Thursday, August 20, 2009

तो जसवंत को जाना ही पड़ा.....जिन्ना प्रेम ने उनके राजनीतिक करियर की बलि ले ली....जसवंत कहते है उन्हे हनुमान से रावण बना दिया गया.....करीब 30 साल तक जिस पार्टी के लिए काम किया...वित्त और विदेश मंत्रालय की कमान संभाली उन्हें देश की सबसे अनुशासित माने जाने वाली पार्टी(वो खुद मानते है) बीजेपी ने एक फोन कॉल कर कह दिया की भइया आपको पार्टी की प्राथमिक सदस्या से निष्कासित किया जाता है...पार्टी विद ए डिफरेंट का माला जपने वाली पार्टी का ये डिफरेंट तरीका था....वो कोई मौका नहीं गंवाते खुद को डिफरेंट दिखाने का....जसवंत को बाहर करने का तरीका भी उनका ऐसा ही है...वैसे तो शिमला की वादियों में पार्टी की लोकसभा में हुई करारी हार की समीक्षा होनी थी...लेकिन पार्टी के लिए जिन्ना का जिन्न ज्यादा नुकसानदेह साबित हो रहा था...सो पार्टी ने जिन्ना के भूत से पहले छुटकारा पाना बेहतर समझा....जसवंत कहते है उनकी किताब से पार्टी का कोई लेना देना नहीं...वो उनकी निजी राय है और निजी राय को सबके सामने रखने का अधिकार सबको है...जैसा की इस ब्लॉगर को भी...तो फिर बीजेपी में इतनी हाय-तौबा क्यों...हंगामा क्यों है बरपा....दरअसल बीजेपी हाईकमान वसुंधरा को डील करने में बुरी तरह असफल रहा...राजनाथ के फरमान को वसुंधरा ने पलक झपकते ही ठुकरा दिया...राजनाथ मन मसोर कर रह गए....पार्टी अध्यक्ष है लोकसभा चुनाव भी जीते है....वो भी गाजियाबाद की सीट से....जहां अधिकतर लोग उनकी हार तय मान रहे थे....ऐसे में राजनाथ राजस्थान हार चुकी महारानी को कैसे माफ कर सकते है...महारानी के समर्थन में लगभग सारे विधायक दिल्ली तक हाजिरी लगा चुके है...आडवाणी ने तो उन्हे समय ही नहीं दिया....दो विधायक सस्पेंड भी कर दिए गए है....लेकिन इतना काफी नहीं था....तो क्या बीजेपी ने महारानी का हिसाब जसवंत से बराबर किया....महारानी से पिटी हुई पार्टी ने जसवंत को बाहर का रास्ता दिखा दिया...ये संदेश देने की कोशिश की की अनुशासनहीनता बर्दास्त नहीं की जाएगी....पार्टी नेता हद में रहे तो आलाकमान की मुश्किलें ना बढ़ाए...साथ ही महारानी को ये संदेश दिए जाए की आदेश ना मानने पर पार्टी किस हद तक जा सकती है....जिन्ना कब के इस दुनिया को छोड़ कर जा चुके लेकिन अपने आप में ये अजीबोगरीब है की उनपर बयान देने पर किसी को पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ती है तो किसी को पार्टी से ही बाहर दिखा दिया जाता है। जैसे ही जसवंत के जिन्ना प्रेम की ख़बर चली सुषमा स्वराज ने तुरंत ही इससे किनारा कर लिया...राजनाथ सिंह का बयान भी जल्द ही आ गया और फिर तो पार्टी नेताओं में बयान देने की होड़ सी लग गई...लेकिन नहीं आया तो आडवाणी का बयान...निश्चित तौर से उनकी टिप्पणी दिलचस्प होती....अब सवाल ये भी है की जिन्ना से नाराजगी थी या फिर पटेल के अपमान से...अगर ऐसा है तो नाहक में ही जिन्ना का नाम हो गया...वैसे ये तो तय ही निर्णय लेने से पहले पार्टी के शायद ही किसी नेता ने इस किताब को देखा हो...इसी से पता चलता है की बीजेपी में निर्णय किस आधार पर लिया जाता है...ये हाल है देश की सबसे अनुशासित पार्टी का दंभ भरने वाली पार्टी के कर्त्ता-धर्ताओं का...ऐसे में राम ही मालिक है...या जिन्ना...ये तो बीजेपी वाले ही बेहतर बता सकते है...खैर चिंतन बैठक में हार पर समीक्षा होनी थी...अब ऐसे माहौल में क्या हार पर चिंतन करना....जिन्ना पर चिंतन करीए....एक अपडेट है मोदी ने गुजरात में इस किताब पर बैन लगा दिया...आने वाले दिनों में दूसरे बीजेपी राज्यों में भी ऐसा हो सकता है...खैर अब जसवंत का क्या होगा...शायद उनके लिए ये बेहतर exit है...पार्टी टिकट ना देती तो बुरा होता...अब बीजेपी पार्टी पर अक्सर दोहरे मापदंड का आरोप लगता रहेगा...एक ही गलती के लिए पार्टी में अलग-अलग सज़ा का प्रावधान है...एक पीएम इन वेटिंग बन जाते है दूसरे साफ बोल्ड....दरअसल इस निर्णय के बाद बीजेपी खुद फंस गई है...decision making की उसकी क्षमता पर फिर सवाल खड़े हो गए है जैसा की कंधार कांड पर सवाल उठते रहते है...
क्या बीजेपी को किसी को भी अपनी बात रखने का अधिकार है....जसवंत सिंह को बाहर किए जाने के बाद ये साफ हो गया है नहीं ऐसा नहीं है...आप पार्टी आलाकमान के फैसले की धज्जियां उड़ाते रहे, पार्टी कोई कार्रवाई नहीं करेगी...लेकिन अगर कुछ लिखते है, बोलते है तो इस पर कार्रवाई होगी...अब जिस पार्टी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो ऐसा पार्टी को तो वोट नहीं ही करना चाहिए...मौत के सौदागर खुलेआम घूम रहे है...पार्टी के सबसे प्रियों में से एक है....लेकिन जसवंत को बलि का बकरा बना दिया गया....संभल जाओ बीजेपी वालों दिल्ली धीरे-धीरे बहुत दूर होती जा रही है....कहीं ऐसा ना हो की ये इतनी दूर चली जाए की दिखना तो छोड़िए सोचना भी मुश्किल हो जाए.....

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