Sunday, November 1, 2009

स्पेशल ट्रेन तो स्पेशल ही है...

छठ के मौके पर बिहार जाने वाली ट्रेनों में अगर आपको कनफर्म टिकट मिल गयी हो तो आपसे भाग्यशाली कोई नहीं। नहीं मिली तो भी जाना है...खैर दो दिनों तक तत्काल में टिकट ना मिला था...तो गया की तरफ से चला गया....उधर की टिकट थी...गया से बस से पटना होते हुए मुजफ्फरपुर पहुंचा। गया, जहानाबाद होते हुए पटना। नक्सली इलाके से जाते वक्त पता नहीं क्या होता है...आज भी याद है जहानाबाद जेल ब्रेक कांड की घटना..जब ईटीवी में होता था...जहानाबाद रिपोर्टर का फोन...और फिर न्यूजरूम से लेकर पीसीआर तक अफरातफरी...मैं उस दिन पहली बार लौटते वक्त पंच करना भूल गया था...आप लोगों को देखकर ये SURE होना चाहते है कि ये नक्सली है या नहीं। पता नहीं सबके साथ होता है या नहीं। लेकिन मैं ये FEEL कर रहा था। इलाके का पिछड़ापन बता रहा था कि यहां विकास की परछाई अब तक नहीं पहुंची है। मैं यहीं सोचता रहा जब नक्सल प्रभावित क्षेत्र में दूसरे जगहों से सुरक्षा बल आते होंगे तो लोगों के साथ कैसे तालमेल बिठा पाते होंगे...उन्हे तो ना तो उस इलाके के बारे में जानकारी होती है और ना ही लोगों के बारे में। वो तो हर चेहरे को शक की नज़र से देखते होंगे। खैर इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। अब स्पेशल ट्रेन पर आते है। 26 को लौटना था। दरभंगा दिल्ली दीपावली एक्सप्रेस से। ये ट्रेन दीपावली-छठ के मौके पर विशेष रूप से चलाई जा रही थी। शायद अब बंद हो गई होगी। मुजफ्फरपुर में ट्रेन का वक्त शाम छह बजकर तीस मिनट था। पता किया तो ट्रेन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। अभी डाउन ट्रेन दरभंगा ही नहीं गई थी वो अभी लौट रही थी। अंत में बताया गया बारह बजे के आस-पास एक बार पूछ लिजीएगा। पता चला कि नौ बजे डाउन ट्रेन मुजफ्फरपुर में आ गई है। अब उसे दरभंगा तक जाना है और फिर लौट कर आना है। खैर आखिरकार ढ़ाई बजे ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची। ट्रेन चल रही थी...रूक रही थी...दूसरी ट्रेनों को रास्ता दिया जा रहा था...ना टीटीई और ना ही कोई सुरक्षा बल...भगवान भरोसे सुरक्षा...भगवान भरोसे यात्रा....हद तो ये हो गई कि जो ट्रेन हमसे सात घंटे बाद चली थी उसने भी कानपुर में ओवरटेक कर लिया...कानपुर में पुलिस के जवान झारखंड दौरे के लिए ट्रेन पकड़ रहे थे...झारखंड चुनाव में उनकी ड्यूटी लगी है...किसी के चेहरे पर तनाव नहीं..सब खुश थे...इधर सत्ररह घंटे देर ट्रेन गाजियाबाद पहुंची....पता नहीं नई दिल्ली जाने में अभी उसे और कितने वक्त लगे होंगे...दरअसल ये स्पेशल ट्रेन जबरदस्ती की बनाई होती है...इससे यात्रियों का कोई भला तो नहीं होता....रेल को फायदा होता है...इस स्पेशल ट्रेन को जगह देना मुश्किल होती है क्योंकि रेगुलर ट्रेने की जो भरमार है। ऐसे में बेहतर होता जो ट्रेने चल रही है उसी में कुछ अतिरिक्त डब्बे लगा दिए जाए जिससे रेल को फायदा तो हो ही यात्रियों को भी थोड़ी सी ही सुविधा मिल जाए....इसमें दीदी ममता की गलती नहीं है...रेलवे में ऐसे ही चलता आ रहा है...आगे भी स्पेशल ट्रेन चलती रहेंगी...लेकिन यकीन मानिए जिन्होने भी इस स्पेशल ट्रेन से यात्रा की वो आगे कभी स्पेशल ट्रेन में नहीं चढ़ेंगे .....

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