Thursday, January 13, 2011

अब टैक्स हम नहीं देंगे.......

देश के आम लोग दबी जबान में मौजूदा हालत में ऐसा सोचते थे कि आखिर हम क्यों टैक्स दें। देश के गृह मंत्री ने ही हाल में यह कहकर उनकी सोच को और मजबूती दी है। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कुछ दिन पहले कहा था कि 'महंगाई से बड़ा कोई टैक्स नहीं है। अगर आपकी आमदनी काफ़ी अधिक है, तो उसे महंगाई खा जाती है.' आज हिन्दुस्तान में एक पाठक ने चिदंबरम को साधुवाद देते हुए लिखा है ' गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने हाल ही में कहा कि महंगाई इतनी बढ़ गई है कि अब टैक्स लगाने की जरूरत ही नहीं है। बढ़ती महंगाई के रूप में आम आदमी एक तरह से टैक्स ही अदा कर रहा है। गृह मंत्री का यह वक्तव्य वाकई काबिले तारीफ है। निस्संदेह, इसमें गरीबों की हिमायत भी दिखाई देती है। अत: गृह मंत्री से अनुरोध है कि वह सरकार को समय-समय पर ऐसे सुझाव देते रहें कि गरीबों पर कोई सरकारी टैक्स नहीं लगना चाहिए। उन्हें प्रणब मुखर्जी और कैबिनेट को अपने तर्को से कायल बनाना चाहिए, ताकि आम आदमी का भला हो सके। '
आखिर हम टैक्स क्यों देते है? ताकि इसके बदले में सरकार को कुछ आय हो और सरकार इसका उपयोग लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने में करे। लेकिन जिंदगी तो बेहतर बनने से रही ये तो बदतर ही होती जा रही है। महंगाई और घोटाले से लोग पागल हुए जा रहे है। देश को ऐसे कृषि मंत्री मिले है जो ज्योतिष तो नहीं हैं लेकिन उनकी बातें व्यापारी तुरंत समझ लेते है। आम लोग भले ही उनकी बात आज तक नहीं समझ सके। पवार कहते है कि इतने दिनों तक चीनी की कीमत कम नहीं होगी। चीनी की कालाबाजारी शुरू हो जाती है और फिर चीनी महंगी होती चली जाती है। पवार कहते है प्याज की कीमतें तीन सप्ताह तक कम नहीं होगी। वो अब तक रूला रही है। पिछले दिनों पवार ने डेडलाइन थी और इसी चक्कर में प्रधानमंत्री ने भी देश को भरोसा दिला दिया था लेकिन हालत और बदतर ही हुए है। आज महंगाई दर में करीब दो फीसदी की कमी आई है लेकिन बाजार में चले जाइए सामान उसी दाम पर बिक रहे हैं। महंगाई पर पीएम ने बैठक बुलाई थी। दो दिन पहले...वहां पर प्रणब और पवार में भिड़ंत हो गई। दादा उठ कर चले गए। अब दादा कह रहे हैं कि मार्च तक कीमतें कम हो जाएंगी। कैसे भरोसा किया जाए दादा का? खबर तो ये भी है कि पीएम चिदंबरम को वित्त मंत्री के रुप में देखना चाहते हैं...फिर तीन महीने बाद दादा भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे? तब हम और आप क्या करेंगे? घोटालों की ऐसी बाढ़ लगी है कि सब खुद को डुबोने में लगे है। रेस लगी है कौन किससे ज्यादा बड़ा घोटाला कर सकता है? कौन देश को सबसे ज्यादा चुना लगा सकता है? अब तो लोगों को एकाउंट के ऐसे शब्द भी मैसेज और फेसबुक पर डालने पड़ रहे हैं.....
1 Lac = 1 Peti1 crore = 1 khokha500 crore = 1 Madhu Koda......1000 crore = 1 Nira Radia10000 crore =1 kalmadi100000 crore - 1 A Raja10 kalmadi + 1 A Raja = Sharad पवार
काफी है इतना बतलाने के लिए इन लोगों ने देश को कितना भारी नुकसान पहुंचाया है। इसका नुकसान हम आम लोग क्यों भरे? सरकार के पास कोई भी ऐसा तर्क है जिसपर वो ये कहे और कर दाताओं को संतुष्ट कर दें कि टैक्स देना चाहिए। शायद नहीं। इन दिनों कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के महंगाई पर बयान ने राजनीति तेज कर रखी है। काश ये नेता महंगाई दूर करने के उपायों पर गंभीरता से चिंता करते जितनी इनकी बयानबाजी में दिख रही है।
चलिए अब कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लें। इनकम टैक्स की साइट पर ये जानकारी दी गई है॥' शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रहणों ने एक करोड़ खरब रूपये को पार कर लिया और पिछले वित्तीय वर्ष अप्रैल- अक्तूबर की अवधि के दौरान 1,73,447 करोड़ रूपए से बढ़कर 31 अक्तूबर, 2010 को 2,04,351 करोड़ रूपए हो गया, जिसमें 17।82% की वृद्धि दर्ज की गयी । इससे साफ है कि फायदा इन्हे हो रहा है लेकिन आम लोगों को तो घाटा ही घाटा हो रहा है।
अब कुछ घोटाले के आंकड़े पर नजर डाल ली जाए। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कितने का घोटाला किया अब भी ये डाटा साफ नहीं है। कोई 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला बताता है तो कोई 4000 करोड़ से ज्यादा का लेकिन डाटा साफ नहीं है। पूर्व संचार मंत्री ए राजा ने भी देश को रंक करने में कोई कमी नहीं की। 1 लाख 76हजार करोड़ रूपए का देश को सीधे-सीधे नुकसान करा डाला। कलमाडी एंड कंपनी ने तो देश की इज्जत पर ही सवालिया निशान लगा दिया था। घोटाला जो किया सो किया। कॉमनवेल्थ गेम्स में 668 करोड़ के घोटाले की बात बताई जाती है। इधर आज के एक समाचार पत्र पर यकीन करे तो कलमाडी ने लाखों पाउंड की हेराफेरी की बात पहली बार सीबीआई के सामने मानी है। बड़ा सवाल ये है कि आखिर इन घोटालेबाजों से पैसा वसूल क्यों नहीं किया जा रहा। अगर सरकार ऐसा करने में समर्थ नहीं है तो वो इसकी जानकारी लोगों को दे दें फिर लोग ही इन घोटालेबाजों से पैसा वसूल कर लेगी। देश के लोगों की मेहनत की कमाई टैक्स में जाए और ये घोटालेबाज इस टैक्स पर मौज मनाए...किसी को नहीं पसंद आ रहा। जागिए सरकार नींद से जागिए। अगर जनता जाग गई तो क्या होगा, ये भी सोच लीजिए।
इन सबसे अलावा स्विस बैंक में भारतीयों के पैसों की बात भूल गए क्या? किसके-किसके पैसे वहां है अब तक किसी को पता नहीं है या शायद सरकार को पता है तो बताना नहीं चाहती। स्विस बैंक में भारतीयों के पैसों की जानकारी के बात एक अखबार ने कुछ ऐसा छापा था। 'भारत गरीबों का देश है, मगर यहां दुनिया के बड़े अमीर बसते हैं।' यह बात स्विस बैंक की एक चिट्ठी ने साबित कर दी है। काफी गुजारिश के बाद स्विस बैंक एसोसिएशन ने इस बात का खुलासा किया है कि उसके बैंकों में किस देश के लोगों का कितना धन जमा है। इसमें भारतीयों ने बाजी मारी है। इस मामले में भारतीय अव्वल हैं। भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है। हालाकि बाद में इस अखबार ने स्पष्टीकरण भी छापा जिसमें कहा गया कि उसके पास इसके प्रमाणिक दस्तावेज नहीं सो तथ्यों के बारे में सही-सही नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर एक भी ऐसा कारण समझ नहीं आता जिससे कहा जाए हमें सरकार को टैक्स देना चाहिए। अगर आपको भी ऐसा लगता है तो इस पर लिखें।
नोट...एक मित्र जलज ने इस विषय पर कुछ लिखने को कहा था। वे काफी नाराज है मौजूदा हालात से। क्या आप भी?

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