस्ताव पर वो कांग्रेस के साथ आ जाते है। ये राजनीति है जो हमारे भोले-भाले वोटरों को नहीं समझ आती और ये राजनीति के धुरंधर उसके शातिर खिलाड़ी है जो जब जैसा चाहे वैसा कर सकते है। सरकार गिरा सकते है, बनवा सकते है। झारखंड में बीजेपी जल्द चुनाव की मांग कर रही है अभी ये सरकार तो गिराया है लोगों पर इतनी जल्दी एक और बोझ देने की तैयारी में। दुर्भाग्य ये है कि आप राजनीति से खुद को दूर भी नहीं रह सकते ये हमारे जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है। सो जैसी भी है ये राजनीति है...भले ही ये आसां ना हो...

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