Thursday, July 30, 2009

प्रॉब्लम यहाँ भी है....


तिरंगे में कितने रंग होते हैं....????.....जी तीनऔर चक्र नहीं होता क्या...???...होता है..कौनसे रंग का...???....
नीला तो फिर चार रंग हो गए न इतना नहीं पता तुम्हें...????......आप सोच रहे होंगे की मैं तिरंगे को लेकर ये क्या लिख रहीं हूं..............
इन सवालों की धार कर रहीं थी किसी के सपनों को तार-तार......यहां पर एक ब्रेक लेते है, पहले में आपकों बताती हूं कि आखिर मामला यहां तक पहुंचा कैसे.....रविवार की खूबसूरत सुबह.. मोबाईल पर एक कॉल... ये कोई ऐसी वैसी कॉल नहीं इंटरव्यू कॉल थी। खुशी का ठिकाना नहीं रहा, भई इसी दिन का तो इंतजार था, फिर क्या शुरू हो गई तैयारी..पूरे दिन टीवी पर न्यूज़ चैनल देखा और अख़बार तो ऐसे पढ़ा जैसे सारी जिन्दगी की मेहनत आज ही हो जाएगी और तो और कंगाली के दौर में नेट पर 10 रूपये भी कुर्बान कर दिए, मिनिस्ट्रीज से लेकर राजनीतिक हलचल तक सब दिमाग के फोल्डर में कैंद हो चुका था...बेचैनी इतनी की रात में कई बार उठकर घड़ी देखी, सुबह समय से पहले ही ऑफिस पहुंच गई....हाथों में झोला और आंखों में चश्मा और दिल में गजब का आत्मविश्वास इतने बड़े चैनल में इंटरव्यू जो था...करीब तीस चालीस लोग थे, एक-एक करके सबका नाम पुकारा जाने लगा दिल की धड़कने बढ़ गईं, मौका मिलने पर बैग में पड़े कुछ कागजों को उलट-पलट रहीं थी। मेरा नंबर भी आ गया दिल में ठान लिया था, जितना भी आता है इंटरव्यू की टेबल पर उड़ेल दूंगी, सामने बड़े-बड़े लोग, इस एक पल खुद को सबसे खुशनसीब मान रहीं थी। करीब बीस मिनट अपनी प्रतिभा का प्रमाण देने के बाद जब बाहर निकली तो सबसे पहले अपनी घनिष्ठ मित्र को फोन किया...आज तो किला फ़तह कर लिया हमने.. शाम को पार्टी होगी सारे सही जवाब दिए है, देखना अब सब सही हो जाएगा...थोड़ी देर में सबको जाने के लिए कह दिया बस मैं रह गई, विश्वास और बढ़ गया कि बस मंजिल दूर नहीं है, ऐसे में तीन घंटे बैठे-बैठे कैसे बीत गए पता भी नहीं चला,फिर एक सज्जन ने बताया आपका एचआर रॉउंड बचा है जाईये मैडम बुला रहीं है मन में कहा पैसा चाहे कुछ भी मिले लेकिन पोस्ट से कोई समझौता नहीं करूंगी...उधर लोग एचआर हेड के दिव्य ज्ञान की चर्चा कर रहें थें... मैं संभलकर आगे गई...चैम्बर में देखा मैडम कुर्सी पर बैठी फोन पर बात कर रहीं थीं,हाथों में रिमोर्ट सामने एलसीडी पर कैटरीना कैफ चल रहीं थी मुझे देखा और बोली.. ओह हो तुम हो !!!....सबसे पहले तुम्हें निपटाती हूं.....एक के बाद एक सवाल, मैं तो समझ ही नहीं पा रहीं थी की हो क्या रहा हैं... अपने बारे में हिन्दी में लिखना जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती बन गया...ख़्वाबों और ख्यालों की दुनिया लुट चुकी थीं, मेरा रिज्यूम तो ऐसे फेंका जैसे कह रहीं हो पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं महज़ पंद्रह मिनट में केबिन के बाहर और अंदर की दुनिया समझ में आ गई ....अपने सपनों की अर्थी कांधे पर लिए बाहर आ गई और आज तक जवाब न मिला क्या था ये साक्षात्कार या मानसिक बलात्कार............ सलाम जिन्दगी के लिए सुधी सिद्धार्थ

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