Sunday, June 27, 2010

ये रिश्ता क्या कहलाता है...

नरेन्द्र मोदी बिहार क्या गए....बीजेपी-जेडीयू की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई...और अचानक ही थ्री इडियट्स का गाना भइया ऑल इज वेल...बीजेपी-जेडीयू पर फिट बैठता नहीं दिख रहा। मोदी के लुधियाना रैली वाले पोस्टर ने सारा बखेड़ा किया कि कुछ ने कहा भईया इस चक्कर में हलवाई को क्यों सजा दे दी। सुशील मोदी याने छोटे भैया भी नाराज हो गए। विश्वास यात्रा से किनारा कर लिया। पटना से लेकर दिल्ली में बबाल मच गया। भईया चुनावी साल में बिहार की राजनीति क्या रंग लेने जा रही है।बयानबाजी भी होने लगी। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल रहा है। खास बात ये रहे कि पांच करोड़ का चेक लौटाने के बाद भी नरेन्द्र मोदी चुप रहे। चुप रहना वैसे तो उनकी आदत नहीं लेकिन जब सपना दिल्ली की गद्दी का हो तो चुप रहना भी बेहतर होता है। सो मोदी चुप ही रहे, कुछ ना कहे....नीतीश भी मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से बचते रहे। पत्रकारों से कहा टेंशन नॉट...रिलैक्स....दिल्ली में शरद यादव मामले पर नजर बनाए रहे और कहते रहे कुछ नहीं है। हम साथ-साथ हैं। बीजेपी की मैराथन बैठक दिल्ली में चलती रही...फैसला सबको पहले से ही पता था। खैर अब छोटे भईया सुशील मोदी भी मान गए। गया में विश्वास यात्रा में फिर दोनों में विश्वास बहाली हो गई है। कैबिनेट मंत्री सुधा की अंतिम यात्रा के लिए भले ही नीतीश के पास वक्त कम पड़ गए थे लेकिन कभी बांका के पूर्व साथी दिग्विजय सिंह की मौत पर नीतीश ने अपनी विश्वास यात्रा रद्द कर दी है। पटना में सुबह सुबह आज स्टेशन पहुंचे थे। दिग्विजय सिंह का शव आज ही दिल्ली से पटना पहुंचा था। दिग्विजय सिंह का जाना बिहार में विरोधी पार्टियो के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। लेकिन जिंदगी औऱ मौत पर किसका चला है। खैर जेडीयू बीजेपी की तनातनी फिलहाल कम होती दिख रही है। लेकिन ये तो सीटों के बंटवारे के वक्त पता चलेगा कि किसको कितना नुकसान पहुंचता है। दरअसल ये सब दबाव की राजनीति है। आगे देखिएगा मोदी और वरुण के चुनाव प्रचार के वक्त क्या स्थिति होती है। वैसे बिहार में बीजेपी को इन दोनों की ही जरूरत नहीं है। इससे उन्हे तो कुछ खास फायदा होने से रहा लेकिन इसका नुकसान जेडीयू को हो सकता है। जिसे नीतीश अच्छी तरह समझते है। यहीं है पूरी नौटंकी। सियासत की नौटंकी। बिहार से इस बार केन्द्र की राजनीति में बड़े नाम शामिल नहीं है तो क्या हुआ विरोधी पार्टी बीजेपी को तो यहां से मुश्किलों में डाला ही जा सकता है। रामविलास राज्यसभा में आ गए है। कांग्रेस कितना जोर लगा पाती है इस पर आरजेडी-एलजेपी का भविष्य तय होगा। फिलहाल तो नीतीश क्लीन स्वीप की ओऱ दिखते है। लेकिन अभी कुछ महीने बाकी है...देखते जाइए क्या होता है।

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