Wednesday, April 7, 2010

ऑपरेशन ग्रीन हंट और नक्सलियों में खलबली।

दंतेवाड़ा में अब तक का सबसे बड़ा हमला किया गया। सीआरपीएफ के ७३ जवान शहीद हो गए। कैसे निपटे इस नक्सलबाड़ी से निकले आग से। क्या चिदंबरम फ्लॉप हो रहे है? या फिर बुद्धदेव और शिबू सोरेन की नासमझी इस मुहिम को लिए सवालों के घेरे में ला रही है। या फिर नक्सलियों का मिशन सफल हो जाएगा। २०५० तक केन्द्र पर सत्ता का सपना। क्या ये पूरा हो जाएगा। सब जानते है सब मानते है नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है। बाहरी आंतकी कभी सफल हो सकते है कई बार आप भी सफल हो सकते है। लेकिन कैसे लड़ा जाए उनसे जो हमारे ही बीच में रहते है। वो हमारी भीड़ का ही हिस्सा होता है। ४ अप्रैल को ही नक्सलियों ने उड़ीसा में ११ जवानों की हत्या कर दी थी। ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू होने के बाद इनकी बौखलाहट बढ़ती जा रही है। साजिश के तहत ये जवानों को निशाना बना रहे है। चिदंबरम ने नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का रोडमैप बनाकर इनकी मुश्किलें बढ़ा दी। अब इनको अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है। सो ये इस तरह की घटना को अंजाम दे रहे है। लेकिन क्या हम इनसे लड़ने को तैयार है। झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन कहते है कि उनसे बड़ा नक्सली कौन। नक्सलवाद पर दिल्ली में बुलाए गए बैठक से गैरहाजिर रहते है। नीतीश का भी कुछ पक्का नहीं है। ग्रीन हंट पर उनकी राय भी अबतक शायद फाइनल नहीं हो पाई है। इधर चिदंबरम ने लालगढ़ से राज्य के पिछड़ेपन की बात क्या कह दी बुद्धदेव लाल हो गए है। गृह मंत्री को तुरंत ही उन्होने जवाब भी दे दिया। कहां से आया ये नक्सलवाद, कैसे आया और कौन है इसका जिम्मेदार। जाहिर है जब इलाकों में विकास का रास्ता बंद हो गया, सरकार को आम लोगों की फिक्र नहीं रही। कुछ लोग फायदा उठाते रहे और अधिकतर बदतर जीवन जीते रहे तो कुछ लोगों ने शुरू किया। धीरे-धीरे ये ग्रुप हिंसा में विश्वास करने लगा। पहले ये मालदार लोगों को निशाना बनाते और फिर लूट-छीनाझपटी से हासिल किया माल खुद में गरीब लोगों में बांट दिया करते। धीरे-धीरे इसका भी विस्तार होता चला गया और उन्होने अपनी एक समानांतर सरकार बना ली। जहां सिर्फ उनका ही राज है। बाहरी दुनिया का कोई वहां नहीं जा सकता। उनकी अपनी दुनिया है। छत्तीसगढ़ का अबुझमार भी ऐसा ही जगह है। जो अबतक लोगों के लिए अबुझ ही बना हुआ है। कोई नहीं समझ पाया। घने जंगल और पहाड़ में इनकी बस्ती होती है। जहां जाने के सारे रास्ते इनकी मर्जी पर होते है। सवाल ये है कि आखिर कबतक नक्सली जवानों को मौत के घाट उतारते रहेंगे। आखिर कबतक? क्या कोई विकल्प है। ये बताने की जरूरत नहीं है कि इन्हे हिसां में विश्वास है। ये बैठकर बात करने को शायद ही तैयार हो। इन्हे जवानों को मारकर मजा आता है। शायद उसके बाद ये जश्न भी मनाते है। आम लोगों को भी ये नहीं छोड़ते। जहां इन्हे ये शक हुआ कि ये पुलिस को हमारी सूचना देता है। उसका खेल खत्म। बच्चों के स्कूलों पर भी इन्हे तरस नहीं आती। हाल ही इन्होने बच्चों से माफी मांगी थी लेकिन अपना घटिया तर्क भी सामने रखा था। चिदंबरम राजनीति के जानकार नहीं है वो आर्थिक मामलों के जानकार है जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री। ये दोनों ही विकास को सबसे आगे रखते है सरकार आए जाए की चिंता नहीं रहती। ना ही ये किसी मुगालते में रहते है कि इंडिया शाइन हो रहा है कि नहीं। यहीं सब बातें उन नेताओं को नहीं समझ आती जो कब किसके साथ खड़े हो कहना मुश्किल है। शिबू सोरेन के बारे में बताने की जरूरत नहीं। उनपर पक्का यकीन करना चिदंबरम के लिए बड़ा मुश्किल है। बयानबाजी से नक्सलियों का सामना नहीं किया जा सकता। अपने ही लोगों जो बिगड़ चुके है जिनके मन में ये बैठ गया कि क्रांति ऐसी आती है...उन पर हमला करने से भी हल नहीं हो सकता। और वो आदिवासी जिनके घरों में आज भी दो वक्त की रोटी नहीं हो पाती वो कैसे सरकार पर यकीन करे। वो क्यों ना नक्सलियों के समर्थन में आ जाए। भले ही नक्सली उसके बदले उनके जीवन स्तर में कोई भी सुधार नहीं कर पाते हो। विकास से ही आदिवासियों का दिल जीता जा सकता है। सबके घर में दो वक्त की रोटी आ जाएगी तो फिर कोई आदिवासी नक्सलियों की मदद नहीं करेगा। वो पुलिस को सही जानकारी देगा। इसमें वक्त लगेगा और तब तक नक्सली इस तरह के कायरतापूर्ण हमले करते रहेंगे। बस इस हमलों में हम जान-माल को कम से कम नुकसान होने दे इसपर सोचना होगा। सूचना तंत्र फेल हो गया जिसकी वजह से दंतेवाड़ा में ये बड़ा हमला हुआ। कहना आसान है। ये भी कुछ लोग कह रहे है कि कोई प्लानिंग नहीं थी। ऐसा नहीं होता। हम घर से बाहर निकलते है तो ये तय कर जाते है कि क्या करना है। कहां जाना है औऱ क्यों जाना है। ये सब बेकार की बाते है जो बड़े हमलों के बाद ऐसे ही आनी-जानी शुरू हो जाती है। सच ये है कि हम बड़ी लड़ाई लड़ रहे है और कुछ नुकसान उठाना पड़ेगा. जिसको हमारे पूर्व के नेताओं ने फलने-फूलने दिया उस पर काबू पाने के वक्त तो लगेगा...लेकिन कुछ भी असंभव नहीं अगर ठान लीजिए............

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